महाराजा रणजीत सिंह की उपलब्धियों का वर्णन करें

महाराजा रणजीत सिंह की उपलब्धियां

महाराजा रणजीत सिंह की उपलब्धियों का वर्णन भारतीय इतिहास में बहुत ही महत्व रखता है. वह एक अत्यंत कुशल शासक थे. महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 2 नवंबर 1780 ई. को सुकुरचकिया मिस्ल के मुखिया महासिंह के घर में हुआ था. महासिंह बड़े वीर तथा प्रतापी थे. उन्होंने अपने छोटी से मिस्ल के आसपास के भूभागों पर विजय प्राप्त करके अपने मिस्ल कि विस्तार किया.  सुकुरचकिया मिस्ल को सिखों के मिस्लों प्रमुख स्थान प्राप्त हो गया था. रणजीत सिंह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे. लाड़-प्यार से पालने कारण उसकी पढ़ाई-लिखाई नहीं हो पाई और न उसे किसी प्रकार के पुस्तक की विद्या दी गई. फिर भी वह जन्म से प्रतिभावान तथा प्रबल इच्छाशक्ति के कारण छोटी उम्र में ही उसे सफलता प्राप्त होने लगी. उसने घुड़सवारी, युद्धकला तथा हथियार चलाने में बचपन में ही महारत हासिल कर ली. बारह वर्ष की आयु में ही उसके पिता का देहांत हो गया. अतः उसकी माता राजकौर उसे सिहासन पर बैठा दिया और स्वयं उसकी संरक्षिका बनकर राजकाज चलाने लगी. उस लूटमार के वातावरण में उनके लिए गद्दी को सुरक्षित रखना आसान काम नहीं था. ऐसी स्थिति में उसे सदाकौर की सहायता मिली जिसके कारण वह अपना गद्दी सुरक्षित रख पाया. सदाकौर कनहिया मिस्ल की एक चतुर और महत्वकांक्षी महिला थी.

महाराजा रणजीत सिंह की उपलब्धियों का वर्णन

18 वर्ष की छोटी सी उम्र से ही रणजीत सिंह ने अपने विजय अभियान आरंभ कर दिए थे. चूंकि उस समय उनकी सैन्य शक्ति अत्यंत मजबूत नहीं थी. उनका साम्राज्य भी छोटा था तथा संसाधन भी कम थे. युद्ध के हथियार बहुत निम्न कोटि के थे. परंतु उसमें धैर्य, साहस व पराक्रम की कमी नहीं थी. उनमें बुद्धिमत्ता और कूटनीतिज्ञता के गुण विद्यमान थे. इस कारण धीरे-धीरे उसे संपूर्ण पंजाब, कश्मीर पेशावर, आदि पर विजय प्राप्त करने में सफलता मिलती चली गई.

महाराजा रणजीत सिंह की उपलब्धियां

1. रणजीत सिंह और अफगान

पंजाब, अहमदशाह अब्दाली के साम्राज्य के एक भाग था. 1773 ई. में उसकी मृत्यु हो गई. उसकी मृत्यु के पश्चात मुल्तान, कश्मीर आदि के कुछ भागों को छोड़कर शेष पर सिख मिस्लों का अधिकार हो गया. 1798 ई. में अहमदशाह अब्दाली के पोता जमानशाह, जो कि एक अफगान अमीर था, वह पंजाब विजय के लिए आया. उसने शीघ्र ही लाहौर और पंजाब के एक विशाल भू-भाग पर अधिकार कर लिया. किंतु उसी समय उसकी अनुपस्थिति में काबुल में विद्रोह उठ खड़ा हुआ जिसके कारण वह काबुल वापस लौट गया. वापस लौटते समय जब वह झेलम नदी पार कर रहा था तब उसकी 12 तोपें नदी के दलदल में फंस गई. जमानशाह के पास तोप निकलने का समय नहीं था. अतः रणजीत सिंह ने उसे आश्वासन दिया वह तोपें  निकलवा कर काबुल भेज देगा. जमानशाह ने भी इसके बदले रणजीत सिंह को लाहौर प्रशासक बना देने का आश्वासन दिया. दोनों ने अपनी बातें पूरी की और रणजीत सिंह तोपे निकलवा कर काबुल पहुंचा दिया और जमानशाह ने भी उसे लाहौर का शासक स्वीकार कर लिया.
महाराजा रणजीत सिंह की उपलब्धियों का वर्णन
 

