फ्रांस की क्रांति के कारणों पर प्रकाश डालिए

फ्रांस की क्रांति

फ्रांस की क्रांति यूरोप के इतिहास की एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना थी. इस घटना ने न सिर्फ यूरोप बल्कि पूरी दुनिआ को प्रभावित किया. फ़्रांस की क्रांति ने पूरी दुनिआ के लोगों के सामने समानता, स्वतंत्रता भईचारे जैसे विचार विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाया. इतिहास गवाह है कोई भी क्रांति अचानक नहीं होती है. उस क्रांति की चिंगारी अंदर ही अंदर कहीं न कही जल रही होती है. फ्रांस की क्रांति की चिंगारी भी इसी तरह कहीं न कहीं जल रही थी. यही चिंगारी 1789 को भड़क गई. इसके फलस्वरूप फ्रांस की क्रांति हुई. 

फ्रांस की क्रांति के कारण
 
फ्रांस की क्रांति के कारण

1. राजनीतिक कारण

फ्रांस में सदियों से राजा का शासन चल रहा था. सारी राजनीतिक शक्तियां राज के हाथ में होती थी. इस समय का तत्कालीन शासक लुई चौदहवाँ था. वह एक निरंकुश शासक था. उसके शासनकाल में जनता त्रस्त थी. उसके शासनकाल में निरंकुशता बहुत ही ज्यादा बढ़ गई थी. वह हमेशा युद्धों में ही लिप्त रहा करता था. लगातार युद्ध करते रहने के कारण फ्रांस की आर्थिक स्थिति काफी ख़राब हो गई. इसके बाद लुई पन्द्रहवां बहुत ही अयोग्य शासक निकला. उसके शासनकाल में फ्रांस के बहुत बड़े भू-भाग उसके अधिकार से निकल गया. इसके साथ ही जनता के कष्ट बढ़ती चली गई. उसके पश्चात लुई  सोलहवां भी अयोग्य निकला. उसका अपने देश पर कोई नियंत्रण ही नहीं रहा. शासन व्यवस्था चौपट हो गई. राजा खुद को सर्वोच्च समझता था. वह जनता के दुःख-दर्द से अनभिज्ञ था और न उनकी कोई परवाह थी. उसका विचार था कि राजा ही सर्वोच्च है. वह  मर्जी से क़ानून बना सकता है और उसे किसी पर भी थोप सकता है. राजा का ध्यान सिर्फ राजधानी पर होता था. कई स्थानों पर देश की सीमा रेखाएं भी निश्चित नहीं था. देश के भिन्न-भिन्न हिस्से पर भिन्न-भिन्न क़ानून थी. न्याय प्रक्रिया  कोई निश्चित प्रणाली नहीं थी. किसी को भी जब चाहे कैद किया जा सकता था. कर वसूल  प्रणाली भी काफी दोषपूर्ण थी. कर वसूल करने का काम राजा के अधिकारी के बदले बोली लगाकर किसी प्रभाशाली व्यक्ति को दिया जाता था. वह लोगों से मनमाना कर वसूली किया करता था. पादरी और कुलीन वर्ग को कर देना नहीं पड़ता था इसीलिए इसका बोझ निम्न वर्ग को ही उठाना पड़ता था. जनता इन बातों से त्रस्त हो चुकी थी इसीलिए वो इनसे छुटकारा पाना चाहती थी.  

फ्रांस की क्रांति के कारण

2. सामजिक कारण 

फ्रांस में इस समय सामाजिक असमानता थी. समाज इस समय दो वर्गों में विभाजित था-एक कुलीन तथा पादरी वर्ग, तथा दूसरा साधारण अथवा निम्न वर्ग. कुलीन और पादरी वर्ग को कई विशेषाधिकार प्राप्त थे. उनको कोई कर देना नहीं पड़ता था. वहीं दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोगों को लोग कर के बोझ से दबे पड़े थे. उनसे मनमाना कर वसूल किया जाता था. किसानों की स्थिति काफी सोचनीय थी. उन्हें चर्च तथा राजा दोनों को कर देना पड़ता था. जमींदार उनसे मनमाना काम करवाते थे तथा उनके बदले उचित मजदूरी भी नहीं दिया जाता था. राजा ने कई प्रकार के करों का बोझ किसानों के ऊपर लगा रखे थे. यह अनुमान लगाया जाता है कि जाता है कि एक किसान के द्वारा राजा को कर देते-देते उनके पास कुल उपज का मात्र 20% ही बच जाता था. इन सब के कारण निम्न वर्ग के लोगों में दिन-प्रतिदिन असंतोष की भावना बढ़ती जा रही थी. मेडेलन के अनुसार “1789 ई. की क्रांति के विद्रोह की शुरुआत तानाशाही नहीं बल्कि असामनता के कारण हुई थी.”

