बौद्ध धर्म के पतन के क्या कारण थे? व्याख्या कीजिए

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म का उत्थान जिस गति से हुआ, उसका पतन भी उसी गति से हुआ. बौद्ध धर्म की जननी स्थल भारत में कभी बौद्ध बहुसंख्यक हुआ करते थे, लेकिन आज वे अल्पसंख्यक हो चुके हैं. बौद्ध धर्म के पतन के कारण के लिए बहुत से कारणों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई.
बौद्ध धर्म के पतन के क्या कारण थे?

बौद्ध धर्म के पतन के कारण

1. बौद्ध संघ में भ्रष्टाचार

बौद्ध धर्म के मुख्य पतन के मुख्य कारण बौद्ध संघों और मठों में भ्रष्टाचार का उत्पन्न होना है. जहां महात्मा बुद्ध ने शुद्ध आचरण और सदाचार की शिक्षा दी. वहीं उसके अनुयायी धन के लालच, व्यभिचार आदि जैसे बुराइयों में लिप्त हो गए. उन्होंने मादक पदार्थों का भी सेवन करना शुरू कर दिया. बौद्ध मठ और संघ, भ्रष्टाचार और व्यभिचार के केंद्र बन गए. इन सब वजह से बौद्ध भिक्षुओं का नैतिक पतन होना शुरू हो गया. वे विलासिता भरी जीवन जीने लग गए. इस कारण उनमें धर्म प्रचार करने की इच्छा भी खत्म हो गई. इससे जनसाधारण का बौद्ध धर्म के प्रति लगाव खत्म हो गया. इस प्रकार बौद्ध धर्म पतन की ओर अग्रसर होना शुरू हो गया.

2. बौद्ध धर्म का विभिन्न भागों में विभाजन

बौद्ध धर्म में विभाजन होना भी पतन का एक कारण है. महायान संप्रदाय की उत्पत्ति से पहले ही बौद्ध धर्म 18 प्रमुख सम्प्रदायों में विभक्त हो गया था. इसके पश्चात महायान समुदाय की उत्पत्ति बौद्ध धर्म का बहुत बड़ा विभाजन का कारण बना. इसके पश्चात हीनयान, वज्रयान जैसे अलग-अलग सम्प्रदायों की उत्पत्ति हुई. ऐसे विभाजनों के कारण बौद्ध संप्रदाय का एकता खत्म हो गया. इन सम्प्रदयों के आपसी मतभेदों के कारण जनसाधारण का बौद्ध धर्म के प्रति विश्वास काफी कमजोर हो गया और लोगों का मन बौद्ध धर्म से खत्म होने लगा.

3. राजकीय संरक्षण खत्म होना

बौद्ध धर्म को शुरुआत में विभिन्न राजाओं का संरक्षण प्राप्त था, पर धीरे-धीरे राजाओं का संरक्षण खत्म होने लगा. सम्राट अशोक के बाद किसी शासक ने बौद्ध धर्म का समर्थन नहीं किया. अत: राजकीय संरक्षण के अभाव में बौद्ध धर्म धीरे-धीरे भारत से विलुप्त होने लगा.

4. ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान

यद्यपि बौद्ध धर्म का उत्थान बहुत तेजी से हुआ और एक बड़े जन समूह का झुकाव इस धर्म की ओर हुआ, लेकिन हिंदू धर्म को कभी पूर्णता नष्ट नहीं कर सका था. बाद में हिंदू धर्म का भी पुनरुत्थान हुआ. शुंग शासकों के समय में हिंदू धर्म फिर से उत्थान के पथ पर अग्रसर हुआ. इसके पश्चात गुप्त शासकों के समय काल में हिन्दू धर्म अपनी चरम सीमा तक पहुंच गई थी. इसके पश्चात बहुत से हिंदू धर्म के प्रचारकों ने हिंदू धर्म को पुनः स्थापित करने में सफलता पाई. इन्होंने अपने तर्क-वितर्क के बल पर यह सिद्ध करने में सफलता पाई कि हिन्दू धर्म ही श्रेष्ठ है. हिंदू धर्म के विद्वानों ने हिंदू धर्म में बहुत से सुधार किए. इन सुधरे हुए स्वरूप को देखकर बड़ी संख्या में लोग फिर से हिंदू धर्म की ओर आकर्षित हुए और बड़ी संख्या में लोग इसके अनुयायी बनने लगे.

