महमूद गजनवी के चरित्र का वर्णन और उसका मूल्यांकन करें

महमूद गजनवी के चरित्र का वर्णन

1. महान शासक

महमूद गजनवी मुस्लिम इतिहास का एक महान शासक था. वह मुस्लिम इतिहास में सुल्तान कहलाने योग्य प्रथम शासक था. मध्य एशिया के महान शासकों में उसका प्रमुख स्थान है. प्रोफ़ेसर हबीब के शब्दों में वह अपने समकालीन व्यक्तियों में वह चरित्र बल से नहीं बल्कि योग्यता के कारण इतना उच्च पद प्राप्त कर सका था. उसकी विजयें, उसके साम्राज्य की शांति और समृद्धि, सांस्कृतिक प्रगति और उसके प्रयत्नों के द्वारा इस्लाम की प्रतिष्ठा का विस्तार उसे महान शासकों में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है. महमूद के समय से गजनी, इस्लामी संसार का शक्ति, वैभव, शिक्षा, विद्वता, सौंदर्य और ललित कलाओं की प्रगति का प्रमुख केंद्र स्थान बन गया था. और गजनी सब कुछ महमूद गजनवी के अद्वित्य सफलताओं के कारण ही संभव हो पाया था.

महमूद गजनवी के चरित्र का वर्णन और उसका मूल्यांकन

2. साहसी सैनिक और सेनापति

महमूद गजनबी एक साहसी सैनिक सफल सेनापति था. उसकी गिनती संसार के उन सफलतम सेनापतियों में की जाती है जिन्हें जन्मजात सेनापति कहा जाता है. उसमें नेतृत्व करने और अपने साधनों एवं परिस्थितियों का पूर्ण लाभ उठाने की क्षमता थी. उसे मानवीय गुणों को परखने की बुद्धि थी और वह प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार कार्य देता था तथा प्रत्येक से अपनी इच्छा के अनुसार काम करवाता था. उसकी सेना में अरब तुर्क और अफगान ही नहीं बल्कि हिंदू सैनिक भी थे. विभिन्न नस्लों से मिलजुल कर बनी हुई उसकी सेना उसके नेतृत्व में एक शक्तिशाली तथा विजयी सेना बन गई थी. महमूद गजनवी एक महत्वकांक्षी सेनापति भी था. वह सदा सम्मान और विशाल साम्राज्य की लालसा करता था. उसे अपने पिता से गजनी और खुरासान का एक छोटा सा राज्य प्राप्त हुआ था. उसने अपनी योग्यता से अपने साम्राज्य को इराक और कैप्शिन सागर से लेकर गंगा तट तक फैला दिया था. उसका साम्राज्य बगदाद के खलीफा से भी बड़ा और शक्तिशाली था. जब खलीफा ने महमूद को समरकंद देने से इनकार किया, तब महमूद ने उस पर आक्रमण करने की धमकी दी थी. इस प्रकार महमूद ने एक शक्तिशाली और विशाल साम्राज्य का निर्माण किया था. यह कहना भूल है कि महमूद ने सिर्फ दुर्बल भारतीय शासकों को परास करने में सफलता पाई बल्कि उसने ने मध्य एशिया और ईरान के शत्रुओं के विरुद्ध भी इस प्रकार सफलता प्राप्त की थी. अत: एक साहसी सैनिक, महान सेनापति और साम्राज्य के निर्माता के दृष्टिकोण से इतिहास में उसका एक महत्वपूर्ण स्थान है.

महमूद गजनवी के चरित्र का वर्णन और उसका मूल्यांकन

3. विद्वानों का संरक्षक और कला प्रेमी

महमूद गजनवी शिक्षित और सुसभ्य था.वह विद्वानों और कलाकारों को सम्मान करता था. उसने अपने समय में महान विद्वानों को गजनी में एकत्र किया था. गणित दर्शन, ज्योतिष और संस्कृत का उच्च कोटि विद्वान अलबरूनी, इतिहासकार उतबी, दर्शनशास्त्र का विद्वान फराबी, तारीख ए सुबुक्तगीन का लेखक बैहाकी जिसे इतिहासकार लेनपूल ने पूर्वी पेप्स की उपाधि दी, फारस का कवि उजारी, खुरासानी विद्वान तुसी, महान शिक्षक और विद्वान उन्सुरी, विद्वान अस्जदी और फारूकी तथा शाहनामा के रचियता विद्वान फिरदौसी आदि उसके दरबार में थे. वह सभी योग्य थे और महमूद के संरक्षण ने उनको अधिक योग्य बनाने में सहायता दी. महमूद गजनवी ने गजनी में एक विश्वविद्यालय, एक बड़ा पुस्तकालय और एक बड़ा अजायबघर स्थापित किया था. वह कलाकारों को भी संरक्षण देता था. उसने देश-विदेश के कलाकारों को बुलाकर गजनी में भव्य इमारत का निर्माण कराया. उसने अनेक महलों, मस्जिदों, मकबरा आदि से गजनी को सुशोभित किया. गजनी का विख्यात जामी मस्जिद का निर्माण भी उसी ने करवाया था जिसके कारण गजनी इस्लामी दुनिया की शोभा, वैभव और विद्वता का महान केंद्र स्थान बन गया.

