राजपूत कालीन आर्थिक स्थिति का वर्णन करें

राजपूत कालीन आर्थिक स्थिति (Economic situation during Rajput period)

राजपूत कालीन आर्थिक स्थिति में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है. इस समय किसी के साथ व्यापारिक संबंध खत्म हुआ तो कहीं व्यापार बढ़ा. 

1. व्यापार एवं वाणिज्य

सातवीं शताब्दी से लेकर 10 वीं शताब्दी तक व्यापारिक दृष्टिकोण से भारत का समय बहुत ही खराब रहा. इस समय उत्तर भारत में नगर तथा नगरीय जीवन का पतन होना शुरू हो गया. इसके साथ-साथ व्यापार का भी पतन होना शुरू हो गया. भारत और रोम के बीच प्राचीन काल से ही व्यापारिक संबंध थी. भारत से रोम को बहुत सी वस्तुएं निर्यात की जाती थी. लेकिन इसी समय रोमन साम्राज्य के पतन हो गया. इसके कारण उसके साथ हो रहे व्यापार पर असर पड़ा. इसी बीच ईरान में भी इस्लाम के उदय होने से ईरानी साम्राज्य खत्म हो गया. इससे ईरान और भारत के बीच होने वाले व्यापारिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ा. 

राजपूत कालीन आर्थिक स्थिति

इस काल में भारत के व्यापारिक यातायात सुविधाओं की स्थिति भी ठीक नहीं थी. रास्ते के जंगली इलाकों में व्यापारियों को डाकू-लुटेरे लूट लिया करते थे. सड़कों की स्थिति अत्यंत खराब थी. नदियों पर पुलों की उचित व्यवस्था भी नहीं थी. इस वजह से व्यापार पर काफी बुरा असर पड़ा.

तत्कालीन सामंतवादी समाज में आत्मनिर्भर ग्रामसभा व्यवस्था को प्रोत्साहन देने से शहरीकरण में बाधा पड़ी. शहरीकरण रुक जाने का कारण व्यापार और वाणिज्य प्रभावित हुई. भारतीय धर्म शास्त्र में विदेशी यात्रा को निषिद्ध घोषित कर दिया गया था. इन साहित्यों में कहा गया कि जिन स्थानों में मुंज की घास नहीं होती और काले हिरण नहीं मिलते हैं, उन स्थानों की यात्रा नहीं करनी चाहिए. इसके अलावा समुद्र की यात्रा से व्यक्ति की अशुद्धता जैसी हास्यास्पद अंधविश्वासों में भी व्यापार और वाणिज्य के स्तर को काफी गिरा दिया. लेकिन इतना होने पर भी भारत का व्यापारिक संबंध अरब, दक्षिण पूर्व एशिया और चीन के साथ बना रहा.

2. अरब के साथ संबंध

इस काल में भारत का अरब के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ा. भारत चंदन की लकड़ी, कपूर, लॉन्ग,  इलायची, काली मिर्च, हाथी दांत, गरम मसाला, कपड़ा नील आदि निर्यात करता था. वहीं भारत इन से शराब, सोना, चांदी आदि की निर्यात करता था. अरब समुद्र प्रेमी होते थे. इस कारण भारत-अरब व्यापार समुद्री मार्ग से ज्यादा हुआ. इस व्यापार का प्रभाव मालवा और गुजरात पर पड़ा. इस से दोनों नगर व्यापारिक केंद्र बन गए. इस वजह से गुजरात में चंपानेर और अकिलेश्वर नामक नगरों की स्थापना हुई.

राजपूत कालीन आर्थिक स्थिति

3. दक्षिण पूर्वी एशिया से संबंध

इस काल में भारत का व्यापार दक्षिण पूर्वी एशिया से बहुत अधिक हुआ. इसका मुख्य कारण भारतीय साहित्यों में दक्षिण पूर्वी एशिया की भौगोलिक स्थिति का संपूर्ण वर्णन होना है. इन साहित्यों को पढ़कर भारतीय व्यापारी दक्षिण पूर्वी एशिया की भौगोलिक स्थिति से अवगत हो गए थे. अतः दक्षिण पूर्वी एशिया के व्यापारिक  द्वार भारतीयों के लिए खुले रहे. इसके अलावा बहुत से भारतीय व्यापारी दक्षिण पूर्व एशिया में जाकर बस गए थे. वहां उन्होंने अपने वैवाहिक संबंध स्थापित कर लिए थे. वे भारत से पहले से ही परिचित थे और उनका लगाव भारत के साथ था. अतः उनके प्रयासों से भारत के साथ उनके व्यापारिक संबंध बढ़े. इसके अलावा भारत से बहुत से बहुत से बौद्ध तथा हिंदू धर्म के प्रचारक दक्षिण पूर्वी एशिया की ओर गए. वहां उन्होंने बौद्ध तथा हिंदु धर्म के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का भी प्रचार किया. वहां के लोग भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर भारतीय संस्कृति का स्वागत किया. जिसकी वजह से भारत का दक्षिण पूर्व एशिया से व्यापारिक संबंध भी स्थापित हुआ. भारत दक्षिण-पूर्वी एशिया से गरम मसाला आयात करता था.

