पानीपत का प्रथम युद्ध के कारण
बाबर अत्यंत महत्वकांक्षी शासक था. वह फरगना का शासक बने रहने से संतुष्ट नहीं था. अतः उसने तीन बार समरकंद पर अधिकार किया लेकिन दुर्भाग्यवश तीनों बार समरकंद उसके हाथों से निकल गया. इसके बाद उसने समरकंद पर अधिकार करने का इरादा त्याग दिया. समरकंद में असफल हो जाने के पश्चात उसका ध्यान भारत की ओर केंद्रित हुआ. उसे अपने विशाल साम्राज्य स्थापित करने और अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए भारत से बेहतर कहीं नहीं लगा. अतः उसने भारत की ओर अपना अभियान करना शुरू कर दिया. पंजाब पर अधिकार करने के बाद दिल्ली पर अधिकार करके यहां अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहता था. इस समय दिल्ली में लोदी वंश के शासक इब्राहिम लोदी का शासन था.
पानीपत का प्रथम युद्ध
इब्राहिम लोदी के पास एक विशाल सेना थी. इनकी संख्या 50 हजार से 1 लाख के बीच बताई जाती है. उसके विपरीत बाबर के पास मात्र 12 से 15 हजार सैनिक थे. सैनिकों की संख्या के मामले में इतिहासकार अलग अलग दावा करते हैं. इसी बीच बाबर ने अनेक भारतीय सरदारों का सहानुभूति प्राप्त करने में सफल रहा और उसके उनके मदद से दिल्ली पर आक्रमण करने का साहस बढ़ा. बाबर के साथ उसका पुत्र हुमायूं भी था. उन्होंने अपनी सेना के साथ सरहिंद और अंबाला होते हुए दिल्ली की ओर प्रस्थान किया. इस बात की सूचना इब्राहिम लोदी को मिली और उसने भी एक विशाल सेवा के साथ बाबर के का सामना करने के लिए दिल्ली से कूच किया. दोनों की सेनाएं पानीपत के मैदान में आमने-सामने खड़ी हो गई.
बाबर और इब्राहिम लोदी की सेना लगभग एक सप्ताह तक आमने-सामने खड़ी रही. किंतु दोनों में से किसी ने एक-दूसरे पर आक्रमण करने का साहस नहीं किया. अंतत: 19 अप्रैल 1526 ई. को बाबर ने इब्राहिम लोदी की सेना पर रात को आक्रमण किया, लेकिन यह आक्रमण असफल रहा. इसके पश्चात 21 अप्रैल को इब्राहिम लोदी की सेना ने आगे बढ़कर बाबर की सेना पर आक्रमण किया. इसके जवाब में बाबर ने अपनी सेना की व्यूह रचना अत्यंत कुशलता से किया. बाबर की सेना ने तीन तरफ से लोदी की सेना को घेर लिया और एक ओर से तोपखाने तथा दो ओर से तीरों से इब्राहिम लोदी की सेना पर आक्रमण किया गया. इस व्यूह रचना के समक्ष इब्राहिम लोदी की सेना टिक ना सकी और अंत में वह पराजित हो गए. इब्राहिम लोदी अपने हजारों सैनिकों के साथ इस युद्ध में मारा गया.
इब्राहिम लोदी के मारे जाने के बाद बाबर ने हुमायूं और ख्वाजा को आगरा पर अधिकार करने भेजा. एक अन्य दल को उसने दिल्ली पर अधिकार करने भेजा. इस प्रकार दिल्ली और आगरा पर उसका अधिकार हो गया. 17 अप्रैल 1526 ई. को वह दिल्ली की सिंहासन पर बैठा. इस प्रकार भारत पर बाबर के द्वारा मुगल शासन की स्थापना हुई.
पानीपत के प्रथम युद्ध के परिणाम
1. लोदी वंश का पतन
पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी की मृत्यु हो गई. इसके साथ ही लोदी वंश के शासन का हमेशा के लिए पतन हो गया. इस युद्ध की महत्व पर प्रकाश डालते हुए डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है कि पानीपत की युद्ध के साथ ही दिल्ली साम्राज्य बाबर के हाथ में आ गया और इससे लोदी वंश की शक्ति छिन्न-भिन्न हो गई. भारत की सत्ता चुगताई तुर्कों के हाथ में चली गई. लोदी वंश के पतन के साथ ही दिल्ली सल्तनत का भी पतन हो गया. इस प्रकार भारत में एक ही वंश की स्थायी शासन की स्थापना हुई.
2. मुगल वंश के शासन की स्थापना
पानीपत के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद दिल्ली का साम्राज्य बाबर के हाथ में आ गया. इस प्रकार उसने 1526 ई. में भारत में मुगल शासन की स्थापना की. मुगल साम्राज्य के स्थापना करने के बाद उसके द्वारा भारत को श्रेष्ठ, सुर्योग्य एवं शक्तिशाली शासन प्राप्त हुई. इसके अधीन देश को एक यौगिक संस्कृति के विकास का नवीन प्रयोग करने का अवसर मिला.
3. भारत को अपार हानि
पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी के पराजित होने के कारण भारत को अत्यधिक जन-धन की हानि का सामना करना पड़ा. इस युद्ध में जीतने के बाद बाबर को अपार धनराशि प्राप्त हुई. बाबर ने उसे लूट कर अपने सैनिकों और काबुल की जनता में बांट दिया.
4. राजपूतों को निराश
पानीपत की युद्ध से पहले अनेक राजपूत राजा दिल्ली पर अधिकार करने का स्वप्न देख रहे थे क्योंकि इस समय इब्राहिम लोदी की साम्राज्य की स्थिति अत्यंत कमजोर थी. लेकिन इसी बीच बाबर द्वारा दिल्ली में हस्ताक्षेप करने के कारण उनकी इस योजना पर पानी फिर गया. इसके साथ ही स्पष्ट हो गया कि अब राजपूतों को बाबर का सामना करना पड़ेगा क्योंकि वह अत्यधिक महत्वाकांक्षी और शक्तिशाली शासक था.
1526 ई. में हुए पानीपत के युद्ध एक निर्णायक युद्ध था. इससे भारतीय इतिहास में एक नवीन युग का आरंभ हुआ. बी.एन. मजूमदार ने इस युद्ध के विषय में लिखा है कि पानीपत की लड़ाई लोदी वंश के लिए कैनी के युद्ध के सम्मान थे. इस युद्ध ने लोदी वंश के साम्राज्य और प्रभुता को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया. इससे एक युग का पतन हुआ और दूसरे का आविर्भाव हुआ. इस प्रकार दिल्ली सल्तनत का युग खत्म हुआ और मुगल युग की स्थापना हुई.
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