मराठा शक्ति के उदय
17 वीं शताब्दी में मराठा शक्ति का उदय होना भारतीय इतिहास का बहुत ही महत्वपूर्ण घटना थी. मराठा शक्ति के उदय के बाद भारतीय राजनीति में बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा.
मराठा शक्ति के उदय होने के कारण
1. महाराष्ट्र की प्राकृतिक दशा
महाराष्ट्र भौगोलिक रूप से पहाड़ों पर्वतों वाला दूर के घाटियों से भरी हुई है. यह भौगोलिक दशा सामरिक रूप से दुश्मन का मुकाबला करने के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हुआ. ये दुर्गम पहाड़ियाँ मराठों के लिए अपने शत्रुओं से बचने तथा उन पर आक्रमण करने के लिए बहुत ही अनुकूल रहा. ऐसे में मराठों ने अपने दुर्गों को इन दुर्गम पहाड़ियों के ऊपर ही अपने दुर्गा का निर्माण किया जिसकी वजह से दुश्मन के आक्रमण के दौरान उन पर जीत लगभग कठिन था. इस वजह से मराठा दुश्मनों के आक्रमण से खुद को आसानी से बचा लेते थे और वे छिपकर दुश्मन पर हमला करके भारी नुकसान पहुंचाते दे. यहां के पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले मराठे जन्मजात साहसी होते थे. उनमें दृढ़ता, आत्मविश्वास, परिश्रमी और उत्साह जैसी भावनाएं होती थी. इसके अलावा और कुशल अश्वरोही होते थे. अत: इन्हें इन गुणों के कारण इनको एक शक्ति के रूप में उदय होने में मदद मिली.
2. धार्मिक जागृति
15वीं और 16वीं शताब्दी के धार्मिक जागृति ने महाराष्ट्र पर भी बहुत ही बड़ा प्रभाव छोड़ा. इस धार्मिक जागृति के विचारकों, जैसे गुरु रामदास, एकनाथ, वामन पंडित, ज्ञानेश्वर आदि जैसे संतों ने गीतों भजनों पद्यों के द्वारा ईश्वर की भक्ति करने का मार्ग खोला. इन पंडितों ने मराठी भाषा में गीता, रामायण, महाभारत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों का अनुवाद किया. इसकी वजह से इन ग्रंथों का प्रचार-प्रसार लगभग संपूर्ण महाराष्ट्र में हो गया. इसके कारण महाराष्ट्र की जनता में एकता और नवीन चेतना का आविर्भाव हुआ और मराठा मराठी समाज में धार्मिक व सामाजिक चेतना एकता और संगठन की भावना का विकास हुआ. इसके अलावा देश भक्ति और राष्ट्र निर्माण की भावना भी काफी काफी विकास हुआ.
3. भाषा की एकता
भाषा के द्वारा किसी भी देश और समाज में राजनीतिक और संस्कृत एकता को बढ़ावा मिलता है. मराठी भाषा में मराठों को राष्ट्रप्रेम और एकता के बंधन में बांधने के दिशा में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. मराठी में भाषा को लेकर किसी प्रकार का आपसी संघर्ष नहीं हुआ. सुखराम, वामन पंडित, रामदास, एकनाथ, श्रीधर, रघुनाथ पंडित और मोरोपंत जैसे समाज सुधारक और संतों ने भजन, भक्ति गीत, उपदेश आदि मराठी भाषा में ही रचे थे. जिसकी वजह से मराठों के बीच भाषा के रूप में एकता बहुत ही सुदृढ़ हो गई. इसके अलावा महाभारत, गीता, भगवत पुराण आदि ग्रंथों का मराठी भाषा में अनुवाद हो जाने से सभी मराठी भाषी लोगों को यह ग्रंथ उपलब्ध हो गए थे. मराठी भाषा में साहित्यों के आने के बाद लोगों में पारस्परिक मेल-मलाप, समानता और एकता की भावना का काफी तेजी स विकास हुआ और संपूर्ण मराठा समाज एकता के सूत्र में बंध गए थे.
4. समाज में भेदभाव का अभाव
तत्कालीन मराठा समाज में समाज के लोगों में जात-पात, ऊंच-नीच, अमीर गरीब की दृष्टिकोण से भेदभाव बहुत ही कम थी. सभी वर्ग अपनी मेहनत के द्वारा अपनी आजीविका चलाते थे. इसके अतिरिक्त वहां की महिलाओं में पर्दा करने की प्रथा नहीं थी. इसीलिए मराठा महिलाओं को भी अपनी शक्ति और देशभक्ति का प्रदर्शन करने का मौका मिलता था और महिलाएं भी देश के निर्माण में अपना खुलकर योगदान दे पाती थी.
