प्रथम बाल्कन युद्ध के कारण और युद्ध की घटनाओं की व्याख्या करें

प्रथम बाल्कन युद्ध

बाल्कन युद्घ विश्व के इतिहास को प्रभावित करने वाली घटना थी. 1912-13 ई. के बीच दो बाल्कन युद्घ हुए. प्रथम बाल्कन युद्घ, बाल्कन लीग और तुर्की के बीच हुआ था. 15 अक्टूबर 1912 ई. को यूनान, बुल्गारिया, सर्बिया और माणटेनीग्रो ने मिलकर तुर्की के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. नवंबर पहले सप्ताह में ही यूनान ने मैसेडोनिया पर कब्जा कर लिया और सालोनिका बंदरगाह को अपने अधीन में कर लिया. इधर बुल्गारिया ने भी तुर्की को किर्क, किलिसी, और लूसी बर्गस के युद्ध में पराजय कर दिया. इस असफलताओं ने तुर्की को भयभीत कर दिया और युध्द रोकने के लिए संधि करने का प्रस्ताव दिया. दिसम्बर 1912 ई. में लंदन में संधि के लिए एक सम्मेलन बुलाया गया. इस सम्मेलन में बुल्गारिया द्वारा एड्रियानोपल की मांग की गई. इस मांग को तुर्की द्वारा ठुकराने पर युद्ध फिर से शुरू हो गया और इस बार तुर्की के हाथ से जैनिना, एड्रियानोपल और स्कुटारी भी निकल गया. विवश होकर तुर्की को फिर से संधी करने की अपील करनी पड़ी. 30 मई 1913 ई. को संधि करके युद्ध का अंत किया गया.

प्रथम बाल्कन युद्घ के कारण

प्रथम बाल्कन युद्घ के कारण

1. युवा तुर्कों की तुरकीकरण की नीति

निरंकुश शासक अब्दुल हामिद द्वितीय के निरंकुश शासन को युवा तुर्कों ने उखाड़ फेक दिया था, लेकिन उसके द्वारा तुर्कीकरण नीति से ऑटोमन साम्राज्य में रहने वाली गैर तुर्कियों बीच असंतोष पैदा हो गया था. युवा तुर्कों ने भी इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया और वे अपने साम्राज्य में एकता स्थापित करने के लिए साम्राज्य में रहने वाली सभी जातियों की भावनाओं पर ध्यान नहीं दिया. युवा तुर्कों ने हजारों आमीनियियनों की हत्या कर दी. अल्बानिया के हजारों मुसलमानों, क्रीट तथा मैसीडोनिया के हजारों यूनानियों की नृशंस हत्या कर दी गई. इन सब घटनाओं को देखकर गैर तुर्क जातियां यह मानने लगी थी कि अगर उन्होंने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित न की तो जल्द ही उनका विलुप्त होना तय है.

प्रथम बाल्कन युद्घ के कारण

2. गैर-तुर्कियों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास

गैर-तुर्क जातियों में अपनी जाति और संस्कृति को बचाने की दिशा में काम करने के साथ ही उनके मन में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होना शुरू हो गया. वे अब खुद को तुर्की के गुलामी से आजाद करके अलग स्वतंत्र सत्ता स्थापित करना चाहते थे. अतः ये भावना ने बाल्कन युद्घ के मार्ग को प्रशस्त किया.

3. तुर्की साम्राज्य में सहजातिये एवं सह्धार्मिकता का प्रभाव

ऑटोमन साम्राज्य के अलग-अलग प्रदेशों में रहने वाले अलग-अलग जातियों और धर्मों के लोगों में अपनी धर्म और जाति के आधार पर अलग राज्य बनाने की भावना जोर पकड़े लगी थी. इसी मांग को लेकर जगह-जगह विद्रोह होने लगे थे. बोस्निया, हर्जेगोविना, माण्टेनीग्रो और सर्बिया की जनता एक ही मूल की थी. अतः वे एक में मिलकर संगठित होना चाहती थी. इसी प्रकार यूनान में भी जाति और धर्म में समानता के आधार पर क्रीट, मैसीडोनिया और अन्य क्षेत्रों पर दवा किए जाने लगे थे.

प्रथम बाल्कन युद्घ के कारण

4. तुर्की साम्राज्य की निर्भलता

युवा तुर्कों की गृहनीति के असफल होने के बाद आस्ट्रिया ने बोस्निया और हर्जेगोविना पर अधिकार कर लिया. इस के बाद बल्गारिया ने भी 1908 ई. में खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया. आंतरिक कलहों में फंसी तुर्की की एकता और प्रगति समिति देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकी. इससे तुर्की साम्राज्य की निर्बलता स्पष्ट हो गई. ऐसे में गैर-तुर्क जातियों का हौसला बढ़ गया और वे अपनी स्वतंत्र सत्ता के लिए विद्रोह करना शुरू कर दिए.

5. विदेशी हस्तक्षेप

यूरोपीय शक्तियां तुर्की में अपनी-अपनी हितों को देख रही थी. इंग्लैंड, तुर्की में रूस के प्रभाव को खत्म करना चाहता था. आस्ट्रिया, तुर्की के दक्षिण हिस्से पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में था. आस्ट्रिया की इस योजना का इटली विरोध कर रहा था. इधर रूस और सर्बिया भी अपना अलग-अलग दावा कर रहे थे. इस प्रकार यूरोपिय शक्तियों के अपने-अपने स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश ने इस समस्या को और ही जटिल बना दिया था.

प्रथम बाल्कन युद्घ के कारण

प्रथम बाल्कन युद्घ की घटनाएं

15 अक्टूबर 1912 ई. को यूनान, बलगारिया, साबिया और माण्नीटेग्रो के द्वारा तुर्की के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी गई. इसके जवाब में तुर्की ने भी 18 अक्टूबर को युद्ध की घोषणा कर दी. नवंबर 1912 ई. के प्रथम सप्ताह में यूनान ने तुर्की के मैसीडोनिया पर अधिकार कर लिया और साथ ही सालोनिका का बंदरगाह भी उसके नियंत्रण में आ गया. बलगारिया ने किर्क, किलीसी और लूसी बर्गस के युद्ध में तुर्की को बुरी तरह पराजित किया. इधर सार्बिया ने भी मोनास्टीर पर अपना अधिकार कर लिया. तुर्की इन देशों के साथ युद्ध में हुए अपनी करारी हार को देखकर घबरा गया. अतः उसने युद्ध रोकने के लिए संधि करने का प्रस्ताव रखा. संधि के लिए दिसंबर 1912 ई. को लंदन में एक सम्मेलन रखा गया, परंतु बलगारिया द्वारा एड्रियानोपल की मांग करने के कारण तुर्की इस पर सहमत नहीं हुआ. इस वजह से मार्च 1913 ई. में फिर से युद्ध आरंभ हो गया.

प्रथम बाल्कन युद्घ के कारण

यह युद्ध भी तुर्की के लिए अत्यंत विनाशकारी सिद्ध हुआ क्योंकि इस युद्ध में उसके हाथ से जैनीना, एड्रियानोपल और स्कुटारी नामक क्षेत्र भी निकल गया. अतः उन्होंने फिर से संधि का प्रस्ताव रखा. 30 मई 1913 ई. को लंदन में संधि हुई. इस संधि के अनुसार क्रीट पर यूनान का अधिकार मान लिया गया. इसके अलावा बहुत से क्षेत्र तुर्की के हाथ से निकल गए. इस प्रकार यह संधि ने तुर्की साम्राज्य का लगभग अंत ही कर दिया.

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