2. सिख मिस्लों पर विजय

अब रणजीत सिंह ने पंजाब की छोटी-छोटी मिस्लों पर विजय प्राप्त करने का कार्य आरंभ किया. रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति से उसके पड़ोसी मिस्ल लोगों काफी डर का महौल बन गया. अतः रणजीत सिंह के संभावित हमले का सामना करने के लिए वे भी अपनी शक्ति को बढ़ाने की कोशिश में जुट गए. 1800 ई. में रणजीत सिंह को भसीन का युद्ध करना पड़ा. इस युद्ध में रणजीत सिंह की सास ने उन्हें काफी मदद की. अतः सुकुरचकिया तथा कनहिया मिस्लों की सम्मिलित सेनाओं ने भंगी के गुलाब सिंह, गुजरात के साहिबसिंह, वजीराबाद के जोधसिंह, रामगड़िया के जासासिंह के संयुक्त मोर्चे पर आक्रमण किया और उनपर विजय प्राप्त की. गुजरात का साहिब सिंह भांगी भाग कर अकालगढ़ के हुलसिंह की मदद से पुनः अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाया. 1803 में रणजीत सिंह ने अकालगढ़ पर  हमला करके उसपर अधिकार कर लिया. 1809 ई. में उसने गुजरात पर भी अधिकार कर लिया. इसके बाद रणजीत सिंह ने दालेवालिया, करोरसिंधिया तथा फैजलपुरिया मिस्लों पर अपना अधिकार कर लिया तथा भांगी मिस्ल से अमृतसर भी छीन लिया.
 

3. मालवा अभियान

इन सफलताओं से अब रणजीत सिंह की महत्वकांक्षी काफी बढ़ गई थी. वह सतलज नदी के पार के इलाकों पर अपना अधिकार करने का मंसूबा बांधने लगा. वह सतलज के पूर्व की ओर स्थित पटियाला, नाभा, जिंद व थानेश्वर आदि अनेक छोटे-बड़े सिख राज्यों पर अधिकार करना चाहता था जो सतलज नदी के तट से यमुना नदी के किनारे फैले हुए थे. अपनी इस इच्छा  को पूरा करने के लिए उसने 1806 ई. में अपना पहला अभियान आरंभ किया. नाभा के राजा ने पटियाला के राजा के विरुद्ध रणजीत सिंह से सहायता मांगी तथा उसे आमंत्रित किया. रणजीत सिंह, नाभा के राजा का बुलावा पाकर तुरंत अपनी शक्तिशाली सेना लेकर सतलज नदी पार कर पटियाला जा पहुंचा. पटियाला का राजा रणजीत सिंह से पराजित हुआ नाभा, जिंद आदि के अन्य सिख राजाओं ने भी रणजीत सिंह की अधीनता स्वीकार करते उसे बहुमूल्य भेंट देकर प्रसन्न किया. इसके अगले ही वर्ष पटियाला के साहिब सिंह तथा उसकी पत्नी औसकौर के झगड़े के निपटारे हेतु रणजीत सिंह को पुनः आमंत्रित किया गया. इस बार रणजीत सिंह ने अंबाला, थानेश्वर, नारायणगढ़ और फिरोजपुर तक धावा मारा. फिरोजपुर के महत्वपूर्ण दुर्ग बदनी को जीतकर उसने अपनी सास सदाकौर को भेंट कर दिया तथा नारायणगढ़ अपने मित्र फतेहसिंह को प्रदान किया. इस प्रकार सतलज पार के अंबाला, मरेलकोट्टा, थानेश्वर, नारायणगढ़, नाभा तथा जिंद आदि राज्यों में रणजीत सिंह का आधिपत्य स्थापित हो गया.
महाराजा रणजीत सिंह की उपलब्धियों का वर्णन
 

