मौर्यकालीन सामाजिक स्थिति पर प्रकाश डालिए

मौर्यकाल

मौर्यकालीन सामाजिक स्थिति के बारे में हमें विभिन्न स्रोतों से विस्तृत जानकारी मिलती है. इन स्रोतों में मुख्य रूप से कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मेगास्थनीज का भारत वर्णन तथा अन्य यूनानी विद्वानों द्वारा लिखित रचनाएं हैं. इसके अलावा विभिन्न अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिनसे तत्कालीन सामाजिक स्थिति के बारे में व्यापक जानकारी प्राप्त होती है.

मौर्यकालीन सामाजिक स्थिति

मौर्यकालीन सामाजिक स्थिति

1. वर्ण एवं वर्णाश्रम व्यवस्था

मौर्य काल में विवरण एवं वर्णाश्रम व्यवस्था पूरी तरह विकसित हो चुकी थी. कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में अन्य धर्मशास्त्रों के समान ही चार वर्णों का ही वर्णन किया गया है. उनके अनुसार वर्णों के अनुसार ही व्यवसाय भी निर्धारित किए गए. इस तत्कालीन समाज में ब्राह्मणों की प्रधानता थी. कौटिल्य ने चार वर्णों के अलावा अनेक वर्णसंकर जातियों का भी उल्लेख अपने अर्थशास्त्र में किया है. उनके अनुसार अन्य वर्णसंकर वर्णों की उत्पति अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह के कारण हुई थी. इन वर्णसंकर जातियों में मुख्य रूप से निषाद, मागध, सूत, वेग आदि उल्लेखनीय हैं. कौटिल्य ने इन जातियों को शुद्ध ही माना है. मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक में भारत के वर्ण व्यवस्था के विषय में लिखा है कि कोई भी व्यक्ति अपनी जाति से बाहर विवाह नहीं कर सकता था और ना उसे अपने व्यवसाय को दूसरी जाति के व्यवसाय में बदलने की अनुमति थी. यह अधिकार केवल ब्राह्मणों को प्राप्त था.

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मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में लिखा है कि तत्कालीन भारतीय समाज सात जातियों में बंटा हुआ था. इसके अलावा डायोडोरस, एरियन तथा अन्य यूनानी लेखक ने भी तत्कालीन भारतीय समाज में भारत की 7 जातियों का उल्लेख किया है. इन सात जातियों में दार्शनिक, कृषक, अहीर, कारीगर, सैनिक,निरीक्षक सभासद तथा अन्य शासक वर्ग थे. लेकिन इसके अलावा अन्य स्रोतों में भारत के 7 जातियों का उल्लेख नहीं मिलता. संभवत मेगास्थनीज ने वर्ग और व्यवसाय के भेद को स्पष्ट रूप से समझ नहीं सका. उसने व्यवसाय उनको उनकी जातियों समझ लिया होगा.

2. विवाह

तत्कालीन समाज में विवाह का मुख्य उद्देश्य संतान की उत्पत्ति करना था. उस समय विवाह के लिए करने के लिए कन्या की आयु 12 वर्ष तथा पुत्र की आयु 16 वर्ष उचित मानी जाती थी.  कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में आठ प्रकार के विवाह का उल्लेख किया है. इन आठ प्रकार के विवाह में ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्ष विवाह, प्रजापत्य विवाह, असुर विवाह, गंधर्व विवाह, राक्षस विवाह तथा पैचाश विवाह थे. तत्कालीन समाज में स्त्री और पुरुष दोनों को ही पुनर्विवाह करने की अनुमति थी, लेकिन इसमें पुरुषों को ज्यादा सुविधाएं प्राप्त थी.  चाणक्य ने अपनी पुस्तक में नियोग प्रथा का भी उल्लेख किया. पुरुषों को अनेक विवाह करने की भी अनुमति थी. चाणक्य के अनुसार पुरुष संतान ना होने पर पुनर्विवाह कर सकता था, क्योंकि स्त्रियां संतान उत्पन्न करने के लिए ही हैं.

