मुगलकालीन इतिहास के साहित्यिक स्रोत (Literary sources of Mughal History)
मुगलकालीन इतिहास के साहित्यिक स्रोत आज हमारे बीच में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. मुगलकालीन इतिहास को बहुत से इतिहासकारों ने अपने लेखन के माध्यम से देने की कोशिश की थी. मुगलकाल के बारे में जानकारी देने वाले लेखक ज्यादातर मुसलमान थे. ये इतिहासकार दावा करते हैं कि उनके इतिहास लेखन स्वतंत्र तथा निष्पक्ष हैं, लेकिन उनके लेखनों का गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि उनमें कहीं न कहीं पक्षपाती भी है. इन लेखकों ने इतिहास लिखने के लिए राजा, राजा के शासनकाल, दरबार, राजा के कार्य, युद्ध की घटनाओं का सहारा लेते हैं.
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मुगलकाल के इतिहासकारों के द्वारा लिखे गए साहित्यिक स्रोत
1. तुजुक-ए-बाबरी
यह बाबर की आत्मकथा है. इसे तुर्की भाषा में लिखी गई थे. बाद में इस का फारसी अनुवाद अब्दुर्रहीम खानखाना ने किया था. इसके बाद अंग्रेजी में इसका पहला अनुवाद लीडन और ऐरस्किन ने किया था. उसके बाद 1905 ई में इसका दूसरा अंग्रेजी अनुवाद मिसेज ए. एस. बेवरिज ने किया था. इनका अनुवाद सबसे अधिक प्रमाणिक अनुवाद मानी जाती है. इसके अनुवाद के बाद ही इनकी श्रेष्ठता का पता चल पाया. इस अनुवाद को पढ़ने के बाद ही पता चला कि बाबर की आत्मकथा, तैमूर तथा जहांगीर की आत्मकथा से भी ज्यादा श्रेष्ठ है. इसका मुख्य कारण ये है कि बाबर की आत्मकथा का व्याख्या अध्यात्मिक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि राजनीतिक, सैनिक तथा प्रशासनिक घटनाओं के आधार पर रचना की गई. उसने अपनी आत्मकथा में घटनाओं की तिथिक्रम का भूगोल के साथ सुन्दर तरीके से चित्रण किया है जो कि बाबर से पहले कोई भी ऐसा नहीं किया था. बाबरी ने कभी भी दावा नहीं किया कि वह इतिहासकार है. उसके बाद के समकालीन इतिहासकारों, ब्रिटिश इतिहासकारों, भारतीय तथा विदेशी इतिहासकारों के द्वारा बाबर की आत्मकथा तुजुक ए बाबरी का अध्ययन करने के बाद यह स्वीकार किया है कि बाबर की आत्मकथा वाकई उस युग की सबसे श्रेष्ठ ग्रंथ है. स्टैनली लेनपूल ने अपनी पुस्तक ‘बाबर’ में लिखा है कि यदि किसी ऐतिहासिक दस्तावेज को बिना जांच के प्रामाणिक ऐतिहासिक स्रोत के रूप में स्वीकार किया जा सकता है तो वह केवल बाबरनामा है.
2. अकबरनामा
यह अकबर की आत्मकथा है. इसकी रचना अबुल फजल ने की थी. यह फारसी भाषा में है. इसके मुख्य रूप से तीन भाग हैं. पहले भाग में आदम के समय से लेकर अकबर के शासनकाल के 17 वें वर्ष तक इतिहास है. इसके दूसरे भाग में अकबर के शासनकाल के 18वें वर्ष से लेकर 42 वें वर्ष तक का इतिहास है. इसका तीसरा भाग आईन-ए-अकबरी है. इसमें अकबर के शासनकाल के 42 वें वर्ष तक का इतिहास है. अकबरनामा का विभाजन शासनकाल के आधार पर किया गया और प्रत्येक शासनकाल को स्वतंत्र इकाई माना गया. अकबरनामा में धार्मिक कट्टरता नहीं है. अबुल फजल ने इसे धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण से इसकी रचना की थी, लेकिन उसमें कुछ दोष भी है. जैसे कि कुछ तथ्यों को अपने हिसाब से बदल देना अथवा उसे बढ़ा चढ़ा कर वर्णन कर देना, खासकर उन स्थानों पर जहां युद्धों और विद्रोह का ज़िक्र किया गया है.