4. अमृतसर संधि

रणजीत सिंह की महत्वकांक्षा कंपनी सरकार के लिए गंभीर समस्या पैदा कर रही थी. अतः उसकी प्रगति को अपने भारतीय साम्राज्य के लिए संकट समझकर उसे रोकने के लिए कटिबद्ध हो गए. लेकिन रणजीत सिंह से युद्ध करना भी खतरे से खाली ना था. अतः इस कठिन समस्या का समाधान के लिए कंपनी सरकार ने रणजीत सिंह से युद्ध न करने करना ही श्रेयस्कर समझा. लॉर्ड मिंटो ने सर चार्ल्स मैटकाफ को महाराजा रणजीत सिंह के पास संधि वार्ता के लिए भेजा. कुछ प्रारंभिक कठिनाइयों के बाद अंग्रेजों ने रणजीत सिंह के साथ संधि करने में सफलता पा ली. दोनों के मध्य 1809 ई. में अमृतसर की संधि हो गई.
इस संधि के तहत निम्नलिखित बातें तय हुई:-
1. सतलज नदी को रणजीत सिंह के राज्य का दक्षिणी सीमा मान लिया गया. 
2. सतलज के दक्षिण-पूर्व की ओर सिख राज्य अंग्रेजों के संगठन में माने गए. 
3. लुधियाना में अंग्रेजी सेना ए रखी गई.
4. अंग्रेजों ने सतलज के उत्तर की ओर हस्तक्षेप नहीं करने का वायदा किया. 
5. रणजीत सिंह ने सतलज के पूर्व के राज्यों में हस्तक्षेप नहीं करने का वादा किया. 
इस प्रकार इस संधि के द्वारा कंपनी के राज्य की सीमा सतलज नदी तक पहुंच गई. इससे रणजीत सिंह के लिए पूर्व की ओर अपना साम्राज्य फैलने का रास्ता बंद हो गया. वास्तव में अमृतसर की सीमा रणजीत सिंह की एक कूटनीतिक  पराजय थी.
 

5. मुल्तान अभियान

जब पूर्व की ओर रणजीत सिंह के साम्राज्य के विस्तार रुक गया, तो वह पश्चिम दिशा की ओर मुड़ा. 1802 ई. तथा 1807 उसने मुल्तान का अभियान किया था, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी. 1810 ई. में रणजीत सिंह ने दीवान मोहकमचंद को मुल्तान पर अधिकार करने के लिए भेजा. मुल्तान शहर पर तो उसने अधिकार कर लिया, लेकिन किले पर अधिकार ना कर सका. 1816-17 ई. रणजीत सिंह ने एक बार पुनः मुल्तान पर आक्रमण किया, लेकिन इस बार भी वह किले पर अधिकार न कर सका. 1818 ई. में एक बहुत बड़ी सेना खड़क सिंह तथा मिश्र दीवान के नेतृत्व में भेजी और मुल्तान के इस किले पर अधिकार कर लिया.
महाराजा रणजीत सिंह की उपलब्धियों का वर्णन

6. कश्मीर, अटक तथा डेराजाट पर अधिकार

कश्मीर में अतामुहम्मद खान खैल का शासन था. रणजीत सिंह ने दीवान चंद को कश्मीर पर आक्रमण करने भेजा. काबुल के शाह मोहम्मद के मंत्री फतेह खां ने पहले ही कश्मीर पर आक्रमण कर रखा था. अतः रणजीत सिंह तथा फतेह खां एक साथ मिलकर कश्मीर पर आक्रमण किया. दोनों ने जीतने के बाद पलुन्दर को आपस में बांट लेने की सहमति प्रकट की. लेकिन कश्मीर पर विजय प्राप्त करने के बाद अफगानों ने सिखों को जीत का एक-तिहाई भाग नहीं दिया. इस पर रणजीत सिंह ने उनसे कोहिनूर हीरा छीन लिया. 1813 ई. में पुनः रणजीत सिंह की सेना ने हाजरों के युद्ध में आफगानों को पराजित करके अंगारा तथा अटक पर अधिकार कर लिया. 1819 ई. में महाराजा रणजीत सिंह ने खड़क सिंह तथा मिसर दीवान चंद के नेतृत्व में फिर से एक विशाल सेना कश्मीर पर आक्रमण करने भेजी. सेना ने सुपेन के युद्ध में विजय प्राप्त की. इसके बाद कश्मीर का एक भाग सिख साम्राज्य के अधीन आ गया. इसके बाद 1821 ई. में डेराजाट तथा 1836 ई. में उसने लद्दाख पर विजय प्राप्त की.

