शुंग वंश की उत्पत्ति और इतिहास का विस्तृत वर्णन करें

शुंग वंश की उत्पत्ति और इतिहास

शुंग वंश के विषय में कई स्रोतों से जानकारियां मिलती है. मुख्य रूप से शुंग वंश के विषय में कालिदास के द्वारा लिखित मालविकाग्निमित्र नामक नाटक से महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती है. इस नाटक में पुष्यमित्र का यवनों के साथ हुए युद्ध तथा अग्निमित्र का विदर्भ के राजा यज्ञसेन के साथ हुए युद्ध का वर्णन मिलता है. इसके अलावा बाणभट्ट रचित हर्ष चरित्र और पतंजलि के महाभाष्य में भी के राजाओं का वर्णन मिलता है. इसके अलावा बौद्ध ग्रंथ दिव्यवादन तथा तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के वर्णन से शुंग वंश के शासनकाल के विषय में जानकारियां मिलती है.

शुंग वंश की उत्पत्ति और इतिहास

शुंग वंश की उत्पत्ति

शुंग वंश की उत्पत्ति के विषय में विद्वानों में काफी मतभेद है. कुछ विद्वान शुंगों को पारसिक कहते हैं, तो कुछ मौर्य, तो कुछ विद्वान उनको ब्राह्मण कहते हैं. शुंगों को पारसिक मानने वाले विद्वान श्री हरप्रसाद शास्त्री हैं, लेकिन उनके इस मत से अन्य विद्वान सहमत नहीं थे. बाद में उसने स्वयं अपनी भूल सुधारते हुए शुंगों को ब्राह्मण माना. कुछ विद्वान शुंगों को मौर्य कहते हैं. उनके इस तर्क के पीछे दिव्यवादन नामक ग्रंथ है. इस ग्रंथ में पुष्यमित्र शुंग को मौर्य कहा गया है, लेकिन इस तर्क को भी अन्य विद्वानों ने मानने से इनकार कर दिया. इसका मुख्य कारण यह है कि ऐसे अनेक ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि बृहद्रथ ही मौर्य वंश का अंतिम शासक था. विद्वानों ने आशंका जाहिर की है कि संभवतः लेखक ने भूलवश पुष्यमित्र को मौर्य लिख दिया.

शुंग वंश की उत्पत्ति और इतिहास

शुंग वंश का संस्थापक

शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र शुंग था. वह अंतिम मौर्य सम्राट बृजेश का सेनापति था. उसने 184 ई.पू. में सम्राट बृहद्रथ की हत्या करके मगध की सिंहासन पर काबिज हुआ था. उसके द्वारा बृहद्रथ की हत्या करने की पुष्टि पुराण और हर्षचरित से होती है. बाणभट्ट ने हर्षचरित में इस घटना को उल्लेख करते हुए लिखा है कि नीच सेनापति पुष्यमित्र ने अपने स्वामी बृहद्रथ को सेना का प्रदर्शन देखने के बहाने करके बुलाया और उसका वध कर दिया क्योंकि बृहद्रथ ने अपने राज्यरोहण शपथ का ठीक से पालन नहीं किया था.

शुंग वंश की उत्पत्ति और इतिहास

हर्षचरित का अध्ययन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि बृहद्रथ अत्यंत दुर्बल शासक था. वह जनहित की रक्षा करने में असमर्थ था. इसी समय यूनानी आक्रमणकारी भी पाटलिपुत्र की सीमा तक पहुंच गए थे. इस कारण जनसाधारण भय और असंतोष का वातावरण छाया हुआ था. सम्राट बृहद्रथ साम्राज्य की इन विषम परिस्थितियों से निपटने में असमर्थ सिद्ध हो रहा था. ऐसी स्थिति में अपने साम्राज्य की यूनानी आक्रमणकारियों के हाथ में जाने से बचाने के लिए पुष्यमित्र शुंग ने अपने सम्राट बृहद्रथ की हत्या करके सत्ता अपने हाथ में ले ली. बहुत से आधुनिक इतिहासकार पुष्यमित्र के द्वारा अपने सम्राट की हत्या के लिए उसे दोषी नहीं मानते. उनका कहना है कि इस समय ऐसी परिस्थिति बन गई थी जिसके कारण यूनानी आक्रमणकारियों से साम्राज्य की सुरक्षा और साम्राज्य के अस्त व्यस्त हो चुके वातावरण को ठीक करने के लिए राजा की हत्या करना आवश्यक हो गया था.

शुंग वंश की उत्पत्ति और इतिहास

पुष्यमित्र शुंग ने रक्त ही अपना शासन आरंभ किया था और जीवन भर कायम रखा. उसकी सभी उपलब्धियां रक्त रंजित है. इसी कारण से भगवतशरण उपाध्याय लिखते हैं कि ब्राह्मण का इतिहास रक्तरंजित है. पुष्यमित्र शुंग का संबंध सेना से शुरू से अंत तक रहा. यही कारण है कि वह एक विशाल साम्राज्य का स्थापना करने के बाद भी वह खुद को सम्राट ना कहलवा कर खुद को एक सेनापति ही कहलवाया.

36 वर्षों तक शासन करने के बाद पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु हो गई. इन 36 वर्षों के शासनकाल में उसने अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की. इन्हीं उपलब्धियों ने उसे भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया.

पुष्यमित्र शुंग क उतराधिकारी

पुराणों के अनुसार पुष्यमित्र शुंग के 8 पुत्र थे. अत: उसने अपने प्रत्येक पुत्र के लिए साम्राज्य को 8 भागों में बांट दिया था. लेकिन इस बात की पुष्टि अन्य स्रोतों से नहीं होती है. इसलिए इसकी सत्यता पर संदेह होती है. वहीं मालविकाग्निमित्र के अनुसार पुष्यमित्र के बाद उसका पुत्र अग्निमित्र शासक बना और उसने 8 वर्षों तक शासन किया. कालिदास रचित मालविकाग्निमित्र नामक नाटक का मुख्य नायक यही अग्निमित्र ही है. अग्निमित्र के शासनकाल की कोई घटना का जिक्र कहीं नहीं मिलता है. अग्निमित्र के पश्चात वसुजेष्ठ तथा इसके बाद अग्निपुत्र का वासुमित्र शासक बना. वासुमित्र अपने पितामह पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में यवनों को परास्त किया था. वासुमित्र के बाद क्रमशः आंध्र, पुलिण्डक, घोष, वज्रमित्र, भाग तथा देवभूति ने शासन किया था. देवभूति शुंग वंश का अंतिम शासक था. उसकी हत्या उसके मंत्री वासुदेव कण्व ने 72 ई.पु. में कर दी और कण्व वंश की स्थापना की. इस प्रकार शुंग वंश 112 वर्षों तक शासन करने के बाद उसके वंश का अंत हो गया.

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