मौर्यकालीन आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डालिए

मौर्यकालीन आर्थिक स्थिति पर प्रकाश

मौर्यकालीन आर्थिक स्थिति के विषय में कौटिल्य के अर्थशास्त्र, मेगास्थनीज की इंडिका तथा विशाखद्त्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस से पता चलता है. इन स्रोतों से यह ज्ञात होता है कि मौर्य काल आर्थिक दृष्टिकोण से गौरव का युग था. मौर्य काल में देश अत्यंत समृद्ध अवस्था में था. तत्कालीन अर्थव्यवस्था कृषि  पशुपालन, वाणिज्य तथा व्यापार आदि पर आधारित था. इन को सबको सम्मिलित रूप से वार्ता कहा जाता था. 

मौर्यकालीन आर्थिक स्थिति

मौर्यकालीन आर्थिक स्थिति

1. कृषि

मौर्य काल में भी भारत कृषि प्रधान देश रहा है इस काल की अधिकांश जनता गांव में निवास करते थे तथा उनका प्रमुख व्यवसाय कृषि था कृषि तथा कृषि को की सुरक्षा का राज्य की ओर से उचित प्रबंध किया जाता था इस समय भूमि मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती थी कृष्ट अर्थत जुती हुई, आकृष्ट अर्थात न जूती हुई, तथा बंजर भूमि. हल-बैलों की मदद से खेतों की जुताई की जाती थी. भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए खाद का प्रयोग किया जाता था. राज्य की ओर से सिंचाई का भी उचित प्रबंध किया गया था. अर्थशास्त्र के अनुसार मौर्य काल में चार प्रकार की सिंचाई प्रणालियां उपलब्ध थी:-हाथों से, कंधों पर पानी लाकर, यंत्रों के द्वारा तथा नहरों नदियों और तालाबों के द्वारा. मौर्य काल में सिंचाई व्यवस्था इतनी उत्तम थी कि मेगस्थनीज ने अपने पुस्तक में लिखा है कि भारत में कभी अकाल नहीं पड़ता. उसके वर्णन से यह भी ज्ञात होता है कि वर्ष में दो फसलें उगाई जाती थी. इस काल के मुख्य प्रमुख फसल के रूप में गेहूं, चावल, मूंग, कपास, तिल, मोटा अनाज आदि उगाई जाती थी. इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार के सब्जियों और फलों की भी खेती होती थी. कृषि आय पर कर लिया जाता था जो 1/4 से 1/8 तक होता था.

मौर्यकालीन आर्थिक स्थिति

2. पशु पालन

मौर्य काल में पशुपालन का आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्व था. इस काल में लोग गाय-बैल, भेड़-बकरियाँ आदि का पालन करते थे. कई पशुओं, जैसे गाय-बैलों को कृषि और दूध के लिए पाला जाता था. अन्य पशु जैसे कि भेड़-बकरी आदि को मांस के लिए पाला जाता था. बड़ी मात्रा में इन पशुओं की खरीद बिक्री होती थी. इससे पशुपालन आय का मुख्य स्रोतों में से एक बन गया था.

मौर्यकालीन आर्थिक स्थिति

3. वाणिज्य तथा व्यापार

मौर्य काल में वाणिज्य और व्यापार की काफी उन्नति हुई. इस कारण व्यापार को काफी प्रोत्साहन मिला.मौर्य काल में सूट कातने और बुनने का काम प्रमुख उद्योगों में से एक था. उस समय ऊन, रेशे, कपास और रेशम के द्वारा सूत काता जाता था. मेगस्थनीज ने इन से निर्मित वस्तुओं की काफी प्रशंसा की. उस समय काशी,  पुण्ड्र, कलिंग और मालवा सूती वस्त्रों के प्रमुख केंद्र थे. मैगस्थनीज ने भारत में विभिन्न धातुओं की खानों और खनिज व्यापार का भी उल्लेख किया है. इन खनिजों का उपयोग आभूषण बनाने, बर्तन बनाने, युद्ध के लिए अस्त्र-शस्त्र तथा मुद्राएं बनाने आदि के लिए किया जाता था. इसके अतिरिक्त मैगस्थनीज ने जहाज बनाने वालों, कवच व आयुध का निर्माण करने वालों तथा कृषि उपकरण का निर्माण करने वालों का भी उल्लेख किया है. इन उद्योगों में विभिन्न अधिकारियों के द्वारा समय-समय पर निरीक्षण कार्य भी किया जाता था. इसके अलावा लोगों ने स्वतंत्र रूप से बहुत से छोटे-छोटे लघु उद्योग स्थापित कर रखे थे. उद्योगों को सरकार के द्वारा पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाती थी. अर्थशास्त्र में भी बहुत से उद्योगों के विषय में जानकारी प्राप्त होती जो की उन्नत अवस्था में थे. इन उद्योगों में हाथी दांत का कार्य, मिट्टी के बर्तन, जूते व ढाल बनाने के बारे में उल्लेख किया गया. नियार्कस ने लिखा है कि भारतीय सफेद रंग के जूते पहनते थे जो कि देखने में बहुत सुंदर होते थे. मौर्य काल में राज्य की ओर से व्यापार को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से प्रमुख व्यापारिक मार्गों पर सड़कें, जलीय व्यापार के लिए बंदरगाह बनवाए गए थे. इन मार्गों में व्यापारियों की सुरक्षा का भी उचित प्रबंध किया जाता था. मौर्यों की सुव्यवस्थित शासन प्रणाली एवं प्रोत्साहन नीति से विदेशी व्यापार में भी काफी वृद्धि हुई. मौर्य शासकों और यूनानी राज्यों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध के कारण यूनानी राज्यों से व्यापार जल व थल दोनों मार्गों से होने लगा. 

मौर्यकालीन आर्थिक स्थिति

भारत से मुख्य रूप से हाथी दांत, कछुए की पीठ, सीपियां, मोती, रंग, नील तथा बहुमूल्य लकड़ियों का निर्यात किया जाता था. वस्तुओं का आयात-निर्यात कर भी राज्य के द्वारा लिया जाता था जिसकी वजह से राज्य की आर्थिक उन्नति होती गई. प्रजा के हित के लिए व्यापारियों पर राज्य का कठोर नियंत्रण रहता था. समय-समय पर लाभ की निश्चित दरों, पाप-तौल आदि के बारे में राज्य के अधिकारियों के द्वारा जांच की जाती थी. इनमें किसी प्रकार की गड़बड़ होने पर व्यापारियों को कठोर दंड दिया जाता था. वस्तुओं का क्रय-विक्रय मुद्राओं के द्वारा होती थी. अर्थशास्त्र में स्वर्ण, चांदी तथा तांबे की मुद्राओं का जिक्र मिलता है. मौर्य काल में मुख्य रूप से चांदी के मुद्राओं का ही प्रयोग किया जाता था.

मौर्यकालीन आर्थिक स्थिति

इन से स्पष्ट है कि मौर्य काल आर्थिक रूप से बहुत ही सुदृढ़ थी. मौर्य शासकों ने अपने कुशल शासन प्रबंध के द्वारा कृषि,व्यापार तथा उद्योगों को काफी प्रोत्साहन दिया. कृषि क्षेत्र में उचित सिंचाई व्यवस्था उपलब्ध कराई गई. व्यापार पर साम्राज्य का पूरा नियंत्रण था तथा उन उनको सुरक्षा भी दी जाती थी. इस कारण मौर्य काल आर्थिक रूप से काफी उन्नत अवस्था में था.

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