पेशवा बाजीराव प्रथम की उपलब्धियों का वर्णन करें

पेशवा बाजीराव प्रथम (Peshwa Bajirao I)

एक शासक के रूप में पेशवा बाजीराव प्रथम की उपलब्धियां भारतीय इतिहास में बहुत ही महत्व रखता है. पेशवा बाजीराव का जन्म 1700 ई. में हुआ था. उसके पिता का नाम बालाजी विश्वनाथ था. उसके बचपन का नाम बीसाजी था. पढ़ाई में अच्छा था इसीलिए उसे अच्छी शिक्षा हासिल हुई. उसने बचपन में ही घुड़सवार और तलवारबाजी में पारंगत हासिल कर ली थी. उसमें धार्मिक ज्ञान के अलावा उच्च कोटि की सैनिक गुण भी थे. जब वो केवल 20 वर्ष का था तभी उसके पिताजी बालाजी की मृत्यु हो गई उसके मृत्यु के 15 दिन बाद 17 अप्रैल 1720 ई. को शाहू ने बाजीराव प्रथम को अपना पेशवा नियुक्त किया.

पेशवा बाजीराव प्रथम की उपलब्धियां

पेशवा पद पर आसीन होते ही बाजीराव प्रथम ने मराठा दिग्विजय और प्रचार की नीति को अपनाया. वह दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तरी भारत में मराठा राज्य की सीमा को विस्तार करना चाहता था. उसने अपने प्रसार एवं दिग्विजय नीति को कार्यान्वित करके बहुत सी उपलब्धियां प्राप्त की.

पेशवा बाजीराव प्रथम की उपलब्धियां (Achievements of Peshwa Bajirao I)

1. निजाम के साथ संघर्ष

दक्षिण में nizam-ul-mulk अपना स्वतंत्र राज्य घोषित करना चाहता था. इसके लिए उन्हें मराठों की बढ़ती हुई शक्ति को दमन करना आवश्यकता था. अत: बाजीराव प्रथम और निजाम उल मुल्क के बीच में शत्रुता पनपने लगी. उसने बाजीराव प्रथम को दक्षिणी सूबों की चौथ तथा सरदेशमुखी देने से मना कर दिया. इसके साथ ही उसने शाहू के प्रमुख प्रतिद्वंदी कोल्हापुर के राजा शम्भू जी को शाहू के खिलाफ भड़काना आरंभ कर दिया. ऐसे में मराठों और निजाम के बीच में तनाव बढ़ता चला गया. 15 दिसंबर 1720 ई. को दोनों की सेना में भीषण संघर्ष हुआ. इस संघर्ष मराठों की विजय हुई. इस विजय के बाद बाजीराव ने निजाम के प्रति शांति और सुलह की नीति अपनाए और दोनों के बीच में समझौता हुआ. 1725-26 जून में बाजीराव प्रथम ने कर्नाटक जीतने के लिए सैन्य अभियान आरंभ कर दिया. इस अभियान के कारण निजाम के साथ उसके संबंध फिर से खराब हो गए क्योंकि निजाम कर्नाटक को अपने अधीन मानता था. ऐसी स्थिति में निजाम ने शाहू के प्रतिद्वंदियों को शाहू के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया और साथ ही मराठा क्षेत्रों पर आक्रमण करना शुरू कर दिए. इस संघर्ष में बाजीराव प्रथम ने आक्रमणकारी निजाम को 15 फरवरी 1728 ई. में पालखेड़ा के युद्ध में बुरी तरह परास्त कर दिया. मराठों की विजय के बाद निजाम के आगे जाने के सारे रास्ते बंद हो गए. उसकी शक्ति कमजोर हो गई. अंतत: दोनों पक्षों में संधि हो गई. इसके बाद मराठा उत्तर भारत में अपने राज्य को विस्तार करने की ओर ध्यान देने लगे.

2. शम्भू जी से संघर्ष और वार्ना की संधि

शाहू के मराठा छत्रपति बन जाने से उसका चचेरा भाई शम्भू जी उससे और भी अधिक ईर्ष्या द्वेष रखने लगा था. शम्भुजी कोल्हापुर के मराठा नरेश था. अत: शम्भू ने शाहू जी की हत्या की योजना बनाने लगा. उसकी योजना का पता शाहू को पता चल गया. अत: उसने एक सेना तैयार करके वार्ना नदी तट पर स्थित शम्भू जी के शिविर पर आक्रमण कर दिया. इस युद्ध में शम्भू जी एवं उसके परामर्शदाता उदाजी चौहाण दोनों परास्त हो गए और पन्हाला दुर्ग की ओर भाग गए. लेकिन ताराबाई के परामर्श के बाद फरवरी 1731 ई. में शाहू और शंभू जी के बीच में वार्ना की संधि हो गई. इसी के साथ ही मराठों का आपसी गृह युद्ध खत्म हो गया.

