राजपूतों की उत्पत्ति कैसे हुई? वर्णन करें

राजपूतों की उत्पत्ति

राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में विद्वानों का भिन्न-भिन्न मत है. कुछ विद्वानों ने मतों में थोड़े से अंतर के साथ सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि राजपूत शक, कुषाण, श्वेत-हुणों जैसे विदेशी आक्रमणकारियों की संतानें हैं. इनको हिंदू समाज में स्थान दिया गया और बाद में उन्होंने अपने को प्राचीन क्षत्रिय कुलों से संबंधित बताया. लेकिन बहुत से विद्वान इस मत का विरोध करते हैं. उनके अनुसार राजपूत प्राचीन ब्राह्मण धर्म अथवा क्षत्रिय कुलों की संतान हैं और समय के साथ कुछ विशेष कारणों से इनको राजपूत पुकारा जाने लगा.

राजपूतों की उत्पत्ति

राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में एक और प्रचलित विचारधारा है. इसके अनुसार सभी राजपूत वंशों की उत्पत्ति गुर्जरों से हुई है जो कि एक विदेशी जाति थी. इस कारण राजपूत वंश विदेशी हुए और इनको भारतीयों ने क्षत्रिय राजपूतों का स्थान प्रदान किया. गया इस मत के समर्थकों के अनुसार छठी सदी के बाद के ग्रंथों में गुर्जरों का विवरण दिया गया है. कनिंघम के अनुसार राजपूत, यू-ची जाति के वंशज थे और इनका संबंध कुषाणों से था. ए.एम.टी जैकसन के अनुसार राजपूत खजर जाति से संबंधित है जो कि चौथी सदी में आर्मेनिया और सीरिया में निवास करती थी और हुणों के भारत आक्रमण के दौरान ये जाति भी भारत आयी और भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बस गए. इसी खजर जाति को भारत में गुर्जर कहा गया. इतिहासकार कल्हण ने अलखाना नामक एक गुर्जर राजा का उल्लेख किया है जो कि 9 वी. सदी में पंजाब में शासन करता था. 9 वीं सदी में ही राजपूताना के कुछ भाग को गुर्जर प्रदेश कहा जाता था और 10 वीं सदी के बाद से गुजरात को गुर्जर कहा जाने लगा. यही कारण कुछ विद्वानों का कहना कि गुर्जर धीरे-धीरे अफगानिस्तान होते हुए भारत आए और विभिन्न प्रदेशों में आकर बस गए. उन्हीं में से विभिन्न राजपूत कुलों का जन्म हुआ. 959 ई. के राजोर-पत्थर-अभिलेख में विजयपाल के एक सामंत मथनदेव को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बताया गया है. इस से यह अर्थ निकाला जाता है कि प्रतिहार वंश, गुर्जरों की एक शाखा थी. गुजरात का नाम भी उस समय पड़ा जब वहां चालूक्यों का शासन हुआ करता था. इसका अर्थ यह हुआ कि चालूक्य भी गुर्जर ही थे.

राजपूतों की उत्पत्ति

पृथ्वीराजरासो में दी गई अग्नि कुल-कथा के अनुसार प्रतिहारों, चालूक्यों, परमारों और चौहानों की उत्पत्ति अग्निकुल से ही हुई थी. यह कथा भी राजपूतों की उत्पत्ति के विदेशी आधार का समर्थन करती है. प्राचीन ग्रंथ कुमारपाल चरित्र एवं वर्ण रत्नाकर में परंपरागत 36 राजपूत कुलों की सूची मिलती है. राजतरंगिणी में भी 36 राजपूत कुलों का उल्लेख मिलता है. परंतु दोनों ग्रंथों की सूचियों में भिन्नता है. इससे अनुमान लगाया जाता है कि यह सूची इस ढंग से बनाई गई थी कि भविष्य में इसमें परिवर्तन किया जा सके. राजपूतों की उत्पत्ति के प्रश्न में चर्चा का मुख्य केंद्र केवल गुर्जर-प्रतिहार रहे हैं क्योंकि तिथि क्रम की दृष्टि से महान राजपूत वंशों में ये न केवल सबसे पहले मंच पर आए परंतु इनकी ऐतिहासिक भूमिका भी अन्य राजवंशों की तुलना में अधिक प्रभावशाली रही है. इस आधार पर यह विचार प्रकट किया गया कि राजपूतों के 36 कुलों की उत्पत्ति गुर्जरों से हुई थी जो कि पूर्णतया: विदेशी जाति थी.

