मध्य पाषाण कालीन संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन करें

मध्य पाषाण काल

भारत में पुरापाषाण काल और नवपाषाण युग के मध्य के काल को मध्यपाषाण काल कहते हैं. इतिहासकारों के अनुसार पुरापाषाण काल का अंत 9,000 ई. पू. के आसपास हुआ था. इस समय जलवायु गर्म और शुष्क हो गए थे. इस काल में जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ पेड़-पौधों और जीव जंतुओं में भी परिवर्तन आने लगे. इन परिवर्तनों के कारण मानव को भी उसके हिसाब से खुद में परिवर्तन लाना पड़ा. इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप मानव नए क्षेत्रों की ओर अग्रसर होना शुरू हुआ. इन परिवर्तनों के इस अवस्था का आरंभ 10,000 ई. पू. से 8000 ई. पू. माना जाता है. गुजरात में उत्खनन के परिणाम स्वरूप इस काल की कुछ मानव अस्थियां प्राप्त हुई. इन अस्थियों का परीक्षण करने के बाद पुरातत्वविद्द इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस काल में मानव हब्शी थे. भारत में मध्यपाषाण काल के विषय में जानकारी सर्वप्रथम 1807 ई. में हुई जब सी. एल. कार्लाइल ने विंध्य क्षेत्र से लघु पाषाण कालीन उपकरण खोज निकाले थे.

मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन

मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं

1. उपकरण

मध्यपाषाण काल में मनुष्य ने लघु अवतारों का निर्माण करना शुरू कर दिया था. मध्यपाषाण कालीन उपकरण का आकार अत्यंत छोटे होते थे. वे लगभग आधे इंच से लेकर पौने इंच तक के होते थे. इन लघु उपकरणों का उपयोग बाण के नुकीले हिस्से के रूप में उपयोग होता था. इस काल के उपकरण निर्माण के क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन आया. अब कठोर चट्टानों के साथ-साथ मुलायम चट्टानों का भी उपकरणों के निर्माण में उपयोग होने लगा. मध्यपाषाण काल के उपकरणों में कुंठित तथा टेढ़े ब्लेड, छिद्रक, स्क्रैपर, ब्यूरिन, बेधडक चंद्रिका आदि प्रमुख हैं. कुछ स्थानों पर हड्डी और सींग से बने उपकरण भी मिले हैं. मध्य पाषाण काल के उपकरण चर्ट, जैस्पर, क्वार्ट्ज़ जैसे कीमती पत्थरों से बने भी पाए गए हैं. कुछ उपकरण का आकार त्रिभुज और समलंब चतुर्भुज के समान है.

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2. दाह-संस्कार

इस काल में लोगों ने शव दाह संस्कार की प्रक्रिया भी आरंभ कर दिया था. उत्खनन के दौरान अनेक अस्थि अवशेष प्राप्त हुए थे. उनमें से कुछ अस्थियों के सिर पूर्व की ओर तथा कुछ के पश्चिम की ओर पाए गए.  शव के शीर्ष के पास से कुछ पाषाण उपकरण भी प्राप्त हुए हैं. इससे इस बात का निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि शव दाह संस्कार के समय धार्मिक अनुष्ठान का प्रयोग भी शुरू हो गया था. मानव अस्थियों के साथ-साथ कुत्ते की अस्थि पंजर मिलने से इसे धार्मिक विश्वास के साथ जोड़ा जाता है.

3. भोजन 

मध्यपाषाण काल में कल के मानव को पशुपालन का महत्व महसूस होने लगा था. इस काल के लोग जंगली पशु-पक्षियों का शिकार करके, मछली पकड़कर तथा जंगल के कंद-मूल, विभिन्न प्रकार के फल-फूल इकट्ठा करके अपना पेट भरते थे. आगे चलकर वे अपने भोजन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पशुपालन भी करने लगे. मध्य पाषाण काल के अंतिम काल में वे कृषि भी करना शुरू कर चुके थे.

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4. पशुपालन 

मध्यपाषाण काल के लोग जंगली पशु-पक्षियों के अलावा, गाय, बैल, भेड़, बकरी, भैंस आदि का भी शिकार करते थे, लेकिन आगे चलकर उन्होंने इन पशुओं का महत्त्व जाना और इन्हें पालना शुरू किया. मध्यपाषाण काल के अंत तक मानव ने पशुपालन और अंत तक कृषि करना भी सीख लिया. मध्य प्रदेश के आजमगढ़ और राजस्थान के बागोर पशुपालन का प्राचीन साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं. इनका समय लगभग 5000 ई.पू. के आसपास हो सकता है. राजस्थान के अतीत नामक झील के जमाव के अध्ययन से प्रतीत होता है कि यहाँ लगभग 7000 ई.पू. से 6000 ई.पू. के आसपास पौधे लगाए जाते थे. मध्यपाषाण संस्कृति 4000 ई.पू. तक बना रहा.

5. आवास

मध्यपाषाण काल के अंतिम समय में मानव पहाड़ों और गुफाओं से निकलकर समतल स्थानों में झोपड़ी बनाकर रहना शुरू किए. इनके घर लकड़ी, घास-फूस और पत्ते से बने होते थे. फर्श मिटटी के होते थे. सोने के लिए घास फूस और लकड़ी से बने बिस्तर का इस्तेमाल करते थे. इस काल में मानव ने नदी-नालों तथा अन्य जलस्रोतों के निकट अपने घरों को बनाने लगे थे. खाद्य पदार्थों को अपने घरों में संग्रह करना आरम्भ कर दिए.

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मध्यपाषाण काल के पुरातत्व स्थल

मध्यपाषाण काल के पुरातत्व स्थल राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, मध्य प्रदेश, बिहार पश्चिम बंगाल और उत्तर भारत के विभिन्न स्थानों में पाए गए हैं. राजस्थान के भीलवाड़ा जिला के बागोर इनमें प्रमुख हैं. यहां 1968 ई. से 1969 ई. तक के उत्खनन कार्य किया था. गुजरात में स्थित लंघनाज सबसे महत्वपूर्ण स्थल है. यहां एच. डी. संकालिया, बी. सुब्बाराव, ए. आर. कैनेडी आदि जैसे पुरातत्वविदों ने उत्खनन कार्य करवाया था. यहां से 14 मानव कंकाल भी प्राप्त हुए हैं. आंध्र प्रदेश के नागार्जुनकोंडा, गिद्दलूर, रेणिगुंटा, कर्नाटक के संगनकल्लु तथा तमिलनाडु में तिरुनेलवेली जिले के टेरी प्रमुख पुरातत्व स्थल है.

मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन

1964 ई. में मध्यप्रदेश के होशिंगाबाद में हुए उत्खनन से मध्यपाषाण काल के 25000 से ज्यादा लघु पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं. 1958 ई. में वी. एस. वाकणकर ने भीमबेटिका गुफा की खोज की थी. पश्चिम बंगाल वीरभान इस काल का एक महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल है. यहाँ बी. बी. लाल के नेतृत्व में उत्खनन कार्य किया गया. उत्तर प्रदेश के विंध्य तथा ऊपरी और मध्य गंगा घाटी के क्षेत्रों से इस काल के बहुत से उपकरण पाए गए हैं. 1962 ई. से 1980 ई. के मध्य इलाहाबाद के चोपनिमाण्डो नामक स्थल की खुदाई हुई. यहां इस काल के बहुत से नर-कंकाल मिले हैं.

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