प्राचीन भारतीय संस्कृति पर यूनानी प्रभाव का वर्णन करें

प्राचीन भारतीय संस्कृति पर यूनानी प्रभाव

यूनानी शासकों के द्वारा भारत के कुछ प्रदेशों पर लगभग 150 वर्षों तक शासन किया गया. इतने लंबे समय तक किसी क्षेत्र में यूनानियों के द्वारा शासन किए जाने से वहां के राजनीतिक सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. बहुत से विद्वान भारतीय संस्कृति पर यूनानी प्रभाव से इनकार करते हैं, लेकिन ऐसे बहुत से प्रमाण भी मिलते हैं जिनमें स्पष्ट रूप से भारतीय संस्कृति पर यूनानी प्रभाव देखने को मिलते हैं. लेकिन यह भी सत्य है कि यूनानी प्रभाव भारतीय संस्कृति पर पूरी तरह हावी नहीं हो पाया. प्रोफ़ेसर जी.एन. बनर्जी ने भारत पर यूनानी प्रभाव के विषय में लिखा है कि वास्तव में भारत पर यूनानी प्रभाव का अत्यधिक महत्व है क्योंकि यूनानियों ने न सिर्फ भारत के स्थापत्य कला एवं वास्तुकला को प्रभावित किया बल्कि मुद्रा निर्माण और ज्योतिष विज्ञान पर भी गंभीर यूनानी प्रभाव दृष्टिगत होता है.

प्राचीन भारतीय संस्कृति पर यूनानी प्रभाव

1. चिकित्सा शास्त्र पर प्रभाव

बहुत से विद्वान मानते कि यूनानियों ने भारत के प्राचीन चिकित्सा शास्त्र को प्रभावित किया. उन विद्वानों के अनुसार चरक ने वैद्य के आचार के विषय में जो नियम रखे थे वह यूनानी हिपोक्रेटीज़ के नियमों से समता रखते हैं. शरीर के रस, ज्वरों, जोंको द्वारा प्रभावित अंग से रक्तस्राव और चिकित्सक द्वारा गोपनीयता की शपथ लिए जाने के विषय में दोनों भारतीय और यूनानी आयुर्वेद पद्धतियां एकमत है. इसके अतिरिक्त शल्य चिकित्सा भी संभवत भारतीयों ने यूनानीयों से ही सीखा. इसका प्रमाण यह है कि ई.पू. तीसरी शताब्दी में सिकंदरिया के स्कूलों में शल्य चिकित्सा किए जाने का उल्लेख मिलता है. लेकिन इस समय भारत में शव का स्पर्श भी वर्जित था. इसके अतिरिक्त सुश्रुत के चिकित्सा के विषय में 3 अध्याय हैं, किंतु चरक ने इस विषय में कुछ नहीं कहा है. अतः शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में यह प्रमाणित होता है कि भारतीयों ने शल्य चिकित्सा यूनानीयों से ही सीखा है. दूसरी ओर यूनानियों ने भी भारत से अनेक जड़ी बूटियों का प्रयोग सीखा था.

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2. ज्योतिष पर प्रभाव

भारतीय ज्योतिष शास्त्र पर भी यूनानी उनका सर्वाधिक प्रभाव पड़ा. गणित-ज्योतिष शास्त्र पर यूनानी प्रभाव निर्विवाद है. भारतीय साहित्य में इस तथ्य को स्वीकार किया गया है. गार्गी संहिता में कहा गया है “यद्यपि यवन म्लेच्छ हैं, परंतु ज्योतिष का ज्ञाता होने के कारण ऋषियों के समान पूज्य हैं.” भारतीयों ने यूनानी ज्योतिष से भी काफी लाभ उठाया और अपने साहित्य में अनेक यूनानी शब्दों का प्रयोग किया. जन्मपत्री के लिए भारत में प्रयोग शब्द हीरा चक्र यूनानी संस्कृति से ही लिया गया. यूनानी भाषा में हीरा का अर्थ है घंटा, जिसका मतलब होता है एक क्षण. भारत में प्रचलित राशियाँ यूनानियों से ही ली गई है. इस प्रकार अनेक लाक्षणिक शब्दों का प्रचलन भारतीय ज्योतिष शास्त्र में यूनानी प्रभाव से ही हुआ है. भारतीय ज्योतिष शास्त्र के 5 सिद्धांतों में से दो का नाम रोमन सिद्धांत और पौलिश सिद्धांत भी यूनानियों से लिए गए हैं. जैसा कि उनके नाम से ही स्पष्ट है. इस संबंध में प्रोफ़सर भगवतशरण उपाध्याय का कथन है कि भारतीय ज्योतिष सिद्धांतों में “रोचक” और “पौलिश” सिद्धांतों का खुला नामत: उपयोग रोम और यूनानी राज्यों के म्लेच्छ आचार्यों के प्रति भारतीयों का ऋण प्रमाणित करता है.

