सल्तनत कालीन सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था (Social and economic system during the Sultanate period)
सल्तनत कालीन सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था, सल्तनत काल का समाज की अपनी अलग विशेषता थी. इस समय के समाज मुख्य हिंदू और मुसलमानों में बंटे हुए थे. हिंदू वर्ग भी अनेक वर्गों, संप्रदायों, जाति और उपजातियों में बंटे हुए थे जिससे उसकी शक्ति बहुत कम हो गई थी. इसके विपरीत मुसलमान एकजुट थे. आरंभ में मुसलमानों ने हिंदुओं से अलग रहने का प्रयत्न किया है लेकिन भारत के विशाल हिंदू जनसंख्या के संपर्क में रहने के कारण वे अधिक समय तक अलग नहीं रह पाए.
सल्तनत काल की सामाजिक व्यवस्था
1. भोजन
सल्तनत काल में शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन प्रचलित था. जैन, बौद्ध तथा वैष्णव धर्म मानने वाले शुद्ध शाकाहारी होते थे. इसके अलावा सूफी तथा संत शुद्ध शाकाहारी होते थे. भोजन के रूप में चावल का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता था. गेहूं का इस्तेमाल कम होता था. कहीं की आटा, मैदे की रोटी का वर्णन पाया जाता है. मांस, मछली, तेल, घी का काफी वर्णन मिलता है. गेहूं के आटे तथा चने के आटे का विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते थे. इसके अलावा लड्डू, जलेबी तथा विभिन्न प्रकार की मिठाइयों का वर्णन मिलता है. दूध तथा दूध से बनी वस्तुओं का प्रयोग होता था. भोजन के रूप में विभिन्न प्रकार के फलों का इस्तेमाल होता था.
2. वस्त्र
सल्तनत काल में हिंदू और मुसलमानों की वेशभूषा एक समान नहीं थी. इसके अलावा एक धर्म होने पर भी अमीर और गरीब लोगों का पहनावा एक समान न थी. मौसम, भौगोलिक तथा प्रदेशिक वातावरण और परिस्थिति भी पहनावे की विविधता का एक बड़ा कारण था. अमीर लोग कीमती और सुंदर वस्त्र पहनते थे. गरीब लोग केवल लंगोट पहन कर काम चलाते थे. साधारण लोग लूंगी, साधारण कमीज तथा पगड़ी पहनते थे. स्त्रियां मुख्य रूप से साड़ी पहनती थी जो शरीर को पूरी तरह ढक लेते थे. घागरा, शॉल, ओढ़नी आदि स्त्रियों के प्रमुख परिधान होते थे.
3. मनोरंजन
सल्तनत काल में पोलो बहुत ही लोकप्रिय खेल था. अभिजात वर्ग के बीच यह खेल बहुत लोकप्रिय था. सिकंदर लोदी भी इस खेल को बहुत पसंद करता था. दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु भी इसी खेल को खेलते समय घोड़े से गिरकर मृत्यु हुई. पहलवानी और कुश्ती भी समय प्रचलित खेल था. सुल्तान फिरोज़ शाह तुगलक ईद के त्यौहार के अवसर पर पहलवानों का मल युद्ध आयोजित करवाता था. इसके अलावा शिकार करना, शतरंज खेलना आदि भी मनोरंजन के प्रमुख साधन होते थे. नृत्य और संगीत भी लोगों का मनोरंजन के साधन थे.
4. स्त्रियों की दशा
सल्तनत काल में हिंदू और मुस्लिम दोनों समाज की स्त्रियों को पर्दा करना पड़ता था. मुसलमान स्त्रियां पर्दे के लिए बुर्के का प्रयोग करती थी. हिंदू स्त्रियां साड़ियां अथवा ओढ़नी से पर्दा करके चलती थी. इस समय हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म की लड़कियों की कम उम्र में ही शादी कर दी जाती थी. दोनों समाज में दहेज प्रथा तब तलाक का प्रचलन था. मुस्लिम समाज में विधवा विवाह का प्रचलन था जबकि हिंदुओं में विधवा विवाह प्रचलन नहीं था. हिंदुओं में सती प्रथा का प्रचलन था.
