पानीपत के तृतीय युद्ध के कारणों की व्याख्या करें | पानीपत का तृतीय युद्ध के क्या कारण थे?

पानीपत के तृतीय युद्ध

अफगान देश के एक कबीले के नेता अहमदशाह अब्दाली ने 1761 ई. में पांचवीं बार आक्रमण किया. उनका ये आक्रमण भारत के तत्कालीन मराठा साम्राज्य के विरुद्ध था. पानीपत के मैदान में मराठों और अफगानों के बीच भीषण युद्ध हुई. इस युद्ध को पानीपत के तीसरी युद्ध के नाम से जाना जाता है. 

पानीपत के तृतीय युद्ध

पानीपत के तृतीय युद्ध के कारण

1. नादिरशाह के आक्रमण से प्रेरणा

1739 में जब नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया था तब अहमदशाह उसका सेनापति बनकर आया था. उस समय उसने मुग़ल सम्राटों ही शक्तिहीनता और अयोग्यता और उनके साम्राज्य की कमजोर दशा  भांप लिया था. अत: वह समझ गया की मुग़ल साम्राज्य किसी सशख्त आक्रमण का  कर पायेगा. अत: भारतीय साम्राज्यों की कमजोर दशा ने उसे भारत पर आक्रमण करने को प्रेरित किया.  

2. मुग़ल दरबार का आंतरिक संघर्ष

मुगल दरबार में ईरानी और हिंदुस्तानी अमीरों के बीच परस्पर ईर्ष्या और द्वेष की भावना थी. उनमें परस्पर प्रतिद्वंदिता होते रहता था. उनके हमेशा सत्ता, अधिकार, धन की प्राप्ति के लिए परस्पर संघर्ष होते रहता था. इस कारण मुगल साम्राज्य में एकता का अभाव था. विदेशी आक्रमणकारी मुगल दरबार की आपसी संघर्ष को भांप गया था. वे समझ गए कि मुगल साम्राज्य बाहरी आक्रमण का मुकाबला करने में असमर्थ है. अतः अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण करने की योजना बनाई.

पानीपत के तृतीय युद्ध

3. मुग़ल साम्राज्य का निरंता विघटन

आपसी कलह ने मुगल साम्राज्य को बहुत ही कमजोर कर दिया. इस कारण प्रभावशाली अमीरों, प्रांतीय सूबेदारों और शासकों में स्वतंत्र राज्य की स्थापना करने की प्रवृत्ति को जन्म लिया. इस कारण मुगल साम्राज्य से अलग होकर अवध, बंगाल, बुंदेलखंड, राजस्थान, बिहार, उड़ीसा, मालवा और दक्षिण के अनेक प्रांत स्वतंत्र राज्य बन गए. इस कारण मुगल साम्राज्य पतन की ओर बढ़ता चला गया. ऐसे में विदेशी आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित हुए.

4. मराठा-मुग़ल संधि

1752 ई में मराठों ने अपने राजनीतिक और आर्थिक लाभ के लिए मुगलों से संधि कर ली थी. इस संधि के कारण मुगल साम्राज्य की सुरक्षा का उत्तरदायित्व मराठों के कंधे पर आ पड़ी थी. मराठा धन की लालच में इस सूधि को किए थे. जिसके कारण मुगल दरबार के अमीर और सूबेदार जी मराठा विरोधी बन गए. इसके अलावा मराठा मुगल दरबार के राजनीतिक फैसलों पर भी हस्ताक्षर करने लगे थे. जिसकी वजह से मुगल दरबार में असंतोष की भावना पनप रही थी. ऐसे में कुछ लोग मराठों के इस प्रकार के अनैतिक हस्तक्षेप से छुटकारा पाने के लिए अहमद शाह अब्दाली को निमंत्रण देने भी लग गए थे.

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5. अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने का आमंत्रण

मुगल दरबार में मराठों के बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप और उनके बढ़ते प्रभुत्व को देखते हुए रूहेला के शासक नजीबुद्दौला और अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अहमद शाह अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया. इसके अलावा बादशाह आलमगीर द्वितीय ने भी अहमद शाह अब्दाली को पत्र लिखकर आग्रह किया कि उसे वजीर के पंजे से मुक्त करा दे. अतः अब्दाली ने इन निमंत्रणों को स्वीकार करके भारत पर आक्रमण किया.

6. मराठों की विस्तारवादी नीति

पेशवा बालाजी राव ने अपने सैन्य बल की मदद से कर्नाटक में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था. इसके बाद वह दिल्ली पर अपना प्रभुत्व स्थापित करके पंजाब और उत्तरी पश्चिमी सीमा तक मराठा साम्राज्य को विस्तार करना चाहता था. पेशवा बालाजी राव के पंजाब तक राज्य विस्तार करने की महत्वकांक्षी नीति ने अहमद शाह अब्दाली को मराठों के साथ संघर्ष करने पर मजबूर कर दिया. अतः अहमद शाह अब्दाली के साथ मराठों की युद्ध के लिए मराठों के विस्तार वादे नीति भी काफी जिम्मेवार थी.

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7. अहमदशाह का राजनीतिक महत्वाकांक्षा

अहमद शाह अब्दाली भी राजनीतिक रूप से अत्यंत ही महत्वकांक्षी था. उसने भारत के बाहर एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया था. इस विशाल साम्राज्य की रक्षा के लिए उसे एक विशाल सेना की आवश्यकता महसूस हो रही थी. विशाल सेना को संगठित करने के लिए उसे काफी मात्रा में धन की जरूरत थी. अत: उसने धन की कमी को दूर करने के लिए भारत के संपन्न प्रदेशों को लूटने का निर्णय लिया. उसकी इसी महत्वकांक्षी नीति ने उसे भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया.

8. मराठों की परिवर्तनशील राजनीति

मराठा अपने नीति को अपने हित के अनुसार निरंतर बदलते रहते थे. उन्होंने अपने सम्राट, वजीर, सूबेदार, मुगल अधिकारियों, राजपूतों और जाटों के प्रति कोई ठोस और सुदृढ़ नीति कभी नहीं अपनाई. उन्होंने अनेक इलाकों में खूब लूटपाट मचाक बलपूर्वक धन की  वसूली की. दिल्ली की राजनीति पर भी उसका अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ता चला गया. इस वजह से मराठों ने राजपूतों, जाटों, नवाबों आदि का समर्थन खो दिया. ये सब मराठों के घोर शत्रु बन गया और मराठों के विनाश के लिए मौके ढूंढने लगे थे.

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9. तात्कालिक कारण

अहमद शाह अब्दाली ने रुहेला के शासक नजीबुद्दौला को मुगल दरबार में अपने प्रतिनिधि नीति के रूप में नियुक्त किया. दिल्ली में उसे सर्वोच्च सत्ता  प्रदान कर दी गई. लेकिन मराठों ने उस पर आक्रमण करने करके उसे संधि करने पर मजबूर कर दिया. अत: मराठों के सैन्य दबाव के कारण उसे अपमानित होकर उनको दिल्ली छोड़नी पड़ गई. इसके अलावा मराठों ने पंजाब के सूबेदार तथा अब्दाली के पुत्र तैमूर शाह को परास्त करके उसे पंजाब से खदेड़ दिया. 1757 ई. को आलमगीर द्वितीय की हत्या कर दी गई.  इन सब घटनाओं के कारण अहमदशाह अब्दाली का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. अतः उसने मराठों को सबक सिखाने के लिए भारत पर आक्रमण करने की ठानी.

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