इस मत को भी अधिकांश विद्वानों ने स्वीकार नहीं किया. उनके अनुसार यह मत विश्वासनीय नहीं है कि विदेशी खजर जाति को गुर्जर पुकारा गया. केवल परमार अपनी उत्पत्ति अग्निकुण्ड से स्वीकार करते हैं. अन्य तीन राजपूत वंश ऐसा नहीं मानते. इन चारों कुलों में परस्पर रक्त संबंध है, यह भी प्रमाणित नहीं है. परंतु यह अधिक विश्वासनीय माना गया कि परमार और चालूक्यों का गुर्जरों से कोई संबंध नहीं था. मुसलमान विद्वानों के प्राथमिक विवरण से भी यह प्रमाणित नहीं होता कि गुर्जर एक जाति थी. इसके विपरीत यह अधिक प्रमाणित है कि गुर्जर एक प्रदेश का नाम था. भारत में विभिन्न राजवंशों का नाम प्रदेशों के आधार पर रखे गए. जैसे कि वेंगी-चालूक्य, कलिंग-गंग आदि. इस आधार पर यह माना गया कि प्रतिहार वंश ही वह राजवंश था जिसने जिसने गुर्जर प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया था. बहुत से अरब विद्वान जैसे अल बलाधुरी, सुलेमान और अबू जैद ने जुर्ज को एक राज्य बताया और जुर्ज शब्द का प्रयोग उन्होंने गुर्जर प्रदेश के लिए किया था. इस कारण यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि सभी राजपूत-वंश गुर्जरों की ही संतति है, और चूंकि गुर्जर विदेशी थे, इस कारण सभी राजपूत वंश विदेशी थे.

राजपूतों की उत्पत्ति

कर्नल टॉड के अनुसार राजपूत शक, कुषाण और हुणों की संतान है. उसने विदेशी आक्रमणकारियों और राजपूतों के रीति-रिवाजों की तुलना की और यह लिखा है कि विभिन्न रीति-रिवाज जैसे कि घोड़े की पूजा, अश्वमेघ यज्ञ, युद्ध देवता की पूजा, शस्त्र पूजा, नारियों की समाज में स्थिति आदि की तुलना करने पर उसमें समानता पाए जाने पर यह सिद्ध होता है कि राजपूत विदेशी आक्रमणकारियों की संतान है. विलियम ब्रुक ने इस मत का समर्थन किया है. उसके अनुसार राजपूतों के अनेक गोत्रों की उत्पत्ति शक और कुषाण आक्रमणों तथा स्वेत-हुणों के आक्रमण के समय हुई थी. उसके अनुसार गुर्जर जाति भी विदेशी थी जो हूणों के आक्रमण के समय भारत आयी थी और उन्होंने हिंदू धर्म को स्वीकार करके यहां विवाह संबंध स्थापित किया और विभिन्न राजपूत कुलों को जन्म दिया. बाद में राजपूतों को लोगों ने प्राचीन सूर्यवंशी अथवा चंद्रवंशी क्षत्रिय कुलों से संबंध स्थापित करने का प्रयास किया. डॉ स्मिथ भी इस मत का समर्थन करते हैं. उसके अनुसार हुणों के आक्रमण ने भारतीय समाज पर गंभीर प्रभाव डाला. इसके कारण भारतीय समाज में नवीन परिवर्तन हुए तथा नवीन शासक वंशों का निर्माण हुआ. इस कारण इन राजपूत कुल में बहुत से विदेशी हैं और बहुत से निम्न कुल के क्षत्रियों के वंशज हैं. डॉ. ईश्वरी प्रसाद और डॉ. भंडारकर ने भी राजपूतों की उत्पत्ति विदेशियों से मानते हैं. डॉ. ईश्वरी प्रसाद राजपूतों को निम्न क्षत्रिय कुलों के वंशज नहीं मानते. लेकिन यह अवश्य स्वीकार करते हैं कि विभिन्न विदेशी आक्रमणकारियों को भारतीय समाज में सम्मिलित किए जाने से राजपूतों की उत्पत्ति हुई.

राजपूतों की उत्पत्ति

कुछ लोकश्रुतियों ने राजपूतों की उत्पत्ति अग्निकुंड से बताई. उसके अनुसार परशुराम ने सभी क्षत्रियों को नष्ट कर दिया था. तभी वैदिक धर्म की रक्षा के लिए वशिष्ठ, गौतम, अगस्त्यमुनि आदि आबू पर्वत पर यज्ञ किए. दैत्यों ने इसे अपवित्र करने के लिए मांस, रक्त, अस्थियाँ आदि फेंकी. इस पर ऋषि वशिष्ठ के प्रार्थना करने पर यज्ञाग्नि से तीन योद्धा- प्रतिहार, परमार और चालुक्य निकले. लेकिन इन तीनों में से कोई अपने कार्य में सफल न हो सका. वशिष्ठ ने एक नया यज्ञ कुंड बनाए. इसमें से चार भुजा वाला रक्त वर्ण, चारों हाथों में शस्त्र लिए एक व्यक्ति निकला. जिसे ऋषियों ने चाहुवान नाम दिया. इसने दैत्यों को खदेड़ कर पाताल लोक पहुँचा दिया. यही कहानी थोड़े परिवर्तन के साथ पृथ्वीराजरासो, नवसहसांक चरित्र, हम्मीर रासो, वंश भास्कर और सिसाणा अभिलेख में भी मिलती है. इससे विदेशियों को क्षत्रिय कुल में सम्मिलित किए जाने का पक्ष का समर्थन होता है.

