वैदिक कालीन सामाजिक स्थिति का वर्णन कीजिए

वैदिक कालीन सामाजिक स्थिति

ऋग्वेद के अनुसार आर्यों का जीवन बहुत ही व्यवस्थित था. इस विषय पर डॉ स्मिथ ने लिखा है कि ऋग्वेद अस्थायी रूप से निवास करने वाले एक जनसमूह, व्यवस्थित समाज और पूर्व विकसित संस्कृति की ओर संकेत करता है.

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1. परिवार

वैदिक समाज का आधार परिवार था. परिवार पितृसत्तात्मक होता था. परिवार को कुल भी कहा जाता था. ऋग्वेद में कुल शब्द का प्रयोग नहीं मिलता है. यहाँ परिवार के लिए गृह शब्द का प्रयोग हुआ है. एक परिवार में माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री सभी सम्मिलित रूप में रहते थे. परिवार में पिता की प्रधानता थी और पिता के पश्चात सबसे बड़ा पुत्र परिवार का प्रधान होता था. इस प्रकार आर्यों में प्रारंभ से ही संयुक्त परिवार व्यवस्था और पितृ प्रधान प्रणाली प्रचलित थी. परिवार में पिता के बाद माता का स्थान होता था. पति के जीवित रहते परिवार में उसकी भूमिका प्रभावशाली होती थी. पुत्र का जन्म शुभ माना जाता था. गोद लेने की भी प्रथा थी, परंतु इसे बहुत अच्छा नहीं माना जाता था. कई परिवार मिलकर ग्राम या गोत्र तथा कई ग्राम मिलकर वंश तथा कई वंश मिलकर जन का निर्माण करते थे.

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2. विवाह रीति

विवाह का मुख्य उद्देश्य संतानोत्पत्ति माना जाता था. इस कारण विवाह को पवित्र बंधन माना जाता था. साधारणतया एक पत्नी प्रथा प्रचलित थी, परंतु बहुपत्नी प्रथा पर भी कोई रोक न थी. राजवंश के व्यक्ति एक से अधिक विवाह कर लेते थे. परिवार में पत्नी का सम्मान था और पति की अर्धांगिनी कहलाती थी वह और सभी सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में हिस्सा लेती थी. शतपथ ब्राह्मण में पत्नी को पति की अर्धांगिनी कहा गया. इस समय बाल विवाह प्रचलित नहीं थी. स्त्रियां स्वेच्छा से विवाह करती थी. विवाह की आयु लगभग 16-17 वर्ष होती थी. आर्यों का दस्यु और अनार्यों से विवाह वर्जित था. भाई-बहन और पिता पुत्री का विवाह भी निषेध था. इसके अतिरिक्त विवाह संबंध में कोई अन्य रुकावट न थी. विधवा विवाह प्रथा थी या नहीं यह स्पष्ट नहीं है, परंतु पुत्रहीन को अपने पति के भाई से पुत्र उत्पन्न करने अथवा नियोग के द्वारा पुत्र उत्पन्न करने का अधिकार था. सती प्रथा के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं. यह मुख्यतः राजवंशों में ही होते थे. यह प्रथा सार्वजनिक रूप से मान्य नहीं था. दहेज प्रथा प्रचलित नहीं थी. स्त्री अथवा पुरुष में कोई शारीरिक दोष होने पर ही दहेज दिया जाता था. 

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3. स्त्रियों की दशा

वैदिक काल में स्त्रियों की दशा काफी अच्छी थी. इस समय पर्दा प्रथा प्रचलित नहीं थी. स्त्रियाँ सार्वजनिक उत्सवों में भाग लेती थी साथ ही धार्मिक एवं सामाजिक कार्य करती थी. स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था. ऋग्वेद में विश्वतारा, मुद्रा, अपाला, घोषा आदि विदुषी स्त्रियों का जिक्र मिलता है. इन स्त्रियों ने ऋषि का पद प्राप्त किया था. स्त्रियों और पुरुषों के मिलने पर कोई बंधन नहीं था. स्त्रियाँ युद्ध क्षेत्र तक जाती थी. आर सी दत्त के अनुसार वैदिक हिंदू स्त्रियों का स्थान प्राचीन यूनानी और रोमन स्त्रियों की तुलना में श्रेष्ठ था. परंतु स्त्री को पुरुष के बराबर अधिकार प्राप्त न थे. वे पिता तथा पति की संपत्ति के अधिकारी नहीं थी. अविवाहित जीवन में उन्हें पिता अथवा भाई के संरक्षण में रहना पड़ता था. विवाह के पश्चात पति के संग में रहना पड़ता था. स्त्री के अधिकार एक पुत्री, एक बहन अथवा एक पत्नी के रूप में ही सम्मानित थे.

