सामंतवाद के दोष बताईए

सामंतवाद के दोष

मध्यकालीन यूरोप में सामंतवादी व्यवस्था चरम पर थी. इस व्यवस्था के अंतर्गत उच्च वर्ग के लोग निम्न वर्ग के लोगों पर शासन किया करते थे. समय के साथ-साथ सामंतवादी व्यवस्था निरंकुशता बढ़ने लगी थी. सामंत निम्न वर्गों के लोगों पर अत्याचार करने लगे थे. इन अत्याचारों से तंग आकर कृषक वर्ग विद्रोह करने लगे थे. सामंतवादी व्यवस्था के कारण समाज विभिन्न वर्गों में बट गया था. इस समय उच्च वर्ग के लोगों को असीमित अधिकार प्राप्त था जबकि निम्न वर्ग के लोगों के पास कोई अधिकार नहीं था तथा वे लोग दबे-कुचले से थे. सामंतवादी व्यवस्था ने युद्धों को भी बढ़ावा दिया क्योंकि इस समय प्रत्येक सामंत की अपनी सेना होती थी. वे अपनी जागीर बढ़ाने के लिए दूसरे सामंतों पर हमले भी करते थे. इन युद्धों से आम जन को काफी प्रभावित होते थे क्योंकि इन से उनके कृषि और व्यापार के साथ-साथ काफी आर्थिक नुकसान होता था. 

सामंतवाद के दोष

इस समय यूरोपीय देशों में कोई राजा के पास अपनी सेना नहीं थी. जरूरत पड़ने पर वे सामंतों की सेना का ही उपयोग करते थे. ऐसे बहुत से सामंत हुए जो कि राजा से ज्यादा शक्तिशाली हुआ करते थे. इस कारण उन पर से राजा का नियंत्रण धीरे-धीरे खत्म होता चला गया. ऐसे में सामंतों की निरंकुशता दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली गई. इस समय साधारण जनता को कोई राजनीतिक अधिकार नहीं था तथा उनका राजा से कोई सीधा संपर्क नहीं था. इसी कारण साधारण लोगों का जीवन कष्ट में बीत रहा था. इस समय तक यूरोपीय देशों में कोई भी उद्योग-धंधा स्थापित नहीं था. इसी कारण जनसाधारण को अपने जीवन यापन करने के लिए कृषि पर ही निर्भर रहना पड़ता था. कृषि क्षेत्र पर पूरी तरह सामंतों का नियंत्रण था. समय-समय पर कृषक वर्ग के लोगों के द्वारा सामंतों को कर चुकाना पड़ता था.

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