बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा
बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा अत्यंत दयनीय थी. संपूर्ण भारत छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था. इन राज्यों में पारंपरिक इर्षा और द्वेष की भावनाएं थी. अतः भारत की तत्कालीन स्थिति विदेशी आक्रमणकारियों के लिए पूरी तरह अनुकूल थी. तत्कालीन भारतीय स्थिति के विषय में लेनपुल ने लिखा है कि विजेताओं की जाति अशांतिकारियों की एक भीड़ के रूप में संगठित हो गई थी जो राजसिंहासन प्राप्त करने के लिए परस्पर लड़ते रहते थे परंतु राज्य को संभालने की क्षमता किसी में न थी. भारत के तत्कालीन शासकों ने तैमूर के आक्रमण से सबक नहीं सीखा था. 1398 ई. में तैमूर ने जिस प्रकार भारत पर आक्रमण करके अपार धन-संपत्ति को लूटा और भारत के राजनीतिक व्यवस्था को समाप्त किया, उससे तत्कालीन शासकों ने कोई सबक नहीं ली. इस कारण भारत की राजनीतिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. तत्कालीन शासकों ने कभी भी पारस्परिक ईर्ष्या को भूलकर संगठित होने का प्रयास कभी नहीं किया. बाबर ने स्वयं भी अपनी पुस्तक में भारत की तत्कालीन राजनीतिक स्थिति के विषय में लिखा है कि भारत की राजधानी दिल्ली है. सुल्तान सिहाउद्दीन गोरी के समय से सुल्तान फिरोजशाह तक हिंदुस्तान का अधिकांश भाग दिल्ली के बादशाह के अधीन था. जब मैंने इसे जीता तो यहां पांच मुसलमान और दो काफिर शासकों का राज्य था. यों तो पहाड़ी और जंगली प्रदेशों में अनेक छोटे-छोटे राजा थे, परंतु बड़े ये पांच ही थे.
बाबर के आक्रमण के समय भारत के प्रमुख राज्य
1. दिल्ली
बाबर के भारत पर आक्रमण के समय दिल्ली में लोदी वंश के शासक इब्राहिम लोदी के शासन था. उस समय दिल्ली सल्तनत की स्थिति अच्छी नहीं थी तथा उसकी शक्ति में निरंतर ह्रास होता रहा था. इस कारण दिल्ली सल्तनत की सीमाएं सिमटती जा रही थी. इब्राहिम लोदी जिस समय दिल्ली की सिंहासन पर बैठा था, उस समय उसका साम्राज्य दिल्ली, आगरा, जौनपुर तथा उसके सीमावर्ती क्षेत्रों तक ही सीमित था. इब्राहिम लोदी खुद योग्य शासक नहीं था. इस कारण वह दिल्ली की सल्तनत की सीमाओं का विस्तार नहीं कर पाया. इब्राहिम लोदी के शासक बनने के बाद ही लोदी के साम्राज्य में विद्रोह होने शुरू हो गए. यद्यपि इब्राहिम लोदी ने विद्रोहों का दमन किया, लेकिन इसके बाद संपूर्ण साम्राज्य में अशांति और अव्यवस्था फैल गई. इस प्रकार दिल्ली सल्तनत धीरे-धीरे कमजोर होता चला गया. बहुत से सूबेदारों ने अपनी अपनी स्वतंत्रता सत्ता की घोषणा कर दी.
2. पंजाब
पंजाब भी दिल्ली सल्तनत का ही एक अंग था. वहां का सूबेदार दौलत खां था. इब्राहिम लोदी के निरंकुश नीतियों तथा उसकी अयोग्यता और दौलत खां के महत्वाकांक्षा के कारण इब्राहिम लोदी और दौलत खां के बीच संबंध परस्पर खराब होते चला गया. अतः दौलत खां ने इब्राहिम लोदी के विरुद्ध बाबर से भी सहायता लेने का प्रयत्न किया और स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया. इस प्रकार बाबर को अपने भारतीय अभियान के समय उत्तरी पश्चिमी भारत में प्रवेश करने में सहायता मिली.