5. शिक्षा
सल्तनत काल में मुस्लिम बच्चों की शिक्षा चार वर्ष की आयु से ही शुरू हो जाती थी. उनकी शिक्षा मकतब और मदरसे में होते थे. मदरसे में विद्यार्थियों का पूरा ख्याल रखा जाता था तथा शिक्षा के लिए शुल्क नहीं ली जाती थी. सल्तनत काल के आरंभ में हिंदुओं की शिक्षा की स्थिति अच्छी नहीं थी लेकिन धीरे-धीरे सुधार होता गया. हिंदुओं को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ संस्कृत, इतिहास, भूगोल संगीत, खगोलशास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र की शिक्षा दी जाती थी. सल्तनत काल में स्त्रियों शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं थी. केवल संपन्न और उच्च घराने की स्त्रियों को ही शिक्षा दी जाती थी. उनको नृत्य और संगीत की शिक्षा भी दी जाती थी.
6. त्योहार
मुसलमान मोहर्रम तथा ईद उल फितर मनाते थे. इसके अलावा वे सूफी संतों की दरगाहों, मजारों तथा मकबरों पर जाकर उर्स या बरसी मनाया करते थे. इन अवसरों पर कव्वालियां एवं कविगोष्ठी आयोजित की जाती थी. हिंदू भी बसंत पंचमी, शिवरात्रि, होली, दशहरा, दीपावली, रक्षाबंधन जैसे त्यौहार मनाते थे. वे अपने त्योहार पारंपरिक रूप से मनाते थे. कहीं-कहीं उनके त्योहारों पर स्थानीय तथा भौगोलिक परिस्थितियों का भी प्रभाव पडता था. इन त्योहारों के अतिरिक्त बहुत से स्थानीय रीति-रिवाज भी मनाए जाते थे. सूर्य तथा चंद्र ग्रहण के अवसर पर भारी संख्या में हिंदू पवित्र नदियों में स्नान करते थे. वे समय-समय पर तीर्थयात्रा भी करते थे. रामजन्म पर रामनवमी तथा कृष्ण जन्म पर कृष्ण जन्माष्टमी का भी आयोजन होता था.
सल्तनत काल की आर्थिक व्यवस्था (Economic System of the Sultanate Period)
सल्तनत काल के लोगों की आर्थिक दशा में काफी बदलाव हुआ. इस काल में बहुत से आर्थिक स्रोत खुल गए थे. कृषि, उद्योग-धंधों का काफी विकास हुआ. लोगों के रहन-सहन और जीवन शैली में काफी बदलाव आने लगा. अमीर वर्ग विलासिता का जीवन जीना शुरु कर दिए. सल्तनत काल में आर्थिक स्रोत मुख्य रूप से निम्नलिखित थे:-
1. उद्योग-धंधे
सल्तनत काल में आवश्यकता अनुसार उद्योग धंधों ने जन्म लिया. कुटीर उद्योग एवं कृषि उद्योगों का स्वरूप विकसित होने लगा. इस काल में वस्त्र उद्योग का काफी विकास हुआ. इस समय कपास से रुई तैयार करके वस्त्र तैयार किए जाने लगे. सूती वस्त्रों के अलावा ऊनी वस्त्र भी तैयार किया जाता था. ऊन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पहाड़ी तथा मैदानी क्षेत्र में भेड़ पालन किया जाता था. उच्च वर्ग के लोग ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे. उत्तम गुणवत्ता वाले ऊन का विदेशों से भी आयात किया जाता था. रेशमी वस्त्र उद्योग काफी उन्नत अवस्था में था. रेशम की जरूरतों को पूरा करने के लिए बंगाल में रेशम के कीड़े पाले जाते थे. इसके अलावा विदेशों से भी रेशम का आयात किया जाता था. रेशमी वस्त्रों की रंगाई, कढ़ाई, छपाई आदि के लिए लगभग हर शहर में उद्योग लगे हुए थे. वस्तुओं की गुणवत्ता उच्च श्रेणी की होती थी. इनका निर्यात विदेशों तक किया जाता था. वस्त्र उद्योग के अलावा सल्तनत काल में चीनी उद्योग, कागज उद्योग, चमड़ा उद्योग, ईट पत्थर उद्योग, आभूषण उद्योग, इत्र उद्योग, मदिरा उद्योग, तेल उद्योग, धातु उद्योग, तथा कारखाने अत्यंत उन्नत अवस्था में थे. इन सबसे उच्च कोटि के उत्पाद तैयार किए जाते थे.
