समुद्रगुप्त की दक्षिणी अभियान का वर्णन करें

समुद्रगुप्त की दक्षिणी अभियान

आर्यावर्त के प्रथम अभियान की सफलता के पश्चात समुद्रगुप्त ने दक्षिण भारत का अभियान आरंभ किया. दक्षिण भारत के अभियान में उसने 12 राज्यों पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा. समुद्रगुप्त द्वारा पराजित राज्यों में कोसल, महाकांतार, कोराल, बिष्टपुर, कोट्टूर, एरण्डपल्ल, कांची, अवमुक्त, वेंगी, पालक्क, देवराष्ट्र तथा कुरुस्थलपुर था.

समुद्रगुप्त की दक्षिणी अभियान

1. दक्षिण राजाओं का संघ

डॉ. जयसवाल का कहना है कि कोसल और महाकांतार के राजाओं को छोड़कर दक्षिण के शेष राजाओं ने एक संघ बनाकर समुद्रगुप्त का प्रतिरोध किया था. इस संघ का नेतृत्व कांची का शासक विष्णुगोप कर रहा था. इस संघ और समुद्रगुप्त के बीच कुराल के पास युद्ध हुआ था.  डॉ. डाण्डेकर के अनुसार दक्षिण भारत के सभी 12 नरेश इस संघ में शामिल थे. इन पर समुद्रगुप्त ने विजय प्राप्त किए थे. किंतु डॉ. जयसवाल और डाण्डेकर के मत को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि दक्षिणा पथ के राजाओं के राज्य रायपुर से कांची तक विस्तृत था. अतः उस समय इन दूरस्थ प्रदेशों के शासकों का मिलकर एक हो जाना असंभव था.

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2. वाकाटकों से युद्ध

कुछ विद्वानों का विचार है कि समुद्रगुप्त ने दक्षिण भारत के अभियान के दौरान उसनों वाकाटकोः से युद्ध लड़ा था. लेकिन ऐसा मानना उचित प्रतीत नहीं होता है क्योंकि समुद्रगुप्त के शासनकाल में वाकाटक एक शक्तिशाली राजवंश था और उसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी थी कि यह वंश शकों के विरुद्ध युद्ध में पर्याप्त उपयोगी हो सकता था. वाकाटक एवं गुप्त दोनों ही राजवंशों को शकों से खतरा था. अतः ऐसी स्थिति  में समुद्रगुप्त वाकाटकों से युद्ध लड़ने का खतरा नहीं उठा सकता था क्योंकि शक तुरंत इस स्थिति से लाभ उठाकर गुप्तों को आसानी से नुकसान पहुंचा सकते थे. शकों को रोकने के लिए समुद्रगुप्त ने वाकाटकों से मित्रता की गुप्तों को आवश्यकता थी न कि उनसे युद्ध करने की. अतः इस विषय में डॉ. राय चौधरी का मत सबसे विश्वसनीय प्रतीत होता है कि उत्तरी भारत के वाकाटकों के कुछ सामंतों पर समुद्रगुप्त ने विजय प्राप्त की जिसके बाद वाकाटकों से उसका कोई अनुबंध हुआ होगा जिसके अनुसार दक्षिणापथ के अभियान के दौरान उसके द्वारा वाकाटकों पर आक्रमण न करना समुद्रगुप्त ने स्वीकार किया होगा. अतः समुद्रगुप्त ने वाकाटकों पर आक्रमण नहीं किया था.

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3. दक्षिण अभियान से वापसी

फ्लीट, एलन और स्मिथ जैसे विद्वानों का विचार है कि समुद्रगुप्त दक्षिणापथ के राजाओं को परास्त करने के पश्चात वह महाराष्ट्र के खानदेश होते हुए अपने साम्राज्य वापस लौटा. उपरोक्त विद्वान देवराष्ट्र का महाराष्ट्र एवं एरण्डपल्ल का खानदेश समीकरण करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं.

किंतु आधुनिक विद्वान इस बात को स्वीकार नहीं करते क्योंकि ये विद्वान देवराष्ट्र और इरान एरण्डपल्ल को क्रमशः विशाखापट्टनम के समीप  स्थित एमालांचिली और उड़ीसा स्थित एंडपल्ली मानते हैं. इन बातों से स्पष्ट है कि समुद्रगुप्त के दक्षिण के 12 राज्यों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात पश्चिम की ओर नहीं गया बल्कि पूर्वी तट से ही अपनी राजधानी लौटा. यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि पश्चिमी और मध्य भारत में वाकाटकों का राज्य था. यदि समुद्रगुप्त पश्चिम की ओर प्रस्थान करता तो उसे वाकाटकों का भी सामना करना पड़ता है. अतः स्पष्ट है कि समुद्रगुप्त पश्चिमी तट की ओर नहीं गया.

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4. विजित राज्यों के प्रति समुद्रगुप्त की नीति

समुद्रगुप्त में दक्षिण के इन राज्यों के प्रति नीति निर्धारण करने में कुशल कूटनीतिज्ञ होने का परिचय दिया. समुद्रगुप्त अपने साधनों और सामर्थ भली-भांति समझता था. वह जानता था कि इन दूरस्थ प्रदेशों पर स्थायी रूप से राज्य करना असंभव होगा. अतः समुद्रगुप्त के दक्षिणी अभियान का उद्देश्य वहां के राज्यों को उन्मूलित कर गुप्त साम्राज्य में मिलाना नहीं था बल्कि उन्हें अपना प्रभुत्व स्वीकार कराना था. समुद्रगुप्त के इस उद्देश्य की पुष्टि प्रयाग प्रशस्ति से भी होता है. अतः समुद्रगुप्त ने सभी राजाओं को बंदी बनाने के पश्चात उन्हें अपने-अपने राज्य में शासन करने के लिए पुनः मुक्त कर दिया और समुद्रगुप्त उनसे भेंट और राजस्व लेकर संतुष्ट हो गया. इस प्रकार दक्षिण के प्रति समुद्रगुप्त ने धर्म विजय की नीति का पालन किया और उनका यह कार्य निसंदेह उनकी राजनीति महत्ता का परिचय परिचायक है.

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