पुलकेशी द्वितीय की उपलब्धियां
पुलकेशी द्वितीय, कृतिवर्मन का पुत्र था. वह अत्यंत वीर और कुशल सैनिक था. एहोल प्रशस्ति के अनुसार उसने अपने कपटी चाचा मंगलेश की हत्या करके बलपूर्वक चालुक्य राज्य प्राप्त किया. उसके राज्य काल के तीसरे वर्ष में हैदराबाद ताम्रपत्र के अनुसार उसने बादामी की सिंहासन पर 609-10 ई. में बैठा. इस समय चालुक्यों का आपसी गृहयुद्ध और अन्य साम्राज्यों से युद्ध चली आ रही थी. इस कारण पुलकेशी द्वितीय के शासन का प्रारंभ, संघर्ष और घटनाओं से आरंभ हुआ. उसने अपनी योग्यता से चालुक्यों को श्रेष्ठता प्रदान की.
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पुलकेशी द्वितीय के अभियानों के विषय की जानकारी सबसे ज्यादा ऐहोल अभिलेख में है. इस अभिलेख के अनुसार उसने सबसे पहले अप्पायिक और गोविंद की ओर ध्यान दिया जो कि चालुक्यों की आपसी गृहयुद्ध की अराजकता का फायदा उठाकर खुद को खड़े करने की कोशिश करने लगे थे. उनको पता था कि इस वक्त वह दोनों का सामना करने में असमर्थ है. अतः उसने भेदनीति का अनुसरण किया और गोविंद को अपनी ओर मिला लिया. इसके बाद उसने अप्पायिक को परास्त किया.
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उसने क़दम्बों की राजधानी बनवासी पर आक्रमण किया. कदम्बों पर विजय प्राप्त करने के बाद उसने मैसूर के गंग और आलूप शासकों को अपनी अधीनता स्वीकार करने पर बाध्य किया. इन्होंने संभवतः चालुक्यों के विरूद्ध क़दम्बों की मदद की थी. गंग नरेश दुर्विनीत ने अपनी एक पुत्री का विवाह पुलकेशी के साथ कर दिया. इसके बाद उसने कोंकण के मोर्यों को परास्त करके उनकी राजधानी राजपुरी (एलिफेंटा) पर अधिकार कर लिया. उत्तर के लाट, मालव और गुर्जर-शासकों को अपनी अधीनता मानने के लिए बाध्य किया. इस प्रकार चालुक्यों के साम्राज्य का विस्तार माही नदी तक हो गया. पूर्व में उसने कलिंग को परास्त किया और बिष्टुपुर को जीतकर अपने भाई विष्णुवर्धन को वहां का राज्यपाल बनाया. बाद में वही विष्णुवर्धन ने पूर्वी चालुक्यों की स्वतंत्र राज्य की स्थापना की.
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उस समय उत्तर भारत में हर्षवर्धन के साम्राज्य का भी तेजी से विस्तार हो रहा था. ऐसे में दोनों की सीमाएं टकराने लगी थी. उसके डर से लाटों और गुर्जरों ने पुलकेशी की शरण ली. ऐसे में दोनों के बीच युद्ध होना शुरू हुआ. दोनों के बीच हुए भीषण युद्ध में हर्षवर्धन मारा गया. यह युद्ध संभवतः 630 ई. से 640 ई. के बीच हुई.
पुलकेशी द्वितीय के समय में चालुक्यों और सुदूर दक्षिण के पल्लव शासकों के बीच संघर्ष आरंभ हुआ. पुलकेशी पल्लव शासक महेंद्र वर्मन को परास्त किया और उसके राज्य की सीमाओं को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया. तत्पश्चात उसने चोल, चेर और पांडय राज्यों से मित्रता की, जिससे वह पल्लव के विरुद्ध उनके सहायक बने रहे. परंतु महेंद्रवर्मन के उत्तराधिकारी नरसिंह वर्मन (630-668) ने उस पराजय का बदला लिया. उसने पुलकेशी को पराजित ही नहीं किया, बल्कि चालुक्यों की राजधानी बादामी पर भी अधिकार कर लिया. 642 ई. लगभग पुलकेशी द्वितीय युद्ध करते हुए मारा गया. इस प्रकार वह अंत में पल्लव से पराजित हुआ.
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Dharmpal sasak k samay palo vnsh
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