नवपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं बताइए

नवपाषाण कालीन संस्कृति

मानव जीवन के विकास के लिए इतिहास में नवपाषाण कालीन संस्कृति सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस काल में मानव इतिहास में बहुत से परिवर्तन हुए. इसी काल में लोग कृषि कार्य, पशुपालन जैसे कार्यों की शुरुआत की. इस काल में अन्य नवीन उपकरणों का भी निर्माण किया गया. इसी काल में ही चाक की भी आविष्कार हुई. इस काल में लगभग हर क्षेत्र उन्नति की दिशा में कार्यरत हुई. कृषि तथा पशुपालन आदि के फलस्वरुप लोगों के जीवन में स्थायित्व आया. सुरक्षित खाद्यान्न व्यवस्था के कारण जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने लगी. प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न संकट को छोड़कर मानव जीवन पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित हो गया था. उपकरणों में सबसे अधिक कुल्हाड़ी का प्रयोग किया जाने लगा. 

नवपाषाण कालीन संस्कृति

नवपाषाण कालीन संस्कृति के बारे में विस्तृत अध्ययन करने के लिए हम इसे 6 वर्गों में विभाजित करते हैं:- 1. उत्तर भारत की नवपाषणिक संस्कृति 2. विंध्य क्षेत्र की नवपाषणिक  संस्कृति 3. दक्षिण भारत की नवपाषणिक संस्कृति 4. मध्य गंगा घाटी की नवपाषणिक  5. मध्य पूर्वी नवपाषणिक संस्कृति 6. पूर्वोत्तर भारत के नवपाषणिक  संस्कृति.

नवपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं

1. उत्तर भारत की नवपाषणिक संस्कृति

उत्तर भारत के जम्मू-कश्मीर क्षेत्र के झेलम नदी घाटी में स्थित स्थलों से इस काल के बहुत से अवशेष मिले हैं. क्षेत्र में मुख्य रूप से बुर्जहोम, गुफकराल तथा मार्तंड है. यहां पर इस काल में बने आयताकार मिट्टी तथा कंकड़ पत्थर की दीवारों से बने मकानों के अवशेष प्राप्त हुए हैं. इन अवशेषों में चबूतरे तथा अनेक कमरे होने के प्रमाण भी मिले हैं. इसके अलावा धूसर पात्र परंपरा, हस्तनिर्मित मृदभांड, मिट्टी से बने बर्तन, जिसे विषय लाल रंग से रंगा गया, के अवशेष भी मिले हैं. बुर्जहोम से प्राप्त अवशेषों में कुल्हाड़ी, छैनियां,बसूले, खुरपा, गंडासा, कुदाल आदि के अवशेष मिले हैं. गुफकराल से पाषाण निर्मित गंडासे, गदाशीर्ष तथा हड्डी से बने अनेक उपकरण मिले हैं. इसके अतिरिक्त भेड़, बकरी, छोटे सिंग वाले मवेशियों  के हड्डियों के अवशेष भी मिले हैं. बुर्ज होम के अनेक स्थानों पर धनुष बाण से शिकार करने के दृश्य पत्थर के दीवारों पर अंकित है. इससे यह स्पष्ट होता है कि ये भोजन के लिए शिकार भी किया करते थे. यहां के उत्खनन के पश्चात मुर्गा, कुत्ता, भेड़िया आदि पशुओं के पाले जाने की भी संकेत मिलते हैं. इसके अलावा इनके द्वारा कृषि करने की संकेत भी प्राप्त हुए हैं क्योंकि यहां के उत्खनन के परिणाम स्वरूप जौ, गेहूं, मसूर और मटर के दाने भी प्राप्त हुए हैं.

नवपाषाण कालीन संस्कृति

2. विंध्य क्षेत्र की नवपाषणिक  संस्कृति

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड तथा बघेल खंड क्षेत्र में खुदाई के परिणामस्वरूप नवपाषाण काल की कुहाड़ियाँ प्राप्त की गई. इसके अलावा उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित दक्षिणांचल बेलन घाटी तथा बेलन की सहायक नदी घाटी के आसपास इस काल के प्राचीन अवशेषों की प्राप्ति की गई. इन स्थलों की खुदाई के बाद यह संकेत मिले हैं कि ये गोलाकार या अंडाकार रूप से अपने झोपड़ियों का निर्माण किया करते थे. झोपड़ियों में हस्त निर्मित बर्तनों के टुकड़े, कुल्हाड़ी, हथौड़े, मिट्टी की गोटियाँ तथा अन्य अन्य पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं. इन स्थान में भेड़-बकरियों की हड्डियां भी प्राप्त हुई है. इससे यह सिद्ध होता है कि ये पशु-पालन भी किया करते थे. इसके अलावा धान, पुआल, भूसी आदि के अवशेष मिलने से उनके द्वारा कृषि के कार्य करने के संकेत मिलते हैं.

