धार्मिक क्रांति के कारणों का उल्लेख करें

प्राचीन भारत में हुए धार्मिक क्रांति

ई. पू छठी शताब्दी में भारत में हुए धार्मिक क्रांति का कोई एक विशिष्ट कारण नहीं था, बल्कि अनेक कारणों में मिलकर एक विद्रोह का धारण किया था. इस समय भारत के सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में ब्राह्मण वर्ग का दबदबा था. उन्होंने भारतीय समाज को अपने जटिल कर्मकांडों और जाति प्रथा की जटिलता से जकड़ रखा था. जिसकी वजह से आम लोगों के लिए ऐसे जटिल कर्मकांडों को करना बहुत ही कठिन हो रहा था. इसी समय अनेक सुधारवादी संप्रदायों का प्रादुर्भाव हुआ. उन्होंने ब्राह्मण वर्गों के इस परंपरागत विचारधाराओं का घोर विरोध किया.

धार्मिक क्रांति

प्राचीन भारत में हुए धार्मिक क्रांति के कारण

1. धार्मिक चिंतन की स्वतंत्रता

भारत में प्राचीन काल से धार्मिक चिंतन की स्वतंत्रता रही है. इस युग में अनेक ऐसे दार्शनिकों का प्रादुर्भाव हुआ जिन्होंने प्राचीन काल से परंपरागत रूप से चली आ रही ब्राह्मण धर्म तथा वेदों को आलोचनात्मक दृष्टि से देखा तथा उन पर मनन चिंतन करना शुरू किया. इसके बाद  उन्होंने इसे यथावत स्वीकार करना उचित ना समझा. इन विचारकों ने वेदों को अपूर्ण और दोष युक्त प्रमाणित करने की चेष्टा की. इस प्रकार इन विचारकों ने प्राचीन काल से विद्यमान धार्मिक व्यवस्था में परिवर्तन लाने का प्रयास किया. 

2. अनेक देवी-देवता

वैदिक धर्म में अनेक प्रकार के देवी देवताओं की कल्पना की गई तथा उन्हें पूज्य मानते आराधना की जाती थी. इस काल में लोग देवताओं को अपना मित्र समझते थे, परंतु ब्राह्मणों के विचारधारा ने स्थिति को धीरे-धीरे परिवर्तन कर दिया. अब प्रत्येक कार्य के लिए उसे संबंधित देवता की पूजा करना अनिवार्य हो गया. अब लोग मानने लगे कि यदि उस देवता की आराधना नहीं की गई तो अनिष्ट हो जाएगा. अतः वह न चाहते हुए भी आराधना व अनुष्ठान करने के लिए खुद को बाध्य मानते थे. अब देवता और मनुष्य के संबंध मित्र का न हो कर मालिक और भिखारी की तरह हो गया. ऐसी स्थिति में इस बात का दार्शनिकों के द्वारा विरोध किया जाने लगा.

धार्मिक क्रांति

3. धार्मिक जटिलता

वैदिक काल में धर्म काफी सरल थी. प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसका पालन करना आसान था. किंतु धीरे-धीरे  ई. पू. छठी शताब्दी आते-आते यह धर्म काफी जटिल हो गया. अब धर्म की सरलता का स्थान कर्मकांडों ने ले लिया. अब ये कर्मकांड इतना जटिल हो गया था कि हर किसी के लिए कर पाना संभव नहीं था. अब कर्मकांडों का महत्व भी बढ़ने लगे जिससे न चाहते हुए भी इसे करना मजबूरी होने लगा. अब ॠचाओं के स्थान पर तंत्र-मंत्र का उपयोग होने लगा. लोगों को अब यह विश्वास होने लगा कि तंत्र-मंत्र से देवताओं को वश में किया जा सकता है.

4. ब्राह्मणों का नैतिक पतन 

ई.पू. छठी शताब्दी के ब्राह्मणों के चरित्र और विचारधारा में काफी बदलाव आ चुका था. जहां वैदिक युगीन के ब्राह्मणों का जीवन सादगी, तपस्या और त्याग में होता था, वही इस युग के ब्राह्मणों ने भोग-विलास के जीवन को अपना आवश्यक अंग मान लिया और उसी में लिप्त रहते थे. इनके नैतिकता में पतन आने के बाद भी इन्हें समाज में उच्च स्थान प्राप्त था. ऐसे में विवेकशील व्यक्तियों के द्वारा उनका विरोध करना शुरू हो गया.

