मनसबदारी प्रथा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए

मनसबदारी प्रथा

मनसब एक अरबी शब्द है. इसका अर्थ पद, प्रतिष्ठा, पदवी या दर्जा होता है. मुगल काल में यह किसी व्यक्ति का अधिकारी वर्ग में उसके स्थान, वेतन तथा राज दरबार में उसकी प्रतिष्ठा एवं स्थान को निर्धारित करता था. मनसबदारी प्रणाली मुगल शासक अकबर के द्वारा आरम्भ किया गया एक प्रशासनिक प्रणाली थी. मुगलकालीन सैनिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था का मूल आधार मनसबदारी व्यवस्था ही थी. इस व्यवस्था को 1566 ई. में लागू किया गया था. इस व्यवस्था के अनुसार किसी भी व्यक्ति को 10 विभाज्य संख्या का मनसबदार नियुक्त किया जाता था जिसका अर्थ है वह उस संख्या के बराबर घोड़े को रखने वाला व्यक्ति होता था. घोड़े को दागने की प्रथा भी अकबर से पहले सी शेरशाह ने आरंभ किया था. अकबर द्वारा लागू की गई मनसबदारी व्यवस्था में भी दशमलव प्रणाली और दागने का प्रयोग किया जाता था किंतु उसमें अनेक संशोधन करके इस व्यवस्था को और अधिक श्रेष्ठ बनाया गया.

मनसबदारी प्रथा की प्रमुख विशेषताओं

मनसबदारी प्रथा की प्रमुख विशेषताएं

1. मनसबदारों का श्रेणियों में विभाजन

अबू फजल ने अपनी पुस्तक आईना-ए-अकबरी में मनसबदारों के 66 श्रेणियां का उल्लेख किया है. किंतु इस किताब में मनसबदारों की सूची में मात्र 33 श्रेणियां का उल्लेख किया गया है. विभिन्न श्रेणी में संख्या सैनिकों की संख्या निर्धारित करने के लिए दार्शनिक प्रणाली को आधार बनाया गया था. अर्थात सैनिकों की संख्या 10 विभाजित होने वाली संख्या पर आधारित थी. छोटी संख्या का अधिकारी छोटे पद और बड़ी संख्या का अधिकारी बड़े पद का होता था. अकबर के समय में 10 से 10,000 तक के मनसब प्रदान किए जाते थे. 5,000 या उससे ऊपर का मनसब सामान्यतः राजकुमारों को ही दिया जाता था. बाद में जब 12,000 तक का मनसब दिया जाने लगा तो राजकुमारों को 7,000 से ऊपर के तथा अन्य सरदारों को 7,000 तक के मनसब दिए जाने लगे. शाहजहां और औरंगजेब कल में 60,000 तक के मनसब दिए जाने लगे. जिस समय अकबर द्वारा मनसबदारी व्यवस्था लागू की गई, उस समय केवल जात मनसब का उल्लेख मिलता है. 1594-95 ई. में सवार मनसब का भी प्रचलन शुरू हो गया था. इन दोनों शब्दों के अलग-अलग उल्लेख मिलने से यह स्पष्ट है कि इन दोनों का अर्थ विभिन्न था. उनके अर्थ के विषय में इतिहासकारों में अत्यधिक मतभेद है. विभिन्न मनसबदारों के बारे में मुग़ल दस्तावेजों में उल्लेख किया गया है.इनमें सबसे पहले जात मनसब तथा उसके बाद सवार मनसब का उल्लेख किया गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि जात मनसब का सवार मनसब से अधिक महत्व था. जात एवं सवार मनसब के विषय में विभिन्न इतिहासकारों के मत अलग-अलग है.

