बौद्ध धर्म की भारतीय संस्कृति को देन का वर्णन कीजिए

बौद्ध धर्म की भारतीय संस्कृति को देन (Buddhism’s contribution to Indian culture)

बौद्ध धर्म का भारतीय संस्कृति पर व्यापक प्रभाव पड़ा. बौद्ध धर्म ने भारतीय संस्कृति के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी. यद्यपि आज बौद्ध धर्म का प्रभाव भारत में काफी कम हो गया लेकिन उसका प्रभाव आज भी भारतीय संस्कृति पर है. बौद्ध धर्म भारतीयों को अहिंसा, सहिष्णुता, परोपकार, दया की भावना, मानव कल्याण की भावना, जाति प्रथा का विरोध करना आदि सिखाया. ईसा पूर्व छठी शताब्दी में ब्राह्मण धर्म में बहुत सी कुरीतियां और जटिलताएं आ गई थी. उस समय लोग ऐसे धर्म की आवश्यकता महसूस कर रहे थे जो उन्हें इन जटिलताओं से दूर कर धार्मिक संतुष्टि प्रदान कर सके. तब गौतम बुध ने बौद्ध धर्म को स्थापित कर उनको धार्मिक संतुष्टि प्रदान की.

बौद्ध धर्म की भारतीय संस्कृति को देन

बौद्ध धर्म की भारतीय संस्कृति को निम्नलिखित देन है

1. साहित्यिक देन

साहित्यिक दृष्टिकोण से बौद्ध धर्म का भारतीय संस्कृति में बहुत बड़ा योगदान है. बौद्धों के द्वारा स्थापित बौद्ध संघ, बौद्ध विहार तथा उनके द्वारा स्थापित प्राचीन विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रमुख केंद्र होते थे. इन शिक्षा के केंद्रों पर बहुत से बौद्ध साहित्यों की रचना की गई जिसके द्वारा भारतीय संस्कृति को प्रेरणा मिली. पाली भाषा में रचित जातक से तत्कालीन भारतीय समाज के आर्थिक सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति पर व्यापक प्रकाश पड़ता है. पाली भाषा के अलावा बहुत से साहित्यों की रचना संस्कृत भाषा में भी की गई. इन साहित्य में मुख्य रूप से दिव्यवादन, बुद्धचरित्र, सौन्दरनंद, सारिपुत्र प्रकरण, सद्धर्म-पुंडरीक, मंजुश्री मूलकल्प, ललित विस्तर, अमरकोश, मिलिंदपन्हों, महावस्तु तथा लंकावतार-सूत्र प्रमुख हैं. इन साहित्यों का ना सिर्फ साहित्यिक महत्व है बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी है.
 

2. दार्शनिक देन

बौद्ध धर्म ने आरंभ से ही स्वतंत्र विचारधारा पर बल दिया. इस कारण से बहुत से स्वतंत्र विचारवादी दार्शनिकों का जन्म हुआ. इन दार्शनिकों ने बहुत से दर्शन साहित्यों का सृजन किया जिसके कारण दर्शन-शास्त्र तथा तर्कशास्त्र की उन्नति हुई. नाहर ने बौद्ध दर्शन शास्त्र से प्रभावित होकर लिखा है कि बौद्धों का धार्मिक साहित्य न केवल प्रचूर और समृद्धि है वरन विचारोत्तेजक भी है. बौद्धिक एवं विचारों की स्वतंत्रता होने के कारण बौद्ध धर्म में प्रतीत्य-समुत्पाद, शून्यवाद, योगाचर,  सर्वास्तिवाद, सौत्रान्तिक, विज्ञानवाद और अनित्यवाद जैसे बहुत से दार्शनिक विचारधाराओं का जन्म हुआ. आज बौद्ध दार्शनिक कृति का अध्ययन किए बिना कोई भी व्यक्ति भारतीय दर्शन का आचार्य नहीं बन सकता.
बौद्ध धर्म की भारतीय संस्कृति को देन

3. कला की देन

बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा प्रभाव कला के क्षेत्र पर पड़ा. बौद्ध कला के द्वारा बनी कलाकृतियों की सुंदरता और निपुणता काफी अद्भुत है. आज भी भारत में बौद्ध कला के बहुत से खूबसूरत नमूने मौजूद है. बहुत से इतिहासकार मानते हैं कि मूर्ति कला एवं शिल्प कला की उत्पत्ति बौद्ध धर्म से ही हुई है. गुफा मंदिर, स्तूप आदि बौद्ध धर्म की ही देन है. सांची, भरहुल, अमरावती के स्तूप, सम्राट अशोक के शिलालेख तथा कार्ली बौद्ध गुफाएं बौद्ध कला की ही देन हैं. अजंता, एलोरा, बारबरा तथा बाघ की गुफाओं में उत्कृष्ट कलाकृतियां बौद्ध कालीन स्थापत्य-कला तथा चित्रकला की ही देन है. इसके अलावा गांधार-कला तथा मथुरा-कला में बौद्ध कला का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है.
 