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5. कठिन एवं खर्चीले यज्ञ 

इस काल तक आते-आते यज्ञ कराना अत्यंत कठिन व खर्चीला हो गया, जिसको कराना एक साधारण व्यक्ति के लिए दुष्कर हो गया था. अब यज्ञ कराना भी प्रत्येक के लिए अनिवार्य कर दिया गया था. अतः यज्ञों की संख्या भी बहुत बढ़ गई. इसमें विभिन्न प्रकार की यज्ञ जैसे कि पितृ यज्ञ, ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ आदि प्रमुख थे. इनको कराना जनता के लिए भी कठिन हो गया. अब यज्ञ करने वाले पुरोहितों की संख्या भी बढ़ गई. पहले जिस यज्ञ को करने के लिए एक पुरोहित करता था, अब उसी यज्ञ को करने के लिए कभी-कभी 17 पुरोहितों को आमंत्रित करना पड़ता था. इसी से यज्ञ में होने वाले खर्चों का सहज अनुमान लगाया जा सकता था. अब यज्ञों में पशु बलि भी दी जाने लगी जिससे विद्रोह की भावना प्रबल हो रही थी.

6. कठिन धार्मिक सहित्य

 ई.पू. छठी शताब्दी तक ब्राह्मण धर्म से संबंधित अनेक धार्मिक साहित्यों की रचना हो चुकी थी. इन रचनाओं की भाषा अत्यंत ही कठिन थी, जिसे समझ पाना सामान्य व्यक्ति के के लिए बहुत ही कठिन साबित हो रही थो. अतः जनसाधारण ऐसे धर्म का पालन करना चाहती थी जो कि सरल हो तथा उनके अनुकूल हो.

7. वर्ण व्यवस्था

इस धार्मिक क्रांति का सबसे प्रमुख कारण वर्ण व्यवस्था थी. इस समय समाज को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्गों में बांट दिया गया था. समाज में ब्राह्मणों का साथ उच्च था तथा शूद्रों का स्थान अत्यंत नीच. शूद्रों की स्थिति भी अत्यंत दयनीय थी. वहीं ब्राह्मणों का नैतिक पतन होने के बाद भी उनको उच्च स्थान पर बैठाकर रखना अन्य वर्ग विरोध करते थे. शूद्र भी ऐसे धर्म का त्याग करना चाहते थे. ब्राह्मणों के लिए तत्कालीन वर्ण व्यवस्था में अलग नियम थे. उनको अनेक सुविधाएं मिली हुई थी. वहीं उनके द्वारा निम्न वर्गों का शोषण किया जाता था.

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8. आर्थिक कारण

ई. पू. सातवीं शताब्दी के दौरान उत्तर प्रदेश और बिहार के क्षेत्र में भारी आर्थिक परिवर्तन हुआ. इस दौरान इस क्षेत्र के लोग बड़े पैमाने पर लोहे का प्रयोग करने लगे थे. लोहे से कृषि उपकरण बनाने लगे थे. कृषि उपकरणों के अविष्कार और लोगों के ज्ञान में वृद्धि कारण गावों और शहरों में एक नवीन वर्ग का जन्म हुआ. इस वर्ग को गृहपति के नाम से जाना जाने लगा. इसके बाद समाज धनी और निर्धन वर्गों में बंट गया. इस नवीन वर्गों का जीवन वैदिक अनुष्ठान आदि के विपरीत था. इनके आर्थिक विकास का कारण पशु थे. लेकिन वैदिक यज्ञों में होने वाले पशु बलि के कारण पशुओं का नाश हो रहा था. ऐसे में विरोध होना शुरू हो गया.

9. दार्शनिकों का जन्म

ई. पू. छठी शताब्दी में अनेक दार्शनिकों का जन्म हुआ. इन्होंने वैदिक ग्रंथों का अध्ययन कर कर उनमें से खामियां निकाली.  इन दार्शनिकों ने तत्कालीन वर्ण व्यवस्था का विरोध किया. उन्होंने  मनुष्य की श्रेष्ठता का आधार जन्म नहीं बल्कि कर्म को माना. इन्होंने ब्राह्मणों को श्रेष्ठ मानने से इंकार कर दिया. इन विद्वानों ने पशु बलि और कर्मकांडों का भी विरोध किया.

इन्हीं सबके कारण ई. पू छठी शताब्दी में एक धार्मिक आंदोलन हुआ. इसके परिणामस्वरूप ब्राह्मण धर्म को काफी अघात पहुंचा. इसके बाद बौद्ध और जैन धर्म का काफी तेजी से प्रसार हुआ. 

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