पंडित गौरीशंकर ओझा ने अपने ग्रंथ राजपूताना का इतिहास में इन बातों का खंडन किया है. उनके अनुसार कर्नल टॉड ने जिन रीति-रिवाजों की तुलना करके राजपूतों की उत्पत्ति विदेशियों से सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं, वे भारत में विदेशी आक्रमणकारियों के आने से पहले स्थापित हो चुके थे. नस्ल और शरीर की बनावट के आधार पर ही राजपूतों की उत्पत्ति विदेशियों से होने की बात नहीं की जा सकती. इस कारण वह यह मानते हैं कि राजपूत प्राचीन क्षत्रियों की संतान है. श्री चिंतामणि भी इस मत का समर्थन करते हैं.

राजपूतों की उत्पत्ति

डॉ. आर. सी. मजूमदार तथा कुछ अन्य इतिहासकार यह मानते के अधिकांश राजपूत कुछ प्राचीन क्षत्री अथवा ब्राह्मण कुल के वंशज हैं. यद्यपि उनमें से कुछ की उत्पत्ति के विषय में विश्वासपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता है. वे कहते हैं नस्ल अथवा रीति-रिवाजों के आधार पर राजपूतों की उत्पत्ति विदेशियों से नहीं मानी जा सकती है. निसंदेह कुछ विदेशियों को हिंदू धर्म में सम्मिलित करके निम्न क्षत्रियों स्थान दिया गया था, परंतु यह प्रमाणित नहीं किया जा सकता कि हर्ष की मृत्यु के पश्चात भारत की सत्ता इन निम्न कुल के क्षत्रियों के हाथों में चली गई थी. सम्राट हर्ष की मृत्यु के पश्चात विभिन्न भारतीय शासकों में अधिकांश प्राचीन क्षत्रिय वंशज थे. निस्संदेह इसमें से कुछ मुख्यतः उत्तर-पश्चिम अथवा पश्चिमी भारत के राजवंश विदेशी थे और वे हिंदुओं में सम्मिलित कर लिए गए थे. वे शासक वर्ग से होने के कारण अपने को राजपूत पुकारने लगे और हिंदूओं ने उसे स्वीकार कर लिया. उनके अनुसार अग्निकुण्ड द्वारा राजपूतों की उत्पत्ति के विचार भी ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है. इस कारण डॉ. आर. सी. मजूमदार उनमें से अधिकांश की उत्पत्ति प्राचीन क्षत्री अथवा ब्राह्मण कुलों से मानते हैं. हरिराम ने भी अपनी पुस्तक भारत का इतिहास में लिखा है कि हिंदू धर्म ग्रहण करने के पश्चात कुछ विदेशी जातियां राजपूतों में सम्मिलित हो गई, परंतु अधिकांश राजपूत क्षत्रियों के वंशज हैं. डॉ. आर. सी. मजूमदार ने राजपूतों की वंशावली पर विचार करके अपने विचारों को प्रमाणित किया. वे लिखते हैं कि मेवाड़ के गुहिल, राजपूत वंश के संस्थापक बप्पा रावल को ब्राह्मण बताया गया.

राजपूतों की उत्पत्ति

डॉ. दशरथ शर्मा ने राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में अपने पुस्तक प्रारंभिक चौहान वंश में नवीन प्रकाश डाला है. उन्होंने प्राचीन अभिलेखों और सिक्कों के आधार पर अपने विचारों को सिद्ध किया है और अग्निकुंड-सिद्धांत तथा टॉड, स्मिथ, और भंडारकर आदि इतिहासकारों के मतों का खंडन किया है. वे लिखते हैं कि राजपूत वंशों- चौहान, गुहिल, पल्लव, कदम्ब, प्रतिहार, परमार आदि के संस्थापक ब्राह्मण ही थे. सम्राट हर्ष की मृत्यु के बाद देश में फैली अव्यवस्था, तुर्क तथा अरब आक्रमण से निपटने के लिए हथियार उठा लिए और बाद में वे क्षत्रिय कहलाने लगे.

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3 thoughts on “राजपूतों की उत्पत्ति कैसे हुई? वर्णन करें”

  1. जो कुछ मलेच्छो और अंग्रेजो ने बताया राजपूतों कर बारे मे लोग वही सच मान रहे है, राजपूत तो इस धरा पे युगों युगों से हैँ, इनके वजह से ही आज हम्म लोग भगवान का नाम ले रहे है, राजपूतो की वजह से ले रहे है, उन्होंने अपने सर कटवा के अपने परिवारों का बलिदान करके देश की संस्कृति और धर्म को बचा रखा है, जो और किसी जाति के बस की बात नहीं थी, मुझे गर्व है की मै एक राजपूत हूँ

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  2. जितनी जानकारी दी गई है सब इतिहास को चुराने के लिए दी गई है।
    क्षत्रिय समाज ही राजपूत समाज है।

    गुज़र जाट सभी राजपूत समाज के वंशज हैं

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