मोहनजोदड़ो की नगर योजना एवं वास्तुकला का वर्णन कीजिए

हड़प्पा और मोहनजोदड़ो का एक परिचय

सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों का अध्ययन करने पर हमें पता चलता है कि इस सभ्यता के लोग नगर निर्माण योजना (Town Planning) में पूरी तरह निपूर्ण थे. यहाँ हर प्रकार की निर्माण बहुत अच्छी रीति से की गई थी. सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों के अध्ययन से हमें पता चलता है कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों नगरों के निर्माण का कार्य एक समान योजना पर किया गया था. इनकी नगर निर्माण योजना आज के आधुनिक विज्ञान के लिए भी शोध का विषय है क्योंकि इनकी बनावट और ढांचा देख कर आज के इंजीनियर भी हैरान है. इनके सामने आज की आधुनिक शहर भी फीके पड़ जाते हैं. 

मोहनजोदड़ो की नगर योजना एवं वास्तुकला

हड़प्पा सभ्यता की नगर निर्माण योजना (Town Planning of Harappan Civilization)

नगर निर्माण योजना हड़प्पा सभ्यता की एक बहुत ही महत्वपूर्ण विशेषता थी. उन्होंने अपने नगरों को बहुत ही सुनियोजित तरीकों से निर्माण किया था. आज भी इनकी खंडहरों  देखने पर इनकी भव्यता और कारीगरी का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. मैके का कहना है कि अवशेषों को देखकर ऐसा लगता है कि ये इंग्लैंड के एक प्रांत लंका शायर के किसी आधुनिक शहर का अवशेष है. आज भी लोग इन नगरों की अद्भुत कारीगरी और सफाई प्रबंध को देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते. सिंधु घाटी सभ्यता के नगर नदियों के मुहाने पर बसा गए थे. हड़प्पा, रावी नदी तथा मोहनजोदड़ो को सिंधू नदी के किनारे बसाया गया था. नदियों से नगर की सुरक्षा करने के लिए बांधों का भी निर्माण कराया कराया गया था. नगरों के अवशेषों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ये कुशल इंजीनियरों के द्वारा योजनाबद्ध तरीके से बनाए गए थे. सड़कें प्रमुखतया कच्ची थी. केवल एक उदाहरण मिलता है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि उस सड़क को पक्का करने का प्रयत्न किया गया हो. सड़क के किनारे कहीं-कहीं चबूतरे भी बने होते थे. संभवत: इसमें दुकानें लगती थी. सिंधु घाटी सभ्यता के नगर के सड़कें 2.70 से लेकर 10.20 मीटर तक चौड़ी होती थी. ये सड़कें कहीं-कहीं आधे मील तक सीधी जाती थी. ये सड़कें समकोण बनाते हुए एक-दूसरे को काटती थी. साफ-सफाई का भी अच्छा ध्यान रखा जाता था. सड़कों के किनारे वृक्षारोपण भी किया जाता था तथा इनके किनारे नालियों का निर्माण किया जाता था. ये नालियां ढकी हुई होती थी और प्रत्येक नालियां एक-दूसरे से जुडी होती थी. इन नालियों से घरों का गंदा पानी शहर से बाहर निकल जाता था. नालियों का निर्माण पत्थर, ईटों एवं चूने के द्वारा किया जाता था. इन नालियों में कुछ निश्चित दूरी पर शोषण-कूप भी बने रहते थे ताकि पानी का बहाव न रुक सके.
मोहनजोदड़ो की नगर योजना एवं वास्तुकला

भवन निर्माण

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भवन के निर्माण में भी काफी दक्ष थे. इनकी दक्षता की पुष्टि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो आदि से प्राप्त भवनों के अवशेषों से होती है. नगरों की तरह भवनों का निर्माण भी काफी सुनियोजित तरीके से किया जाता था. हम अध्ययन की सुविधा के लिए भवन निर्माण को तीन भागों में बांटते हैं- साधारण भवनसार्वजनिक  एवं राजकीय भवन तथा अन्न भंडार गृह.