4. वर्ण व्यवस्था

ऋग्वेद के दसवें मंडल पुरुष सूक्त में प्रथम बार उल्लेख किया गया जिसमें कहा गया कि ईश्वर ने आदि पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, जांघों से वैश्य और चरणों से शूद्र को जन्म दिया. इससे स्पष्ट है कि भारत वर्ण अथवा जाति व्यवस्था की शुरुआत ऋग्वेद के निर्माण के अंतिम समय में ही हुआ था. इससे पहले समाज के केवल दो ही भाग थे- आर्य और अनार्य. धीरे-धीरे वर्ण व्यवस्था आरंभ हुई और ब्राह्मणों और राजन्यों ने श्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर लिया. जनसाधारण जो कषि, पशुपालन अथवा अन्य व्यवसाय में लगे हुए थे वे विश कहलाने लगे और अनार्यों को शूद्रों की श्रेणी में रखा गया. परंतु इस काल में वर्ण व्यवस्था कठोर नहीं थी. व्यवसायों के आधार पर उनके वर्णों परिवर्तन संभव था. विवाह संबंधों और खानपान में आर्यों में कोई बंधन नहीं था. वे केवल दस्यु, गैर आर्य शुद्रों, दासों आदि से संबंध नहीं रखते थे. ऋग्वेद में पुरुष-दान का उल्लेख बहुत कम मिलता था जबकि नारी-दान स्वीकार की जाती थी. इस समय में धनी वर्ग में घरेलू दास प्रथा ऐश्वर्य के प्रतीक माना जाता था. आर्थिक उत्पादन में दास प्रथा उस समय प्रचलित नहीं थी अर्थात कृषि उत्पादन या किसी भी अन्य वस्तु के उत्पादन के लिए मनुष्य को दास के रूप में नहीं रखा जाता.

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5. भोजन

आर्यन का मुख्य भोजन दूध और दूध से बनी हुई वस्तुएं जैसे कि घी, मक्खन, दही आदि था. उनको पीसकर आटा बनाया जाता था तथा उसकी रोटियां, पुए आदि बनते थे. सब्जियों और फलों का प्रयोग होता था. आर्य भेड़, बकरी आदि के मांस खाते थे. घोड़े का मांस केवल अश्व बलि के अवसर पर खाया जाता था. कुछ उदाहरण भी मिलते हैं जहाँ गाय की बलि दिया जाना और उसके मांस खाने का जिक्र किया गया है. गाय की बलि केवल अत्यंत महत्वपूर्ण अवसरों पर दी जाती थी और वह भी उस गाय का जो बच्चा और दूध देना बंद कर देती थी. अन्यथा गाय का वध करना और उसक मांस खाना वर्जित था. आर. एस. शर्मा के अनुसार वैदिक आर्यों को चावल का ज्ञान नहीं था क्योंकि ऋग्वेद के मंत्रों में चावल का कहीं उल्लेख नहीं पाया जाता है. संभवत ऋग्वेद की रचना के अंतिम काल में उनको चावल का ज्ञान हुआ था. पेय पदार्थों में सुरा और सोम मुख्य थे. सुरा शराब थी, परंतु सोम एक विशेष प्रकार के पौधे का रस था और उसका प्रयोग केवल उत्सव अथवा यज्ञों के अवसर पर ही किया जाता था. कुछ विद्वानों का मानना है कि सुरा पीने से नशा होती थी. इस कारण सदाचारी व्यक्तियों के लिए उसका प्रयोग वर्जित था.