फ्रांस की क्रांति के कारण

3. आर्थिक कारण

फ्रांस की क्रांति के लिए फ्रांस की दयनीय आर्थिक कारण  ने भी बहुत बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. लुईस 14वें के द्वारा लगातार युद्ध में लिप्त रहने के कारण फ्रांस की आर्थिक दशा को और भी बदतर कर दिया. इसके अलावा उसके अय्याशी प्रवृत्ति के कारण फ्रांस को आर्थिक दृष्टि से कमजोर कर दिया. उसने अपने प्रेमिकाओं के ऊपर बहुत सारा धन खर्च किया. इसके अलावा फ्रांस की आर्थिक स्थिति दयनीय होने पर भी फ्रांस के राजा ने अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया. इस वजह से आर्थिक संकट और भी गहरा गया. आर्थिक संकट से निपटने के लिए फ्रांस के राजा ने जनता के ऊपर और भी ज्यादा करों का बोझ लाद दिया. कुलीन और पादरी वर्ग तो करों से मुफ्त थे. इसी वजह से कर उनका सारा बोझ साधारण जनता पर पड़ा. इसी बीच फ्रांस के राजा ने आर्थिक संकट को दूर करने के इरादे से पादरी और कुलीन वर्गों की सभा बुलाई और उनसे पादरी तथा कुलीन वर्ग के लोगों पर कर लगाने संबंधी प्रस्ताव पर स्वीकृति देने की अपील की. पर कुलीन पादरी वर्ग ने राजा के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. राजा ने ऋण प्राप्त करने के लिए प्रयत्न किया. लेकिन पेरिस की संसद ने अन्य कर्ज और नए करों  को अनुमति देने से इनकार कर दिया. इस कारण सरकार ने पेरिस की संसद के विरुद्ध कार्रवाई की और उनक समाप्त कर दिया. राजा की इस कार्रवाई के बाद जनता में अत्यधिक आक्रोश उत्पन्न हुआ. सैनिकों में भी राजा की आज्ञा का पालन करने से इंकार कर दिया. इस प्रकार फ्रांस की क्रांति की शुरुआत हुई.

फ्रांस की क्रांति के कारण

4. दार्शनिकों की भूमिका

फ्रांस की क्रांति के लिए दार्शनिकों का बहुत ही बड़ा योगदान रहा. पुनर्जागरण आंदोलन का प्रभाव फ्रांस पर भी पड़ चुका था. इस के प्रभाव से बहुत से विद्वान और लेखक फ्रांस में जन्म ले चुके थे. फ्रांस के तत्कालीन विद्वानों में मुख्य रूप से माण्टेस्क्यू, वेल्फेयर और रूसो थे. इन विद्वानों ने अपनी लेखन के जरिए फ्रांस की जनता को जागृत करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. फ्रांस की दार्शनिक और विद्वानों में सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली विद्वान रूसो था. उसने जनता के हाथ में राज्य का सर्वोच्च सत्ता होने के सिद्धांत का प्रतिपादन किया. उसके अनुसार राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को उसकी अभिव्यक्ति का अधिकार होनी चाहिए. राज्य का सर्वोच्च सत्ता जनता में ही निहित है. उसे कोई भी सरकार या राजा छीन नहीं सकती है और जनता को राजा या शासक के खिलाफ विद्रोह करने का अधिकार प्राप्त है.

फ्रांस की क्रांति के कारण

इस प्रकार रूसो ने समकालीन शासक की नीव सिला हिला दी. उसकी रचनाओं का जनता पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा. इन रचनाओं के द्वारा लोगों में स्वतंत्र होने के लिए एक उम्मीद और उत्साह उत्पन्न किया. रूसो की पुस्तक द सोशल कॉन्ट्रैक्ट ने फ्रांस की क्रांति की चिंगारी फूंकी. माण्टेस्क्यू एक प्रसिद्ध वकील था. वह काफी गंभीर और पैनी बुद्धि वाला व्यक्ति था. उसकी लेखन शैली काफी प्रभावशाली और धारदार हुआ करती थी. उसने अपने दार्शनिक आंदोलन और शब्दों के व्यंग्य बाण से तत्कालीन सत्ता की नींव हिला दी. उन्होंने सरकार के नियमों और कानूनों का विश्लेषण किया और सरकार के द्वारा चलाई जा रही संस्थाओं के प्रति अंधविश्वासों को खत्म किया. इसके अलावा अन्य विद्वान वाल्टेयर ने भी अपने गद्य, पद्य नाटक आदि रचनाओं के द्वारा प्राचीन अंधविश्वासों और कुप्रथाओं पर हमले किए. उनकी रचनाएँ भी लोगों को अत्यधिक प्रभवावित किया और फ्रांस में एक बदलाव की चिंगारी फूंकी.

फ्रांस की क्रांति के कारण

इस प्रकार 1789 ई. को फ्रांस में क्रांति हो गई. फ्रांस  राजा और रानी को बंदी बना लिया गया. 1793 ई. में दोनों की हत्या कर दी गई. उनके अलावा राजवंश से सम्बंध रखने वाले सभी लोगों की हत्या कर दी गई. साथ ही साथ सभी प्रभाशाली दरबारियों की भी हत्या कर दी गई. इसके साथ ही फ्रांस में प्रजातंत्र की स्थापना हो गई. 

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