बलबन की सैन्य उपलब्धियों का वर्णन करें

बलबन की सैन्य उपलब्धियां (Balban’s Military Achievements)

बलबन ने अपने शासनकाल में कभी भी नए राज्यों को जीतने की कोशिश नहीं की. वह केवल उन क्षेत्रों पर पुनर्विचार करने में लगा रहा जिन्हें गोरी ने जीता था. उनको अच्छी तरह पता था कि अगर नवीन राज्यों को जीतने की कोशिश करता तो मंगोल आक्रमण की समस्याएं बढ़ जाती. अतः उसने कुतुबुद्दीन ऐबक इल्तुतमिश के समान देश को संगठित करने और पुराने क्षेत्रों पर विजय प्राप्त करने की कोशिश की.

बलबन की प्रमुख उपलब्धियां 

बलबन की प्रमुख सैन्य उपलब्धियां 

1. मेवातियों का दमन

जब बलबन प्रधानमंत्री था उस समय उसने मेवातियों का दमन किया था. लेकिन कुछ समय बाद में मेवातियों ने फिर से अपने संगठन को खड़ा किया और जगह-जगह लूटमार करना आरंभ कर दिया. उन्होंने दिल्ली पर भी धावा बोला. मेवाती गिरोह बनाकर घूमते रहते थे. ये जलाशय में पानी भरने वाली स्त्रियों के भी कपड़े उतरवा लेते थे. सुल्तान बनने के बाद मेवातियों के आतंक से परेशान होकर बलबन इनका सफाया करने का निश्चय किया. उसने अपनी विशाल सेना के साथ मेवातियों पर आक्रमण किया. उसने सैकड़ों की संख्या में मेवातियों को मौत के घाट उतार दिया. बलबन ने दिल्ली के निकटवर्ती जंगल को साफ करवा दिया और जंगलों में छिपे मेवातियों को भी मार डाला गया. 

स्मिथ के अनुसार अनुसार बलबन ने पकड़े गए बहुत से मेवातियों को हाथियों से कुचलवा दिया. लगभग सौ से ज्यादा मेवातियों के खाल उतरवाकर उसमें भूसा भर दिया गया और दिल्ली के प्रमुख स्थानों पर टांग दिया गया. इस प्रकार कठोर कार्रवाई करके मेवातियों का खात्मा कर दिया. मेवाती दुबारा उभर ना पाए इसके लिए उन्होंने जगह-जगह किले और पुलिस चौकियां स्थापित की.

2. दोआब के विद्रोहियों का दमन

दोआब में रहने वाले राजपूत समय-समय पर विद्रोह करते रहते थे. राजपूतों ने दोआब के कंपिल, भोजपुर, पटियाली, बदायूं, अमरोहा जैसे स्थानों पर अपने गढ़ बना रखे थे. विद्रोही राजपूत तुर्कों पर हमले कर लूटपाट करते और तरह-तरह के अत्याचार करते रहते थे. इनसे तंग आकर बलबन अपनी सेना के साथ कूछ किया और इन विद्रोहियों का दमन किया. इसके बाद बलबन ने इन स्थानों में किलों का निर्माण कराया और उनकी सुरक्षा के लिए सैनिकों की तैनाती की.

बलबन की प्रमुख उपलब्धियां 

3. कटेहर की विद्रोह का दमन

जब बलबन दोआब के विद्रोहियों का दमन करने में व्यस्त था, उसी समय कटेहर में भी हिंदुओं ने विद्रोह कर दिया. इस विद्रोह का दमन करने के लिए बलबन ने कठोर नीति का पालन किया. इस नीति के तहत उसने हजारे हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया. बर्नी ने इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है कि सुल्तान ने कटेहर को जलाने और नष्ट करने का आदेश दिया. बलबन ने आदेश दिया कि किसी को क्षमा ना किया जाए. कुछ समय के लिए खुद कटेहर में रहा और कत्लेआम करने का आदेश देता रहा. इस भीषण हत्याकांड के बाद चारों तरफ खून की नदियां बह गई. गांवों और जंगलों के समीप लाशों की ढेर लग गई.

