वैदिक साहित्य क्या है? वेदों का विस्तृत वर्णन करें

वैदिक साहित्य

वैदिक साहित्य का आशय है वेदों पर आधारित साहित्य निर्माण करने वाले पुस्तकें. वेद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के विद धातु से हुई है. इस शब्द का अर्थ है- जानना. ऐसा माना जाता है कि वेद अपौरुषय काव्य है. इसकी रचना मनुष्य के द्वारा रचित नहीं वरन यह ईश्वर द्वारा प्रदत संहिता है. कहा जाता है कि ईश्वर ने इसे कुछ ऋषियों को ज्ञान के रूप में प्रदान किया. इसके बाद उन ऋषियों के द्वारा यह ज्ञान दूसरे ऋषियों को मौखिक रूप से प्रदान किया. इस प्रकार यह काव्य कंठस्थ करके पीढ़ी दर पीढ़ी प्रसार होता चला गया.

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वैदिक साहित्य को विद्वानों ने मुख्य रूप से दो भागों में बांटा है- श्रुति साहित्य तथा स्मृति साहित्य. श्रुति साहित्य में मुख्य रूप से चार वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद ग्रंथ तथा आरण्यक ग्रंथ हैं. वहीं स्मृति साहित्य में वेदांग, सूत्र ग्रंथ, स्मृति ग्रंथ तथा अन्य धार्मिक ग्रन्थ हैं. श्रुति साहित्य को जहां ईश्वर के द्वारा दिया गया ज्ञान कहा जाता है, वहीं स्मृति साहित्य को मानव रचित साहित्य कहा जाता है. इन साहित्य को रचना काल के आधार पर दो भागों में बांटा गया है – पूर्व वैदिक काल (ऋग्वैदिक काल -1500 ई. पू. से 1000 ई. पू.) तथा उत्तर वैदिक काल (1000 ई. पू. से 500 ई. पू)

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वेद

वेद चार हैं- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद. इसमें ऋग्वेद सबसे पुरानी है.

1. ऋग्वेद- वेदों में ऋग्वेद सबसे पुरानी है. इसे ऋग्वेद संहिता भी कहा जाता है. इस संहिता की कुछ आरंभिक मंत्रों की रचना तो 1700 ई.पू. में ही हो चुकी थी. यह संहिता किसी एक ही काल अथवा व्यक्ति की रचना नहीं बल्कि कालांतर में विभिन्न व्यक्तियों के द्वारा रचित है. इस बात की पुष्टि भाषागत  विभेद के द्वारा होती है. ऋग्वेद में दो विभाजन मिलते हैं- 1. अष्टक अध्याय एवं वर्ग 2. मांडल अनुवाक् और सूत्र.

ऋग्वेद का दूसरा विभाजन अधिक अर्वाचीन और वैज्ञानिक है. संपूर्ण ऋग्वेद को 10 मंडलों में विभाजित किया गया है. इसमें लिखी हुई मंत्र समूह को सूक्त कहते हैं. ऋग्वेद के कुल सूक्तों की संख्या 1028 है. इन सूक्तों में जो मंत्र संग्रहित हैं, उनको ऋचाएँ कहा जाता. ऋग्वेद के दसवें मंडल की रचना बाद में की गई. अतः ऋग्वेद कालीन सभ्यता का आधार प्रथम नौ मंडल ही है. सबसे पहले 2 से 7 मंडलों की रचना हुई. इन मंडलों को गृत्समद, विश्वमित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज और वशिष्ठ ऋषियों के परिवार की रचनाएं हैं. इसके बाद नौवें मंडल की रचना हुई. सोम देवता से संबंध रखने वाले सूक्तों को आठवें मंडल से निकालकर नौवें मंडल में रखा गया. दसवें मंडल की रचना बाद में की गई. इसकी भाषा अन्य मंडलों से भिन्न है.

