प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध हैदर अली और अंग्रेजों के बीच 1769-70 ई. में लड़ा गया. इस युद्ध में युद्ध के शुरुआत में अंग्रेजों को थोड़ी बहुत सफलता मिली लेकिन बाद में हैदर अली ने अंग्रेजों को प्ररास्त करना शुरू कर दिया. उसकी सेना मद्रास तक पहुंच गई. इस वजह से अंग्रेजी में अंग्रेज हताश हो गए थे. अतः उन्होंने हैदर अली के सामने संधि के प्रस्ताव रखा. हैदर अली ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और 4 मई 1769 ई. को उनके बीच एक संधि हुई. इस संधि के बाद दोनों ने एक-दूसरे के जीते हुए प्रदेशों को वापस कर दिया. युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में अंग्रेजों में हैदर अली को बहुत धन दिया साथ ही बाहरी आक्रमण की स्थिति में दोनों एक दूसरे को मदद करने का आश्वासन दिया. इस प्रकार प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध खत्म हो गया.
प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध के कारण
1. दोनों की आपसी हितों में टकराव
हैदर अली और अंग्रेज दोनों ही अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करना चाहते थे. हैदर अली की शक्ति लगातार बढ़ती जा रही थी. ऐसे में अंग्रेजों को खतरा महसूस हुई. उन्होंने या महसूस किया कि यदि हैदर अली के बढ़ती हुई शक्ति पर अंकुश न लगाया जाएगा तो जल्दी ही दक्षिण भारत तक अपने प्रभाव को स्थापित करने में वह सफल हो जाएगा. अत: उन्होंने हैदर अली की बढ़ती हुई शक्ति को शक्ति पर अंकुश लगाने के लिए तरह-तरह के उपाय करने आरंभ कर दिए. ऐसे में दोनों की बीच संघर्ष का खतरा बढ़ता चला गया.
2. अंग्रेजों और निजाम के बीच बढ़ती दोस्ती
अंग्रेजों ने हैदर अली के विरुद्ध हैदराबाद के निजाम और मराठों के साथ सांठगांठ करना आरंभ कर दिया. यह बात हैदर अली को खटकने लगी थी. हालांकि वह अपनी कूटनीति की मदद से यह सांठगांठ तोड़ने में सफल हो गया था, लेकिन अंग्रेजों के प्रति उसके मन में शत्रुता बढ़ती चली गई.
3. हैदर अली का फ्रांसीसियों के साथ दोस्ती
हैदर अली भी अंग्रेजों के प्रबल शत्रु फ्रांसीसी ओम के साथ मेल-मिलाप रखता था. उसने अपने सेना को प्रशिक्षित करने के लिए फ्रांसीसी अधिकारियों को नियुक्त कर रखा था. यह बात अंग्रेजों के लिए असहनीय थी. अत: वे हैदर अली के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई करने के मौके खोजने लगे थे.
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