रणजीत सिंह के प्रशासनिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए

रणजीत सिंह के प्रशासनिक व्यवस्था

महाराजा रणजीत सिंह न केवल एक कुशल योद्धा और  राज्य निर्माता थे बल्कि एक उच्च कोटि के शासक भी थे. रणजीत सिंह के प्रशासनिक व्यवस्था आज भी इतिहासकारों के बीच चर्चा का विषय है. पहले सिख राज्यों के शासन व्यवस्था का स्वरूप संघात्मक था. इनको खालसा संघ कहा जाता था. ये संघ सिख मिस्लों के योग से बनता था. इन लोगों की शासन व्यवस्था लोकतंत्रात्मक प्रणाली पर आधारित थी. सभी मिस्लों के सरदार एकत्रित होकर एक प्रधान का निर्वाचन करते थे जिसकी अध्यक्षता में प्रतिवर्ष अमृतसर में संघ की एक बैठक हुआ करती थी. बैठक नीति निर्धारण तय की जाती थी तथा शासन के नियम बनाए जाते थे. इन नियमों का पालन सभी मिस्लों के सरदार करते थे. यदि खालसा पर कोई बाहरी संकट आता था तो मिस्ल के सरदार मिलकर सामूहिक रूप से उसका सामना करते थे. लेकिन इन मिस्लों में एकता का अभाव था. अतः रणजीत सिंह मिस्लों के सरदारों को पराजित करके अपना निरंकुश शासन स्थापित किया. निरंकुश शासक होते हुए भी रणजीत सिंह जनता के कल्याण का ध्यान रखता था. उसमें धार्मिक कट्टरता बिल्कुल नहीं थी. सभी धर्मावलंबियों को वह सामान नजर से देखता था. राज्य के उच्च पदों पर हिंदू, मुस्लिम, सिख तथा यूरोपीय सभी नियुक्त किए जाते थे.
रणजीत सिंह के प्रशासनिक व्यवस्था

प्रांतीय और स्थानीय शासन

रणजीत सिंह का राज्य चार प्रांतों में बंटा हुआ था. ये चार प्रांत कश्मीर, मुल्तान, पेशावर और लाहौर थे. इन प्रांतों के प्रधान को नाजिम कहा जाता था. इन पदों पर राजकुमार अथवा रणजीत सिंह के विश्वास पात्र व्यक्तियों को ही नियुक्त किया जाता था. प्रांत भी कई परगना अथवा जिलों में बंटे हुए होते थे. प्रत्येक जिले का प्रधान सरदार कहलाता था. वह जिले की शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए उत्तरदाई होता था. वह फौजदारी तथा दीवानी मामलों में भी निर्णय देता था. किसानों से लगान वसूल करने का काम वही करता था. जिले भी कई तालुक में बंटे हुए होते थे. 50 से 100 गांवों को मिलाकर एक तालुक बनता था. मौजा अथवा ग्राम सभा, प्रशासन की सबसे छोटी इकाई होती थी. प्रत्येक गांवों में एक पंचायत होती थी. ये पंचायतें छोटे-छोटे मामलों का स्वयं निपटारा करते थे.
 

भू-राजस्व

भू राजस्व, राज्य की आय का प्रमुख साधन था. यह बड़ी कठोरता से वसूल किया जाता था. सरकार उत्पादन करता है 30% से 40% तक लेती थी. यह भूमि की उर्वरकता के आधार पर लिया जाता था. राजा रणजीत सिंह अपने किसानों से अधिक से अधिक आय प्राप्त करने का प्रयत्न करता था. लेकिन साथ में वह छोटे किसानों के हितों की रक्षा भी करता था. वह युद्ध करने जाने वाली सेना को आदेश देती थी कि वो खेती को कभी नष्ट ना करें.
 

