मुहम्मद बिन तुगलक
मुहम्मद बिन तुगलक अत्यंत ही महत्वकांक्षी व्यक्ति था. वह अपने पिता की हत्या करवा कर 1325 ई. को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा और वह 26 वर्षों तक दिल्ली पर शासन करता रहा. वह एक दार्शनिक, अध्यात्म विद्या में निपुण, प्रखर वक्ता तथा गणित और विज्ञान में रुचि रखने वाला था. लेकिन उसकी विफलताओं के कारण इस्लामिक जगत में सबसे अधिक मूर्ख विद्वान की उपाधि भी मिली. एक शासक के रूप में उनकी उपलब्धियाँ हासिल की.
मुहम्मद बिन तुगलक की उपलब्धियाँ
1. मंगोल नीति
1328-29 ई. में मंगोलों ने पंजाब और उत्तरी सीमाओं पर लगातार पर आक्रमण किए. इसके बाद उन्होंने मुल्तान और लाहौर से लेकर दिल्ली तक के प्रदेशों को रौंद डाला. सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक इनका सामना करने में नाकाम रहा और उसने मंगोलों को बहुत सा धन देकर वापस लौटा दिया. उस समय मंगोल तो वापस लौट गए लेकिन इस वजह से मंगोलों ने उसे कायर समझा और भविष्य में फिर से आक्रमण करने को प्रेरित हुए.
2. खुरासान विजय योजना
मुहम्मद बिन तुगलक महत्वकांक्षी व्यक्ति था. अतः वह भी देश से बाहर आक्रमण करके अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था. इस वक्त उसके दरबार में कुछ खुरासानी अमीर भी रहते थे. उन्होंने तुगलक को खुरासान पर आक्रमण करने के लिए उकसाया. इसी योजना के तहत उसने खुरासान पर आक्रमण करने की योजना बनाई और उसने 3,70,000 सैनिकों वाली सेना का गठन किया. इस सेना का गठन करने के लिए उसने भारी मात्रा में धन खर्च किया. लेकिन इसी बीच उसे पता चला कि भारत और खुरासान के बीच बर्फ से ढके दुर्गम रास्ते को और वहां की जनता से लोहा लेकर खुरासान पर विजय प्राप्त करना आसान नहीं है. इसके अलावा वहां की राजनीति भी बदल चुकी थी. वहां का शासक खुद को सुदृढ़ बना चुका था. अतः उसने खुरासान पर आक्रमण करने की योजना को रद्द कर दिया और अपनी विशाल सेना को भंग कर दिया. उसकी इस फैसले से उसकी जनता में बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ा.
3. नगरकोट की विजय
खुरासान पर आक्रमण की योजना को भले ही त्याग दिया था पर दूसरे प्रदेशों पर आक्रमण करने का विचार अभी भी उसके मन में था. अतः उसने नगरकोट पर आक्रमण करने की योजना बनाई. यह एकमात्र ऐसा किला था जो अलाउद्दीन खिलजी के समय से ही अजेय बना रहा. 1337 ई. में उसने नगरकोट पर आक्रमण किया और भीषण संघर्ष के बाद आखिर उसे जीत हासिल हुई. वहां के राजा ने तुगलक की अधीनता स्वीकार कर ली. इसके बाद सुल्तान उसे किला वापस कर दिया और वह दिल्ली वापस लौट गया.
4. कराजल पर आक्रमण
नगरकोट के विजय से उत्साहित होकर उसने कुमांऊ-गढ़वाल के बीच स्थित पहाड़ियों पर स्थित कराजल पर आक्रमण करने की योजना बनाई. उसने अपने भतीजे खुसरोमलिक को 10,000 सैनिकों के साथ कराजल पर आक्रमण करने भेजा. शुरू में उसे काफी सफलता मिली और कई स्थानों पर कब्जा कर लिया. लेकिन इसी बीच बरसात की मौसम की शुरुआत हुई. तुगलक ने खुसरोमलिक को आगे न बढ़ने को कहा. लेकिन सफलता के नशे में चूर खुसरोमलिक आगे बढ़ता चला गया. रास्ते में में वहां के पहाड़ी निवासियों ने उनपर विशाल प्रस्तर खंड फेंके जिससे तुगलक के सैनिकों में भगदड़ मच गई. इसके अलावा बारिश के कारण उसके सैनिक बीमार पड़ने लगे. अंत में दोनों पक्षों में संधि हो गई और वहां के राजा ने तुगलक को युद्ध हर्जाना देना स्वीकार किया. बरनी के अनुसार इस युद्ध में तुगलक के केवल दस सैनिक बचे थे. वहीं इब्नबतूता का कहना है केवल तीन सैनिक वापस लौटे थे. इतिहासकार डाॅ आर सी मजूमदार के अनुसार इस अभियान के बाद तुगलक की सैन्य शक्ति को इतना धक्का लगा कि इतनी हिम्मत नहीं रही कि दुबारा फिर से इतनी बड़ी सेना का गठन कर सके.
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