2. बाजार
सल्तनत काल में भारत के सभी शहरों में बाजार तथा मंडियां थी. इन बाजारों में थोक एवं खुदरा भाव के सभी प्रकार की वस्तुएं उपलब्ध थी. इन बाजारों में वस्त्र, पशु-पक्षी, खाद्यान्न, घोड़े, दास दासियों आदि की खरीद बिक्री होती थी. त्यौहारों के अवसर पर तथा सप्ताह के निश्चित दिन बाजार लगते थे. इन्हीं बाजार और मंडियों के माध्यम से आंतरिक तथा बाह्य व्यापार भी होता.
3. व्यापार
सल्तनत काल में भी बड़े पैमाने पर व्यापार होता था. भारत के व्यापारी संबंध विदेशों तक बने हुए थे. भारत से मसाले, वस्त्र तथा अन्य वस्तुएं विदेशों में निर्यात की जाती थी तथा विदेशों से सोना-चांदी, आभूषण, घोड़े तथा अन्य वस्तुओं का भारत में आयात किया जाता था. सल्तनत काल में व्यापारियों के द्वारा की जाने वाली जमाखोरी को रोकने के लिए भी कानून बने हुए थे. व्यापारियों की सुरक्षा के लिए विशेष व्यवस्था थी. उनके लिए नए-नए मोहल्ले बनाए गए थे. व्यापारियों के आने-जाने के मार्ग पर सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे. विदेशों तक व्यापार जल एवं फल दोनों मार्गो से होता था. भारतीय वस्तुओं का व्यापार मध्य एशिया, अफगानिस्तान, ईरान, मुल्तान आदि क्षेत्रों तक फैला हुआ था.
5. कृषि
सल्तनत काल में कृषि भी प्रमुख आर्थिक स्रोत हुआ करता था. इस समय पर्याप्त मात्रा में अन्न का उत्पादन होती थी. दाल, गेहूं, जाओ, मटर, चावल, गणना और तिलहन आदि का उत्पादन किया जाता था. कपास की खेती भी बहुत की जाती थी. फलों का भी बड़े पैमाने पर खेती की जाती थी. अंगूर, सेब, नारंगी, छुहारा तथा अंजीर आदि फलों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता था. सल्तनत काल के कृषकों को तीन श्रेणी में बांटा जा सकता है- पहला जिनके खेत में अन्य मजदूर काम करते थे. दूसरा परिवार के सभी सदस्य मिलकर काम करते थे. तीसरे गरीब किसान जिनके खेत इतने छोटे होते थे कि बड़ी कठिनाई से अपने जीवन का निर्वाह कर पाते थे. किसानों को अनिवार्य रूप से खेती का कुछ भाग कर के रूप में जमींदारों अथवा राज्य के प्रतिनिधियों को देना पड़ता था. इसे साधारण किसानों की स्थिति बहुत खराब हो गई थी और कर वसूलने वाले समृद्ध होते चले गए. यह स्थिति को देखकर सुल्तान अलाउद्दीन ने इस प्रकार की वसूली पर रोक लगा दी थी.
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