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4. न्यायप्रिय शासक

महमूद गजनबी एक न्यायप्रिय शासक था. वह अपने भतीजे का एक अन्य व्यक्ति की पत्नी से अवैध संबंध रखने के कारण उसने स्वयं कत्ल किया. एक अन्य अवसर पर उसने शहजाद मसूद को एक व्यापारी के कर्ज न चुकाने पर काजी की अदालत में जाने और व्यापारी का कर्ज चुकाने के लिए बाध्य किया. इस प्रकार बहुत ही कहानियाँ प्रचलित है जिससे महमूद गजनवी के न्यायप्रिय होने की बात को सिद्ध करती है. महमूद ने अपने सूबेदारों को अपने नियंत्रण रखने, अपने राज्य में शांति और व्यवस्था बनाए रखने, व्यापार और कृषि की उन्नति करने तथा अपनी प्रजा के जीवन और सम्मान की सु।रक्षा करने में सफलता पाई थी.

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5. धार्मिक कट्टरता

महमूद गजनवी धार्मिक दृष्टि से काफी कट्टर किस्म का था. वह सुन्नी मुसलमान था और वह हिंदुओं के प्रति ही नहीं बल्कि शियाओं के प्रति भी कट्टरता पूर्ण नीति अपनाया और उन को दंड देने के लिए हमेशा तत्पर रहता था. मोहम्मद हबीब जैसे बहुत से आधुनिक इतिहासकार उसके धार्मिक कट्टरता को ढकने का प्रयत्न की कोशिश करते हैं, लेकिन इस बात का किसी भी हालत में इंकार नहीं किया जा सकता है कि विरोधियों के प्रति उसका व्यवहार काफी कठोर रहा और हिंदुओं के काफी नृशंसता की थी. हिंदुओं के प्रति उसके व्यवहार की आलोचना अलबरूनी ने भी की थी. तत्कालीन मुसलमान उसे इस्लाम का महान प्रचारक मानते थे. उसने गाजी (विधर्मियों को कत्ल करने वाला) और मूर्तिभंजक अथवा बुतशिकन आदि नामों से पुकारा गया. खलीफा ने सोमनाथ पर आक्रमण करने पर मिली सफलता पर उसे और उसके पुत्रों को सम्मान पत्र और वस्त्र भेजे थे. तत्कालीन मुस्लिम संसार ने भी उसे विधर्मियों को नष्ट करके दूरस्थ देशों में इस्लाम की प्रतिष्ठा और शक्ति को स्थापित करने वाला माना था. इस कारण तत्कालीन विचारधारा के आधार पर महमूद गजनवी को धर्मांध माना जा सकता है. हिंदू और हिंदू मंदिरों के प्रति महमूद का नृशंस व्यवहार का कारण केवल धन की लालसा के कारण ही हो, यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है.

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5. धन का लालची

महमूद गजनवी धन का लालची था, यद्यपि इसके साथ-साथ हुआ खुले दिल से धन का व्यय भी करता था. भारत पर उसके आक्रमणों का प्रमुख उद्देश्य धन की लालसा ही था. अपनी मृत्यु के अवसर पर वह यह सोच कर बहुत दुखी हुआ था कि उसने अपने संपूर्ण संपत्ति को छोड़कर जाना पड़ेगा. प्रख्यात विद्वान फिरदौसी को उसने प्रत्येक छंद की रचना के लिए एक सोने की दिनार देने का वायदा किया था, परंतु जब उसने एक हजार छंद के शाहनामा को उसके समक्ष प्रस्तुत किया तो उसने सोने के स्थान पर चांदी की दिनारें देने की इच्छा प्रकट की जिन्हें लेने से फिरदौसी ने इंकार कर दिया. यद्यपि इसका मुख्य कारण महमूद का कृपापात्र अयाज का फिरदौसी के विरुद्ध षड्यंत्र था. महमूद ने बाद में फिरदौसी के पास स्वर्ण की दिनारें भेज दी लेकिन तब तक फिरदौसी की मृत्यु हो चुकी थी. परंतु तब भी इन घटनाओं से महमूद के लालची प्रवृत्ति का आभास अवश्य होता है. प्रोफेसर ब्राउन ने लिखा है वह किसी भी उपाय से धन प्राप्ति के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहता था.