मनसबदारी प्रथा की प्रमुख विशेषताओं

2. मनसबदारों की नियुक्ति

मुगल काल में मनसबदारों की नियुक्ति के लिए कोई निश्चित नियम नहीं था और न उनकी कोई परीक्षा ली जाती थी. सम्राट स्वयं ही उनकी नियुक्ति करता था. इस नियुक्ति में योग्यता का खास ध्यान रखा जाता था. मनसबदारों की नियुक्ति की विधि अत्यंत सरल थे. मनसब के इच्छुक व्यक्तियों को मीर बक्शी, सम्राट के सम्मुख प्रस्तुत करता था. कभी-कभी सूबेदार और अन्य महत्वपूर्ण सरदार भी किसी व्यक्ति के लिए संस्तुति करते थे. इच्छुक व्यक्ति की योग्यताओं के बारे में मीर बक्शी सम्राट को अवगत कराता था. सम्राट, वकील या मीर बक्शी के परामर्श उसे व्यक्ति को उसकी योग्यता अनुसार मनसब प्रदान करता था. सम्राट के स्वीकृति के पश्चात उसे व्यक्ति की हकीकत तैयार की जाती थी तथा उसकी प्रति दीवान तथा सैनिक सलाहकार को भेजी जाती थी. इसके बाद या फरमान जारी किया जाता था. इस प्रकार नियुक्त मां शब्दार्थ को निर्धारित संख्या में घुड़सवार रखने होते थे जिनका समय-समय पर निरीक्षण किया जाता था.

मनसबदारी प्रथा की प्रमुख विशेषताओं

मनसबदारों की नियुक्ति के संदर्भ में अबू फजल ने आईना-ए-अकबरी में लिखा है कि सम्राट एक ही नजर में व्यक्ति को देखकर उसकी योग्यता पहचान लेते थे और उसे उच्च मनसब प्रदान करते थे. आगे लिखा है कि मुश्किल से ही कोई ऐसा दिन जाता था जिस दिन योग्य और ईमानदार व्यक्ति को मनसब न प्रदान किया जाता हो. बहुत से व्यक्ति अरब और ईरान जैसे दूर-दूर देशों से आते थे और उन्हें सेवा में मनसब देकर सम्मानित किया जाता था.

3. मनसबदारों का वेतन 

मनसबदारों को वेतन के रूप में जागीर अथवा नकद दिया जाता था. कुछ इतिहासकारों के अनुसार मनसबदारों को बहुत अच्छा वेतन मिलता था. इस कारण वे आरामदायक जीवन व्यतीत करते थे. उनको अपने ही वेतन में से ही राज्य की सेवा के लिए घोड़े, हाथी और अन्य पशु ही रखने होते थे. मनसबदारों को उनके पदों के अनुसार ही वेतन मिलता था. बड़ी संख्या के मनसबदारों को अधिक वेतन तथा छोटे पद के मनसबदारों को कम वेतन मिलता था. उनको पूरा वेतन नहीं दिया जाता था. उनकी निर्धारित वेतन में से कुछ राशि काट कर ही दिया जाता था.

मनसबदारी प्रथा की प्रमुख विशेषताओं

4. मनसबदारों के कार्य 

मनसब किसी विशेष पद या कार्य के संपादन का प्रतीक नहीं था. इसका अर्थ केवल यह होता था कि वे राज्य की सेवा में है तथा आवश्यकता अनुसार उनका  किसी भी पद पर नियुक्त करके उनसे कार्य लिया जा सकता था. मनसब, सैनिक अधिकारी ही होगा यह आवश्यक नहीं था. उनसे उनकी योग्यता के अनुसार राज्य की किसी पद पर नियुक्त किया जा सकता था. उनको निश्चित संख्या में घोड़े, हाथी तथा अन्य पशुओं को रखना पड़ता था. मुगल काल में यह किसी व्यक्ति का अधिकारी वर्ग में उसके स्थान वेतन तथा राज दरबार में उसकी प्रतिष्ठा एवं स्थान को निर्धारित करता था.

मनसबदारी प्रथा की प्रमुख विशेषताओं

5. मनसबदारों पर पाबंदी 

मनसबदारों पर कुछ पाबंदियां भी लगी होती थी. वे सम्राट के इजाजत के बिना व्यवस्था में कुछ फेर बदल नहीं कर सकते थे. उनको प्रत्येक घुड़सवार के पीछे अरबी या इराकी नस्ल के दो घोड़े रखने होते थे. उन्हें हर माह अपने वेतन लेने के लिए स्वयं सम्राट् के पास आना होता था. किसी मनसबदार की मृत्यु हो जाने पर उसकी जमा पूँजी जब्त कर ली जाती थी. इन पाबंदियों के कारण मुगलों की सैनिक शक्ति को बहुत सुदृढ़ हो गई थी.

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