नवपाषाण कालीन संस्कृति

3. दक्षिण भारत की नवपाषणिक  संस्कृति

दक्षिण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उत्खनन के बाद यहाँ नवपाषाण संस्कृति के बहुत से अवशेष मिले हैं. दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा इस काल के प्राचीन अवशेष कर्नाटक में पाए गए हैं. उसके पश्चात आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भी पाए गए हैं. दक्षिण भारत के नव पाषाण काल की संस्कृति के लोग बांस बल्ली से निर्मित गोलाकार या अंडाकार छुट्टियों झोपड़ियों में रहते थे. ये झोपड़ी साफ-सुथरे और फर्श गोबर से लीपे होते थे तथा दीवारों पर चूना भी लगाया जाता था. इसके अलावा इन स्थलों पर तश्तरी, कटोरे, मिट्टी के घड़े तथा इनके ढक्कन प्राप्त हुए हैं. अन्य उपकरण में कुल्हाड़ी, वसूली, छेनियाँ आदि भी प्राप्त हुए हैं. वे चना, मूंग, कुलथी तथा रागी की खेती भी किया करते थे. वे भेड़-बकरी के साथ-साथ गाय, बैल, भैंस, सूअर आदि जानवरों को पालते थे. कहीं-कहीं मुर्दों के दफनाने का भी संकेत मिले हैं. मृतकों के साथ वे पाषाण उपकरण तथा अन्य वस्तुएं भी रखते थे.

4. मध्य गंगा घाटी की नवपाषणिक

गंगा नदी घाटी में भी उत्खनन के परिणामस्वरूप इस काल के बहुत से अवशेष प्राप्त हुए हैं. इन स्थानों में भी लोग बांस की बल्ली से झोपड़ी बनाते थे. इन स्थलों से बड़ी मात्रा में मिट्टी से बने बर्तन प्राप्त हुए हैं. इन बर्तनों का रंग स्लेटी, काले तथा कुछ लाल रंग के होते थे. इन बर्तनों पर आड़ी-तिरछी  रेखाएं खींची हुई होती थी. उपकरणों में कुल्हाड़ी, हथौड़े, बाण, जैस्पर आदि के अवशेष पाए गए हैं. इन स्थलों पर धान, मूंग, जौ, गेहूं मसूर आदि के खेती करने के प्रमाण मिले हैं. पालतू पशुओं में गाय-बैल भैंस आदि होते थे. इसके अलावा सिंग से बने बहुत से उपकरण भी प्राप्त हुए हैं. इनसे यह  निष्कर्ष निकाला गया कि वे संभावत: शिकार भी किया करते थे.

नवपाषाण कालीन संस्कृति

5. मध्य पूर्वी नवपाषणिक संस्कृति

इस संस्कृति का प्रसार बिहार, पश्चिम बंगाल के पश्चिमी भाग तथा उड़ीसा में देखने को मिलता है. बिहार में बारूडीह, उड़ीसा में मयूरभंज के कुचाई नामक स्थल पर इस संस्कृति के प्रमाण मिले हैं. मिट्टी के बर्तन में हस्त तथा चाक दोनों प्रकार के मृदभांड प्राप्त हुए हैं जो कि लाल, स्लेटी तथा काले रंग के हैं. उपकरणों में कुल्हाड़ी, छेनियाँ, लोढ़े  तथा खंडित गदाशीर्ष प्राप्त हुए हैं. इन स्थानों पर कृषि तथा पशुपालन संबंधी कोई प्रमाण प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त नहीं हुए हैं.

6. पूर्वोत्तर भारत के नवपाषणिक संस्कृति

पूर्वोत्तर भारत में नवपाषाणिक संस्कृति से संबंधित जानकारी असम, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त हुए हैं. इन स्थानों पर मिट्टी के हस्त तथा चार्ट दोनों से निर्मित बर्तनों के प्रमाण मिले हैं. बर्तन मोटे तथा मध्यम आकार के हैं तथा लाल रंग के मृदभांड भी प्राप्त हुए हैं. उपकरणों में पत्थर की कुल्हाड़ी छैनी, सिल-लोढ़े, मुसल आदि प्राप्त हुए हैं. हालांकि इन क्षेत्रों में कृषि संबंधित प्रमाण ज्यादा नहीं मिले हैं, फिर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कृषि और पशुपालन करते होंगे, क्योंकि कहीं-कहीं सीमित संख्या में इन स्थानों में कृषि और पशुपालन के भी संकेत मिले हैं.

नवपाषाण कालीन संस्कृति

भारत के विभिन्न हिस्सों में नवपाषाण काल की संस्कृतियों का पाया जाना इस बात की और स्पष्ट संकेत मिलती है कि भारत के अधिकांश क्षेत्रों में नवपाषाणिक संस्कृतियां विकसित हुई थी. इस काल की संस्कृतियों का अध्ययन प्राचीन भारत के इतिहास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस काल से हमें प्राचीन भारत में हुए मानव विकास के विभिन्न स्तरों की जानकारी मिलती है.

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6 thoughts on “नवपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं बताइए”

  1. विंध्य क्षेत्र की मध्य पाषाणिक संस्कृति के बारे में लेख
    जौर्वे संस्कृति,अतरंजीखेड़ा,भारत में लोहे की प्राचीनता, गैरिक मृदभांड पर टिप्पणी,हड़प्पा सभ्यता की उत्पत्ति एवं भौगोलिक विस्तार,गंगा घाटी की नवपाषानिक संस्कृति,हड़प्पा के विघटन के कारण
    इनके जवाब दो फिर और प्रश्न भी हैं

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