पानीपत के तृतीय युद्ध के परिणामों का वर्णन कीजिए

पानीपत के तृतीय युद्ध

पानीपत की तीसरी युद्ध भारत के राजनीतिक इतिहास के लिए बहुत ही बड़ा महत्व है. इस युद्ध के परिणामों ने भारत की राजनीति में  बहुत ही बड़ा परिवर्तन कर दिया.

पानीपत के तृतीय युद्ध

पानीपत की तृतीय युद्ध के परिणाम

1. भारतीय राजनीति में मराठों की प्रभाव ख़त्म

पानीपत के तीसरे युद्ध में भारतीय राजनीति के क्षेत्र में मराठा प्रतिष्ठा की को काफी ठेस पहुंची. अब मराठों को निश्चित समझा जाने लगा था. इस युद्ध में मराठा जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया. जे.एन. सरकार के अनुसार इस युद्ध के कारण संपूर्ण मराठा जाति पर विपत्ति टूट पड़ी. पूरे महाराष्ट्र में ऐसा एक भी घर नहीं था जिसमें एक सदस्य की तथा कुछ घर में घर के प्रधान की क्षति का शोक ना बनाया हो. पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद मराठों के हाथ से पंजाब, दोआब तथा अन्य मराठा शासित प्रदेश उनके हाथ से निकल गए. इस लड़ाई के बाद उत्तर भारत के कई भागों पर से मराठा अधिपत्य धीरे-धीरे खत्म होते चला गया.

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2. मराठा सैन्य बल के अजेय होने का दावा ख़त्म

इस युद्ध में पराजय होने के बाद मराठों के अजय होने का दावा खत्म हो गया. इस युद्ध से पूर्व मुगल सम्राट, प्रांतीय सूबेदार, राजपूत, जाट, बुंदेल आदि मराठों के सैन्य बल को अजेय मानते थे तथा उनसे सहायता मांगते थे. लेकिन पानीपत की तीसरी युद्ध में उनकी करारी हार के बाद इन जातियों का मराठा सैन्य बल से विश्वास एवं आस्था खत्म हो गई.

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3. छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों का निर्माण

पानीपत की लड़ाई में मराठों की हार के बाद मराठा सैन्य शक्ति का दबदबा कम हो गया. नतीजतन मराठों के आधीन में शासन करने वाले बहुत से छोटे-छोटे राज्य उनसे अलग हो गए. मराठा संघ के सदस्य तथा उनके सेनापतियों की शक्ति खत्म हो गई. उनमें आपसी एकता और अखंडता खत्म हो गई. उनमें आंतरिक कलह बहुत ही बढ़ गया था. इसके कारण सिंधिया, होल्कर, भौंसले, गायकवाड़, पवार जैसे छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हो गई. वे मराठों के केंद्रीय शक्ति के प्रभाव से पूर्ण रुप से स्वतंत्र हो गए.

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4. मुग़ल साम्राज्य पतन

1752 ई. में संधि के तहत मुगल साम्राज्य की रक्षा जिम्मा मराठों ने अपने कंधे पर ले लिया था. इसके बाद जब मराठों को हार हुई तो धीरे-धीरे मुगल साम्राज्य का पतन होते चला गया. इसके बाद नजीबुद्दौला दिल्ली का स्वामी बन गया तथा साम्राज्य की सर्वोच्च सत्ता अपने हाथ में ले लिया. मुगल शासक शाह आलम नाम मात्र का सम्राट रह गया. दक्षिण दिल्ली में सूरजमल जाट सबसे शक्तिशाली शासक हुआ करता था. उसने आगरा और मेवाड़ पर अपना अधिकार कर लिया लेकिन दुर्भाग्यवश ना जी नजीबुद्दौला से युद्ध करते हुए मारा गया. लेकिन उसका पुत्र काफी शक्तिशाली हुआ उसने दिल्ली को घेरकर नजीबुद्दौला की शक्ति को पूर्ण रूप से खत्म कर दिया. ऐसे में मुगल शासक शाहआलम कभी मराठों की शरण में तो कभी अंग्रेजों की शरण में इधर-उधर भागता रहा और धीरे-धीरे मुगल साम्राज्य का पतन हो गया.

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5. अहमदशाह अब्दाली की शक्ति का ह्रास

पानीपत की तीसरी युद्ध में अहमद शाह अब्दाली को भले ही सफलता मिली, लेकिन यह सफलता कुछ दिनों तक ही सीमित रहा. इसका मुख्य वजह इस समय उसके विरुद्ध अफगानिस्तान व अन्य प्रदेशों में विद्रोह हो गया. जिसकी वजह से अहमद शाह अब्दाली की आर्थिक एवं सैन्य स्थिति बहुत ही बुरी दशा हो गई और उसे भारत से वापस अपने देश की ओर प्रस्थान करना पड़ा. इसी वजह से उसके हाथ से जीते हुए भाग सरहिंद, पंजाब, और सिंध पर पूर्ण रूप से अधिकार करने का अवसर निकल गया.  परिस्थितियां उसके प्रतिकूल होती चली गई और धीरे-धीरे अहमद शाह अब्दाली का अस्तित्व भी खत्म हो गया. अत: पानीपत की तीसरी युद्ध अहमद शाह अब्दाली के लिए भी घातक सिद्ध हुआ.

6. सिखों, निजाम और हैदरअली का उत्कर्ष

मराठा, अहमद शाह अब्दाली और मुगल ऐसी शक्तियां थी जो कि पंजाब पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए आपस में संघर्ष करते रहती थी. लेकिन पानीपत की युद्ध के बाद इन तीनों शक्तियों का खात्मा हो गया. ऐसे में इस स्थान की पूर्ति सिखों ने की. उन्होंने एक-जुट  होकर मुगल सत्ता और अब्दाली की प्रभुता के विरुद्ध विद्रोह करके अपनी संप्रभुता पर स्थापित कर ली. इस प्रकार पानीपत की युद्ध के बाद सिखों का उत्कर्ष हुआ. इसके अलावा दक्षिण में मराठों के शत्रुओं का उत्कर्ष हुआ. इनमें  निजाम-उल-मुल्क और हैदर अली प्रमुख थे.

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7. ब्रिटिश राजसत्ता का उत्कर्ष

तत्कालीन भारतीय राजनीति में मराठा ऐसी सैन्य शक्ति थी जो अंग्रेजों को अंग्रेजों के दांत खट्टे कर रखे थे. लेकिन पानीपत की युद्ध के बाद मराठों की पराजय ने अंग्रेजों की संप्रभुता और सैन्य बल के प्रसार के मार्ग प्रशस्त किया. इसके बाद भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का द्वार खुल गया. इस युद्ध में मराठों और मुसलमानों ने एक-दूसरे को शक्तिहीन करके ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई. इसके पश्चात 1757 ई. में हुए पाल्सी युद्ध में अंग्रेजो की विजय ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना की दिशा में अंग्रेजों के द्वार हमेशा के लिए खोल दिया.

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