सामंतवाद
सामंतवाद का एक निश्चित परिभाषा देना कठिन है क्योंकि लगभग हर यूरोपीय देशों में इसका स्वरूप अलग-अलग था. लेकिन हर स्वरूप का अध्ययन करने पर इतना पता चलता है कि सामंतवाद का संबंध भूमि वितरण पर एक सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था थी. सामंतवाद का परिभाषा विभिन्न इतिहासकारों ने अलग-अलग दी है. डाॅ. विरोत्तम के अनुसार “सामंतवाद वैयक्तिक शासन, एक विशिष्ट भूमि-व्यवस्था और व्यक्तिगत निर्भरता का मिश्रित रूप था.” मध्यकाल के यूरोप में सामंतवाद के तीन विशेषताएं थी-जागीर, संरक्षण और संप्रभुता. जागीर भूमि को कहा जाता था. संरक्षण से तात्पर्य जमीन मालिक के द्वारा जमीन लेने वाले को सुरक्षा देना तथा संप्रभुता का तात्पर्य किसी भूमि पर मालिक का पूर्ण अथवा आंशिक स्वामित्व होना. सामंतवाद प्रथा के अंतर्गत एक भू-मालिक के द्वारा कृषकों को खेती करने के उद्देश्य से जमीन दे दिया जाता था तथा इस खेत के उपज का कुछ हिस्सा अथवा उसका मूल्य कर के रूप में वसूल किया जाता था.
सामंतवाद का दोष
सामंतवादी व्यवस्था में बहुत से दोष थे. इसी वजह से आधुनिक युग के आगमन के साथ ही यह व्यवस्था खत्म हो गई. इस व्यवस्था के कारण समाज विभिन्न वर्गों में बट गया था. उनके बीच परस्पर फूट तथा मनमुटाव की भावना बढ़ गई थी. चारों तरफ अव्यवस्था का माहौल बन गया था. समाज के उच्च वर्गों को असीमित शक्तियां प्रदान कर दी गई थी जिससे निम्न वर्ग के लोगों को काफी शोषित होना पड़ रहा था. उच्च वर्ग के लोग निम्न वर्ग के लोगों पर शासन करने लगे थे. इन कारणों से उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के बीच कटुता उत्पन्न हो गई थी. सामंतवादी व्यवस्था के कारण हर सामंत के पास अपनी अलग सेना होती थी. बहुत सामंत अपनी जागीर को बढ़ाने के लिए समय-समय पर अपनी सेना का प्रयोग करते थे. इस वजह से युद्धों को भी काफी बढ़ावा मिला. ऐसे युद्धों के कारण साधारण लोगों को अपार कष्टों का सामना करना पड़ता था. युद्ध से उनके कृषि और व्यापार काफी प्रभावित होते थे. कृषकों को आर्थिक समस्याओं को काफी सामना करना पड़ता था. कई सामंत तो राजा से भी ज्यादा शक्तिशाली हुआ करते थे. इन सामंतों पर राजा का कोई विशेष नियंत्रण नहीं होता था.
सामंतवाद का पतन के कारण
सामंतवाद का विकास विभिन्न चरणों में हुआ. विकास कालक्रम भी काफी लंबे समय का था. इस दौरान सामंतवाद व्यवस्था में अनेक कुप्रथा भी जुड़ते चले गए. इनको प्रथाओं के जुड़ते चले जाने के कारण समाज में बहुत ही नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलने लगा था. उच्च और निम्न वर्ग के लोगों के बीच में दूरियां बढ़ती चली गई. सामंतवाद के पतन के अनेक कारण थे.
1. परस्पर आपसी संघर्ष
समय के साथ-साथ सामंतों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा बढ़ती चली गई. प्रत्येक सामंत अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने की कोशिश में था. इस वजह से विभिन्न सामंतों के बीच में युद्ध होने लगे थे. मध्यकाल में यूरोप के राजा अपनी सेना नहीं रखता था. वह जरूरत के वक्त सामंतों की सेना का उपयोग करता था. लेकिन सामंतों की सेना की आपसी संघर्ष के कारण राजा को जरुरत के समय सेना उपलब्ध नहीं हो पा रही थी. ऐसे में धीरे-धीरे राजा की स्थिति खराब होती चली गई और उसका नियंत्रण सामंतों पर से ख़त्म होता चला गया और राजा की शक्ति खत्म होती चली गई. इंग्लैंड में दो सामंतों के बीच हुए एक संघर्ष को गुलाब के फूलों के युद्ध के नाम से जाना जाता है.
2.व्यापारिक उन्नति
यूरोप में हुए धर्म युद्धों के कारण अलग-अलग क्षेत्र के लोग परस्पर एक-दूसरे के संपर्क में आए. इसकी वजह से वे लोग एक-दूसरे के क्षेत्रों के अनेक वस्तुओं की ओर आकर्षित होने लगे. इस वजह से इन लोगों के बीच पारस्परिक व्यापारिक रिश्ते बनने लगे और धीरे-धीरे व्यापार संघों की स्थापना होने लगी. इन व्यापारिक संघटनों के द्वारा रोजगार के अवसर खुलने लगे. रोजगार के नए-नए अवसरों का खुलना सामंतों की अधिपत्य पर बहुत बड़ा आघात था. अब किसान और मजदूर केवल कृषि पर ही सीमित नहीं थे, बल्कि वे व्यापार भी करने लगे थे. इस कारण कृषक और मजदूर वर्ग में सामंतों का पकड़ कम होने लगा और सामंतों के द्वारा किसानों और मजदूरों का शोषण कम होता चला गया. इस प्रकार व्यापार की उन्नति के साथ-साथ सामंतवाद का भी पतन होते चला गया.
