पुष्यमित्र शुंग के जीवन चरित का वर्णन कीजिए

पुष्यमित्र शुंग के जीवन चरित

पुष्यमित्र शुंग (185-149 ई. पू.) प्राचीन भारत के शुंग राजवंश के राजा थे. वह शुंग साम्राज्य के संस्थापक और पहले राजा थे. इससे पहले वह मौर्य साम्राज्य में सेनापति थे. 185 ई. पू. में पुष्यमित्र ने अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या कर स्वयं को राजा घोषित कर दिया. सम्राट बनने के बाद उसने अपने साम्राज्य की आंतरिक स्थितियों को सुधार करके उसमें दृढ़ता प्रदान की. इसके अलावा उसने बाहरी शत्रुओं से अपने साम्राज्य की रक्षा की. पुष्यमित्र शुंग ने अपनी वीरता और पराक्रम से साम्राज्य की सीमाओं को विस्तार किया और एक विशाल शुंग साम्राज्य की स्थापना की.

पुष्यमित्र शुंग के जीवन चरित

1. महान सेनापति

पुष्यमित्र शुंग एक महान सेनापति था. वह अपनी सेना का नेतृत्व अत्यंत कुशलतापूर्वक करता था. यही कारण है कि वह अपने सैन्य अभियानों को सफलतापूर्वक अपने अंजाम तक पहुंचाया. उसमें सेना काकुशल नेतृत्व करने की क्षमता थी. इससे उसकी सेना भी काफी प्रभावित थी. यही कारण था कि जब उसने अपने सम्राट बृहद्रथ की हत्या कर सत्ता अपने हाथ में ली तो किसी भी सैनिक ने उसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई. सम्राट बनने के बाद भी वह कभी खुद को सम्राट नहीं करवाया, बल्कि उसन खुद को सेनापति ही का हलवाना पसंद किया.

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2. कुशल संगठनकर्ता

पुष्यमित्र शुंग ने बृहद्रथ की हत्या कर जब सत्ता का नियंत्रण अपने हाथ में लिया, तब मगध साम्राज्य की आंतरिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी. इधर यूनानी आक्रमणकारी भी पाटलिपुत्र की सीमा तक पहुंच चुके थे. इससे जनता में अशांति और भय का माहौल बना हुआ था. साम्राज्य की यह स्थिति ने उसे बृहद्रथ की हत्या करने को प्रेरित किया. सम्राट की कमजोर स्थिति के कारण कलिंग, महाराष्ट्र, आंध्र तथा अन्य प्रदेश स्वतंत्र हो चुके थे तथा ये राज्य मगध साम्राज्य के लिए चुनौती बन रहे थे. मगध साम्राज्य की सत्ता संभालते ही उसने सबसे पहले अपने साम्राज्य को संगठित करने की दिशा में काम करना शुरू किया. उसने विभिन्न परिस्थितियों से जूझते हुए अपने साम्राज्य की आंतरिक स्थिति को सुधार कर उसमें दृढ़ता प्रदान की.

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3. दूरदर्शी

पुष्यमित्र शुंग काफी दूरदर्शी शासक था. उसने अपने साम्राज्य में भविष्य में होने वाले संभावित खतरों का पहले ही भांप लिया था. अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ अत्यंत दुर्बल और अयोग्य था. उसे ना तो अपने साम्राज्य में आने वाले खतरे का आभास था और न उसे निपटने के लिए कोई रणनीति. दूसरी ओर पुष्यमित्र ने राज्य में आने वाले खतरों को पहले ही भांप चुका था. अत: साम्राज्य की सुरक्षा के लिए उसने अपने सम्राट की हत्या कर राज्य की सत्ता को अपने नियंत्रण में ले लिया. आधुनिक इतिहासकार पुष्यमित्र के इस कार्य के लिए दोषी नहीं मानते क्योंकि साम्राज्य की सुरक्षा के लिए ही ऐसा कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा.

