प्रथम अफीम युद्ध ( 1840-42)के कारणों और परिणामों पर प्रकाश डालिये

प्रथम अफीम युद्ध (1840-42 ई.)

यूरोप के व्यापारी अपने व्यापार के सिलसिले में पूरी दुनिया घूमते थे.  इंग्लैंड के व्यापारी विदेशों में व्यापार करने के मामले में सबसे आगे थे. इसी दौरान वह चीन भी पहुंचे. चीन में इंग्लैंड के व्यापारियों के द्वारा व्यापार करना आसान नहीं था. उन पर कठोर प्रतिबंध लगे हुए थे. लेकिन यूरोपीय व्यापारी चीन के बाजार का परित्याग किसी भी सूरत में नहीं करना चाहते थे. इंग्लैंड का व्यापारिक संगठन ईस्ट इंडिया कंपनी किसी तरह चीन में अपना पांव पसारना चाहते थे. इधर चीनी सरकार ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रभाव को अपने देश से खत्म करना चाहती थी. इस वजह से चीन और ईस्ट इंडिया कंपनी के मध्य दो युद्ध हुए जिसे प्रथम एवं द्वितीय अफीम युद्ध के नाम से जाना जाता था. 

प्रथम अफीम युद्ध 

प्रथम अफीम युद्ध (1840-42 ई.) के कारण

1. क्योतो की प्रथा

इस प्रथा के अनुसार विदेशी व्यापारियों को चीनी सम्राट के प्रति अपनी भक्ति प्रकट करनी होती थी. उन्हें सम्राट चीनी सम्राट के सामने झुक कर 9 बार प्रणाम करना होता था. यह प्रथा ब्रिटिश व्यापारियों, ईसाई प्रचारक के लिए अपमानजनक था. उनके लिए ब्रिटिश सम्राट और पोप के अलावा कोई सर्वोपरि ना थी. अतः इस प्रथा के कारण ईसाई धर्म प्रचारकों को और व्यापारियों के मान सम्मान में ठेस पहुंचती थी. अतः अंग्रेज इस प्रथा को समाप्त करना चाहते थे. इस प्रथा को समाप्त करना तब तक संभव नहीं था जब तक चीन पर ब्रिटिश की हुकूमत का प्रभाव न स्थापित हो जाती.

2. व्यापारिक विषमता

चीन में इस समय व्यापारिक विषमता थी. व्यापार केवल एक तरफा होता था. इस समय चीनी लोगों को यूरोपीय वस्तुओं की कोई विशेष आवश्यकता नहीं थी. इसीलिए चीन के साथ व्यापारिक संतुलन बनाए रखने के लिए यूरोप वासियों के पास ऐसी कोई वस्तु ना थी कि जिसे चीन को बेच कर अपना व्यावहारिक संतुलन बनाए रखें. यूरोपीय व्यापारिक चीन से रेशम, चाय, रब्बर, सोयाबीन, सिल्क, नॉन किंग जैसी चीजों का आयात करते थे. चीन के सम्राट में कहा था “हमारे स्वर्ग के समान एवं अद्भुत  साम्राज्य में प्रत्येक वस्तु की बहुतायत है. हमें किसी भी वस्तु को आयात करने की आवश्यकता नहीं है जिसे हम निर्यात के बदले में विदेशी व्यापारियों से स्वीकार करें. चीनी सम्राट के इस कथन से स्पष्ट था कि उन्हें विदेशियों की कोई भी चीजों की आवश्यकता नहीं थी. अतः चीनियों ने यह मान लिया कि विदेशियों से मनमाना व्यवहार कर सकते थे. विदेशी व्यापारियों को चीन में व्यापार करने की अनुमति तो थी परंतु उन्हें पूरे वर्ष में निवास करने की अनुमति नहीं थी. इसके अलावा चीनी अधिकारी विदेशी व्यापारियों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर रखे थे. अतः ईस्ट इंडिया कंपनी इस व्यापारिक विषमता को दूर करने का प्रयास कर रहे थे.

प्रथम अफीम युद्ध 

3. व्यापारिक संतुलन बनाने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रयास

चीन में व्यापारिक असंतुलन की वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी को कोई विशेष लाभ नहीं पहुंच रहा था. ईस्ट इंडिया कंपनी को वहां अपना सिक्का जमाने के लिए व्यापारिक असंतुलन को दूर करना चाहते थे. अतः वे चीनी व्यापारियों से संपर्क बनाकर चीन में अफीम की सेवन के प्रचार को बल देना शुरू कर दिया. उन्होंने तंबाकू के साथ अफीम मिलाकर लोगों को मुफ्त में देना प्रारंभ कर दिया ताकि चीनी अफीम के आदी हो हो जाए और वे अफीम की व्यापार कर सके. ईस्ट इंडिया कंपनी के इस रणनीति ने काम किया. चीनी लोगों के द्वारा अफीम के आदी हो जाने के कारण धीरे-धीरे उन्होंने अफीम को बेचना शुरू कर दिया. इसलिए अफीम की बढ़ती ही मांग के द्वारा इंग्लैंड के व्यापारियों में व्यापारिक संतुलन बना लिए. इसे देखकर चीनी सरकार ने 1820 ईस्वी अफीम के व्यापार को बंद करने का आधिकारिक आदेश दे दिए. परंतु चीन के कुछ अधिकारी जिन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी से पैसे मिलते थे, उन्होंने अफीम लदे जहाजों को उतारने की अनुमति दे दी. अत: चीनी सम्राट के आदेश के बावजूद अफीम के व्यापार नहीं रुका. अब बहुत से चीनी व्यापारी ने विदेशी व्यापारियों से चांदी के सिक्कों का भुगतान कर अफीम की खरीदारी करना शुरू कर दिया था. इसकी वजह से चीन से बहुत बड़ी मात्रा में चांदी के सिक्के विदेश जा रहे थे. चांदी के सिक्के चीनी साम्राज्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि राजकीय भुगतान केवल चांदी के सिक्कों से ही होता था. अतः अफीम के व्यापार को खत्म करने के लिए चीन की सरकार को कठोर कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा.

