मौर्यकालीन मंत्रिपरिषद
मौर्य साम्राज्य अत्यंत विशाल था. इस विशाल साम्राज्य का अकेले संचालन कर पाना राजा के लिए मुमकिन नहीं था. अत: राज्य की संचालन के लिए एक मंत्रिपरिषद का गठन किया गया. मंत्री परिषद के सदस्य के रूप में योग्य लोगों का चुनाव किया जाता था. वे उच्च कुल वाले हों, वीरता, इमानदारी,स्वामिभक्त और और बुद्धिमत्ता भरे फैसले ले पाने वाले गुणों से भरे हों. मंत्रीपरिषद में 12-20 सदस्य होते थे. आवश्यकतानुसार सदस्यों की संख्या बढ़ाई और घटाई जा सकती थी. इनका मुख्य काम राजा को परामर्श देना होता था. राजा इन के परामर्शों को मानने के लिए बाध्य नहीं होता था.
मंत्रीपरिषद राजा को निम्नलिखित मामलों पर परामर्श देती थी:-
- आपातकालीन स्थिति में
- साम्राज्य में किसी नये अथवा बड़े कार्य की शुरुआत करने संबंधी फैसलों में
- साम्राज्य के कामों में उपयोग होने वाले धन संबंधी आय-व्यय के मामलों में
- राजकीय कार्यो के लिए समय एवं स्थान निर्धारण संबंधी मामलों में
- योजनाओं को पूरा करने संबंधी संसाधनों को जुटाने संबंधी कार्यों में
मंत्रीपरिषद की एक छोटी इकाई भी होती है जिसमें तीन-चार सदस्य होते हैं. इस इकाई को मंत्रीगण कहा जाता था. यह इकाई किसी विषय पर तुरंत निर्णय या विचार-विमर्श करने के लिए होता था.
मौर्य साम्राज्य की मंत्रीपरिषद अत्यंत क्रियाशील होती थी. इसका मौर्य साम्राज्य में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता था. इन्हीं मंत्रीपरिषद के सहयोग से विशाल मौर्य साम्राज्य का कुशल संचालन किया जाता था.
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