4. साम्राज्यवादी

पुष्यमित्र शुंग में साम्राज्यवादी भावनाएं कूट-कूट कर भरी थी. यही कारण उसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना करने में सफलता प्राप्त की. दिव्यवादन और तारानाथ के वर्णन से हमें पता चलता है कि उसने उसके साम्राज्य की सीमाएं पश्चिम में सियालकोट तथा वह दक्षिण में विदर्भ तथा दक्षिण-पूर्व में उसके राज्य की सीमा कलिंग राज्य को छूती थी. कौशल भी उसके साम्राज्य का ही एक हिस्सा था. उसके द्वारा यवनों को परास्त करना उसके जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी. यही कारण यवन भारत पर अधिकार करने में सफल नहीं हो सके. उसके द्वारा साम्राज्य विस्तार करने के अभियान के दौरान विदर्भ पर विजय हासिल की. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि पुष्यमित्र शुंग और कलिंग राजा खारवेल के बीच युद्ध हुआ और इस युद्ध में पुष्यमित्र की हार हुई थी. लेकिन यह दावा काफी विवादास्पद है क्योंकि बहुत से विद्वानों का मानना हैं कि पुष्यमित्र और खारवेल समकालीन शासक नहीं थे. अत: खारवेल द्वारा पराजित शासक कोई अन्य राजा था. पुष्यमित्र शुंग ने अश्वमेध यज्ञ भी करवाया था. इसी अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को पकड़ने के कारण ही उनके और यवनों के बीच युद्ध हुई थी. इस युद्ध में यवन परास्त हुए थे. इस घटना की जानकारी हमें महाभाष्य, युगपुराण तथा मालविकाग्निमित्र आदि ग्रंथों से मिलती है.

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5. साहित्य एवं कला प्रेमी

पुष्यमित्र शुंग वीर सेनापति और योग्य शासक ही नहीं, वरन एक महान साहित्य और कला प्रेमी भी था. पुष्यमित्र शुंग इतिहास में अपने सांस्कृतिक कार्यकलापों के कारण ही अधिक प्रसिद्ध है. पुष्यमित्र शुंग ने ब्राह्मण धर्म के विलुप्त हो रहे वैभव को पुनः गौरव के शिखर तक पहुंचाया तथा भारत में पुनः वैदिक संस्कृति को सशक्त बनाया. उसने वैदिक धर्म को राजधर्म घोषित किया. इसके अलावा उसने पाली के स्थान पर संस्कृत भाषा को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया. इस के परिणामस्वरुप पतंजलि के महाभाष्य तथा मनु की स्मृति की रचना हुई. इस प्रकार राजनीति एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी उसने महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की.

पुष्यमित्र शुंग के जीवन चरित

शुंग काल वैदिक धर्म के अभ्युत्थान तथा ब्राह्मण धर्म एवं संस्कृति के पुनरुद्धार का युग कहलाता है. इस काल में ब्राह्मण धर्म अपना खोया हुआ वैभव पुनः प्राप्त किया तथा यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ तथा अनेक धार्मिक कर्मकांडों का पुनः बोलबाला हो गया. वर्णाश्रम व्यवस्था की मर्यादा की पुनः स्थापित हुई. ब्राह्मण धर्म की उन्नति के साथ साहित्य एवं कला के क्षेत्र में भी आश्चर्यजनक उन्नति हुई. इस काल में कला को भी प्रभूत शक्ति मिली और कला व सार्वजनिक जीवन के बीच का अंतर कम हो गया. इस कारण शुंग काल में राजपरिवार से ज्यादा जनता के जीवन के चित्र देखने को मिलते हैं. भरहुत, बोधगया तथा सांची के स्तूप को नया रूप भी शुंग काल में ही दिया गया था. इन बातों से स्पष्ट है कि पुष्यमित्र शुंग के शासन काल में धर्म, साहित्य एवं कला की अभूतपूर्व उन्नति हुई.

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