3. नए नगरों का निर्माण
यूरोप के लगभग हर देश के व्यापार में उन्नति होने के कारण नए-नए नगर बसने लगे. इसकी वजह से रोजगार के नए अवसर खुलने लगे. रोजगार के नए अवसरों के खुलने के कारण अब किसान केवल खेती तक ही सीमित नहीं रहे. वे विभिन्न वस्तुओं के व्यापार करने लगे थे. इस वजह से उनका सामंतों पर निर्भर रहना कम हो गया. इसके अतिरिक्त व्यापारियों और सामंतों के बीच परस्पर संघर्ष ने भी सामंतवाद को पतन के दिशा में अग्रसर किया.
4. राजा की शक्ति में वृद्धि
मध्य काल के समय यूरोप के राजा अपनी कोई सेना नहीं रखते थे. जरूरत के समय सामंतों की सेना का ही उपयोग करते थे. लेकिन सामंतों की आपसी टकराव के कारण उन पर राजा का नियंत्रण कम होता गया. राजा चाह कर भी उन पर अंकुश नहीं लगा पा रहे थे. इस कारण सामंत अपनी मनमानी करने लगे थे. इस कारण यूरोप के कई देशों के राजा अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए तथा सामंतों की मनमानी रोकने के लिए अपनी सेना का गठन किया. इंग्लैंड के शासक हेनरी-VII ने अपनी सेना बनाकर इस प्रकार के अत्याचारी और निरंकुश सामंतों का दमन किया. इस प्रकार सामंतवाद कमजोर पड़ने लगा.
5. राष्ट्रीयता की भावना का उदय
मध्यकाल में यूरोप वासियों में राष्ट्रीयता की भावना की कमी थी. इसका मुख्य वजह यहां के राजाओं का कमजोर होना था. इसके अलावा यहाँ के निम्न वर्ग के लोगों को सामंतों के द्वारा अत्याचार तथा शोषण करना था. लेकिन जब यूरोपीय देशों में शक्तिशाली राजाओं का उदय के परिणामस्वरूप देश शक्तिशाली होने लगा तो लोगों में देशभक्ति की भावना उदय होने लगी. देशवासियों के मन में राष्ट्रीयता की भावना प्रबल होने लगी थी. राजा के शक्तिशाली होने से सामंतों पर अंकुश लगने लगा. ऐसे में सामंतवाद के पतन सुनिश्चित हो गया.
6. आधुनिक हथियारों और गोला बारूद का प्रयोग
तकनीकी विकास के कारण अब युद्ध में तीर और तलवारों के स्थान पर आधुनिक हथियार और गोला-बारूद उनका इस्तेमाल किया जाने लगा. सामतों ने मजबूत किले बनवा रखे थे. इन पर तीर-धनुष का कोई असर नहीं होता था. इस कारण उनको हरा पाना मुश्किल था. लेकिन आधुनिक हथियारों के प्रयोग से उनके मजबूत किले आसानी से ढा दिए जाने लगे थे. अतः इसी वजह से सामंतों पर आसानी से विजय पाया जाने लगा. इसी वजह से सामंतवाद का खात्मा हो गया.
7. कृषकों का विद्रोह
यूरोप में मध्यकाल के समय सामंतवादी व्यवस्था से कृषक वर्ग सामंतो के अत्याचार से अत्यंत पीड़ित थे. सामंत इन पर बहुत ही ज्यादा अत्याचार करते थे. इसी वजह से कृषकों में विद्रोह की भावना जागने लगी और धीरे-धीरे उनकी विद्रोह की भावना बढ़ती चली गई. 14 वीं शताब्दी आते-आते किसानों का विद्रोह और तेज होता गया और सामंतों के लिए इसे दबाना असंभव हो गया. इसी बीच 14 वीं शताब्दी में यूरोप में ब्लैक नामक महामारी फ़ैल गई. इस महामारी की चपेट में आने से बड़ी संख्या में किसानों और मजदूरों की मृत्यु हो गई. उनकी आर्थिक स्थिति भी दयनीय हो चली थी. ऐसी परिस्थिति में भी सामंतों ने कृषक वर्ग का शोषण करना बंद नहीं किया. इस वजह से मजदूरों और किसानों ने मिलकर विद्रोह किया और सामंतवाद की जड़ को हिला डाला. कृषक विद्रोह ने सामंतवाद की नीव को कमजोर कर दी और सामंतवाद पतन की ओर अग्रसर होता चला गया.
सामंतवाद के पतन के विभिन्न कारण थे. सामंतवाद में बहुत से दोष थे. सामंतवाद व्यवस्था से निम्न वर्ग के लोग सबसे ज्यादा शोषित थे. इनकी वजह से निम्न वर्ग के लोगों में अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया. इस वजह से सामंतवाद व्यवस्था की नीव कमजोर होती चली गई और अंतत: सामंतवाद का पतन हो गया.
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निरंकुश/ राष्ट्रीय राज्यों के उदय का कारण बताएं
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