पाल वंश के उत्थान और पतन के कारणों का वर्णन करें

पाल वंश के उत्थान और पतन

8 वीं सदी के मध्य में बंगाल के पाल वंश के शासकों ने उत्तर भारत में एक बड़ा साम्राज्य स्थापित किया. पाल वंश के शासकों में कन्नौज को प्राप्त करने के लिए प्रतिहार और राष्ट्रकूट उनसे संघर्ष किया. लगभग 400 वर्षों तक पाल वंश के शासकों ने बंगाल को शक्ति समृद्धि और वैभव प्रदान किया. पाल वंश के शासकों के इतिहास के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, पर उनके बंगाल के शासक होने का पूरा प्रमाण है.

पाल वंश के उत्थान और पतन

पाल वंश का उत्थान

शशांक ने बंगाल में अपना एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की. उसकी मृत्यु के बाद बंगाल में अराजकता फैल गई. ऐसी स्थिति को देखकर बंगाल के सामंतों ने जनता के समर्थन से गोपाल (750-770 ई.) को अपना नेता चुना. गोपाल ने ही बंगाल में शक्तिशाली पाल साम्राज्य (750-103 ई.)की नींव डाली. इस घटनाक्रम का उल्लेख खलीलपुर अभिलेख में हुआ है. तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के अनुसार गोपाल एक क्षत्रिय परिवार में जन्म लिया था. वह बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाला था. तिब्बती लामा और इतिहासकार तारानाथ के अनुसार गोपाल ने ओदान्तपुर में एक बौद्ध मठ का निर्माण करवाया था. वह धार्मिक प्रवृत्ति का होने के बावजूद साम्राज्य के निर्माण के लिए युद्ध नीति को स्वीकार किया. गोपाल के बाद उसका पुत्र धर्मपाल (770-810 ई.) ने बंगाल की सत्ता अपने हाथ में ले ली. वह एक यशस्वी सम्राट सिद्ध हुआ. उसने अपने नागरिकों की भावनाओं को समझा और उसने बंगाल राज्य को उत्तर भारत का एक श्रेष्ठ साम्राज्य के रूप में स्थापित किया. जब धर्मपाल ने पश्चिम की ओर अपने साम्राज्य के विस्तार का प्रयत्न किया तो उसका संघर्ष प्रतिहार और राष्ट्रकूटों से हुआ. धर्मपाल का प्रतिहार शासक वत्सराज से पहला युद्ध गंगा-यमुना के दोआब में हुआ. इस युद्ध में धर्मपाल की पराजय हुई, लेकिन इससे पहले वत्सराज अपनी जीत का लाभ उठा पाता, राष्ट्रकूट सम्राट ध्रुव ने उत्तर भारत पर आक्रमण कर दिया. उसने वत्सराज को पराजित कर उसे राजपूताना से भागने पर मजबूर कर दिया. उसने धर्मपाल पर भी अपने आक्रमण किया, परंतु उसके शीघ्र वापस चले जाने के कारण धर्मपाल कोई विशेष हानि नहीं हुई.

पाल वंश के उत्थान और पतन

ध्रुव के आक्रमण से प्रतिहारों की शक्ति कम हो गई. इसका फायदा धर्मपाल ने उठाया. उसने उत्तर भारत में अपनी स्थिति को दृढ़ किया और एक विशाल साम्राज्य का निर्माण कर लिया. उसने करना उसके सिहासन से इंद्रायुध को हटा कर चक्रायुध को बैठाया. उसके बाद बिहार, कन्नौज तथा आधुनिक उत्तर प्रदेश उसके अधीन में आ गया. इसके अलावा पंजाब, पश्चिमी पहाड़ी भाग, राजपूताना, मालवा और बरार के शासक भी उसका आधिपत्य स्वीकार कर लिए.

प्रतिहार शासक वत्सराज का उत्तराधिकारी नागभट्ट द्वितीय हुआ. उसने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पाने के लिए धर्मपाल का सामना करने का निश्चय किया. उसने कन्नौज से धर्मपाल समर्थित शासक चक्रायुध को सत्ता से उखाड़ फेंका. इस बात को लेकर नागभट्ट द्वितीय और धर्मपाल के बीच मुंगेर के निकट युद्ध हुआ. इस युद्ध में धर्मपाल की पराजय हुई. इसी बीच राष्ट्रकूट सम्राट गोविंद तृतीय ने उत्तर भारत पर आक्रमण कर दिया. चक्रायुध और धर्मपाल बिना युद्ध किए गोविंद तृतीय की अधीनता स्वीकार कर ली. इसके बाद गोविंद तृतीय ने नागभट्ट द्वितीय को परास्त करके उसकी बढ़ती शक्ति पर अंकुश लगाया. इसका फायदा धर्मपाल ने उठाया और उसने उत्तर भारत में अपनी प्रतिष्ठा को फिर से स्थापित किया और अपने मृत्यु से पहले अपने पुत्र देवपाल को विस्तृत पाल साम्राज्य का सत्ता सौंपा.