6. अकुशल शासन प्रबंधक

महमूद गजनवी की सबसे बड़ी दुर्बलता उसका कुशल शासन प्रबंधक न होना था. इस कारण महमूद अपने राज्य को स्थायित्व प्रदान न कर सका. उसका विशाल साम्राज्य उसके दुर्बल उत्तराधिकारियों के हाथ में जाते ही नष्ट होना शुरू हो गया. महमूद एक विशाल साम्राज्य का निर्माता था, लेकिन उसके कुशल शासन प्रबंधक न होने के कारण उसे सुरक्षित नहीं रख सका. इससे स्पष्ट होता है कि महमूद अपने शासन को स्थायी सिद्धांतों पर स्थापित नहीं कर सका था. लेनपूल ने लिखा है महमूद महान सैनिक था और उसमें अपार साहस तथा अथाह शारीरिक एवं मानसिक शक्ति थी, परंतु वह रचनात्मक और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ नहीं था. हमें ऐसे किन्हीं नियमों, संस्थाओं अथवा  शासन प्रणाली की जानकारी नहीं जिसकी उसने नींव डाली हो. एलफिंस्टन ने भी लिखा है कि उसके भारतीय कार्य में भी जिनके लिए उसे अपनी अन्य योजनाएं त्याग दी थी, उसमें किसी प्रकार के संगठन व्यवस्था की भावना का परिचय नहीं देते.

मूल्यांकन

महमूद गजनवी भले ही इस्लामिक इतिहास का एक महान शासक है, पर भारतीय इतिहास में महमूद गजनवी का स्थान एक धर्मांध और बर्बर विदेशी लुटेरे के रूप में है. महमूद गजनवी गजनी का सुल्तान था, भारत का नहीं. पंजाब, सिंध और मुल्तान जिसे उसने अपने राज्य में सम्मिलित किए थे, उसका मुख्य उद्देश्य अपने साम्राज्य की पूर्वी सीमाओं की सुरक्षा और भारत पर निरंतर आक्रमण करने का आधार मात्र थे. इस कारण महमूद गजनवी ने इन प्रदेशों के शासन की ओर ध्यान नहीं दिया. भारत पर निरंतर आक्रमण करके महमूद ने प्रत्येक स्थान और प्रत्येक व्यक्ति से धन लूटा. प्रत्येक मंदिर को नष्ट किया, प्रत्येक मूर्ति को खंडित किया. लाखों व्यक्तियों को इस्लाम स्वीकारने के लिए बाध्य किया, मूर्तियों को खंडित किया, लाखों लोगों को गुलाम बनाया और हत्या की. लाखों स्त्रियों को सतीत्व को नष्ट किया और उनको गुलाम बनाकर गजनी ले गया. श्रेष्ठतम कलाकृतियों को नष्ट किया तथा हजारों नगरों और गांवों को जलाकर राख कर दिया. महमूद ने हिंदुओं के धन, सम्मान, वैभव, संस्कृति आदि को लूटा. वह एक भयंकर तूफान की भांति जहां भी गया, वह विनाश करता गया. जो कुछ अपने साथ ले जा सकता था उसे ले गया, जिसे नष्ट कर सकता था उसने नष्ट कर दिया. इस कारण भारत के लिए महमूद गजनवी एक धर्मांध और बर्बर विदेशी लूटेरे से अधिक कुछ नहीं था.

महमूद गजनवी के चरित्र का वर्णन और उसका मूल्यांकन

भारत पर महमूद के आक्रमण एक भीषण झंझावात के समान था. कभी-कभी यह कहा जाता है कि उसने भारत में विनाश तो किया परंतु कोई स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ा. भारतीय थोड़े समय पश्चात इन दुर्घटनाओं को भूल गए और पुनः अपने नगरों, मंदिरों एवं वैभव का निर्माण कर लिया. भारतीयों ने जिस प्रकार इस आक्रमण को भुला दिया, इसका दुष्परिणाम भी जल्द ही भुगतना पड़ा. यह कहना भूल है कि महमूद अपने आक्रमण भारत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. बल्कि सच्चाई ये है कि महमूद ने पंजाब, सिंध और मुल्तान को अपने राज्य में सम्मिलित करके अन्य मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए भारत का मार्ग खोल दिया था. मोहम्मद गोरी ने गजनी के क्षेत्रों को अपने अधिकार करने के आशय से ही भारत पर आक्रमण किए थे. महमूद ने भारत की संपत्ति को लूटकर भारत को सैन्य और आर्थिक दृष्टि से काफी दुर्बल बना दिया था. हिंदुओं में मुसलमानों के विरुद्ध युद्ध करने की मनोबल में कमी आ गई. महमूद किसी भी हिंदू राजा से पराजित नहीं हुआ था. इससे हिंदुओं में मुसलमान आक्रमणकारी शक्ति के प्रति भय उत्पन्न हुआ, जिसका प्रभाव भारत की भविष्य की राजनीति को प्रभावित किया. मुस्लिम आक्रमणकारियों की दृष्टि से महमूद गजनवी की सबसे बड़ी उपलब्धि भारत के हिंदू राज्य का विनाश करना था. इससे मुसलमान आक्रमणकारियों के लिए भारत विजय सरल हो गए थे.

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