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6. वस्त्र

स्त्री और पुरुष दोनों एक ही प्रकार के वस्त्र पहनते थे. उसके मुख्य वस्त्र वास और अधिवास थे. वास कमर के नीचे पहना जाता था और अधिवास कमर के ऊपर कंधे पर डालने वाला वस्त्र था. नीवी नाम का एक अन्य वस्त्र का भी उल्लेख मिलता है जो संभवत: स्त्रियों के द्वारा अंदर पहना जाता था. विवाह के अवसर पर वधू एक विशेष प्रकार के वस्त्र पहनती थी जिसे वधुय कहा जाता था. नाचने वाली स्त्रियां पैसा नामक एक अन्य वस्त्र का प्रयोग करती थी. शाल या चादर को द्रापी कहा जाता था. मृग चर्म को मरुत कहा जाता था. इसका प्रयोग ऋषि-मुनि करते थे. डॉ. आर. एस. शर्मा के अनुसार ऋग्वैदिक आर्यों को रूई का ज्ञान नहीं था. यही कारण है वैदिक आर्य संभवत: सूती वस्त्रों का प्रयोग नहीं करते थे और उसके अधिकांशतः वस्त्र ऊन के होते थे. परंतु कुछ इतिहासकारों का कहना है कि उस काल में सूती और ऊनी दोनों प्रकार की वस्त्रों का प्रयोग करते थे. संभवत: ऋग्वेद के बाद के समय में आर्यों को सूती कपड़े का भी ज्ञान हो गया था.

7. मकान

आर्यों के मकान साधारण होते थे. उनके निर्माण में मिट्टी तथा बांसों का प्रयोग किया जाता था. उस समय नगरों का निर्माण होना आरंभ नहीं हुआ था.

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8. आभूषण

स्त्री और पुरुष दोनों ही सोने और बहुमूल्य पत्थरों से बने आभूषण का प्रयोग करते थे. कुंडल, अंगूठी, गले की हार, बाजूबंद आदि उसके विभिन्न आभूषण थे. वे फूलों की गजरों का भी प्रयोग करते थे. कुरीरा स्त्रियों के द्वारा सिर पहनने वाला आभूषण था. स्त्री-पुरुष दोनों ही अपने बालों में तेल डालते थे और कंघी करके संवारते थे. स्त्रियाँ लंबे बाल रखती थी जबकि पुरुष अधिकांशतः छोटे बाल ही रखते थे. पुरुष दाढ़ी रखते थे तथा दाढ़ी-मूंछ साफ भी कराते थे.

9. मनोरंजन

आर्यों के मनोरंजन का साधन नाचना-गाना, रथों की दौड़, जुआ खेलना और ड्रामा करना आदि था. वाध्य यंत्रों के रूप में वे बांसुरी, बीणा और नगाड़े का प्रयोग करते थे. स्त्री और पुरुष दोनों ही नाचते और गाते थे. शिकार खेलना राज घरानों का एक प्रमुख मनोरंजन का साधन था.

10. नैतिकता

वैदिक काल में आर्यों का नैतिक जीवन बहुत श्रेष्ठ था. वे सदाचार, अतिथि सत्कार, सत्य बोलना, दान करना, दुर्बलों की सहायता करना, सद्विचार रखना आदि को बहुत महत्व देते थे. चोरी, झूठ बोलना, व्यभिचार, धोखेबाज और जादू-टोना करना दंडनीय था. वे अग्नि देवता से सद् विचारों की मांग करते थे और वरुण देवता से अपने पापों की क्षमा मांगते थे.

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11. शिक्षा

इस समय तक आर्यों में दीक्षा प्रथा (शिक्षा के प्रारंभ का ज्ञान) आरंभ नहीं हुआ था. लेकिन यह किसी ने कुछ किसी रूप में प्रचलित थी. पिता बच्चों को घर पर ही दीक्षा देता था. उसके पश्चात विद्यार्थी गुरु के पास रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे. संभवत: उस समय शिक्षा मौखिक रूप ही प्रदान की जाती थी क्योंकि उस समय की लिपि का कोई स्पष्ट प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ है. ऐसी शिक्षा में स्मरण शक्ति का बहुत महत्व रहा होगा. उस समय शिक्षा का मुख्य लक्ष्य बुद्धि का विकास और चरित्र निर्माण करना था.

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