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3. मकतूबात-ए-अल्लामी
यह ग्रंथ उन पत्रों का एक संग्रह है. इसके तीन भाग हैं. पहले भाग में उन पत्रों का संग्रह है जिसे अबुल फजल ने अकबर के द्वारा तैयार करके सामंतों और अन्य लोगों को भेजे गए थे. दूसरे भाग में उन पत्रों का संग्रह है जिसे अबुल फजल ने अकबर तथा अन्य सामंतों को लिखे थे. इसके तीसरे भाग में अबुल फजल के द्वारा विभिन्न विषयों पर लिखे गए पत्रों का संग्रह है.
4. तबकात-ए-अकबरी
इस ग्रंथ की रचना निजामुद्दीन अहमद ने की थी. इसे दो भागों में बांटा गया है. प्रथम भाग में 9 अध्याय हैं. हर अध्याय में किसी खास क्षेत्र के इतिहास का वर्णन किया गया है. इन नौ अध्यायों में मुख्य रूप से नौ अलग-अलग क्षेत्रों का वर्णन किया गया है. इन क्षेत्रों में दिल्ली, गुजरात मालवा दक्कन, बिहार, जौनपुर, सिंध, मुल्तान और कश्मीर है. इस पुस्तक के आरंभ में प्रस्तावना है जिसमें 1187 ई. तक के गजनवियों का इतिहास है. इस ग्रंथ के अंत में उपसंहार भी है जिसमें साम्राज्य की लंबाई और चौड़ाई तथा विभिन्न शहरों तथा प्रमुख नगरों का उल्लेख है. लेखक के द्वारा इतिहास लेखन में तिथि क्रम का विशेष ध्यान दिया गया है.
5. हुमायुनामा
इस ग्रंथ की रचना हुमायूं की बहन गुलबदन बेगम ने की थी. उसने इस ग्रंथ को दो भागों में विभक्त किया है. प्रथम भाग में अपने पिता बाबर से संबंधित घटनाओं का वर्णन किया है तो दूसरे भाग में अपने भाई हुमायूं से संबंधित घटनाओं का वर्णन है. इस ग्रंथ की विशेषता यह है कि इसमें राजनीतिक घटनाओं के साथ-साथ सामाजिक घटनाओं का भी वर्णन मिलता है. इस ग्रंथ में राजनीतिक लड़ाईयों वर्णन बहुत ही कम मिलता है, लेकिन मुगल कालीन हरम व्यवस्था, शादी विवाह आदि का विस्तृत विवरण दिया गया है.
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6. तारीख-ए-रसीदी
इस ग्रंथ की रचना बाबर के मौसेरे भाई मिर्जा हैदर दोगलत ने की थी. लेखक ने इस पुस्तक को काशगर के अब्दुल रशीद खां बिन अबुल फतह सुल्तान को समर्पित की है. इस पुस्तक के दो भाग हैं. इस ग्रंथ से मध्य एशिया के इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती है. इनमें बाबर के पूर्वजों पर विशेष प्रकाश डाला गया है. लेखक ने इस पुस्तक में बाबर की प्रशंसा की है. मिर्जा हैदर ने इस पुस्तक में हुमायूं से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रकाश में लाया है. उसने कन्नौज की लड़ाई का जिस प्रकार का वर्णन किया है वैसा वर्णन कहीं और मिलना कठिन है क्योंकि उसने स्वयं इस लड़ाई में हुमायूं की तरफ से हिस्सा लिया था. इलियट ने लेखक का अत्यधिक प्रशंसा करते हुए कहा है कि अपने सुनहरे दिनों में भी वह बदकिस्मत हुमायूं को कभी नहीं भूला और हमेशा हिंदुस्तान जीतने के लिए प्रोत्साहित किया. लेखक ने कामरान की निंदा की तथा उसे विश्वासघाती बताया.