7. पेशावर विजय

पेशावर को जीतने के लिए रणजीत सिंह ने विशाल सेना लेकर हमला किया . उन्हें पेशावर पर अधिकार करने के लिए अफगानों अनेक युद्ध लड़ने पड़े. उनके द्वारा लड़ी गई युद्धों में 1823 ई. का नौशीहारा का युद्ध प्रमुख है. इस युद्ध को जीतने के बाद पेशावर पर सिखों का अधिकार हो गया. इस प्रकार रणजीत सिंह ने उत्तरी-पश्चिमी भारत में एक विशाल सिख साम्राज्य की स्थापना कर ली. अफगानिस्तान के अंदर फैली अराजकता का रणजीत सिंह ने पूरा लाभ उठाया था. इस प्रकार अत्यंत अल्प अवधि में रणजीत सिंह ने विशाल साम्राज्य की स्थापना कर ली. तत्कालीन पंजाब की राजनीति दशा को देखते हुए रणजीत सिंह की विजयों का महत्व और बढ़ जाता है. अतः पंजाब के आपसी संघर्ष के वातावरण में एकता स्थापित करना रणजीत सिंह का महत्वपूर्ण कार्य था.

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6 thoughts on “महाराजा रणजीत सिंह की उपलब्धियों का वर्णन करें”

  1. बहुत ही शानदार जानकारी, इतिहास से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए, https.historyclasssis.in पर जाएं

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  2. P) (1) आधुनिक भारतीय इतिहास के स्त्रोतो को बताइये।

    अथवा

    भारत में यूरोपिय जातियो का प्रवेश कैसे हुआ।

    (प्र) (२) वारेन हेस्टिंग्ज के प्रशासनिक सुधारों को बताइये। अर्थवा लार्ड कार्न वालिस के। मे सुधारों को बताइये।

    प्रशासन (H) (3) 1857 ई. के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के कारणों को बताई ये । अव्यवा

    स्वतन्त्रता सगामि में रानी लक्ष्मी बाई के योगदान को बताइये।

    शासकीय कला एवं विज्ञान महा विद्यालय रतलाम इतिहास विभाग

    कक्षा – B-A II YAR (मेजर) सत्र २०२३-२५८८८ प्रश्न पत्र-II-हितीर (माइबाट इलट प्रश्नो के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ” उत्तर ४०० से 1000 शब्दो में दीजिये।

    प्रश्न① पानी पल के तृतिय युद्ध के बारे में बताइ‌ये।

    प्रश्न (2) रणजीत सिंह कि उपलब्धियों को बताइये ।

    प्रश्न (3) सामाजिक धार्मिक आन्दोलन में राजा राममोहन राय कि भूमिका को बताइये

    असाईन मेन्ट नोट-किन्ही दो प्रश्नों के उत्तर 800 से 1000 शब्दो में दीजिये।

    प्रश्न ① प्लासी एवं बक्सर के युद्ध का कारण एवं घटनाओ के बारे में बताइये।

    प्रश्न २ लॉर्ड वेलेजली कि भारत के राज्यों के साथ संधियों का विवरण दीजिये ।

    प्रश्न 3 भारतीय पुन जागरण के बारे में बताइये।

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    • सर इनमें से प्रश्नों के उत्तर दिए इसी वेबसाइट में मिल जायेंगे… बाकी प्रश्नों के उत्तर भी जल्द ही आपको उपलब्ध कर दिया जायेगा.
      बहुत बहुत धन्यवाद।

      Reply
  3. कर विवर्तन क्या है? कर विवर्तन प्रक्रिया को मांग की विभिन्न तरीकों का वर्णन कीजिए।

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  4. लोक ऋण क्या है? ऋण भुगतान के विभिन्न तरीकों का वर्णन कीजिए।

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