मुगलकालीन शासन व्यवस्था का वर्णन कीजिए

मुगलकालीन शासन व्यवस्था

मुगलकालीन शासन व्यवस्था मुगलकाल की एक महत्वपूर्ण विशेषता था. कुशल शासन व्यवस्था के कारण ही मुग़ल सम्राट विशाल मुग़ल साम्राज्य को कुशलता पूर्वक चला सके. जे. एन. सरकार के अनुसार मुगलकालीन शासन व्यवस्था भारतीय और अभारतीय तत्वों का मिश्रण था. अर्थात यह भारतीय वातावरण में ईरानी अरबी शासन पद्धति थी. 

मुगलकालीन शासन व्यवस्था
मुगलकालीन शासन व्यवस्था का वर्गीकरण

1. केंद्रीय शासन

मुगल शासनकाल केंद्रीय शासन व्यवस्था के अंतर्गत राजा और मंत्रीपरिषद होते थे. मुगल साम्राज्य का सर्वेसर्वा सम्राट (राजा) होता था. वह केंद्रीय शासन का प्रधान होने के साथ-साथ संपूर्ण मुगल साम्राज्य के प्रधान था. उसके हाथ में मुगल शासन व्यवस्था के संपूर्ण शक्ति थी. वह साम्राज्य का प्रधान होने के साथ-साथ सेना का प्रधान सेनापति, मुख्य न्यायाधीश, धार्मिक क्षेत्र का प्रधान था. केंद्रीय शासन में राजा की मदद के लिए मंत्रीपरिषद की स्थापना की गई थी क्योंकि विशाल मुगल साम्राज्य के शासन व्यवस्था को संभाल पाना अकेले सम्राट के लिए संभव नहीं था. मंत्रिपरिषद के सदस्यों की नियुक्ति सम्राट के द्वारा होती थी. मंत्रिपरिषद राज्य की नीति निर्धारण नहीं करती थी, वरन वे राजा को सलाह देती थी. राजा इनकी सलाह मानने को बाध्य नहीं था. मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या विभिन्न सम्राटों से शासनकाल में घटती बढ़ती रही. मंत्रिपरिषद के अंतर्गत प्रधानमंत्री, दीवान, मीरबख्शी, खान-ए-सामां, सद्र-ए-सुदूर, मुहातसिब, आतिश, काजी-उल-कुजात, तथा दरोगा-ए-डाक-चौकी जैसे पद होते थे.

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2. प्रांतीय प्रशासन

सम्राट अकबर से पहले मुगल साम्राज्य में प्रांतीय शासन व्यवस्था नहीं थी. सम्राट अकबर ने विशाल मुगल साम्राज्य की स्थापना की. इस मुग़ल साम्राज्य को केवल केंद्र से शासन करना आसान नहीं था. अत: सम्राट अकबर ने अपने विशाल मुगल साम्राज्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए 18 सूबों में विभक्त कर दिया और उनपर प्रांतीय शासन व्यवस्था की स्थापना की. प्रांतीय शासन व्यवस्था, केंद्रीय प्रशासन का ही प्रतिरूप था. प्रांतीय शासन व्यवस्था का प्रधान सूबेदार या सिपहसलार होता था. वह सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता था. इस पद में मुख्य रूप से राजवंश अथवा उच्च घराने के व्यक्तियों की नियुक्ति की जाती थी. वह राजा की इच्छा के अनुसार कार्य करता था. वह प्रान्त का प्रधान न्यायाधीश भी होता था. वह सारी अपीलें सुनता था लेकिन राजा की आज्ञा के बिना किसी को प्राणदंड नहीं दे सकता था और न धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप का सकता था. वह प्रान्त की सेना का सेनापति भी होता था, लेकिन राजा की आज्ञा के बिना न किसी से युद्ध कर सकता था और न किसी से संधि कर सकता था. सूबेदार के बाद दीवान, सद्र, बख्शी, पोतदार, फौजदार, कोतवाल, खबर नवीस तथा मीर बहर जैसे पद होते थे.

