बौद्ध धर्म और जैन धर्म की क्या-क्या समानताएं और असमानताएं हैं?

बौद्ध धर्म और जैन धर्म की समानताएं और असमानताएं

बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों का ही अविर्भाव ई.पूर्व छठी शताब्दी में ही हुआ था. दोनों ही धर्म धार्मिक क्रांति के कारण अस्तित्व में आए थे तथा दोनों का ही उद्देश्य तत्कालीन हिंदू धर्म में व्याप्त अनियमितताओं और कुरीतियों को दूर करना था. अतः इन धर्मों में अनेक समानताओं का होना भी स्वाभाविक है. दोनों धर्मों में कई समानताओं के होने के कारण कारण है लोग काफी समय तक जैन धर्म को बौद्ध धर्म का अंग ही समझते रहे. इस संदर्भ में मोनियर विलियम्स ने लिखा है कि बौद्ध एवं जैन धर्म के बीच परस्पर पिता-पुत्र का रिश्ता नहीं था किंतु एक ही माता-पिता के संतान थे जिनका जन्म अलग-अलग समय पर हुआ था. अर्थात बौद्ध धर्म के कारण जैन धर्म का जन्म नहीं हुआ था वरन उन लोगों का आविर्भाव एक समान कारणों से हुआ था. इस कारण दोनों धर्म में कई समानताएं भी थी.
बौद्ध धर्म और जैन धर्म में समानताएं और असमानताएं
 

बौद्ध धर्म और जैन धर्म में समानताएं (Similarities between Buddhism and Jainism)

1. स्रोत

बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म दोनों के उत्पत्ति के स्रोत उपनिषद ही थे. डॉ आर सी मजूमदार के अनुसार जैन धर्म और बौद्ध धर्म दोनों की पृष्ठभूमि आर्य संस्कृति की है तथा दोनों ही धर्म उपनिषदों के विचारों तथा दर्शन से प्रेरित है. बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म उपनिषदों के सिद्धांतों को अपने-अपने ढंग से व्यवहारिक स्वरूप प्रदान किया.

2. सिद्धांतों और उपदेशों में समानताएं

बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म में अनेक सिद्धांत और उद्देश्य एक समान है. दोनों का ही मुख्य उद्देश्य वैदिक धर्म का विरोध करना था. दोनों ही धर्म ने कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष के सिद्धांतों का अनुमोदन किया है. इसके अतिरिक्त दोनों धर्म अहिंसा, सच्चरित्रता तथा नैतिकता पर बहुत बल देते हैं.

3. वेदों का विरोध

बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म दोनों ही वेदों का विरोध करते हैं तथा वेदों की अपौरूषेयता को स्वीकार नहीं करते हैं. दोनों ही धर्म वैदिक कर्मकांडों के घोर विरोधी हैं. दोनों ही धर्म बहुदेववाद का भी विरोध करते हैं.

4. जीवन के प्रति दृष्टिकोण

दोनों ही धर्म का जीवन के प्रति दृष्टिकोण दुख प्रधान था. अतः दोनों का ही उद्देश्य मानव जाति के कल्याण करना तथा उसे संसार रूपी दुख के सागर से मुक्ति दिलाना था.

5. धर्म प्रचार पर बल देना

बौद्ध व जैन दोनों धर्मों ने धर्म प्रचार को अति आवश्यक माना और उसके लिए हर संभव प्रयास किए थे. प्रचार को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से दोनों ही धर्म प्रचार का कार्य लोक भाषाओं में किया था. संस्कृत के स्थान पर पाली और प्राकृति भाषाओं का इस्तेमाल किया. ये भाषाएं जनसाधारण भाषाएं थी तथा आम बोलचाल में काफी प्रचलित थी. 

6. अनीश्वरवादी

बौद्ध एवं जैन दोनों ही  धर्म ईश्वर को सृष्टिकर्ता के रूप में स्वीकार नहीं करते.

7. समाजिक भेदभाव के विरोधी

बौद्ध व जैन धर्म दोनों ही वर्ण व्यवस्था के घोर विरोधी थे. दोनों धर्मों का उद्देश्य समाज में समानता स्थापित करना था. अतः ऊंच-नीच, जाति-पांति आदि भेदभाव का घोर विरोध करते थे.

8. अन्य समानताएं

इन समानताओं के अलावा बौद्ध धर्म और जैन धर्म में और भी कई समानताएं थी. बौद्ध व जैन धर्म दोनों ही धर्म कालांतर में दो प्रधान समुदायों में विभक्त हो गए. बौद्ध धर्म हीनयान तथा महायान में तथा जैन धर्म श्वेतांबर और दिगंबर नाम नामक शाखाओं में विभक्त हो गए थे. दोनों ही धर्म में बाद में मूर्ति पूजा आरंभ हो गई. दोनों ही धर्म के तीन-तीन रत्न है. दोनों ही धर्म के प्रमुख तीन ग्रंथ हैं. बौद्ध धर्म के त्रिपिटक, अर्थात विनय पिटक, सुतपिटक तथा अभिधम्म पिटक हैं. जैनियों के अंग, अर्थात अंग, उपांग तथा मूल ग्रंथ हैं. इसके अतिरिक्त दोनों ही धर्मों का आविर्भाव हुआ धर्म सुधारक के रूप में हुआ.
बौद्ध धर्म और जैन धर्म में समानताएं और असमानताएं

बौद्ध धर्म और जैन धर्म में असमानताएं (Dissimilarities between Buddhism and Jainism)

1. अहिंसा

यद्यपि बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म दोनों ही अहिंसा के सिद्धांतों को स्वीकार करते हैं, लेकिन जैन धर्म में इसका अत्यंत कठोरता से पालन करना अनिवार्य है. जैन धर्म के अनुसार वनस्पतियों में भी प्राण है तथा उसका नुकसान जीव हत्या के समान है. वही बौद्ध धर्म अहिंसा के व्यावहारिक स्वरूप को ही माना है.