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4. चीन से संबंध

दक्षिण पूर्वी एशिया के साथ भारत के बढ़ते व्यापारिक संबंधों ने चीन के साथ भारत के व्यापारिक संबंध को भी प्रोत्साहित किया. चीन के साथ भारत का व्यापार स्थल मार्ग इस कारण संभव ना हुआ क्योंकि स्थल मार्ग की स्थिति चीन की दृष्टिकोण से तुर्क अरब व चीनियों के मध्य संघर्ष होना था. अमलसूदी के अनुसार कैण्टन का बंदरगाह भारत व चीन के मध्य व्यापार का चीनी अड्डा था. चीन से होने वाले व्यापार से भारत इतना लाभ था कि बंगाल के पाल शासकों तथा दक्षिण भारत के चोल पल्लव शासकों ने भी अपने व्यापारिक दूत चीन भेजे थे. चीन में होने वाले कुतुबनुमा के आविष्कार ने भी इसमें और भी गति प्रदान की. 

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इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत का व्यापार इस युग में जहां रोम व इरानी साम्राज्य से कम हुआ, तो वहीं दक्षिण पूर्वी एशिया और चीन के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ी. लेकिन ये रोम और ईरान से होने वाली व्यापार की तुलना में काफी कम थी.

5. आर्थिक विषमता

तत्कालीन समाज में आर्थिक विषमता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती थी. एक और समाज का उच्च वर्ग जिसमें अधिकारी, मंत्री, सामंत आदि होते थे, उनका जीवन विलासी और तड़क-भड़क वाला जीवन था. दूसरी ओर सामान्य जनता आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहा था. उच्च वर्ग चीन से आयात किए हुए रेशमी वस्त्र वस्त्रों को धारण करता था. जब वे घर से बाहर निकलते थे तो इनके बीच नौकरों का जमघट चलता था. व्यापारी वर्ग के पास आलीशान महल, हाथी, घोड़े एवं अन्य विलासिता पूर्ण जीवन यापन करने की सामग्री की कमी न थी.

राजपूत कालीन आर्थिक स्थिति

वहीं सामान्य जनता की आर्थिक स्थिति संतोषप्रद नहीं थी. कल्हण की राजतरंगिणी इन वर्गों की विषमता को स्पष्ट किया है. उनके अनुसार जहां एक और दरबारी भूना मांस खाते तथा सुगंधित शराब का सेवन करते, वहीं दूसरी ओर सामान्य जनता चावल के लिए भी तरसती थी. इस स्थिति का सबसे बड़ा कारण था सामान्य जनता करों के बोझ से दबी हुई थी. कृषकों को तालाब कर, चरागाह कर तथा उपज का 1/6 भाग कर के रूप में देना पड़ता था. इसके अतिरिक्त जमींदार वर्ग उन पर अन्य कर भी लाद देते थे. तत्कालीन साहित्य के अनुसार राजपूत सरदार मृतक व्यक्तियों के संबंधियों से कफन का कर भी वसूलते थे. यही सामांत बलपूर्वक उनके पशुओं का अपहरण कर लेते थे. इन परिस्थितियों ने सामाजिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डाला. इस कारण अधिकांश कृषक धीरे-धीरे डाकु-लुटेरे बनते चले गए जिससे अराजकता का वातावरण उत्पन्न हो गया.

इन बातों से स्पष्ट पता चलता है कि तत्कालीन समाज को आर्थिक रूप से बहुत उतार चढ़ाव देखने को मिला. समाज के लोग धनी और निर्धन वर्गों में बंटे हुए थे. समाज में आर्थिक असंतुलनता थी. इस कारण अराजकता का वातावरण था.

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