7. तुजुक-ए-जहांगीरी
तुजुक ए जहांगीरी, जहांगीर की आत्मकथा है. यह फारसी भाषा में लिखी गई है. इस ग्रंथ में जहांगीर के शासन काल की राजनीतिक तथा संस्कृतिक घटनाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती है. इस ग्रंथ के तीन भाग हैं: प्रथम भाग में बाबर तथा हुमायूं से संबंधित घटनाओं का उल्लेख मिलता है. दूसरे भाग में अकबर की जानकारी मिलती है तथा तीसरे भाग में जहांगीर के शासनकाल से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश पड़ता है. इस ग्रंथ में बहुत से ऐसे नये तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है जिसका विवरण अकबरनामा में नहीं किया गया है. ये भी संभावना व्यक्त की जाती है कि इस ग्रंथ में अबुल फजल ने तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया होगा. अबुल फजल ने खुलकर जहांगीर के गुण-दोषों पर प्रकाश डाला है. लेकिन साथ में बहुत सी बातों को छुपा लिया है जिसको वह प्रकट नहीं करना चाहता था.
8. नुस्खा-ए-दिलकुशा
यह ग्रंथ भीमसेन सक्सेना कायस्थ के द्वारा लिखी गई है. इस पुस्तक से तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक घटनाओं पर व्यापक प्रकाश पड़ता है. इस पुस्तक में लेखक ने मुगल सेना की कमजोरी, अमीरों में व्याप्त भ्रष्टाचार का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है. भीमसेन सक्सेना ने दक्षिण के युद्धों का निष्पक्ष वर्णन किया है और उन्होंने इस बात का जिक्र किया है कि मुगल सेना ने किसानों का फसलों को नष्ट कर दिया जिसे बहुत से किसानों ने खेती छोड़कर मराठों के साथ मिल गए.
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9. खुलासत-उत-तवारीख
इस पुस्तक को सुजान राय भंडारी ने लिखा है. इसमें शाहजहां से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाओं का विस्तार पूर्वक विवरण दिया गया है. इसके साथ ही औरंगजेब कालीन आर्थिक स्थिति तथा राज्य की भौगोलिक सीमाओं के बारे में भी वर्णन किया गया है. इस पुस्तक में लेखक ने हिंदुस्तान की उत्तर-पश्चिम सीमाओं की सामरिक महत्व के बारे में बखूबी समझाया है. उसने काबुल और कंधार को हिंदुस्तान का दो द्वार कहा है.
10. मुन्तखब-उल-लुबाब
इस ग्रंथ को खाफी खां ने लिखा है, जिसका असली नाम मुहम्मद हाशिम था. ये शिया समुदाय से संबंधित रखता था. इस ग्रंथ में 1519 ई. से लेकर 1733 ई. तक के मुगलों के शासन काल का इतिहास लिखा गया है. इस ग्रंथ में बाबर से लेकर मोहम्मद शाह के शासनकाल के 14 वें वर्ष तक के इतिहास का जिक्र है.
11. तजकिरातुल वाकयात
इस ग्रंथ की रचना अकबर के आदेश पर लिखी गई थी. इसे हुमायूँ के पुराने सेवक जौहर आफताबची ने लिखा है. जौहर आफताबची हुमायूँ का विश्वासपात्र सेवक था तथा वह हुमायूँ के अच्छे और बुरे दिनों में हमेशा उसके साथ था. उसने इस पुस्तक के माध्यम से हुमायूँ के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियां दी है. लेखक ने इस पुस्तक में हुमायूँ तथा ईरान के शाह तहमास्प के बीच के मतभेदों का जिक्र किया है. इसके साथ ही उसने चौसा तथा कन्नौज में हुए हुमायूँ की पराजय, उनके ईरान पलायन तथा हिंदुस्तान की पुनर्विजय का भी वर्णन किया है. लेखक ने इस पुस्तक में हुमायूँ की अत्यधिक प्रंशसा की है तथा उसके बुराईयों को छुपा लिया है.