5. बौद्ध धर्म के स्वरूप में परिवर्तन

महात्मा बुद्ध द्वारा प्रतिपादित बौद्ध धर्म सरल एवं व्यवहारिक था. इसका पालन करना भी बहुत ही सहज था. लेकिन कालांतर में उसमें इतना परिवर्तन आया कि इसका मूल स्वरूप ही बदल गया. जिन कुरीतियों का विरोध महात्मा बुद्ध किया करते थे, वही कुरीतियां बौद्ध धर्म में आ गई. बौद्ध धर्म में मूर्ति पूजा निषेध था, लेकिन कालांतर में बौद्ध धर्म के अनुयाई महात्मा बुद्ध की ही मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करने लगे.

6. राजपूतों का अभ्युदय

राजा हर्ष की मृत्यु के पश्चात राजपूतों का उदय हुआ. वे वीरता प्रदर्शन को अपना धर्म और राज्य विस्तार को अपना कर्तव्य समझते थे. इसके विपरीत बौद्ध धर्म अहिंसा के मार्ग पर चलने वाला था. इसी वजह से राजपूतों ने बौद्ध धर्म पर कोई रुचि नहीं दिखाई. राजपूत मुख्य रूप से अश्वमेघ यज्ञ, युद्ध आदि में विश्वास रखते थे. अत: उन्होंने ब्राह्मण धर्म को अपनाया.

7. संस्कृत भाषा को अपनाना

शुरुआत में बौद्ध धर्म के प्रचार में सरल भाषा का इस्तेमाल किया गया था. जिसकी वजह से लोगों को आसानी से समझ में आती थी और बड़ी संख्या में जनसाधारण इस धर्म की ओर आकर्षित हुई. लेकिन कालांतर में बौद्ध धर्म ने संस्कृत को अपनाया और संस्कृत भाषा में प्रचार किया जाने लगा. उस समय संस्कृत जनसाधारण के लिए एक जटिल भाषा थी. आसानी से किसी की समझ में नहीं आती थी. उन्होंने बहुत से बौद्ध साहित्य भी संस्कृत में ही लिखें. इस जटिलता की वजह से लोगों का झुकाव बौद्ध धर्म के प्रति कम होने लगा.

8. ब्राह्मण धर्म विद्वानों का उदय होना

सातवीं और आठवीं शताब्दी में ब्राह्मण धर्म में कुमारिल भट्ट और शंकराचार्य जैसे धर्म विद्वान उभर कर आए. उन्होंने ब्राह्मण धर्म के प्रचार-प्रसार में खुद को झोंक दिया. उन्होंने अपने तर्कों से ब्राह्मण धर्म की श्रेष्ठता का बखान लोगों के समक्ष किया. उनके सामर्थवान प्रचार के कारण लोगों का विश्वास बौद्ध धर्म से कमजोर होने लगा. इन ब्राह्मण विद्वान अपने तर्क-वितर्कों से यह सिद्ध करने में सफल रहे कि बौद्ध धर्म की तुलना में ब्राह्मण धर्म ही श्रेष्ठ है. अतः लोगों का झुकाव पुन: ब्राह्मण धर्म की ओर हो गया.
बौद्ध धर्म के पतन के क्या कारण थे?

9. विदेशी आक्रमण

बौद्ध धर्म के पतन के मुख्य कारणों में से एक विदेशी आक्रमण भी था. हूणों और मुसलमानों के आक्रमण ने बौद्ध धर्म की डूबती नैया को और डूबा दिया. मुसलमान आक्रमणकारियों ने बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्रों, नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों को आग के हवाले कर दिया. हजारों संख्या में बौद्ध-भिक्षुओं की हत्या कर दी गई. बचे-खुचे बौद्ध भिक्षु तिब्बत, नेपाल, म्यानमार जैसे देशों में भागने में सफल रहे. इसके बाद किसी में इतना हिम्मत नहीं रहा कि बौद्ध धर्म की पुनरुत्थान के लिए प्रयास करें. बौद्ध धर्म के अहिंसावादी सिद्धांत ने उनके युद्ध करने की कला को खत्म कर दिया. जिसकी वजह से वे आत्मरक्षा भी नहीं कर पाए. इन्हीं कारणों से बौद्ध धर्म का पतन हो गया.
इन सब के कारणों से बौद्ध धर्म का पतन अंतत: भारत से हो गया. हालांकि आज भी भारत के कुछ इलाकों में उनका अस्तित्व है, लेकिन वे अल्पसंख्यक रह गए. भारत के कई पड़ोसी देश आज बौद्ध बहुल देश बन गए हैं. देखा जाए तो आज भी भारत में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में कोई खास उत्साह नहीं देखी जाती है.

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