पेशवा बाजीराव प्रथम की उपलब्धियां

3. बाजीराव और दाभाड़े

निजाम के परामर्श और सहयोग से सेनापति दाभाड़े, शम्भू जी और निजाम ने बाजीराव और साहू के विरुद्ध षड्यंत्र किया. वह शाहू को सिंहासन से हटा कर शम्भू जी को सिंहासन पर आसीन करना चाहते थे और संपूर्ण गुजरात को दाभाड़े  के अधीन करना चाहते थे. इस बात का पता चलते ही अप्रैल 1731 ई. में बाजीराव ने दाभाड़े पर आक्रमण कर दिया. दोनों की सेनाओं के बीच उभोई मैदान में 1 अप्रैल 1731 ई. को 6 घंटे तक भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में दाभाड़े की मृत्यु हो गई और उसकी सेना परास्त होकर तितर-बितर हो गई. इस प्रकार उभोई युद्ध में पेशवा बाजीराव का एक प्रबल शत्रु का अंत हो गया.

4. सिद्दियों से संघर्ष

महाराष्ट्र के समुद्री तट कोंकण प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध था. शिवाजी ने इस प्रदेश को जीतकर अपने अधिकार में कर लिया था. लेकिन 1707 इसी में शाहू के महाराष्ट्र लौट जाने के कारण कोंकण में मराठा प्रभाव खत्म हो गया. अब इस प्रदेश में सिद्दियों का महत्वपूर्ण प्रभाव था. बाजीराव प्रथम ने सर्वप्रथम इनका प्रभाव समाप्त करने का निश्चय किया. अतः उसने सिद्दियों के विरुद्ध अभियान और युद्ध शुरू करने के लिए बाजीराव ने कोंकण में अपनी  सेना लेकर प्रवेश किया और 2 मई 1733 ई. में अचानक जंजीरा द्वीप पर आक्रमण कर दिया. मराठों के दुर्ग में प्रवेश करने से पूर्व सिद्दियों ने दूर्ग के प्रवेश द्वार बंद कर दिए. मराठों के द्वारा काफी संघर्ष करने के बाद कोई परिणाम नहीं निकला. 1736 ई. फिर से मराठा-सिद्दि संघर्ष आरंभ हो गया. 1736 ई. में रेवास नामक स्थान पर सिद्दि और मराठा सैनिकों के बीच में युद्ध हुआ. इस युद्ध के पश्चात 25 दिसंबर 1736 ई. को मराठों और सिद्दियों के बीच संधि हो गई. इस संधि ने सिद्दियों की शक्ति को काफी कम कर दिया और उनके के आधे प्रदेश में मराठों का अधिकार हो गया.

5. पुर्तगालियों से संघर्ष

कोंकण में सिद्दियों की सत्ता छीन करने के पश्चात पुर्तगालियों के सत्ता बची हुई थी. पुर्तगालियों ने पश्चिमी समुद्री तट, गोवा और बेसिन पर अधिकार कर लिया थे. बाजीराव पुर्तगालियों  के द्वारा कोंकण में किए जा रहे धार्मिक अत्याचारों को भी समाप्त करना चाहता था. बाजीराव ने सर्वप्रथम 1731 ई. में पुर्तगालियों के विरुद्ध आक्रमण करने के लिए अपनी सेना भेजी. इस युद्ध में पुर्तगालियों को पराजय का सामना करना पड़ा. इस युद्ध में मराठों ने पूर्तगालियों से 12 तोपें भी छीन ली. 1737 ई. में फिर से मराठा-पुर्तगाली संघर्ष आरंभ हो गया. इस संघर्ष में मराठों की विजय हुई तथा थाना, सालसिट और बसई पर अधिकार कर लिया. इसके साथ ही संपूर्ण उतरी कोंकण में मराठों का अधिकार स्थापित हो गया. सितंबर 1739 ई. मराठों और पुर्तगालियों के बीच संधि हो गए. इस संधि के द्वारा पुर्तगालियों ने दमन के बंदरगाह और उसके आसपास के गांवों को छोड़कर शेष समस्त उत्तर प्रदेश मराठों को दे दिया. इसके अतिरिक्त पुर्तगालियों को राजकीय राजस्व का 40% कर के रूप में तथा मुचलके के रूप में 60 लाख मराठों को दे दिया.