न्याय व्यवस्था

महाराजा रणजीत सिंह की न्याय व्यवस्था अत्यंत कठोर थी. मामलों का न्याय तुरंत किया जाता था. उस समय उनके राज्य में कानून या दंड का कोई भी लिखित स्वरूप नहीं था. गांव के झगड़ों के फैसले ग्राम पंचायतों में की जाती थी. इनका निर्णय परंपरागत रीति-रिवाजों तथा सामाजिक प्रथाओं के आधार पर होते थे. राज्य में सर्वोच्च अदालत का नाम अदालत उल-आला था. यह अदालत राजधानी लाहौर में स्थित थी. इस अदालत का प्रधान न्यायाधीश स्वयं महाराजा रणजीत सिंह था. राज्य के सबसे जटिल एवं बड़े मुकदमों पर अंतिम निर्णय वही देता था. राज्य का दंड विधान अत्यंत कठोर था. गंभीर अपराध करने वाले अपराधियों को अंग-भंग का दंड दिया जाता था. साधारण अपराधों में जुर्माना लिया जाता था. घूस तथा भ्रष्टाचार जैसे मामले महाराज के पास जाते थे. उस समय न्याय व्यवस्था सरकार की आय का एक प्रमुख साधन माना जाता था.
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सैन्य प्रशासन

महाराजा रणजीत सिंह ने सबसे ज्यादा सेना को मजबूत करने की ओर ध्यान दिया. उन्होंने इसी सेना के बल पर इतने बड़े साम्राज्य की स्थापना की. उसके सेना के दो भाग थे:- 

1. फौज-ए-आम

यह स्थानीय सेना थी. इसमें मुख्य रूप से तीन विभाग होते थे- पैदल सेना, घुड़सवार सेना तथा तोपखाना. इन तीनों विभागों को यूरोपीय विशेषज्ञों के द्वारा प्रशिक्षित किया गया था. सिखों की सेना में पहले घुड़सवारों विशेष महत्व था. लेकिन महाराजा रणजीत सिंह यह जानता था कि एक न एक दिन उसे अंग्रेजों से भी युद्ध लड़ना पड़ेगा. इसीलिए उसने अपनी पैदल सेना तथा तोपखाने के विकास पर भी विशेष ध्यान दिया. उसकी सेना में ज्यादातर सिख तथा जाट सैनिक होते थे. रणजीत सिंह की सेना अनुशासन, नियंत्रण तथा युद्ध कौशल के लिए विख्यात थी.

2. फौज-ए-खास

इस सेना का गठन जनरल वनतूरा और जनरल आलार्ड के द्वारा वर्ष 1822 ई. में किया गया था. इसमें चार पैदल सैनिकों की बटालियनें, दो घुड़सवार बटालियनें तथा 24 तोपें होती थी. इस सेना का एक विशेष चिन्ह होता था तथा उनके ड्रिल के लिए फ्रांसीसी भाषा के शब्दों का इस्तेमाल किया जाता था. इस संगठन के सैनिक योग्यता और युद्ध कौशल में श्रेष्ठ थी.रणजीत सिंह के प्रशासनिक व्यवस्था

फौज-ए-बेक-वाइद

यह सेना के अंदर का एक विभाग था. इसमें केवल घुड़सवार सैनिक होते थे. यह दो प्रकार के होते थे:- घुरचार तथा मिसलदार. यह सेना वीरता के लिए जानी जाती थी. इस सेना पर महाराजा रणजीत सिंह  का नियंत्रण होता था.
 

सैनिकों का वेतन

सैनिकों को वेतन के रूप में नकद रुपए नियमित रूप से दिए जाते थे. लेकिन साथ ही सैन्य संगठन का सबसे बड़ा दोष यह था कि सैनिक तथा अफसरों की उन्नति के लिए कोई निश्चित नियम नहीं था. पेंशन की भी कोई व्यवस्था नहीं थी. कभी-कभी जागीरें दी जाती थी. युद्ध में मारे जाने वाले सैनिकों के विधवाओं तथा बच्चों को भी किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलती थी.

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