प्रथम अफीम युद्ध 

4. आंग्ल-चीनी संबंध

इस समय तक चीन में व्यापारिक क्षेत्र में केवल ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार था. इसकी वजह से ब्रिटिश स्वतंत्र ब्रिटिश व्यापारी ईस्ट इंडिया कंपनी के एकाधिकार को खत्म करने की मांग लंबे समय से कर रहे थे. 1834  में ब्रिटिश सरकार ने उनकी बात मानते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी के एकाधिकार को खत्म कर दिया था. अब अन्य स्वतंत्र ब्रिटिश व्यापारी भी चीन व्यापार कर सकते थे. इसी बीच ब्रिटेन ने लोन नेपियर को अपना को कैंटन का मुख्य निरीक्षक नियुक्त किया. व कैंटर में ब्रिटिश व्यापारिक हितों की पक्षपाती था परंतु चीनी अधिकारी व्यापार को राजनीतिक रुप देने के पक्षपाती नहीं थे. 18 से 30 ईसवी में एक चीनी चीनी अधिकारी ने विदेशी व्यापार उनको अपनी मां की बेटियां सौंप देने पर बाध्य किया. अब लगभग $700000 मूल्य की 20000 अफीम की पेटियां पेटीएम को समुद्र में फेंक दिया गया. ब्रिटिश व्यापारी इतनी धनराशि नष्ट हो जाने पर अत्यधिक शब्द थे. उन्होंने इसकी क्षतिपूर्ति के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाना आरंभ कर दिया.

5. राज्य क्षेत्रातीत अधिकार

चीन व्यापार करने वाले सभी विदेशी व्यापार इन पश्चिम की परंपरा के अनुसार चीनी कानून लागू होते थे. ब्रिटिश व्यापारी इस कानून से असंतुष्ट थे क्योंकि इस कानून के अनुसार अंग्रेज अभियुक्त का निर्णय भी चीनी अदालत में होता था. अंग्रेज व्यापारी चाहते थे कि उनका उनका अन्याय का मामला अपने ही देश के न्यायालय में हो. अतः राज्य क्षेत्रातील अधिकार की मांग कर रहे थे. इसी बीच 7 जुलाई 18 सो 39 ईस्वी में लविंग लवी को नवीकॉम के आपसी झगड़े में एक चीनी नाभिक की हत्या हो गई. चीनी अधिकारी अंग्रेज से हत्या करने वाले अपराधी की मांग करने लगे. लेकिन अंग्रेज अधिकारी उन्हें सौंपने से इंकार कर दिए. इसके परिणाम स्वरूप चीनी सरकार ने अंग्रेज व्यापारियों को पैटर्न और मकान से निष्कासित कर दिया. इसके जवाब में अंग्रेजी अधिकारी ने पैटर्न की नाकेबंदी कर दी और 18 से 40 ईसवी में चीन के विरुद्ध युद्ध का प्रस्ताव पारित होने के साथ ही उन्होंने कैंटन पर अधिकार कर दिया. चीनी अंग्रेजी सेना ने चीनी सेना पर आक्रमण करके सिक्योर पर अधिकार कर लिया. विवश होकर चीनी एवं को संधि करने पर पर मजबूर होना पड़ा. इस संधि को नॉनकिंग की संधि कहा जाता है.

प्रथम अफीम युद्ध 

प्रथम अफीम युद्ध (1840-42 ई.) के परिणाम

प्रथम अफीम युद्ध नॉनकिंग की संधि के साथ ही समाप्त हुआ. इसके परिणाम महत्वपूर्ण थे. यह संधि चीन के लिए एक कड़वे विष के समान थी और अंग्रेजों के लिए चीन में उसकी साम्राज्यवादी फतह की पहली किरण. नॉनकिंग की संधि के निम्नलिखित परिणाम निकले:-

1. ब्रिटेन को लाभ

इस संधि के परिणाम स्वरूप ब्रिटेन चीन में अपने साम्राज्यवादी पताका का पहला झंडा गाड़ दिया. इस युद्ध में हुई क्षतिपूर्ति के रूप में ब्रिटेन को 2 करोड़ 10 लाख डॉलर की धनराशि प्राप्त हुई. इसके साथ ही चीन के पांच प्रमुख बंदरगाहों पर ब्रिटेन का प्रभुत्व स्थापित हो गया. लेकिन इस संधि में जिस अफीम को लेकर युद्ध लड़ा गया उसकी चर्चा तक नहीं की गई.

प्रथम अफीम युद्ध 

2. चीन में साम्राज्यवाद

नॉनकिंग संधि से प्रभावित होकर फ्रांस, अमेरिका, बेल्जियम, पोलैंड, पुर्तगाल जैसे देश भी चीन में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करने लगे. उन्होंने बहुत से सन्धियों के द्वारा चीन में अपना प्रभुत्व स्थापित किया. इस प्रकार चीन में बहुत सारे विदेशियों का अड्डा बन गया. इसके साथ ही चीन का आर्थिक शोषण शुरू हो गया. इसके बाद चीन का द्वार साम्राज्यवादी शक्तियों के लिए खुल गया और वह एक अंतरराष्ट्रीय उपनिवेश बन गया.

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