मौर्य काल के नगर प्रशासन का वर्णन करें

मौर्य काल के नगर प्रशासन

कौटिल्य एवं मेगस्थनीज के विवरण से पता चलता है कि मौर्यकालीन नगर प्रशासन अत्यंत उच्च कोटि एवं सुव्यवस्थित था. नगर का प्रधान अधिकारी नागरिक कहलाता था. इसके अधीन स्थानिक एवं गोप होते थे. प्रशासन को चलाने के लिए अनेक नियम बने हुए थे तथा इनका पालन करना जनता के लिए अनिवार्य था.

मौर्य काल के नगर प्रशासन

मकान के निर्माण, सफाई व्यवस्था, आग फैलने से रोकने के लिए, मंदिरालयों और विभिन्न अपराधों के लिए नियम बने हुए थे. किसी घर में लगी आग को बुझाने में पड़ोसी मदद न करते तो वे दंड के भागी होते। इधर उधर गंदगी फैलाना भी दंडनीय अपराध था. नगरों में जल व्यवस्था, सड़कों की स्थिति आदि का पूरा ख्याल रखा जाता था.

मौर्य काल के नगर प्रशासन

मैगस्थनीज के अनुसार पाटलिपुत्र के नगर प्रशासन के लिए 30 सदस्यों की एक नगर सभा होती थी. ये सभा पांच पांच सदस्यों की छह समितियों में बंटी होती थी. ये समितियां अलग अलग कार्यों को देखती थी. ये समितियां सामूहिक रूप से सार्वजानिक भवनों की मरम्मत, बाजार तथा मूल्यों पर नियंत्रण, बंदरगाहों और देवालयों की भी देख रेख करती थी.

मेगस्थनीज के अनुसार पाटलिपुत्र के सामान ही अन्य नगरों के प्रशासनिक व्यवस्था भी थी. इससे स्पष्ट है कि मौर्यकालीन नगर का प्रशासन अत्यंत सुव्यवस्थित था.

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