रूस की क्रांति (1917) के क्या कारण थे?

रूस की क्रांति 1917 ई. (Russian Revolution 1917)

1917 ई. में रूस में दो क्रांतियां हुई. पहली क्रांति को मार्च की क्रांति कहा जाता है तथा दूसरी क्रांति को नवंबर की क्रांति कहा जाता है. यद्यपि दोनों क्रांतियाँ अलग-अलग समय में हुई थी, लेकिन इसे एक क्रांति की ही दो अध्याय कहना गलत नहीं होगा. मार्च की क्रांति का स्वरूप राजनीतिक थी और नवंबर की क्रांति का स्वरूप सामाजिक थी. इतिहास गवाह है कोई भी क्रांति अचानक इस तरह नहीं होती है. इसके लिए पहले से ही कुछ न कुछ चिंगारी अंदर ही अंदर सुलगती हो रही होती है. रूस की क्रांति के भी इसी प्रकार बहुत से कारण थे. 

रूस की क्रांति

रूस की क्रांति के कारण (Reason for Russian Revolution)

1. निरंकुश और अयोग्य शासक

राजतंत्र रूस के राजा जार निरंकुशता के पक्षपाती थे. उनका दैवीय शक्ति पर अत्यधिक विश्वास था. जार अलेक्जेंडर प्रथम और निकोलस ने दमनकारी नीतियों का मार्ग अपनाया. लेकिन सामंतो और जमींदारों ने इसका विरोध किया. लेकिन जनता उनसे सुधारों की उम्मीद करने लगी थी. लेकिन जार के फिर से निरंकुश हो जाने से सुधार कार्य न हो सका. जार निकोलस II के समय रूस-जापान युद्ध में रूस की पराजय ने देश में अशांति का माहौल बन चुका था. जार निकोलस II बड़ा अंधविश्वासी और हठी स्वाभाव  का था. वह मंदबुद्धि होने के साथ – साथ उनमें घटनाओं का प्रभाव और व्यक्तियों के चरित्र पहचानने शक्ति नहीं थी. उसपर महारानी अकलेक्जेंड्रा का बहुत  प्रभाव था. वह स्वेच्छाधारी शासन की पक्षपाती थी. 

रूस की क्रांति

2. कृषकों की दयनीय स्थिति

इस समय पूरे यूरोप में औद्योगिक क्रांति का दौर चल रहा था. रूस के कृषि प्रधान देश था लेकिन रूस के किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी. उनकी स्थिति दासों के समान थे. भूमि का 67% हिस्सा सामंतों के पास था तो वहीं 13% हिस्सा चर्च के पास थे. किसान खेतों में मज़दूरों की तरह कार्य करते थे. उन पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगे हुए थे. जिसकी वजह से किसान वर्ग में असंतोष की भावना बढ़ती जा रही थी. इस वजह से 1902 ई. में पोल्टावा और हारकोव में कृषक विद्रोह हुए. 1905 ई. में किसानों ने कई जगहों पर दंगे किए. इन आंदोलनों के परिणामस्वरुप 1906 ई. और 1910 ई. में भूमि संबंधित कुछ सुधार हुए. लेकिन भूमिहीनों की समस्या जस की तस बनी रही. लेनिन ने कृषकों से कहा कि हमें संसदीय गणतंत्र की आवश्यकता नहीं है. हमें मध्यम वर्गीय जनतंत्र नहीं चाहिए. हमें मजदूरों, कृषक एवं सैनिकों के द्वारा संगठित सरकार के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार की सरकार नहीं चाहिए.

रूस की क्रांति

3. मजदूर वर्ग व पूंजीवाद

जार एलेग्जेंडर के समय रूस में औद्योगिक क्रांति काफी तेजी से होने लगा था. भूमिहीन किसान रोजगार की तलाश में औद्योगिक संस्थानों की ओर बढ़ रहे थे. कृषकों की मजबूरी के कारण औद्योगिक संस्थानों के मालिकों को मनमाने करने का अवसर हुआ था. औद्योगिक संस्थानों के मालिकों के द्वारा इन कृषकों से अधिक काम लिया जाता और कम वेतन दिया जाता था. शासन भी उद्योगपतियों का ही साथ दे रहा था. परिणामस्वरूप श्रमिकों पर समाजवादी सिद्धांतों का पर्याप्त पभाव पड़ा. श्रमिकों ने 1905 ई. में सेंट पीटरबर्ग में श्रमिकों की सोवियत तक बना डाली. फिशर के अनुसार इस साम्यवादी प्रचार ने देश के श्रमिकों में जारशाही के प्रति को घोर असंतोष एवं घृणा उत्पन्न कर दी. जिसके कारण लोग जार के शासन का अंत करने के लिए क्रांतिकारियों का साथ देने लगे.