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3. मुद्रा पर प्रभाव

भारतीय मुद्रा विज्ञान पर भी यूनानी प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. यूनानियों के संपर्क में आने से पूर्व भारत में छोटे-छोटे तांबे अथवा मिश्रित चांदी के सिक्के चलते थे. इन सिक्कों पर वृषभ, चक्र, चैत्र आदि उत्कीर्ण होते थे. इन सिक्कों को आहत मुद्रा कहा जाता था. इन मुद्राओं का भार और आकार अनियमित होता था. इसके विपरीत यूनानियों के सिक्के सुडौल और कलात्मक होते थे. भारतीय ने यूनानियों से ही कलात्मक एवं सुंदर मुद्राओं का निर्माण करना सीखा और कालांतर में भारतीयों के सिक्के भी यूनानी सिक्कों के समान ही सुडौल और कलात्मक होने लगे. इन सिक्कों पर राजा अथवा किसी देवी-देवता का चित्र तथा दूसरी ओर लेख उत्कीर्ण होता था.

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4. व्यापार पर प्रभाव

डाॅ. रामाशंकर त्रिपाठी रामाशंकर त्रिपाठी के अनुसार सभ्यताओं के इस संपर्क से व्यापार को काफी लाभ हुआ. य वनों के भारत के कुछ प्रदेशों में बस जाने के कारण भारतीय व्यापार में असीमित उन्नति हुई. नवीन व्यापारिक मार्ग खुल गए. भारत में विदेशों से बहुत से सामानों का आयात और निर्यात होने लगा. टार्न ने लिखा है कि 166 ई. पू. में दाफ्ने नामक स्थान पर एण्टिओकस चतुर्थ द्वारा भारतीय गजदंत से निर्मित वस्तुओ और गरम मसालों का वृहद प्रदर्शन किया गया था. इसके अतिरिक्त लिखने की सामग्री भी यूनान से ही आयात की जाती थी.

5. धर्म एवं दर्शन पर प्रभाव

भारतीय धर्म एवं दर्शन पर यूनानी प्रभाव दृष्टिगत नहीं होता, अपितु यूनानी धर्म एवं दर्शन पर भारतीय प्रभाव दिखाई देता है. भारत में बसे यूनानियों ने विभिन्न भारतीय धर्मों को अपनाया. सियालकोट के राजा मिनेण्डर ने बौद्ध धर्म को अपनाया था. इस बात की पुष्टि विभिन्न स्रोतों से भी होती है. इसी प्रकार हेलिओडोट्स वैष्णव धर्मावलंबी हो गया था तथा बेसन नगर में भगवान विष्णु की स्तुति में एक स्तंभ का निर्माण भी कराया था. दर्शन के क्षेत्र में भी भारतीयों ने ही यूनानियों को प्रभावित किया. रिचर्ड ग्रावे के अनुसार भारतीय दर्शन का प्रभाव एक सीमा तक यूनानी दर्शन पर भी पड़ा था.

प्राचीन भारतीय संस्कृति पर यूनानी प्रभाव

6. कला पर प्रभाव

यूनानियों का भारतीय वास्तुकला पर विशेष प्रभाव नहीं हुआ, किंतु मूर्तिकला निश्चित रूप से प्रभावित है. भारतीय कलाकार यूनानी वास्तुकला को अपना नहीं सके. इसी कारण यूनानी शैली से निर्मित इमारतों के भाग्नाववेश उपलब्ध नहीं है. तक्षशिला में ई. पू. प्रथम शताब्दी के कुछ घर और एक मंदिर मिला है जो यूनानी शैली से निर्मित है. लेकिन ऐसे उदाहरण बहुत ही सीमित मात्रा में उपलब्ध है. यूनानी वास्तुकला का भारत पर प्रभाव न होने का प्रमुख कारण संभवत: दोनों देशों की जलवायु और परंपराओं का भिन्न होना था. भारतीय मूर्तिकला पर भी यूनानी प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होता है. किंतु यह प्रभाव अल्पकालीन रहा. मूर्तिकला पर यूनानी प्रभाव गांधार कला के अंतर्गत निर्मित मूर्तियों पर दिखाई देता है. इस कारण गांधार कला को इंडो-ग्रीक कला भी कहा जाता है.

7. साहित्य पर प्रभाव

भारतीयों और यूनानियों ने एक-दूसरे से विभिन्न शब्दों का आदान प्रदान किया. भारतीय ने कलम, हीरा, कोण, केंद्र, पुस्तक, सुरंग आदि शब्द ग्रहण किए जबकि यूनानियों ने शर्करा, वैद्य आदि शब्द भारतीयों से सीखे. टार्न का विचार है कि भारतीयों ने यूनानी भाषा सीख ली थी, किंतु यह मत तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है. जैकोबी का विचार है कि दोहा भी यूनानियों की ही देन है. किंतु इस मत को भी स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि दोहा यूनानियों के भारत आगमन से पूर्व भारत में प्रचलित था.

प्राचीन भारतीय संस्कृति पर यूनानी प्रभाव

संत क्रिस्तोम ने लिखा कि भारतीय होमर के काव्य गुण गाते हैं जिनके उन्होंने अपनी भाषा में अनुवाद कर लिए हैं. इस कथन की पुष्टि भी अन्य विद्वानों ने की है. इस आधार पर कुछ विद्वानों का विचार है कि भारतीय साहित्यों पर यूनानी प्रभाव है. इस संबंध में भगवत शरण उपाध्याय ने लिखा है कि यह सत्य न भी हो, लेकिन ये सही है कि दोनों भाषाओं के बीच परस्पर प्रतिक्रिया अवश्य हुई होगी. किंतु यह भी सत्य है कि समानता के आधार पर भारतीय महाकाव्य की यूनानी महाकाव्य से उत्पत्ति भी नहीं मानी जा सकती.

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