सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन पर प्रकाश डालिए

सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन

सिंधु घाटी सभ्यता के उत्खनन के परिणामस्वरूप पुरातत्वविदों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि इस सभ्यता के निवासी धार्मिक रीति-रिवाज भी किया करते थे. वे विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं की उपासना करते थे. वे किस देवता की सर्वाधिक उपासना करते थे, ये तो स्पष्ट नहीं है, पर इस बात की स्पष्ट संकेत है कि वे अनेक प्रकार की देवी-देवताओं की उपासना करते थे. के.एन. शास्त्री के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता में पुरुष देवताओं का अधिक महत्व था. वहीं  मार्शल, व्हीलर एवं मैके जैसे विद्वानों का कहना है कि सिंधु घाटी सभ्यता में मातृ देवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी. 
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन

सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के धार्मिक विश्वास

1. मातृदेवी की पूजा

सिंधु घाटी सभ्यता के उत्खनन के परिणामस्वरूप मातृ देवी की अनेक मूर्तियां प्राप्त हुई है. इससे इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि सिंधु घाटी सभ्यता के निवासी मातृ देवी की उपासना किया करते थे. इसके अलावा एक अर्ध नग्न स्त्री की मूर्ति भी प्राप्त हुई है. उसके सर पर टोपी, गले में हार तथा कमर में तगड़ी है. मातृ देवी के कुछ मूर्तियों को आभूषण के साथ तथा कुछ को बिना आभूषण के साथ दिखाया गया है. ये मूर्तियां धुए से रंगी हुई मिलती है. मातृ देवी को माता, अंबा, काली, करौली आदि नाम से संबोधित किया जाता था.

2. शिव पूजा

हड़प्पा की खुदाई में एक ऐसी मूर्ति भी प्राप्त हुई है जिससे शिव उपासना करने के संकेत मिलते हैं. इस मूर्ति के अलावा हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के अनेक स्थानों पर कई शिवलिंग मिलना भी इस बात की ओर पुष्टि करती है कि हड़प्पा सभ्यता के निवासी शिव की उपासना किया करते थे. ये शिवलिंग पत्थर, मिट्टी, शीप आदि के बने हुए हैं. इनका आकार भी अलग-अलग है. कुछ तो बहुत छोटे हैं और कुछ 4 फुट तक लंबे हैं.
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन

3. योनि पूजा

सिंधु घाटी सभ्यता के उत्खनन से अनेक छल्ले प्राप्त हुए हैं. ये मिट्टी, पत्थर, शीप आदि के बने हुए हैं. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ये उन देवियों के योनियों के प्रतीक है जिनकी पूजा हड़प्पा सभ्यता वासी किया करते थे. वहीं मैके और कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार ये छल्ले योनि के प्रतीक नहीं बल्कि स्तंभों के आधार थे. इस विषय पर इतिहासकारों में मतभेद है. इसीलिए प्रमाणिक रूप से कहना ये कठिन है कि सिंधु घाटी सभ्यता के निवासी योनि पूजा करते थे. 

4. पशु पूजा

सिंधु-घाटी सभ्यता की खुदाई के परिणामस्वरूप अनेक मुद्राओं में विभिन्न प्रकार के पशुओं के चित्र मिले हैं. इन चित्रों के द्वारा यह अनुमान लगाया जाता है कि वे पशु की भी पूजा किया करते थे. मैके के अनुसार ये लोग नाग, कबूतर, बकरा, बैल आदि पशुओं की भी पूजा करते थे. 
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5. सूर्य पूजा

सिंधु घाटी सभ्यता में कुछ स्थानों में स्वास्तिक एवं पहिया के चिन्ह प्राप्त होने से इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि संभवतः यहां के निवासी सूर्य की पूजा करते थे. हालांकि इस बात की सत्यता के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है.

6. वृक्ष पूजा

सिंधु घाटी सभ्यता कालीन के कुछ मुहरों पर पीपल के वृक्ष, देवी अथवा वृक्ष देवता आदि अंकित मिले हैं. इससे उस समय के निवासियों के द्वारा वृक्ष पूजा किए जाने की बात को बल मिलता है. उस समय नीम, खजूर, शीशम, बबूल आदि वृक्षों की पूजा की जाती थी. इतिहासकारों के मुताबिक वे सबसे ज्यादा पीपल के वृक्ष की पूजा किया करते थे क्योंकि वे इस वृक्ष को अन्य वृक्षों की तुलना में अधिक पवित्र मानते थे.
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7. नदी  पूजा

सिंधु घाटी सभ्यता के निवासियों के द्वारा नदी पूजा किए जाने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है, लेकिन विशाल स्नानकुण्डों को देखकर इतिहासकार इस बात की संभावना जताते हैं कि उस समय संभवत: नदी की पूजा की जाती थी. विशाल स्नानकुंडों को नदी  देवता का प्रतीक माना जाता था. संभवतः पवित्र उत्सवों एवं शुभ मुहूर्त पर उसमें सामूहिक स्नान करने की प्रथा थी.

8. मृतक संस्कार

वर्ष 1946 ई. में व्हीलर ने हड़प्पा में खुदाई करने के बाद यह पता लगाया कि उस समय मृतकों को दफनाने की प्रथा थी.  मोहनजोदड़ो की खुदाई से यह पता चलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग तीन प्रकार से मृतकों का अंतिम संस्कार किया करते थे. पहले तरीके में भूमि पर दफना कर समाधि बनाए जाते थे. दूसरी विधि में मृतकों को पशु-पक्षियों का आहार बनने  के लिए खुले स्थान पर छोड़ देते और उसके पश्चात उसकी अस्थियों को पात्र में रखकर भूमि में दफना दिया जाता था. तीसरे तरीके में शव को जलाकर उसकी राख और अस्थि को कलश रखकर गाड़ा जाता था. सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई करने के परिणामस्वरूप ऐसे बहुत से कलश के मिलने से इतिहासकारों ने यह अनुमान लगाया कि उस समय मृतकों का अंतिम संस्कार करने की यह विधि सबसे ज्यादा प्रचलित रही होगी.
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9. अन्य प्रथाएं

सिंधु घाटी सभ्यता के प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि उस समय के लोग भी पूजा में धूप व अग्नि का प्रयोग करते थे. पूजा करने के दौरान गाने-बजाने के भी संकेत मिलते हैं. इसके अतिरिक्त कई स्थानों से ताबीजों के प्राप्त होने से इतिहासकारों ने यह अनुमान लगाया कि उस समय के लोग तंत्र-मंत्र जैसे क्रियाकलाप भी किया करते थे.
सिंधु घाटी सभ्यता के निवासियों के धार्मिक रीति-रिवाज का मुख्य आधार कौन सा देवी या देवता हुआ करता था, ये तो स्पष्ट नहीं है, पर यहाँ मिले अवशषों से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि आधुनिक युग के लोगों की तरह ये भी धार्मिक कर्मकांड किया करते थे. 

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