2. ईश्वर और आत्मा

महात्मा बुद्ध ईश्वर और आत्मा के विषय में मौन रहे थे. इसी कारण यह माना जाता है कि बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी और अनात्मवादी है. किंतु जैन धर्म आत्मा के अस्तित्व में विश्वास करता है. जैन धर्म ईश्वर के अस्तित्व को भी स्वीकार करता है किंतु उसे सृष्टिकर्ता के रूप में नहीं मानता है.

3. मोक्ष प्राप्ति

बौद्ध धर्म निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के लिए मृत्यु को आवश्यक नहीं मानता है. बौद्ध धर्म के अनुसार मोक्ष जीवित अवस्था में ही प्राप्त किया जा सकता है. बौद्ध धर्म के अनुसार ज्ञान को प्राप्त कर लेने के बाद मोक्ष प्राप्त हो जाता है. लेकिन जैन धर्म के अनुसार कैवल्य (जैन धर्म में मोक्ष को कैवल्य कहा जाता है) केवल मृत्यु के उपरांत ही प्राप्त हो सकता है, तथा दुखों से मुक्ति प्राप्त करने को ही कैवल्य कहा गया है.

4. निर्वाण व कैवल्य प्राप्ति के साधन

बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म में निर्वाण या कैवल्य प्राप्त करने के तरीकों में भी आसमानताएं हैं. बौद्ध धर्म निर्वाण प्राप्त करने के लिए मध्यम मार्ग का पालन करने के लिए कहता है. वह शारीरिक कष्ट उठाने का विरोध करता है. वहीं जैन धर्म कैवल्य प्राप्त करने के लिए कठोर तत्व और उपवासों की राह पर चलना अनिवार्य बताता है.

5. राज- प्रश्रय

बौद्ध धर्म को जैन धर्म की अपेक्षा अधिक राजाओं का संरक्षण प्राप्त हुआ. यही कारण है बौद्ध धर्म का का प्रचार बहुत ज्यादा हो पाया. इसके विपरीत जैन धर्म को कभी भी किसी प्रबल राजा का पूर्ण राजकीय प्रश्रय प्राप्त नहीं हो सका. इस कारण इसका प्रसार भी ठीक से नहीं हो पाया.

6. धर्म प्रचार

जैन धर्म का प्रचार मुख्य रूप से व्यापारियों के द्वारा ही किया जाता था, जबकि बौद्ध धर्म के प्रचार में राजाओं ने भी बहुत योगदान दिए. बौद्ध धर्म को राजकीय संरक्षण भी प्राप्त था. इसके कारण उन राज्यों की संपूर्ण शक्ति का इस्तेमाल उनके प्रचार में किया जाता था. इसके अतिरिक्त बौद्ध भिक्षुओं, मठों, विहारों और बौद्ध शिक्षा केंद्रों तथा अनेक भारतीय विश्वविद्यालयों ने बौद्ध धर्म का प्रचार किया. इस कारण बौद्ध धर्म केवल भारत तक ही सीमित न रहा, वरन अनेक देशों का प्रमुख धर्म भी बन गया.

7.  ग्रंथों की भाषा

बौद्ध धर्म ग्रंथ पाली भाषा में लिखे जाते थे, जबकि जैन ग्रंथों को मुख्य रूप से प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में लिखे जाते थे.
बौद्ध धर्म और जैन धर्म में समानताएं और असमानताएं

8. अन्य असमानताएं

इन असमानताओं के अलावा जैन और बौद्ध धर्म में और भी कई असमानताएं भी थी. बौद्ध धर्म अष्टांग मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है, जबकि जैन धर्म त्रिरत्नों को ही अपना महत्व प्रदान करता है. तुलनात्मक दृष्टिकोण से जैन धर्म, बौद्ध धर्म की अपेक्षा हिंदु धर्म के अधिक निकट है. तत्कालीन धार्मिक व सामाजिक स्थिति को जितना बौद्ध धर्म ने प्रभावित किया, उतना जैन धर्म नहीं कर सका. बौद्धों का दृष्टिकोण आरंभ से ही क्रांतिकारी था जिसके कारण वे प्रचलित धार्मिक विश्वासों से सामंजस्य स्थापित न कर सके. परंतु जैन धर्म का दृष्टिकोण सहिष्णुतापूर्ण था. इसके अतिरिक्त बौद्ध और जैन धर्म के त्रिरत्न भी अलग-अलग हैं. बौद्ध धर्मावलंबियों के त्रिरत्न बौद्ध, धर्म और संघ है, जबकि जैन धर्म जैनियों के त्रिरत्न सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान तथा सम्यक आचरण है.

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