3. बंगाल
इस समय बंगाल में हुसैनी वंश का शासन था. बंगाल में हुसैनी वंश के शासन की स्थापना फिरोज शाह तुगलक के समय अलाउद्दीन हुसैन ने की थी. कालांतर में हुसैनी साम्राज्य की सीमाएं उड़ीसा तथा कूच बिहार तक विस्तृत हो गई थी. अलाउद्दीन हुसैन के पुत्र नुसरत शाह भी अपने पिता के समान ही एक योग्य शासक था. बाबर ने भी उसकी योग्यता को स्वीकार करते हुए उसे संधि कर ली थी.
4. बिहार
बिहार भी इस समय दिल्ली सल्तनत का ही अंग था. किंतु बिहार भी इब्राहिम के शासनकाल में विद्रोह की अग्नि में जल जल रही थी. बिहार में लोहानी के नेतृत्व में विद्रोह किया गया था. इस विद्रोह को दबाने में इब्राहिम लोदी असफल रहा. इस प्रकार बिहार निरंतर दिल्ली के शासक के लिए संकट उत्पन्न कर रहा था.
5. जौनपुर
जौनपुर दिल्ली सल्तनत का ही अंग था. परंतु वहां भी नासिर खां के नेतृत्व में दिल्ली के सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह चल रही थी.
6. मालवा
मालवा पर आक्रमण करके खिलजी शासक अलाउद्दीन खिलजी ने 1310 ई. में उसे दिल्ली सल्तनत का अंग बनाया था. जिस समय 1398 ई. में तैमूर ने भारत अभियान किया, उस समय व्याप्त अव्यवस्था का लाभ उठाकर मालवा में दिलवर खां ने अपनी स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली. 1435 ई. में दिलवर खां के वंश के खत्म हो जाने के बाद उसी के प्रधानमंत्री ने खिलजी वंश की स्थापना की. 1526 ई. में महमूद द्वितीय राजपूत सरदार मेदिनीराय की मदद से मालवा के राजसिंहासन पर बैठा. मेदिनीराय ने मालवा में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर राजपूतों को नियुक्त करवाया, जिससे वहां के मुसलमान अपने शासक से असंतुष्ट हो गए. इससे विवश होकर महम्मूद द्वितीय ने गुजरात के शासक मुजफ्फरशाह से सहायता लेकर मेदिनी राय पर आक्रमण किया. मेदिनी राय ने भी मेवाड़ के राजा राणा सांगा से सहायता मांगी और महम्मूद को पराजित किया. इस आंतरिक संघर्ष कारण मालवा की शक्ति को धक्का लगा.
7. खानदेश
खानदेश ताप्ती नदी घाटी में बसा एक छोटा सा राज्य था. इस राज्य की स्थापना मलिक अहमद ने बहमनी राज्य के विरुद्ध विद्रोह करके 1365 ई. में की थी. मलिक अहमद एक योग्य शासक था तथा उसके शासनकाल में खानदेश काफी उन्नति किया. 1399 ई. में उसकी मृत्यु हो जाने के बाद खानदेश का पतन होना प्रारंभ हो गया. खानदेश की शक्ति को खत्म होता देखर गुजरात के शासक ने उस पर अधिकार करने का प्रयत्न किया. दोनों राज्यों के बीच लंबा संघर्ष चला. 1518 ई. में खानदेश के शासक गाजी खान के मृत्यु हो गई. उसके उत्तराधिकारी प्रश्न पर अहमदनगर और गुजरात के शासकों ने खानदेश पर हस्ताक्षेप किया. अंत में गुजरात के शासक महम्मूद अपने समर्थक आदिल खां को खानदेश के सिंहासन पर बैठाने में सफल रहा था और खानदेश पर गुजरात राज्य का प्रभाव स्थापित हुआ. 1520 ई. में आदिल खां की मृत्यु हो गई. इसके बाद उसका पुत्र महम्मूद प्रथम सिंहासन पर बैठा. वह बाबर का समकालीन था.
8. गुजरात
1307 ई. में गुजरात एक स्वतंत्र राज्य था, किंतु 1307 ई. में अलाउद्दीन के साम्राज्यवादी नीति के शिकार होकर दिल्ली सल्तनत का अंग बन गया. 1398 ई. में तैमूर के आक्रमण से लाभ उठाकर गुजरात के प्रशासक जफर खां ने गुजरात को स्वतंत्र राज्य की घोषणा की और मुजफ्फरशाह के नाम से गुजरात के सिंहासन पर आसीन हो गया. इस वंश के प्रमुख शासकों में से महमूद बेगरा और उसका पुत्र मुजफ्फरशाह द्वितीय था. मुजफ्फरशाह ने न केवल राजपूतों पर विजय प्राप्त करने का प्रयत्न किया वरन दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खां को शरण देकर इब्राहिम लोदी से टक्कर लेने का साहस किया. मुजफ्फरशाह द्वितीय बाबर के समकालीन शासक था.
