धर्म सुधार आंदोलन से आप क्या समझते हैं?

धर्म सुधार आंदोलन

मध्यकाल में यूरोप की बर्बर जातियों के आक्रमण से सुरक्षा करने के उद्देश्य से तथा धार्मिक जीवन को उत्कृष्ट बनाने के लिए रोमन कैथोलिक चर्च की स्थापना की गई थी. इस चर्च ने मध्ययुग में सभ्यता के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक सराहनीय कार्य किए. लेकिन 16वीं शताब्दी आते-आते यूरोप के चर्च की स्थिति में गंभीर परिवर्तन होने लगा. चर्च में अनेक दोष उत्पन्न हो गए थे. चर्च भ्रष्टाचार और विलासिता का केंद्र बनने लगे. पोप खुद को ईश्वर का प्रतिनिधि समझने लगे थे. उनकी आज्ञा सर्वोपरि होती थी. वह किसी भी राजा को पदच्युत कर सकते थे. किसी भी देश के गिरजाघर को बंद कर सकते थे तथा किसी को भी इसाई समाज से बहिष्कार कर सकते थे. धार्मिक क्षेत्र के अलावा राजनीतिक क्षेत्र में भी हस्तक्षेप करने लगे थे. इस प्रकार चर्च और पोप में बढ़ती बुराई को रोकने तथा इसमें सुधार लाने के लिए सोलहवीं शताब्दी में इंग्लैंड और यूरोप में आंदोलन हुआ. इसी  आंदोलन को धर्मसुधार आंदोलन के नाम से जाना जाता है.

धर्म सुधार आंदोलन

इस धर्म सुधार आंदोलन में जर्मनी के मार्टिन लूथर का सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहा. उसने पोप का घोर विरोध किया तथा एक नवीन संप्रदाय को जन्म दिया, जिसे प्रोटेस्टेंट कहते हैं. मार्टिन लूथर के प्रयासों से पोप और चर्च के अधिकार कम हो गए. इससे तत्कालीन धार्मिक व्यवस्था में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ. इसके परिणाम स्वरूप पोप के शक्ति कम हो गई तथा चर्च पर राजा का अधिकार हो गया. इसका समाज में भी बहुत ही व्यापक प्रभाव पड़ा. इसके कारण आर्थिक सुधार भी काफी तेजी से होने लगा.

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