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3. स्त्रियों की दशा

स्मृति काल की तुलना में स्त्रियों की दशा मौर्यकाल में अच्छी थी. इस काल में उन्हें पुनर्विवाह और नियोग अनुमति थी. तत्कालीन समाज में स्त्रियों को घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी तथा पति की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं कर सकती थी. मौर्य काल के बारे में बहुत से ऐसे उल्लेख मिलती है कि बहुत सी स्त्रियां पारिवारिक जीवन व्यतीत नहीं करती थी. वे वैश्या का जीवन यापन करते हुए राजा का मनोरंजन करती थी. इस काल में स्त्रियों से गुप्तचरों का कार्य भी लिया जाता था. राजमहल में भी स्त्रियां सैनिकों के रूप में कार्य करती थी. यूनानी लेखकों के वर्णन के अनुसार राजघराने की स्त्रियां आवश्यकता होने पर शासन सूत्र भी अपने हाथ में ले लेती थी. मेगास्थनीज के वर्णन से पता चलता है कि तत्कालीन समाज में स्त्रियों को शिक्षा की सुविधा भी उपलब्ध थी. उसके अनुसार पुरुषों के समान स्त्रियां भी शिक्षा ग्रहण करती थी तथा शिक्षाकाल में ब्रह्मचर्य का जीवन व्यतीत करती थी. मौर्य काल में सती-प्रथा प्रचलन नहीं था. कौटिल्य के अनुसार उस में सती-प्रथा होना आत्महत्या करने के समान बताया गया था. उस समय इसे घृणित और दंडनीय समझा जाता था.

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4. खान-पान

मौर्य काल में भोजन के रूप में विभिन्न वस्तुओं का सेवन किया जाता था. इसमें से मुख्य रूप से अन्न, दूध और मांस होता था. जैन और बौद्ध धर्मावलंबी मांस का सेवन नहीं करते थे. लेकिन अधिकांश जनता इसका सेवन करती थी. यहां तक कि अशोक के समय भी  राजकीय रंघानागार में प्रतिदिन कई पशु-पक्षियों की बलि दी जाती थी. दूध भारतीयों का मुख्य पेय पदार्थ होता था. पेय के रूप में दूध के अतिरिक्त मधु, शरबत और अंगूर के रस का भी प्रयोग किया जाता था. इस काल के लोगों के द्वारा मंदिरा का भी सेवन किया जाता था. मेगास्थनीज के अनुसार जब भारतीय भोजन करने बैठते थे तो प्रत्येक सदस्य के सामने तिपाई के आकार की मेज रख दी जाती थी. उसके ऊपर सोने के थाली में सबसे पहले चावल परोसे जाते थे. उसके बाद अन्य पकवान खाए जाते थे. 

5. मनोरंजन के साधन

मनोरंजन के साधन के रूप में विहार यात्राएं, मल्लयुद्ध, रथ-दौड़, खेलकूद, नृत्य एवं संगीत हुआ करते थे. शिकार करना भी मौर्यकालीन मनोरंजन के प्रमुख साधन थे.

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6. पहनावा

मौर्यकालीन लोग सूती वस्त्र धारण करते थे. ये प्रायः भड़कीले रंग के होते थे. मौर्य काल में आभूषण पहनने की भी प्रथा थी. उनके आभूषण प्राय: सोने, हीरे आदि के होते थे. 

7. दास-प्रथा

दास प्रथा के संबंध में यूनानी लेखकों ने कोई उल्लेख नहीं किया है. मेगस्थनीज ने भी लिखा है कि सभी भारतीय समान है और उसमें कोई दास नहीं है. डायोडोरस ने भी लिखा है कि कानून के अनुसार भारत में कोई भी किसी भी परिस्थिति में दास नहीं हो सकता. वही कौटिल्य के द्वारा रचित अर्थशास्त्र में दास-प्रथा का उल्लेख मिलता है. इसके अतिरिक्त त्रिपिटकों में भी दास प्रथा का उल्लेख मिलता है. दास मुख्य रूप से अनार्य ही होते थे. इनका क्रय-विक्रय किया जाता था. अशोक ने अपने अभिलेखों में दासों के साथ मधुर व्यवहार करने का आह्वान किया है. इससे मौर्य काल में दास प्रथा की पुष्टि होती है. ऐसा प्रतीत होता है कि यूनान के विपरीत भारत में दासों के साथ मधुर व्यवहार किया जाता होगा. इसी कारण मेगस्थनीज ने समझा होगा कि भारत में दास प्रथा नहीं है. 

मौर्यकालीन सामाजिक स्थिति

मौर्य कालीन सामाजिक जीवन की सर्वोच्च विशेषताएं व्यक्ति का नैतिक स्तर था. अशोक ने अपने अभिलेखों में माता पिता की आज्ञा मानना, गुरुजनों का आदर करना, अहिंसा, दान, क्षमा, सत्य, सहिष्णुता का विकास करना आदि बातों का उल्लेख करना इस बात की कथन की पुष्टि करता है. मेगास्थनीज के वर्णन से भी इन बातों की पुष्टि होती है.

इन्हें भी पढ़ें:

  1. मौर्यकालीन आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डालिए
  2. सम्राट अशोक के प्रारंभिक जीवन तथा कलिंग विजय का वर्णन करें
  3. समुद्रगुप्त की उपलब्धियों का वर्णन करें

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