मुगलकालीन शासन व्यवस्था

3. स्थानीय शासन व्यवस्था

मुगलकालीन शासन व्यवस्था में केंद्र शासन और प्रशासन के नीचे प्रांतीय शासन व्यवस्था होती थी. स्थानीय शासन व्यवस्था मुख्य रूप से तीन भागों में विभक्त था- सरकार का प्रशासन, परगना का प्रशासन और ग्राम प्रशासन. सरकार प्रशासन का सबसे बड़ा अधिकारी फौजदार होता था. उसका मुख्य कार्य सरकार में शांति एवं सुव्यवस्था बनाए रखना होता था. इसके अलावा सरकार का प्रशासन का कार्य भूमि कर वसूल करना, भ्रष्ट कृषकों को दंड देना तथा एकत्र की गई राशि को शाही खजाने में जमा करना होता था. परगना का प्रशासन का सबसे बड़ा अधिकारी शिकदार कहलाता था. इसका कार्य भी परगने में शांति स्थापित करना होता था. इसके अलावा फौजदारी मुकदमों का निर्णय कर न्यायाधीश का कार्य करता था. भूमि कर का निर्धारण और इसका वसूली भी परगना का प्रशासन करता था. स्थानीय शासन व्यवस्था की सबसे छोटी इकाई ग्राम प्रशासन था. इसका प्रधान मुकद्दम कहलाता था. इनका मुख्य कार्य गांव में शांति व्यवस्था बनाए रखना और सरकारी कर्मचारियों की मदद करना होता था.

मुगलकालीन शासन व्यवस्था

4. सैन्य व्यवस्था

मुगलकालीन शासन व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण विभाग सैन्य व्यवस्था थी. सैन्य बल पर ही मुग़ल साम्राज्य की शासन व्यवस्था टिकी हुई थी. अकबर पहला मुगल सम्राट था जिसने मुगल सैन्य व्यवस्था पर विशेष ध्यान देना शुरू किया. अकबर से पहले मुग़ल सेना के अफसरों को नकद वेतन के स्थान पर जागीरें दी जाती थी. अकबर ने जागीर प्रथा का अंत करके अफसरों को नकद वेतन देना शुरू किया. मुग़ल सेना में घोड़ों को दाग देने की प्रथा नहीं थी. अकबर ने घोड़ों को दाग देने की प्रथा की शुरुआत की ताकि उसकी सेना में झूठे घोड़ों को शामिल करने को सम्भावना न रहे. अकबर ने अपनी सेना का गठन मनसबदारी प्रथा के आधार पर किया था. अकबर की सेना को मुख्य रूप से पांच भागों में विभाजित की गई थी- अधीन राजाओं की सेना, मनसबदारों की सेना, स्थायी सेना, दाखिली सेना तथा अहदी सेना. इन प्रत्येक सेनाओं के भी विभिन्न भाग होते थे- पैदल सेना, अश्व सेना, हस्ति सेना, तोपखाना, जल सेना तथा शाही सेना. सेना के हर अंगों की अपनी अलग-अलग कार्य और जिम्मेदारी होती थी.

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5. न्याय व्यवस्था

न्याय व्यवस्था, मुगलकालीन शासन व्यवस्था का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग थी सल्तनतकालीन न्याय व्यवस्था मुख्य रूप से इस्लामिक नियमों पर आधारित थी. लेकिन मुगलकाल में अकबर ने इस न्याय व्यवस्था में सुधार करके इस्लामी कानून के क्षेत्र को सीमित कर दिया. इससे देश के प्रचलित कानून को बढ़ावा दिया और देश में मुकदमों की अधिक सुनवाई होने लगी. अकबर ने हिंदू प्रजा के लिए हिन्दू न्यायाधीशों की नियुक्ति की. मुगल काल की अदालतों को चार भागों में बांटा गया-बादशाह की अदालत, प्रधान काजी की अदालत, प्रांतीय अदालत और कस्बों की अदालत. अपराध और विधान को भी तीन भागों में बांटा गया- ईश्वरीय अपराध, राज्य अपराध तथा व्यक्तिगत अपराध. मुगल काल में चार प्रकार के दंड होते थे- हद, ताजिर, क़िसास (बदला) तथा तशहीर (सार्वजानिक निंदा). हद का दंड व्यभिचार, शराब पीने, चोरी, डकैती, हत्या, धर्म विरोधी कार्यो के लिए दिया जाता था. क़िसास (बदला) के अंतर्गत अपराधी को न्यायालय के द्वार तक घसीटना, देश निष्कासन, कान खींचना कोड़े लगवाना आदि शामिल था. क़िसास (बदला) दंड, हत्या, गहरी चोट के लिए दिया जाता था. इसमें पीड़ित व्यक्ति अथवा उसके परिजन अपराधी से क्षतिपूर्ति की मांग करता था. तशहीर (सार्वजानिक निंदा) कानून मुख्य रूप से हिंदुओं के लिए था. इस दंड के अंतर्गत अपराधी को सिर मुंडवाना, गधे पर उल्टा मुंह करके बैठाना, मुंह पर कालिख पोतना और जूतों की माला पहनाकर घुमाना आदि दंड शामिल है.

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