फ्रांस की क्रांति
फ्रांस की क्रांति का यूरोप ही नहीं वरन पूरे विश्व पर बहुत ही व्यापक प्रभाव पड़ा. उस क्रांति के प्रभाव से इंग्लैंड भी अछूता नहीं रह पाया. शरुआत में इंग्लॅण्ड वासियों के द्वारा फ्रांस की क्रांति का जोरदार स्वागत किया गया. जगह-जगह खुशियां मनाई गई. इंग्लैंड की जनता के फ्रांस की निरंकुश शासन के ख़त्म होने की ख़ुशी जाहिर की. फ्रांस की क्रांति का इंग्लैण्ड के अलग-अलग वर्गों पर प्रभाव पड़ा.
फ्रांस की क्रांति का इंग्लैंड पर प्रभाव
1. कवियों पर प्रभाव
2. लेखकों पर प्रभाव
फ्रांस की क्रांति का इंग्लैण्ड के लेखकों पर अलग -अलग प्रभाव पड़ा. कोई फ्रांस की क्रांति को लोगों की भविष्य बदलनेवाला कह रहा था तो कोई इस क्रांति को फ्रांस में भयानक संकट आने की शुरुआत था. इंग्लैंड के एक महान विचारक वर्क ने 1790 ई में एक पुस्तक Reflection on French Revolution प्रकाशित की. उसने पुस्तक के द्वारा फ्रांस में क्रांति के भयानक फारिणामों की भविष्यवाणी की. उसने इस पुस्तक में कहा कि ये क्रांति भविष्य में भयानक रक्तपात लायेगी और संभव है फ्रांस में सैन्य शासन लग जाए. कुछ वर्षों बाद उनकी भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई. 1792 में राजा-रानी, उसके पूरे राजवंशों और समर्थकों को मौत के घात उतार दिया गया और उसके बाद नेपोलियन के द्वारा वहां सैन्य शासन स्थापित हुआ.
इसके विपरीत क्रांति के पक्षधरों ने वर्क का विरोध किया. 1771 में थॉमस पेन ने Right of Man नामक एक पुस्तक लिखी. इस पुस्तक में उन्होंने थॉमस के विचारों का खंडन किया और फ़्रांस की क्रांति को फ्रांस के लिए शुभ बताया. उन्होंने इस पुस्तक से इंग्लैण्ड की जनता से भी अपील की कि वे भी फ्रांस के समान इंग्लैण्ड की पुरानी और भ्रष्ट राजनीति संस्थाओं को उखाड़ फेंके. उनके ये विचार बहुत की क्रन्तिकारी थे और युवाओं को बहुत प्रभावित किया.
3. सुधारों के लिए चेतना
फ्रांस की क्रांति ने इंग्लैण्ड की जनता में भी नई राजनीति चेतना को जगाया. जनता संगठित होने लागीरथी. संसदीय सुधारोंकी मांग होने लगी थी और नई संस्थाएँ स्थापित होने लगी थी. इसी दौरान सोसाइटी फॉर कांस्टीट्यूशनल इंफोर्मशन, सोसाइटी फॉर द फ्रेंड्स एंड डी पीपुल, जैसे संस्थाओं की स्थापना हुई.
4. इंग्लॅण्ड में क्रांति की प्रतिक्रिया
फ्रांस के क्रांति के समय इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री पिट था. वह वर्क और पेन जैसे विचारकों को पढता था. वह धैर्यपूर्ण इनके हर विचारों और देश- विदेश में होनेवाली घटनाओं का अवलोकन करता था. इसी दौरान फ़्रांस के संसद में माराट नामक क्रन्तिकारी संसद ने ऐलान कि – “हमें सम्राटों की निरंकुश सत्ता को कुचलने के लिए स्वतंत्रता की निरंकुश सत्ता स्तापित चाहिए.” ये सुनकर पिट से समझ लिया कि फ़्रांस की क्रांति अब फ्रांस तक ही सीमित नहीं रही. इसके बाद क्रांतिकारियों में बढ़ते प्रभाव को देखे हुए पिट को 1793 ई में फ्रांस के खिलाफ युद्ध शुरू करना पड़ गया. साथ ही साथ उसे इंग्लैण्ड में भी दमन की नीति का प्रयोग करना पड़ गया. फ्रांस में हो रही घटनाओं ने इंग्लैण्ड की जनता को भयभीत कर दिया. इंग्लैंड की जनता आतंक का राज को पसंद नहीं करती थी. इसीलिए धीरे- धीरे फ्रांस की क्रांति का समर्थन करना बंद कर दी.
इसी बीच पिट ने संसद में एलियन एक्ट पास कराया ताकि इंग्लैण्ड के अंदर विदेशियों की क्रियाकलापों पर नजर रख सके. उनको डर था कि कहीं विदेशी इंग्लैण्ड में भी ऐसी क्रांति का षड्यंत्र न कर दे. इसके पश्चात पिट ने हैविअस कॉरपस एक्ट को लागू कर दिया. इसके तहत उसने इंग्लैंड में विदेशियों की सभाओं पर रोक लगा दी, प्रेस पर प्रतिबन्ध लगाया तथा मजदूर संगठन बनाने पर रोक लगा दी. इस प्रकार फ़्रांस की क्रांति ने इंग्लैण्ड की जनता की आजादी छीन ली. जनता ने भी विरोध नहीं क्या क्योंकि उन्होंने फ्रांस की क्रांति के बाद वहां होने वाली रक्तपात भरी घटनाओं को देख चुकी थी. इंग्लैण्ड जनता शांतिपूर्वक रहना चाहती थी.
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