6. मराठा-अंग्रेज संधि

पुर्तगालियों से बसई प्राप्त हो जाने के बाद मराठों के लिए अंग्रेजों के अधीनस्थ मुंबई पर आक्रमण करना आसान हो गया. अतः मराठों के आक्रमण के संभावित भय से अंग्रेजों ने मराठों के समक्ष संधि के प्रस्ताव रखा. 14 जनवरी 1740 ई. को अंग्रेजों और मराठों के बीच संधि हो गई. परंतु पेशवा बाजीराव की मृत्यु के कारण इस संधि की पुष्टि उसके उत्तराधिकारी बालाजी बाजीराव ने 7 सितंबर 1740 ई. को की. इस संधि के परिणामस्वरूप चावल मराठों के अधिकार में आ गया. इसके अतिरिक्त अंग्रेज कंपनी को मराठा राज्य में मुफ्त व्यापार करने की अनुमति भी दे दी गई.

पेशवा बाजीराव प्रथम की उपलब्धियां

7. मालवा पर अधिकार

1735 ई. के बीच एक मराठे दक्षिणी मालवा में स्थायी रूप से जम गए और मालवा से चौथ के रूप में धन प्राप्त करते रहें. जब दिल्ली से बादशाह ने निजाम को एक विशाल सेना के साथ मराठों को खदेड़ने के लिए मालवा भेजा. 1738 ई. में बाजीराव ने निजाम को भोपाल में घेर कर उसे संधि के लिए विवश किया. इस संधि के द्वारा चंबल से नर्मदा तक के क्षेत्र के समस्त राजाओं से 13 लाख रुपए प्रति वर्ष वसूल करने का अधिकार बाजीराव को प्राप्त हो गया. इसके बाद मालवा में मराठों का अधिपत्य स्थायी रूप से हो गया.

8. गुजरात में मराठा प्रभुत्व

गुजरात एकदम उपजाऊ प्रदेश रहा है. मालवा से सीधे दोआब और दिल्ली-आगरा के प्रदेशों में आक्रमण किया जा सकता है. साथ ही गुजरात से सीधे राजस्थान में प्रवेश किया जा सकता है. गुजरात में मराठों की सत्ता का प्रसार का आरंभ मराठों द्वारा गुजरात की चौथ की मांग से हुआ. 1718 ई. के बाद प्रतिवर्ष गुजरात पर मराठों के आक्रमण और लूटपाट होती रही. बाजीराव प्रथम ने पिल्लाजी गायकवाड़ और कण्ठाजी कदम के नेतृत्व में गुजरात पर आक्रमण करने हेतु मराठा सेना भेजी. उन्होंने अपनी सैन्य शक्ति के बल पर गुजरात के मुख्य सूबेदार हामिद खां से गुजरात के माही नदी के पूर्वी इलाकों से चौथ वसूल करने के अधिकार प्राप्त कर लिए. माही नदी के पश्चिमी क्षेत्रों से मराठा खण्डगी नायक कर वसूल करने लगे. 1727-29 में मराठों के द्वारा लगातार होने वाले आक्रमणों आतंकित होकर तत्कालीन मुगल सूबेदार सरबुलंद खां मराठों को सूरत छोड़कर सारे गुजरात की चौथ व सरदेशमुखी तथा अहमदाबाद के राजस्व का 5% देना स्वीकार कर लिया. सरबुलंद खां ना तो मराठों की शक्ति का दमन कर सका और नियंत्रित प्राप्त कर पाया. उन्होंने सम्राट की अनुमति के बिना ही चौथ एवं सरदेशमुखी देने के लिए मराठों से एक के बाद एक समझौते कर लिए. इससे रुष्ट होकर बादशाह ने सरबुलंद खां को गुजरात से निष्कासित कर दिया और मारवाड़ नरेश अभय सिंह को 1730 ई. गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया. अमरसिंह भी मराठा शक्ति को अवरुद्ध करने में असमर्थ था. दूसरी ओर बाजीराव सूबेदार ने नये सूबेदार अभयसिंह को मित्रता का संदेश भेजा एव दोनों के बीच समझौता हो गया. इस समझौते के अनुसार अभय सिंह ने 13 लाख रुपये चौथ के रूप में बाजीराव को देना स्वीकार किया. इस प्रकार गुजरात में भी मराठों का प्रभुत्व स्थापित होते चला गया.