(अ) साधारण भवन

साधारण भवन, साधारण लोगों के रहने के लिए होता था. ऐसे भवनों का निर्माण सड़क के दोनों ओर किया जाता था. इन भवनों का आकार आवश्यकतानुसार छोटा या बड़ा होता था. इन भवनों के निर्माण के लिए ईंटों का प्रयोग किया जाता था. इन भवनों को बनाने के लिए कच्ची ईंटों का इस्तेमाल किया जाता था. कुछ भवन कच्चे और कुछ भवन पक्के होते थे. भवन बनाते समय हवा और प्रकाश का पूरा ध्यान रखा जाता था. कुछ भवनों में केवल दो कमरे होते थे और कुछ में दो से ज्यादा होते थे. कुछ भवन एक से अधिक मंजिल के भी होते थे. ऊपर की मंजिलों पर जाने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल किया जाता था. ये सीढ़ियां मुख्य रूप से पत्थरों के बने होते थे. भवनों में दरवाजे, खिड़कियां, रसोईघर और आंगन होता था. दरवाजे गली की और खुलते थे. सिर्फ लोथल में एक ऐसा भवन मिला जिसका दरवाजा मुख्य सड़क के तरफ खुलती थी. ये दरवाजे बीच में नहीं बल्कि दीवार के समाप्ति  के स्थान पर होते थे. इन भवनों के एवं दरवाजे लकड़ी के बने होते थे तथा दीवारें बहुत मोटी होती थी. इन भवनों का फर्श मिट्टी से बनाया जाता था. कुछ घरों में कुएं भी बने होते थे. इसके अलावा इन भवनों में स्नानागार भी बने होते थे. 

मोहनजोदड़ो की नगर योजना एवं वास्तुकला

(ब) सार्वजनिक एवं राजकीय भवन 

सिंधु घाटी सभ्यता के उत्खनन के परिणामस्वरूप ये बात पता चला कि यहां में साधारण भवनों के अलावा राजकीय एवं सार्वजनिक भवन भी हुआ करते थे. मोहनजोदड़ो में एक गढ़ी थी जिसका निर्माण एक कृत्रिम पहाड़ी पर किया गया था. नदी की बाढ़ से इसकी रक्षा के लिए इसके चारों ओर एक ऊंचा बांध भी बनाया गया था. इनमें अनेक मीनारें भी थी. गढ़ी के अंदर ऊंचे चबूतरे पर सुंदर भवनों का निर्माण किया गया था. इनमें अनेक मीनारें  भी थी.

मोहनजोदड़ो की नगर योजना एवं वास्तुकला

(द) अन्न भंडार गृह 

हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के उत्खनन के परिणामस्वरूप बहुत से विशाल अन्न भंडार गृह भी पाए गए. इनमें अन्नों के अवशेष भी पाए गए हैं. इसी वजह से यह बात स्पष्ट पता चलता है कि यहां बड़े पैमाने पर अन्नों का भंडारण भी किया जाता था.

सार्वजनिक स्नानागार

मोहनजोदड़ो का उत्खनन करने के बाद एक विशाल स्नानागार के बारे में भी पता चला. स्नानागार अत्यंत भव्य है. इस स्नानागार का क्षेत्रफल 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है. स्नान कुंड से पानी को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था की गई थी. स्नानागार का फर्श पक्की ईंटों का बना है. स्नानागार के चारों तरफ चबूतरे और बरामदे हैं तथा बगल में कमरे भी हैं. संभवत: इसका इस्तेमाल कपड़े बदलने में किया जाता था. इतिहासकारों के अनुसार संभवत: यह जलाशय धार्मिक महत्व रखता था तथा पवित्र पर्व पर इसमें लोग स्नान किया करते थे. यह स्नानागार इतना सुदृढ़ बनाया गया कि आज तक इसका अस्तित्व है. इस जलाशय के सामने एक कुआं भी पाया गया है. इससे यह अंदेशा लगाया गया कि संभवत: इसी कुएं के पानी से इस जलाशय को भरा जाता था.

मोहनजोदड़ो की नगर योजना एवं वास्तुकला

सिंधु घाटी सभ्यता के उत्खनन के परिणामस्वरूप यह पता चला कि यहाँ के निवासी नगर निर्माण कला में बहुत ही दक्ष थे. हर चीज करीने से बनाई गई थी. हर जरूरत की चीजों का निर्माण उचित स्थान पर ही किया गया था. इनकी भव्यता आज के इंजीनियरों के लिए भी चुनौती और शोध का विषय है. सही मायनों में सिंधु घाटी सभ्यता प्राचीन भारत के इतिहास का एक अमूल्य निधि है. हमें इन्हें संजो कर रखना है.

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3 thoughts on “मोहनजोदड़ो की नगर योजना एवं वास्तुकला का वर्णन कीजिए”

  1. सारनाथ कला – धारा के गुप्तकालीन मूर्तिकला पर टिप्पणी लिखिए।

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