5. अहंकार और भावुकता का अभाव
महाराष्ट्र मराठों के बीच अहंकार और भावुकता जैसे भावना का अभाव था. वह हमेशा अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए युद्ध करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे. उसमें कूटनीति के द्वारा शत्रु पर जीत हासिल करने की अद्भुत योग्यता होती थी. युद्ध के दौरान वे कभी अपने व्यक्तिगत हितों और सुखों को नहीं देखते थे. वह हमेशा अपने देश के लिए लड़ते थे.
6. हिंदुत्व का प्रभाव
मराठों को एकता के सूत्र में बांधने के लिए हिंदुत्व का भेद बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा. अक्सर मुस्लिम शासक हिंदुओं और उनके मंदिरों पर हमला करके उन्हें तोड़ डालते थे. अत: महाराष्ट्र के मराठों ने हिंदू धर्म और संस्कृति रक्षा के लिए खुद को एक सूत्र में बंधने की हौसला प्रदान की. हिंदुओं पर अत्याचार होते देखकर उनको को मुसलमानों के दास सत्व से मुक्त करने के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा मिली.
7. दयनीय आर्थिक स्थिति
मराठों की दयनीय आर्थिक स्थिति ने भी मराठों को एक शक्ति के रूप में उभरने में की दिशा में बढ़ाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. दयनीय आर्थिक दशा से निपटने के लिए वे संघर्ष करना शुरू कर दिए थे. वे महाराष्ट्र और मराठी लोगों को आर्थिक रूप से दिल बनाने के लिए राजनीति क्रांति करने के लिए तैयार हो गए. उन्होंने समाज को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनने की दिशा में एक दिशा प्रदान की.
8. दक्षिण के सल्तनतों का निरंतर ह्रास
शिवाजी के उत्थान के समय दक्षिण में केवल गोलकुंडा तथा बीजापुर की सल्तनत में बची ही रह गई थी. इन सल्तनत के सुल्तानों चारित्रिक पतन के कारण इनके सल्तनत उनकी स्थिति भी दयनीय हो गए थे. इन राज्यों की आंतरिक व्यवस्था काफी जर्जर हो चुके थे. इन राज्यों के प्रशासन की दयनीय अवस्था तथा आंतरिक कलह ने शिवाजी के उत्कर्ष के लिए मार्ग खोला.
9. शिवाजी का कर्मठ व्यक्तित्व
मराठों के उद्भव होने का मुख्य श्रेय शिवाजी को जाता है. शिवाजी एक कुशल सेनापति ही नहीं वरन एक महान राष्ट्र निर्माता भी थे. जिस समय शिवाजी का उद्भव हुआ उस समय लगभग भारत से हिंदू राष्ट्र समाप्त हो चुका था. इस समय महाराष्ट्र में धार्मिक और सांस्कृतिक एकता अब भी विद्यमान थे. लेकिन राजनीतिक और राष्ट्रीयता की भावना बिल्कुल शून्य थी. मराठा सरदार इधर-उधर बिखरे पड़े थे और वह मुसलमान राज्यों के जागीरदार के रूप में अपनी सेवाओं सेवाएं देते थे. ऐसी स्थिति में शिवाजी ने अपनी व्यक्तिगत कर्मठता, साहस, सुयोग्य नेतृत्व, कुशल व्यवहार तथा अपने प्रयत्नों के द्वारा बिछड़ा हुआ मराठी समाज को संगठित करके एक संयुक्त जाति बना दिया. उस में राष्ट्रीयता की भावना का विकास किया.
शिवाजी ने मराठा आत्मसम्मान और आत्म गौरव की भावना को जागृत किया. उनको अपनी जाति धर्म और देश के लिए मर मिटने सिखाया. फिर उसने अपनी सेना का गठन किया और महाराष्ट्र को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापना की. मराठों को एक सूत्र में बांधने के लिए शिवाजी का साथ मोरी पिंगले, अन्नाजी दत्तो निराजी, राव जी, प्रतापराव गुर्जर जैसे बहुत से लोगों ने दिया. मराठा राज्य के निर्माण में उनके इन सहयोगियों के त्याग, बलिदान और समर्पण का भी बहुत बड़ा योगदान रहा.
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