4. संघों की स्थापना

भारत में संघ व्यवस्था की स्थापना करने का श्रेय बौद्ध धर्म को जाता है. इससे पहले भारत में संघ व्यवस्था विद्यमान नहीं थी. सबसे पहले महात्मा बुद्ध ने भिक्षुओं के लिए एक संगठन बनाया. इस संगठन को बौद्ध संघ कहा गया. इसका उद्देश्य भिक्षुओं को संगठित जीवन जीने के लिए प्रेरित करना था. बौद्ध संघ में भिक्षुओं को अनुशासित जीवन की शिक्षाएं दी जाती थी. इसके बाद उन्हें बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विभिन्न स्थानों में भेजा जाता था. बौद्ध संघ ने जनसाधारण में लोकतांत्रिक भावनाओं को जागृत किया.
बौद्ध धर्म की भारतीय संस्कृति को देन
 

5. भारतीय संस्कृति का प्रचार

बौद्धों ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए चीन, श्रीलंका, जापान, तिब्बत, वर्मा, जावा ,कंबोडिया तथा कई अन्य देशों तक की यात्रा की. इस कारण विदेशों में भारतीय संस्कृति का व्यापक प्रचार हुआ. इसका परिणाम यह हुआ कि बड़ी संख्या में विदेशी विद्वान भारतीय संस्कृति का अध्ययन करने के लिए भारत आने लगे. यद्यपि आज बौद्ध धर्म का विस्तार भारत में बहुत ही कम है, लेकिन भारतीयों द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार करने के कारण यह धर्म आज श्रीलंका, चीन, तिब्बत, म्यानमार जैसे देशों का प्रमुख धर्म बन चुका है अतः बौद्ध धर्म के कारण भारतीय संस्कृति का विस्तार विदेशों तक हुआ.

6. राजनीतिक एवं सामाजिक प्रभाव

ई.पू. छठी शताब्दी में ब्राह्मण धर्म तमाम बुराइयों और कुरीतियों का जड़ बन चुका था. ऐसे समय में बौद्ध धर्म ने धार्मिक जटिलताओं और सामाजिक कुरीतियों को बंधन से आजाद कर लोगों को धार्मिक और सामाजिक सरलता प्रदान की. बौद्ध धर्म ने लोगों को अहिंसा, प्रेम और सद्भावना की शिक्षा दी. इससे लोगों के बीच परस्पर प्रेम और सामाजिक एकता की भावना वृद्धि हुई. लोग जातिजाति-पांति, और ऊंच-नीच के बंधन को त्याग कर आपस में मिलजुल कर रहने लगे थे. बौद्ध धर्म ने जहां लोगों के बीच प्रेम और आपसी सौहार्द की स्थापना की, वहीं इसके कई दुष्परिणाम भी हुए. बौद्ध धर्म के अहिंसावादी शिक्षा के कारण कई राजाओं ने युद्ध करना छोड़ दिया. इसके कारण वे विदेशी आक्रमणकारियों से अपने साम्राज्य की सुरक्षा करने में नाकाम रहे. इसके अलावा बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुष गृहस्थ जीवन त्याग कर भिक्षु बन गए. इस से समाज में बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा.
बौद्ध धर्म की भारतीय संस्कृति को देन
 

7. धार्मिक देन

ई.पूर्व. छठी शताब्दी में बौद्ध धर्म की बढ़ती लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों को अपने धर्म को आत्मनिरीक्षण करना पड़ा. उनको इस बात का एहसास हो गया कि बड़ी संख्या में लोगों के द्वारा ब्राह्मण धर्म को त्यागने का मुख्य कारण ब्राह्मण धर्म में व्याप्त कुरीतियां और धार्मिक जटिलताएं हैं.  इसके बाद वे अपने धर्म के जटिल कर्मकांडों को सरल बनाने की कोशिश की और अपने धर्म से तमाम कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया. इसके बाद लोगों का झुकाव पुनः ब्राह्मण धर्म की ओर बढ़ने लगा. अब धीरे-धीरे ब्राह्मण धर्म से पशु बलि, जटिल कर्मकांड, धार्मिक कुरीतियां, हिंसात्मक यज्ञ आदि खत्म होते चले गए. बौद्ध धर्म के प्रभाव से ही मूर्ति पूजा का विकास हुआ.
 
उपरोक्त बिंदुओं से स्पष्ट है कि बौद्ध धर्म का भारतीय संस्कृति के विकास के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान है. इसने जनसाधारण को ब्राह्मण धर्म के जटिल कर्मकांड उनसे आजाद कर उनको सरल जीवन जीने की प्रेरणा दी. इसने भारत में राजनीतिक व सामाजिक एकता को भी स्थापित किया. इस के अतिरिक्त इसने भारतीय धर्म और संस्कृति को सुदूर देशों तक पहुंचाया. बौद्ध धर्म के साहित्यों ने भारतीय साहित्यिक ज्ञान की वृद्धि करने में भी बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाया.

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