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4. अल्पसंख्यकों का विद्रोह

इस समय रूस में यहूदी, पाल, फिन और अन्य अल्पसंख्यक जाति निवास करते थे. यह सभी अल्पसंख्यक जातियां रूसी साम्राज्य के अधीन होती थी. इस वजह से ये पराधीनता का अनुभव करते थे. रूसी शासक इन जातियों का रूसीकरण करना चाहते थे. उनकी शिक्षा का माध्यम भी रूसी भाषा कर दिया गया. रूस के उच्च पदों में केवल रूसियों को नियुक्त किया जाता था. रूसी प्रशासन के ऐसी भेदभाव पूर्ण नीति ने अल्पसंख्यक जातियों के मन में असंतोष की भावना भर दिया. रूसी प्रशासन ने अल्पसंख्यक जातियों और यहूदियों और आर्मेनियानों के असंतोष को दबाने के लिए उन पर भीषण अत्याचार किए. इस वजह से 1905 ई. में जॉर्जिया, पोलैंड और बाल्टिक क्षेत्रों में विद्रोह हुए. इन विद्रोहों को कुचलने के लिए दमनकारी नीति का सहारा लिया गया. इसकी वजह से यह अल्पसंख्यक जातियां भी निरंकुश शासन का खात्मा करने के लिए अन्य विद्रोहियों का साथ देने का निश्चय किया.

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5. प्रबुद्ध वर्ग का प्रभाव

टालस्टाय,  वास्तोविस्की , गोर्की, बाकुनिन जैसे प्रबुद्ध लोगों के विचारों ने रूस के जनता को अत्यधिक प्रभावित किया. इनके विचारों से रुसी जनता में बौद्धिक विकास हुआ. इस वजन से उनमें निरंकुश शासन से छुटकारा पाने की इच्छा प्रबल होने लगी. जार ने साम्यवादी विचारों के बढ़ते प्रभाव को देखकर उन पर प्रतिबन्ध लगाने की कोशिश की. पर वह इन विचारों के प्रभाव को रोक नहीं सका. 

6. यूरोपीय लोकतंत्रों का प्रभाव

प्रथम विश्व युद्ध में रूस ने फ्रांस और इंग्लॅण्ड का साथ दिया. इस युद्ध में फ्रांस और इंग्लॅण्ड का नारा “राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता, और लोकतंत्र की रक्षा” था. इस नारा का प्रभाव रूस की जनता पर भी पड़ा. जब रूस की जनता ने देखा कि उसकी सेना राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए लड़ रही है तो निरंकुश शासन के अधीन रह रही रुसी जनता के मन में भी स्वतंत्रता और लोकतंत्र शासन की स्थापना करने की कोशिश करने लगी. 

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7. प्रथम विश्व युद्ध और आर्थिक संकट

प्रथम विश्व युद्ध में रूस फ्रांस और इंग्लॅण्ड की ओर से लड़ा. लेकिन इस युद्ध के दौरान जार की विवेकहीनता, युद्ध कार्य में अनावश्यक हस्ताक्षेप और कर्तव्यहीनता ने सेना का मनोबल गिरा दिया. सैनिकों के पास युद्ध सामग्री का आभाव रहा. प्रारम्भिक दो वर्षों में रूस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. इस दौरान बाल्टिक एवं काला सागर के समुद्री रास्ते बंद हो जाने के कारण रूस बाकी दुनिआ से अलग-थलग पड़  गया. इस वजह से खाने-पीने की वस्तुओं की भारी कमी हो गई और इसकी कीमतें आसमान छूने लगी. अनाज, कपडे और ईंधन इतने महंगे हो गए कि इनको खरीदना मुश्किल हो गया. डबलरोटी खरीदने तक के लिए भी लोगों की लम्बी-लम्बी कतारें लगने लगी. इस वजह से जनता में असंतोष बढ़ने लगा. जगह-जगह हड़ताल और उपद्रव होने लगे. यही उपद्रव धीरे-धीरे विद्रोह का रूप लेने लगी. 

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