वेवेल योजना
1943 ई. में लॉर्ड वेवेल भारत के नए वायसराय बने. उन्होंने भारत की स्थिति को सुधारने के लिए मई 1944 ई. में महात्मा गांधी को रिहा करने का आदेश दिया. इसके अलावा वेवेल ने सभी कांग्रेसी नेताओं को रिहा करने की भी आदेश दिए. भारतीयों में व्याप्त जन आक्रोश, अमेरिका आदि देशों के राजनीतिक दबाव तथा विश्व युद्ध की स्थिति तथा जापान के विरुद्ध भारतीयों की मदद प्राप्त करने आदि विचारों को ध्यान रखते हुए बहुत सी योजनाओं पर कार्य करना शुरू कर दिया. लॉर्ड वेवेल ने इस योजना पर अमल करते हुए 14 जून 1945 ई. वेवेल योजना की घोषणा की. इस योजना का मुख्य उद्देश्य भारत में संवैधानिक गतिरोध को दूर करना था. इस योजना पर विचार करने के लिए लॉर्ड वेवेल ने 25 जून 1945 ई. को शिमला में एक सम्मेलन बुलाया. इस कारण इसे शिमला सम्मलेन के नाम से भी जाना जाता है. इस सम्मलेन में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के अतिरिक्त अकाली नेता मास्टर तारा सिंह भी शामिल थे. यह सम्मेलन 14 जुलाई 1945 ई. तक चला.
वेवेल योजना की प्रमुख बातें:
- भारत सरकार, भारत के प्रमुख संप्रदायों की सहमति के बिना कोई परिवर्तन नहीं करेगी. यदि भारतीय जापान के विरुद्ध युद्ध में सहयोग देने तथा भारत के पुनर्निर्माण के लिए राजी हो तो सरकार उनके लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए तैयार है. इसके अलावा वायसराय की कार्यकारी परिषद में भी उसके अतिरिक्त सभी भारतीयों को रखने के लिए राजी है.
- वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में मुसलमान और सवर्ण हिंदुओं की संख्या बराबर होगी.
- ब्रिटिश सरकार का लक्ष्य भारत को स्वशासन की ओर अग्रसर करना है.
- वायसराय की कार्यकारिणी परिषद अस्थायी राष्ट्रीय सरकार की भांति रहेंगी.
- इन प्रस्तावों का भारत के भावी संविधान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
वेवेल योजना के असफलता के कारण
14 जुलाई 1945 ई. को यह सम्मलेन असफल हो गया. वेवेल योजना के असफल होने के निम्नलिखित प्रमुख कारण थे:
- कांग्रेस ने कार्यकारी परिषद में हिंदुओं और मुसलमान के बराबर संख्या को इसलिए स्वीकार किया क्योंकि इससे भारत को स्वतंत्रता जल्दी मिल जाती. किंतु जिन्ना इस बात पर अड़ा रहा कि कार्यकारी परिषद में समस्त मुसलमान प्रतिनिधि मुस्लिम लीग के द्वारा ही मनोनीत हो चाहिए क्योंकि मुसलमानों के प्रतिनिधित्व करने वाली वही एकमात्र संस्था है. इस बात को स्वीकार करने का यह अर्थ था कि इससे कांग्रेस का राष्ट्रीय स्वरूप समाप्त हो जाता तथा उसका स्वरूप एक हिंदू संस्था के रूप में प्रमाणित हो जाता. इसके साथ ही कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद भी वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य नहीं बन सकते थे.
- कांग्रेस भी एक-दो राष्ट्रीय मुसलमानों को कार्यकारी परिषद में अपने प्रतिनिधि के रूप में भेजना चाहते थे लेकिन जिन्ना इस बात के लिए तैयार नहीं हुआ.
- इस समय इंग्लैंड के राजनीतिक स्थिति में भी परिवर्तन हो रहा था. इस समय चर्चिल इंग्लैंड का प्रधानमंत्री था तथा लेबर दल उससे अलग हो चुका था. चर्चिल को आगामी चुनाव में भी सफल होने की आशा थी तथा वह मुस्लिम लीग के सहयोग के बिना भारत में अस्थायी सरकार बनाने के पक्ष में नहीं थी. अत: वेवेल ने भारत सचिव के परामर्श को मानकर 14 जुलाई 1945 ई. को शिमला सम्मेलन की समाप्ति की घोषणा कर दी.
- इस सम्मेलन की असफलता के लिए वायरसराय वेवेल भी कम उत्तरदायी नहीं था. जिन्ना को एक बहुत बड़े महपुरुष जैसा महत्त्व देकर इस सम्मेलन की बारे में उनसे विचार-विमर्श करना और फिर अपेक्षा करना कि सम्मेलन सफल हो जाए यह संभव नहीं था. फिर भी यदि जिन्ना और मुस्लिम लीग को इतना महत्व देना था तो वेवेल को पहले ही जिन्ना और कांग्रेस के नेताओं से विचार-विमर्श कर लेना चाहिए था. यद्यपि यह सम्मेलन असफल हो गया लेकिन इससे जिन्ना के प्रभाव में असीमित वृद्धि हुई. इससे भारत के विभाजन के आसार और भी प्रबल हो गए.
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