बुद्धकालीन गणराज्यों का वर्णन कीजिए

बुद्धकालीन गणराज्य

बौद्ध ग्रंथों में गंगा घाटी में स्थित कई बौद्ध कालीन गणराज्यों के बारे में वर्णन मिलते हैं. उन गणराज्य के नाम इस प्रकार है:

1. कपिलवस्तु के शाक्य

हिमालय की तराई में स्थित नेपाल की सीमा के निकट शाक्यों का यह गणराज्य बहुत ही महत्वपूर्ण था. इसकी राजधानी कपिलवस्तु थी. यहां के शाक्य लोग इक्ष्वाकु या सूर्यवंशी थे. इस गणराज्य के उत्तर में हिमालय पर्वत, पूर्व में रोहिणी नदी तथा दक्षिण एवं पश्चिम में राप्ती नदी स्थिति थी. इसी शाक्य वंश में महात्मा बुद्ध का भी जन्म हुआ था. शाक्य संघ के प्रधान राजा कहलाता था. वह जनता के द्वारा निर्वाचित होता था. सभी शाक्य युवक और बुजुर्ग शासन का अभिन्न हिस्सा होते हैं तथा महत्वपूर्ण विषयों पर मिलकर विचार-विमर्श करके उन पर निर्णय लेते थे. गणपूर्ति के लिए एक निश्चित संख्या में सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक थी. शाक्य गणराज्य में करीब 80 हजार परिवार थे. उनके गणराज्य में शाक्यों के बहुत से नगर थे. शाक्य लोगों का जीवन बहुत सच्चरित्र था. यहां स्त्रियों का बहुत सम्मान था. इनका जीवन सुख में था. वे धन से भी अधिक महत्व अपनी मर्यादा को देते थे. विवाह के अवसर पर वर-वधू की योग्यता का विशेष महत्व होता था. राजकुमारों को युद्ध संचालन की शिक्षा दी जाती थी. उनके लिए धनुष-बाण का प्रयोग, घुड़सवारी, खड्ग-युद्ध आदि में कुशल होना अति आवश्यक माना जाता था. कहा जाता था राजकुमार सिद्धार्थ (महात्मा बुद्ध) के विवाह के समय कुमारी गोपा के पिता को चिंता थी कि सिद्धार्थ युद्ध संचालन में सक्षम है अथवा नहीं. शाक्यों का विवाह अपनी ही जाति में होता था. महिलाओं में शिक्षा का प्रचार-प्रसार था. कौशल के राजा विदूदभ ने छठी सदी (600 ईसा पूर्व) के अंत में इसे अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया था.

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2. वैशाली के लिच्छवि

इस गणराज्य में मल्लों के 9 गणराज्य तथा काशी और कौशल के 18 गणराज्य सम्मिलित थे. इस कारण यह गणराज्य तत्कालीन गणराज्य में सबसे शक्तिशाली था. वैशाली नगर इस विस्तृत गणराज्य की राजधानी थी. यह एक संपूर्ण सुख सुविधाओं से संपन्न वैभवशाली नगर थी. इसमें लगभग 42 हजार परिवार रहते थे. ये नगर वर्तमान के मुजफ्फरपुर नगर के बसाद नामक स्थान पर था. इसके प्रधान को राजा पुकारते थे. वह जनता के द्वारा निर्वाचित होता था. विष्णु पुराण के अनुसार इक्ष्वाकु वंश के राजा तृण बिंदु के पुत्र विशाल ने वैशाली नगर को बसाया था. वहीं वाल्मीकि रामायण में कहा गया कि इसे इक्ष्वाकु के पुत्र विशाल ने बसाया था. इस बात का भी जिक्र पाया जाता है कि इस गणराज्य में 7707 अन्य राजा थे जो संभवत: अपने-अपने क्षेत्र के अधिकारी थे. यह गणराज इतना अधिक शक्तिशाली था कि मगध के शक्तिशाली शासक अजातशत्रु को भी इसे जीतने के लिए वर्षो तक युद्ध और कूटनीतिक तैयारी करनी पड़ी थी, और तब भी इसे समाप्त करने में तभी सफल हुआ जब उसने इस गणराज्य में आंतरिक फूट डलवा दी.

बुद्धकालीन गणराज्य

लिच्छवि राज्य के निवासी उच्च कोटि के जीवन यापन करते थे. उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य धनोपार्जन करना नहीं था बल्कि मर्यादा रक्षक था. उसमें जाति-संगठन, शिक्षा-दीक्षा और धार्मिक कृत्यों आदि का प्रचलन था. वे सामाजिक उत्सव एवं संस्कारों तथा समारोहों में भी भाग लेते थे. यहाँ के लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए तक्षशिला एवं अन्य स्थानों पर जाते थे. धार्मिक कृत्य इनके जीवन का विशेष कार्यक्रम था. इनमें अपनी ही जाति में विवाह करने की प्रथा थी. अंतरजातीय विवाह को बुरा माना जाता था.