4. बंगाल विद्रोह

बंगाल में इस समय तुगरिला खां बलबन के अधीन शासन कर रहा था. विद्रोही तुगरिला खां के मन में यह बात डाल दिया कि सुल्तान बलबन अब बूढ़ा हो चुका है. इसलिए वह खुद को स्वतंत्र सम्राट घोषित कर दें. विद्रोहियों के बहकावे में आकर तुगरिला खां ने 1279 ई. में विद्रोह कर दिया और खुद सुल्तान की उपाधि धारण की और अपने नाम के सिक्के भी जारी किए.

बलबन की प्रमुख उपलब्धियां 

तुगरिला खां के द्वारा विद्रोह की खबर पाकर बलबन ने अवध के शासक अमीन खां को बंगाल पर आक्रमण करने भेजा. पर युद्ध में अमीन खां पराजित हो गया. गुस्से में बलबन ने अमीन खां को मृत्युदंड दे दिया. इसके बाद फिर उसने दो बार सेना भेजी. इन युद्धों में भी बलबन की सेना को पराजित होना पड़ा. तीसरी बार पराजित होने के बाद बलबन का गुस्सा और भड़क उठा. इस बार उसने अपने पुत्र बुगरा खां को साथ लेकर स्वयं बंगाल की ओर प्रस्थान किया. बलबन के आने की खबर पाकर तुगरिला खाअं अपनी राजधानी छोड़कर भाग निकला. बलबन ने उनका पीछा करके पकड़ लिया और उसकी हत्या कर दी. इसके बाद उसने तुगरिला खां के सहयोगियों को भी दंडित किया. बरनी के विवरण के अनुसार उनको मुख्य बाजार के दोनों ओर दो मील सड़क पर खूंटा गाड़ कर उनके सभी सहयोगियों को ठोक दिया गया. इसके बाद बलबन ने अपने पुत्र बुगरा खां को विद्रोह न करने की चेतावनी देते हुए बंगाल का शासक नियुक्त किया.

5. मंगोल आक्रमण

इस समय मध्य एशिया में मंगोलों की शक्ति में निरंतर वृद्धि होती जा रही थी. उन्होंने गजनी और बगदाद पर भी अधिकार कर लिया था. इस प्रकार उनकी पहुंच भारतीय सीमाओं तक हो चुकी थी. इससे भारत पर भी उनके आक्रमण का खतरा मंडराने लगा. मंगोलों के आक्रमण के भय को देखते हुए बलबन ने भारत के उत्तर पश्चिमी सीमा पर अनेक दुर्गों का निर्माण कराया तथा उनकी सुरक्षा के लिए योग्य सैनिकों की नियुक्ति की. उसने इन क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए शेर खां को की नियुक्ति की. शेर का अत्यंत योग्य और पराक्रमी योद्धा था. लेकिन 1270 ई. में शेर खां की मृत्यु हो गई. शेर खां के मृत्यु के पश्चात बलबन ने उत्तरी-पश्चिमी सीमा को दो भागों में बांट दिया तथा इन क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए अपने दोनों पुत्रों को नियुक्त किया.

बलबन की प्रमुख उपलब्धियां 

बलबन के बड़े पुत्र मोहम्मद खां एक अत्यंत योग्य प्रशासक था. उन्होंने मंगोलों के सामना करने के लिए अनेक कार्य किए. किंतु फिर भी मंगोलों ने आक्रमण कर उत्तरी पंजाब को लूट लिया. इसके बाद बलबन के दोनों पुत्रों की संयुक्त सेनाओं ने मंगोलों को पराजित करने में सफलता प्राप्त की. 1286 ई. मांगोलों ने पुनः आक्रमण किया. इस युद्ध में बलबन की सेना ने मंगोलों से अपने क्षेत्र की रक्षा करने में सफलता प्राप्त की, परंतु युद्ध के दौरान उसका बड़ा पुत्र मोहम्मद खां मारा गया.

अपने बड़े पुत्र के मारे जाने से बलबन को तीव्र आघात पहुंचा. इसी आघात के कारण उसकी मृत्यु 1286 ई. को हो गई.

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