पाल वंश के उत्थान और पतन

देवपाल (810-850 ई. ) भी अपने पिता की तरह ही योग्य शासक सिद्ध हुआ. उसने भी अपने साम्राज्य का विस्तार किया. नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया था. देवपाल ने उसे पीछे हटने पर मजबूर किया. इसके बाद उसने हिमालय से लेकर विंध्याचल तक, उत्तर पश्चिम में कंबोज और पंजाब, पूर्व में असम तक अपनी जीत का पताका फहराया. उसने प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय की सीमाओं पर भी आक्रमण किए. ऐसा प्रतीत होता है कि उसने राष्ट्रकूट अथवा पाण्डेय शासकों से भी युद्ध किए, लेकिन इसकी विस्तृत जानकारी नहीं मिल पाई.

देव पाल के बाद विग्रहपाल ने सत्ता संभाली. वह दुर्बल और शांतिप्रिय शासक था. उसने बहुत कम समय तक शासन किया. उसके बाद उसका पुत्र नारायण पाल ने सत्ता संभाली. उसने भी शांतिपूर्ण नीति अपनाएं. इसके कारण राष्ट्रकूट और प्रतिहार शासक ने उस पर लगातार आक्रमण किए. इस कारण मगध, उत्तरी बंगाल, कामरुप, उड़ीसा आदि पास साम्राज्य से अलग हो गए और पाल साम्राज्य छोटा सा रह गया. नारायण पाल के बाद राज्यपाल, गोपाल द्वितीय, विग्रहपाल द्वितीय आदि काफी दुर्बल शासक हुए. इसके शासन उनके शासनकाल में चंदेल, कालिचुरी और कंबोज के शासकों ने पाल साम्राज्य के अनेक क्षेत्रों पर अधिकार कर लिए. पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में चंद्र वंश ने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया.

पाल वंश के उत्थान और पतन

विग्रह पाल का उत्तराधिकारी महिपाल प्रथम (983-1038 ई.) एक योग्य शासक निकला. उसने पश्चिमी और उत्तर पश्चिम बंगाल को कंबोज और चंद्र वंशों से छीन लिया. फिर उसने संपूर्ण बिहार पर अपना अधिकार कर लिया और बनारस तक अपनी सीमा का विस्तार किया. 1021-23 ई. में हुए चोल शासक राजेन्द्र चोल के हमले में उसे हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन बंगाल और बिहार के बड़े भाग को अपने अधिकार में रख कर वह अपने साम्राज्य की शक्ति को पुनर्स्थापित करने में सफल रहा है. यही कारण उसे पाल वंश का दूसरा संस्थापक भी कहा जाता है. महिपाल के बाद नयपाल, विग्रहपाल तृतीय, महिपाल द्वितीय आदि पाल साम्राज्य के अयोग्य शासक हुए.

पाल वंश का पतन

रामपाल, पाल वंश का अंतिम योग्य शासक था. उसने मगध को आधार बनाकर बंगाल में फिर से पाल वंश की शक्ति को स्थापित किया. 1120 ई. में उसकी मृत्यु हो गई. इसके बाद बंगाल में पाल वंश का पतन होना शुरू हो गया. रामपाल के बाद क्रमशः कुमार पाल, गोपाल तृतीय और मदन पाल ने शासन किया. इनका कुल शासनकाल 30 वर्ष का रहा. उनके इस समय में आंतरिक संघर्ष, सामंतों के विद्रोह और विदेशी आक्रमण ने पाल वंश को नष्ट दिया.

पाल वंश के उत्थान और पतन

कुमारपाल के समय कामरूप में विद्रोह हुआ. कुमार पाल ने अपने मंत्री वैद्यदेव को उसे दबाने के लिए भेजा हुआ. वैद्यदेव ने विद्रोह को तो दबा दिया परंतु उसने कामरूप में उसने अपनी स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली. उसी प्रकार पूर्वी बंगाल के अधीन सामंत भोज वर्मा ने अपने को स्वतंत्र शासक घोषित कर लिया. उसी समय पाल शासकों पर अन्य शासकों ने आक्रमण किए. कलिंग के शासक अनंत वर्मा ने उड़ीसा पर अधिकार करके बंगाल में हुगली तक आक्रमण किया. कन्नौज के शासक गोविंद चंद्र ने पटना पर अधिकार कर लिया. विजय सेन ने मदनपाल से गौड़ को छीन लिया और गांगेयदेव ने उससे उत्तरी बिहार छीन लिया. इस कारण पाल वंश का अंतिम शासक मदनपाल की शक्ति केवल मध्य बिहार तक सीमित रह गई. मदनपाल के उत्तराधिकारियों के बारे में कुछ पता नहीं लगता है. 12 वीं सदी के मध्य तक पाल वंश पूरी तरह समाप्त हो गया और उसका अंतिम शासक मदन पाल की मृत्यु एक साधारण सामंत के रूप में हुई.

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