9. राजस्थान में मराठा प्रभुत्व का प्रसार

राजस्थान के उदयपुर, जोधपुर और जयपुर राज्यों का संबंध मराठों से उसके उत्कर्ष काल से ही चला आ रहा था. अर्थात मराठा-राजपूत संबंध शिवाजी के शासन काल से ही चले आ रहे थे. राजस्थान के बूंदी सूबे की राजसिंहासन के लिए बुध सिंह एवं दलेल सिंह हाड़ा के बीच गृह युद्ध चल रहा था. बाजीराव ने इसमें हस्तक्षेप कर के बुध सिंह को बूंदी के राज सिंहासन पर आसीन किया. इसके बदले उन्होंने 6 लाख रूपये प्राप्त किए. अतः 1735 ई. की इस घटना से राजस्थान में मराठों की धाक फैलने लगी. 1735 ई. के बाद मराठा सेनाओं राजस्थान में भी आक्रमण करना शुरू किए और जयपुर, कोटा और बूंदी के धन-संपन्न नगरों को खूब लूटा. इसके बाद सांभर के मुगल फौजदार को परास्त करके वहां भी खूब लूटमार की. 1736 ई. में उन्होंने कोटा नरेश को अपने बल से आतंकित कर उसे मराठों को प्रतिवर्ष वार्षिक कर देने के लिए बाध्य किया. इसके बाद बाजीराव ने डूंगरपुर के नरेश को 3 लाख वार्षिक कर मराठों को देने के लिए बाध्य किया. डूंगरपुर के बाद बाजीराव 1736 ई. में उदयपुर पहुंचा. यहां से डेढ़ लाख राशि चौथ के रूप में वसूल की. इस प्रकार बाजीराव राजस्थान में भी मराठा प्रभुत्व का प्रचार करके राजपूत राज्यों को मराठों के अधीन बना दिया.

पेशवा बाजीराव प्रथम की उपलब्धियां

10. बाजीराव एवं बुन्देलखण्ड

बुंदेलखंड, मालवा और उत्तर प्रदेश सीमाओं पर स्थित था. यह दोनों प्रदेशों को जोड़ने वाला प्रदेश रहा है. पेशवा बाजीराव प्रथम ने बुंदेलखंड के शासक छत्रसाल को मुगलों के विरुद्ध सहायता दी और मुगलों को बुंदेलखंड से भगाकर छत्रसाल से मित्रता की. छत्रसाल पेशवा बाजीराव को अपना परम मित्र समझने लगा और कृतज्ञ होकर छत्रसाल ने पेशवा के ससम्मान में दरबार का आयोजन किया तथा काल्पी, सागर, झांसी तथा हृदयनगर पेशवा को निजी जागीर के रूप में भेंट किए. इन पर बाजीराव का अधिकार हो जाने से बाजीराव का दोआब से सीधा संपर्क स्थापित हो गया.

11. बाजीराव का दोआब और दिल्ली पर आक्रमण

1734-35 ई. में उत्तरी भारत में बाजीराव की शक्ति और प्रतिष्ठा में काफी वृद्धि हुई हो गई. मराठों के निरंतर विजयों से मुगल सम्राट भी काफी आतंकित हो गया था. उसने जयसिंह के माध्यम से बाजीराव से समझौता करने का प्रयास किया, परंतु बाजीराव ने इस समझौते से धन, राज्य तथा अपने अधिकार की मांग काफी बढ़ा दिया. अतः कोई समझौता नहीं हो सका. बादशाह ने मराठों के आक्रमण को रोकने के लिए एक सेना आगरा भेजी, लेकिन 1736 ई. में बाजीराव प्रथम ने मराठा सेना लेकर चंबल और आगरा प्रदेशों को रौंद डाला. इसके अलावा बाजीराव की सेना ने दोआब क्षेत्र पर भी आक्रमण करके वहां खूब लूटमार मचाई. अवध के नवाब सआदत खां ने मराठा सेना का मुकाबला करके उनको भगा दिया. इसके बाद बाजीराव प्रथम ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया और बादशाह की सेना को परास्त करके अप्रैल 1737 ई. में दक्षिण वापस लौट गया. बाजीराव के इस आक्रमण से बादशाह  काफी भयभीत हो गया और उसने निजाम को दिल्ली बुलाया और उसके नेतृत्व में मराठा के विरुद्ध सैनिक दल भेजा. दोनों के बीच भोपाल में युद्ध हुई. इस युद्ध में निजाम की पराजय हुई. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि बाजीराव की विस्तारवादी गतिविधियों, अभियानों और आक्रमण से मराठा शक्ति दिल्ली दरबार में जम गई और मराठों का प्रभाव गुजरात, मालवा, बुंदेलखंड तथा राजस्थान तक फैल गया.

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