3. पावा के मल्ल

यह एक क्षत्रिय गणराज्य था. इसकी राजधानी पावा थी. पावा आधुनिक देवरिया जिले के पडरौना नामक स्थान पर स्थित था. इसी स्थान पर महावीर स्वामी की मृत्यु हुई थी. यहां के लोग सैनिक प्रवृत्ति के थे. जैन साहित्यों से ज्ञात होता है कि मगध नरेश आजातशत्रु के भय से मल्लों ने लिच्छवियों के साथ मिलकर एक संघ का निर्माण किया था. अजातशत्रु ने इन दोनों राज्यों के संघ को भी जीत लिया था.

4. कुशीनारा के मल्ल

यह मल्लों की दूसरी शाखा थी. आधुनिक केसिया को उस समय कुशीनारा (कुशीनगर) कहा जाता था. वाल्मीकि रामायण में मल्लों को लक्ष्मण के पुत्र चंद्रकेतु मल्ल का वंशज कहा गया है.

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5. रामग्राम के कोलिय

यह गणराज्य शाक्यों के पूर्व में था. इसकी राजधानी रामग्राम थी जो वर्तमान में गोरखपुर जिले में स्थित है. रोहिणी नदी के पानी के लिए पर कोलियों और शाक्यों के बीच शत्रुता बनी रहती थी. महात्मा बुद्ध ने इनमें मित्रता कराई. कोलिय लोग अपनी पुलिस शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे.

6. सुमसुभगिरि के भग्ग

यह एतिरेय ब्राह्मणों का गणतंत्र राज्य था. सुमसुभगिरि इन की राजधानी थी और इनका राज्य आधुनिक मिर्जापुर जिले के निकट था. भग्ग लोग वत्सों की अधीनता स्वीकार करते थे. यह ज्ञात होता है कि सुमसुभगिरि में वत्सराज उदयन का पुत्र बोधि निवास करता था.

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7. पिप्पलवन के मौरिय

यह गणराज्य हिमालय की तराई के पर्वतीय क्षेत्र में था. ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि संभवत: मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य इसी वंश का था. यह माना जाता है कि कोशल के राजा विदूदभ के अत्याचारों से भयभीत होकर कुछ लोग हिमालय प्रदेश भाग गए और वहाँ उन्होंने मोरों की कूक से गूंजने वाला नगर पिप्पलवन बसाया. अत: यह स्पष्ट है कि यह शाक्यों की ही एक शाखा थी.

8. केसपुत्त के कलाम

इन गणराज्य के स्थान के बारे में सही-सही जानकारी उपलब्ध नहीं है. यह गणराज्य कौशल के पश्चिम में कहीं स्थित था. संभवत: यह सुल्तानपुर जिले में फैला हुआ था. इसकी राजधानी केसपुत्त थी. कलाम लोग कोशल की अधीनता स्वीकार करते थे. शतपथ ब्राह्मण और जातक ग्रंथों के अनुसार गौतम बुद्ध के गुरु आलार कलाम इसी गणराज्य के थे.

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9. मिथिला के विदेह

नेपाल के सीमा के निकट स्थित आधुनिक जनकपुर का नाम है मिथिला था. यह बिहार के भागलपुर और दरभंगा जिलों के भूभाग को मिलाकर बनाता था. विदेह लोग वज्जि संघ के सदस्य थे. महात्मा बुद्ध के समय यहां की राजधानी मिथिला एक प्रसिद्ध व्यापारिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का नगर था.

10. अल्लकप्प के बुलि

इस गणराज्य की सीमाएं शाहाबाद और मुजफ्फरपुर जिले के बीच कहीं स्थित थी. बुलियों के बेतिया के साथ घनिष्ठ संबंध थे. ये लोग बौद्ध धर्म के अनुयाई थे.

इन गणराज्यों एवं कुलीनतंत्रीय राज्यों में से केवल शाक्य और लिच्छवि राज्यों के बारे में ही ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त होती है. इन के विषय में बी.सी. लो का कहना है कि आरंभ में इनमें से अधिकांश जातियों पर राजाओं का शासन था. इस कारण ग्रीस की भांति भारत में भी राजतंत्र को नष्ट करके कुलीनतंत्र अथवा गणतंत्र राज्य की स्थापना का मूल कारण राजाओं की अयोग्यता और अत्याचार ही रहा होगा.

बुद्धकालीन गणराज्य

इन राज्यों में छोटे और बड़े सभी प्रकार के गणराज्य थे. इनमें कुछ में कुलीनतंत्रीय तथा कुछ में गणतंत्रीय व्यवस्था थी. बड़े गणतंत्र, संघ गणराज्य थे. आंतरिक फूटों और मगध साम्राज्य के विस्तार ने इन गणराज्यों को नष्ट कर दिया. इनमें से कुछ को आजातशत्रु ने, कुछ को नंद सम्राटों ने और कुछ को मौर्य सम्राटों में समाप्त किया.

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