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पुरुष सूक्त ऋग्वेद के दसवें मंडल में पाया जाता है. इसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र वर्णों का जिक्र है. इसमें मानव की उत्पत्ति क्रमशः मुख, भुजा, जंघा और पैर से होने का जिक्र है. ऋग्वेद के आरंभिक मंडलों में 1017 सूक्त हैं तथा बाद में दसवें मंडल में 19 सूक्तों को बाद में जोड़ा गया है. बाद में जोड़े गए इन सूक्तों को वालखिल्प भी कहा जाता है. ऋग्वेद की रचना से कुछ विदुषी स्त्रियों का नाम भी पाया जाता है, जैसे कि लोपमुद्रा, घोषा, पौलोमी, काक्षावृति आदि. ऋग्वेद में कुल 5 शाखाएं हैं- शाकल, वाष्कल, अश्वलायन, सांख्यानां तथा माण्डूकायन. वर्तमान में केवल शाकल शाखाएं उपलब्ध है बाकी विलुप्त हो गई. शाकल शाखा में दो ब्राह्मण (ऐतरेय ब्राह्मण, कौषीतकी ब्राह्मण) दो आरण्यक (ऐतरेय आरण्यक, कौषीतकी आरण्यक) तथा दो उपनिषद (ऐतरेयोपनिषद, कौषीतक्योपनिषद) उपलब्ध है.

2. यजुर्वेद- ऋग्वेद के बाद यजुर्वेद का स्थान आता है. इसमें यज्ञिक अनुष्ठान का वर्णन पाया जाता है. यजुर्वेद को अध्वर्वेद भी कहा जाता है. इसकी दो शाखाएं हैं- कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद. कृष्ण यजुर्वेद की चार संहिताएँ हैं- काठक, कपिष्ठल, मैत्रायणी तथा तेत्तरीय. शुक्ल यजुर्वेद की मात्र एक ही संहिता है जिसे वाजसनेयि संहिता का जाता. यजुर्वेद के ब्राह्मण को शतपथ ब्राह्मण या वाजसनेयि ब्राह्मण कहा जाता है. यजुर्वेद मंत्रों से यज्ञ करने वाले व्यक्ति को होता कहा जाता है. कृष्ण यजुर्वेद की तुलना में शुक्ल यजुर्वेद का अधिक महत्व है. इसमें 40 अध्याय है और हर अध्याय का संबंध किसी न किसी याज्ञिक अनुष्ठान से है. इसका अंतिम अध्याय ईशोपनिषद है. इसका विषय याज्ञिक न होकर दार्शनिक अथवा अध्यात्मिक है. यजुर्वेद एक गद्य रचना है.  इसका उपनिषद, बृहदारण्यक उपनिषद है.

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3. सामवेद- शाम शब्द की उत्पत्ति समन शब्द से हुई है. इसका अर्थ है-गीत. इसे ऋषियों के द्वारा गाया जाता था. उन ऋषियों को उदगाता कहा जाता था. पुराणों में सामवेद की 1000 शाखाओं का जिक्र पाया जाता है, परंतु वर्तमान में इनकी केवल 3 शाखाएं ही उपलब्ध है-कौथुम, राणायनीय तथा जैमिनीय.

संपूर्ण सामवेद में कुल 1810 मंत्र है. इसमें 261 मंत्रों की पुनरावृति हुई है. सामवेद में कुछ ऐसे मंत्र भी हैं जिन्हें ऋग्वेद से लिया गया है. इन मंत्रों की संख्या 75 है. सामवेद के ब्राह्मणों के नाम पञ्चविश ब्राह्मण, षडविश: ब्राह्मण तथा जैमिनीय ब्राह्मण हैं.

4. अथर्ववेद- अन्य वेद जहां परलोक संबंधी विषयों का प्रतिपादन करती है, वहीं अथर्ववेद संहिता लौकिक फल प्रदान करने वाली मानी जाती है. अथर्वा ऋषि इसके प्रथम दृष्टा थे तथा उन्हीं के नाम पर इसे अथर्ववेद कहा गया है. दूसरे दृष्टा आंगिरस ऋषि के नाम पर इसे अथवाॅंङ्गि रस वेद भी कहा जाता है. इसकी दो शाखाएं हैं- पिप्पलाद एवं शौनकीय. इस संहिता में 20 कांड या मंडल, 731 सूक्त तथा 5987 मंत्रों का संग्रह है. इसके लगभग 1200 सूक्त ऋग्वेद से उद्धृत है.