9. सिंध
फिरोज तुगलक ने सिंध और मुल्तान के क्षेत्र पर विजय प्राप्त करके इसे दिल्ली सल्तनत में मिलाया. किंतु तैमूर के आक्रमण के बाद फिर से सिंधु एक स्वतंत्र राज्य बन गया. 1516 ई. में सिंध पर कंधार के शाह बेग अरगों ने अधिकार कर लिया. कुछ समय पश्चात उसका शाह पुत्र हुसैन ने मुल्तान पर भी अधिकार कर लिया. बाबर के आक्रमण के समय सिंध पर अरगों के प्रभाव में ही रहा.
10. काश्मीर
काश्मीर राज्य, पंजाब के उत्तर-पश्चिम में स्थित था. 14वीं शताब्दी में काश्मीर में हिंदुओं को साम्राज्य था, किंतु 1399 ई. में हिंदू राजा रामचंद्र की हत्या करके उसके मंत्री शाह मिर्जा ने काश्मीर में मुसलमान शासन की स्थापना की. 1420 ई. में काश्मीर का शासक जैनुल आबदीन बना. वह अत्यंत योग्य शासक था. इस कारण उसे काश्मीर का अकबर कहा जाता है. जैनुल आबदीन एक धर्म सहिष्णु शासक था. उस की मृत्यु 1470 ई. में हुई उसके अयोग्य उत्तराधिकारियों के कारण काश्मीर में अराजकता जगत फैल गई.
11. बहमनी राज्य
बहमनी राज्य बरार से कृष्णा नदी तक विस्तृत था. इस राज्य की स्थापना 1347 ई. में हसन ने मुहम्मद तुगलक के विद्रोह करके की थी. दक्षिण भारत स्थित इस राज्य में अनेक योग्य किंतु धर्मांध शासक हुए. इन राजाओं का पड़ोसी हिंदू राज्य विजयनगर से संघर्ष होता रहा. इस कारण उनकी शक्ति निरंतर ह्रास होती गई. 1481 ई. में अत्यंत योग्य मंत्री महमूद गवां की हत्या के पश्चात बहमनी राज्य तीव्र गति से पातन की ओर अग्रसर होता चला गया. इसके परिणामस्वरुप बहुत से प्रांतपतियों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. कालांतर में बहमनी राज्य पांच राज्यों बरार, बीदर, अहमदनगर, गोलकुंडा और बीजापुर में विभक्त हो गया. इनके बीच भी परस्पर द्वेष की भावना थी. अतः बहमनी राज्य की रही-सही शक्ति भी समाप्त हो गई.
12. उड़ीसा
उड़ीसा एक अत्यंत शक्तिशाली एवं प्रमुख राज्य था. उसकी शक्ति के कारण मुसलमान अब तक उस पर अधिकार करने में असफल रहे थे. बंगाल के शासक दक्षिण में आगे नहीं बढ़ पाए थे. उड़ीसा राज्य अत्यंत शक्तिशाली था लेकिन फिर भी भारतीय राजनीति में उसकी भूमिका उतनी नहीं थी. इसका कारण उड़ीसा का दिल्ली से बहुत दूर होना था.
13. विजयनगर साम्राज्य
विजयनगर साम्राज्य भी एक हिंदू राज्य था. यह एक अत्यंत शक्तिशाली राज्य था. हिंदू धर्म के गौरव को बना रखने के लिए यहां के शासक हमेशा प्रयत्नशील रहे. हिंदू राज्य होने के कारण विजयनगर के शासकों के पड़ोसी बहमनी राज्य से उसका निरंतर संघर्ष होता रहा. इस कारण विजयनगर के शासक उत्तर भारत की राजनीति में उल्लेखनीय भाग लेने में असफल रहे. बाबर के अभियान के समय विजयनगर साम्राज्य का शासक कृष्णदेव राय था जो अत्यंत योग्य एवं पराक्रमी था.
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