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12. मुन्तखब-उत-तवारीख
इस पुस्तक को अब्दुल कादरी बदायूनी ने लिखा है. इस पुस्तक में गजनवी वंश से लेकर अकबर के 40 वें वर्ष तक के इतिहास का वर्णन है. इस ग्रंथ के तीन भाग हैं: प्रथम भाग में सुबुक्तगीन से लेकर हुमायूं के स्वर्गवास की घटनाओं का जिक्र किया गया है. द्वितीय भाग में अकबर से संबंधित घटनाओं का वर्णन किया गया है तथा तृतीय भाग में आलिमों, सूफियों तथा विद्वानों का वर्णन किया गया है. इस पुस्तक में लेखक ने अकबर तथा अबुल फजल की घोर निंदा की है तथा घटनाओं को इस्लाम रूपी चश्मे से देखने का प्रयास किया है. अपने इस पुस्तक में बदायूनी ने व्यंगात्मक शैली का बहुत अच्छी तरह प्रयोग किया है. अपनी इसी शैली में बदायूनी ने मोहम्मद तुगलक की मृत्यु पर लिखा है कि सुल्तान को अपनी प्रजा से एवं प्रजा को उनके सुल्तान से मुक्ति मिल गई. उसने अपने इस पुस्तक पर कई महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डाला है जिसकी अबू फजल ने अवहेलना कर दी थी. उदाहरण के लिए अबुल फजल ने मजहरनामा का घोषणा का कोई उल्लेख नहीं किया है. वही बदायूनी ने इस घोषणा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है. इस पुस्तक का अध्ययन करने पर यह प्रतीत होता है कि बदायूनी ने अकबर के शासन काल के नकारात्मक पक्षों को ही प्रस्तुत करने का प्रयास किया है क्योंकि अबुल फजल ने अपनी किताब में सिर्फ अकबर के शासनकाल के सकारात्मक पक्षों को प्रस्तुत किया है. इस प्रकार बदायूनी तथा अबुल फजल दोनों के पुस्तकों को मिलने पर अकबर के शासनकाल के महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती है.
13. तारीख-ए-शाहजहानी
इस ग्रंथ के रचयिता सादिक खां है. वह शाही सेवा में नियुक्त एक बड़ा मनसबदार था. शाहजहां के अंतिम वर्षों का जो इतिहास मोहम्मद सालेह ने लिखा है वह संक्षिप्त है, किंतु सादिक खां ने उनके अंतिम वर्षों की घटनाओं पर वृहद रूप से प्रकाश डाला है. इस संदर्भ में उल्लेखनीय तथ्य है कि जब औरंगजेब ने आगरा पर कब्जा कर लिया तो सादिक खां ने शाहजहां के दूत के रूप में भी अपनी भूमिका निभाई थी. लेखक ने शाहजहां के शासन की समाप्ति के साथ ही अपने इतिहास ग्रंथ को भी समाप्त कर दिया तथा शाहजहां की 8 वर्षों की बंदी जीवन पर कोई प्रकाश नहीं डाला है. लेखक का मानना था कि इन वर्षों पर प्रकाश डालना अपने महान सम्राट के प्रति नमकहरामी तथा विश्वासघात होगा.
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14. आलमगीर नामा
यह एक सरकारी इतिहास का ग्रंथ है. इसकी रचना काजेम शीराजी ने की है. इस पुस्तक में औरंगजेब के प्रथम 10 वर्षों का इतिहास लिखा गया है. लेखक ने इस पुस्तक में औरंगजेब की अत्यधिक प्रशंसा की है तथा शाहजहां की कटु आलोचना की है. काजेज शीराजी ने औरंगजेब के विद्रोही भाइयों के लिए बेशुकाह,नाशुजा तथा तजीम जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है, लेकिन दूसरी तरफ अपने साम्राज्य की कीमत बढ़ने, पैदावार कम होने का भी उल्लेख किया है, जिसे औरंगजेब को बिल्कुल पसंद नहीं आई. इस कारण उसने अपने राज्य में इतिहास लेखन पर प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि औरंगजेब के शासनकाल में ही सबसे ज्यादा इतिहास ग्रंथों की रचना हुई थी.
15. फुतुहात-ए-आलमगीरी
इस पुस्तक की रचना ईश्वरदास नागर ने की थी. इसमें औरंगजेब के शासनकाल के 34 वें वर्ष तक का वर्णन मिलता है. इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें औरंगजेब के राजपूतों के साथ संबंधों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया है. इस पुस्तक के माध्यम से हमें पता चलता है कि 1691-92 ई. तक औरंगजेब की नीतियां विफल हो चुकी थी तथा उसके शक्तिशाली अमीरों के मन में स्वतंत्र सल्तनत स्थापित करने की इच्छा जाग उठी थी.![मुगलकालीन इतिहास के साहित्यिक स्रोत](https://historyworld.in/wp-content/uploads/2022/08/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8-%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A4.jpg)
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इनके अलावा और भी बहुत से मुगलकालीन साहित्यिक स्रोत मौजूद हैं जो तत्कालीन भारतीय इतिहास पर व्यापक रूप से प्रकाश डालते हैं.
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