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इसकी कुछ ऋचाएं यक्ष संबंधी तथा विद्या संबंधी होने के कारण इसे ब्रह्मवेद भी कहा जाता है. अथर्ववेद में अधिकांश मंत्र, तंत्र-मंत्र या जादू-टोना से संबंधित है. उसके मंत्रों को भारतीय विज्ञान का भी आधार माना जाता.

ब्राह्मण ग्रंथ

ब्राह्मण ग्रंथों में वेदों की टीकाएँ हैं. इन में वेदों के विभिन्न मंत्रों की उपयोगिताओं और उनके अर्थ को समझाया गया है. शतपथ-ब्राह्मण यजुर्वेद का टीका है और गोपथ-ब्राह्मण में अथर्ववेद के मंत्रों को समझाया गया है. वेदों की टिकाओं के अतिरिक्त ब्राह्मण ग्रंथों में कुछ अन्य विषयों का भी वर्णन किया गया, जैसे-ऐतरेय ब्राह्मण में एक आर्य राजा के राज्य अभिषेक की विधि का भी वर्णन किया गया है.

आरण्यक ग्रंथ

जंगल में रहकर अध्ययन किए जाने वाले ग्रंथों को आरण्यक ग्रंथ कहा जाता है. ये मुख्य रूप से दर्शन के ग्रंथ है और ये ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथों की दर्शन की पूर्ति करते हैं.

उपनिषद

उपनिषदों को वेदांत भी कहा गया है. यह ग्रंथ दर्शन ग्रंथ है. यह सभी एक प्रकार के ब्राह्मण ग्रंथों की पूर्ति करता है. इनमें प्रकृति, आत्मा, परमात्मा, कर्म, माया, मुक्ति आदि आर्यों के विभिन्न दार्शनिक विचारों का वर्णन किया गया है. इनकी कुल संख्या 108 है.

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वेदांग

वेदों का यथेष्ट ज्ञान प्राप्त करने के लिए तथा वेदों का ठीक-ठाक अर्थ समझने के लिए छह शास्त्रों का रचा गया. इन्हें वेदांग कहते हैं. वेदांग हैं:- शिक्षा (उच्चारण), छंद (छंदशास्त्र), व्याकरण (शब्द रचना), निरुक्त (शब्द की व्याख्या), कल्प (यज्ञ संस्कारों की विधि विधान) तथा ज्योतिष (ब्राह्मण और सूर्य मंडल का ज्ञान).

उपर्युक्त साहित्य के अतिरिक्त कुछ अन्य विभिन्न प्रकार के प्राचीन ग्रंथों को वैदिक साहित्य में स्थान प्रदान किया गया जिन्हें सूत्र ग्रंथ और स्मृति ग्रंथ कहा गया है. सूत्र ग्रंथों में धर्म-सूत्र, गृह-सूत्र आदि मुख्य हैं तथा स्मृति ग्रंथ में मनुस्मृति, नारद स्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, वृहस्पति स्मृति आदि हैं. इसके अतिरिक्त वैदिक साहित्य का अध्ययन हिंदुओं के शास्त्रों के अध्ययन के बिना पूर्ण नहीं माना जा सकता. हिंदू दर्शनशास्त्र को 6 भागों में बांटा गया है- कपिल का सांख्या-दर्शन, पतंजलि का योग्य-दर्शन, गौतम का न्याय-दर्शन, कनंद का वैशेषिक-दर्शन, जैमिनी का पूर्व-मीमांसा तथा व्यास का उत्तर-मीमांसा.

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उपर्युक्त वैदिक या उससेसे संबंधित साहित्य जो आधुनिक समय में भी हिंदू धर्म ग्रंथों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, बहुत ही प्राचीन तथा उपयोगी है. जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों का अध्ययन इन ग्रंथों में किया गया है. संभवत: इसी कारण हिंदू यह दावा करते हैं कि उनके धार्मिक ग्रंथों में सभी प्रकार का ज्ञान उपलब्ध है. ज्ञान के अतिरिक्त भारतीय इतिहास को जानने में भी इन ग्रंथों से बहुत कुछ सहायता मिलती है.

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