मंचूरिया संकट के क्या परिणाम हुए?

मंचूरिया संकट

मंचूरिया संकट के परिणाम न केवल पश्चिमी राष्ट्रों को बल्कि पूरे विश्व को आश्चर्य में डाल दिया. जापान के द्वारा मंचूरिया पर अधिकार करने के बाद अनेक महत्वपूर्ण परिणाम निकले. जापान के द्वारा किया गया इस कार्रवाई ने यूरोपीय राष्ट्रों के कान खड़े कर दिए.

मंचूरिया संकट के परिणाम

मंचूरिया संकट के परिणाम

1. विश्व में प्रतिक्रिया

मंचूरिया पर जापानी अधिकार के बाद पूरे विश्व में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं होने लगी. कई स्थानों पर जापान का विरोध किया जाने लगा. जापानियों से संबंध रखने वालों का बहिष्कार किए जाने लगा. अमेरिका ने भी इसे अपने हितों पर बाधा समझा. अमेरिका स्पष्ट किया कि वह किसी भी देश या उसके प्रतिनिधियों में हुई के बीच हुई ऐसी किसी भी ऐसे समझौते की वैधता को स्वीकार नहीं करेगा जिसका अमेरिका तथा उसके चीन में स्थित नागरिकों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो. उन्मुख द्वार की नीति की पर चुनौती अमेरिका कभी स्वीकार नहीं कर सकता. पेरिस की संधि 27 अगस्त 1928 की शर्तों पर विपरीत संपन्न की गई किसी भी संधि को अमेरिका मान्यता नहीं देगा क्योंकि चीन, जापान और अमेरिका ने भी उस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं. अमेरिका जापान पर राजनीतिक दबाव देने के अलावा कुछ नहीं कर पाया क्योंकि उसे ब्रिटेन और फ्रांस का साथ नहीं मिला.
मंचूरिया संकट के परिणाम

2. राष्ट्र संघ की निष्क्रियता का स्पष्ट होना

मंचूरिया पर जापान के कब्जे के बाद चीन ने इस मामले को राष्ट्र संघ के समक्ष उठाया. 10 दिसंबर 1931 ई. को मामले की जांच के लिए राष्ट्र संघ ने एक आयोग का गठन किया. इस आयोग में ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका जर्मनी और इटली को सदस्य बनाया गया और प्रत्येक देश से अपने-अपने प्रतिनिधि भेजने को कहा गया. 7 जनवरी 1932 ई. को अमेरिका के विदेश सचिव ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कर दी कि मंचूरिया को चीन से अलग करने से घातक परिणाम होंगे. अत: मंचूरिया में स्वायत्त शासन स्थापित कर दिया जाना चाहिए. राष्ट्र संघ ने इस रिपोर्ट पर विचार करने के लिए एक विशेष अधिवेशन बुलाया. इस अधिवेशन में कहा गया कि जापान मंचूरिया से अपनी सेना हटा ले और चीन की प्रभुता के अधीन मंचूरिया का स्वायत्त शासन होना चाहिए और मंचूकाओ सरकार को मान्यता दिया जाए. लेकिन इस अधिवेशन में मंचूरिया समस्या के लिए कोई निश्चित योजना नहीं थी. जापान ने संयुक्त राष्ट्र की इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उसने 20 मार्च 1933 ई. को राष्ट्र संघ की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया और अपने सैन्य अभियान को तेज कर दिया. संयुक्त राष्ट्र संघ देखने के सिवाय कुछ कर न सका. इससे संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता और खोखले पन स्पष्ट हो गई. संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता ने सैन्यवादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दिया और विश्व की राजनीति में युद्ध के बादल मंडराते दिखाई देने लगे.
मंचूरिया संकट के परिणाम
 

3. मंचूकाओ सरकार की स्थापना

जापान ने 28 फरवरी 1932 ई. में मंचूरिया पर अपनी कठपुतली सरकार की स्थापना कर दी. मंचूरिया का नाम बदलकर उसने मंचूकाओ रख दिया. मंचूरिया पर जापान के द्वारा सरकार स्थापना करने के बाद इस पर जापान का प्रभुत्व स्थापित हो गया. इस प्रकार मंचूरिया कांड ने विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया और जापान एक नए शक्ति के रूप में उभरा. अपनी सफलता से उत्तेजित होकर जापान पूरे चीन पर अपने प्रभाव स्थापित करने के सपने देखने लगा.

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