स्कंदगुप्त और हूणों के मध्य हुए संघर्ष पर प्रकाश डालिए

स्कंदगुप्त और हूण संघर्ष

कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल में प्रारंभिक काल में शांतिपूर्वक बीता, किंतु स्कंदगुप्त के प्रारंभिक काल के 12 वर्ष अत्यंत संघर्ष के साथ बीता. इस काल के दौरान उसे अपने साम्राज्य के गौरव सम्मान को सम्मान को बचाए रखने के लिए निरंतर भीषण युद्ध में वक्त बिताना पड़ा.

स्कंदगुप्त और हूणों के मध्य हुए संघर्ष

स्कंदगुप्त के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना हुणों के द्वारा गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण करना था. हूण मध्य एशिया के खानाबदोश लोग थे. उन्हें अपनी बर्बरता और युद्ध कौशल के कारण उन्हें खुदा का कहर कहा जाता था. भारत पर आक्रमण करने से पूर्व उन्होंने डेन्यूब से सिंधु नदी तक के क्षेत्र को आतंकित किया था. स्कंदगुप्त सिहासनारुढ़ होते ही उसे हूणों के आक्रमण का सामना करना पड़ा था. स्कंदगुप्त ने अत्याचारी हूणों को परास्त कर न केवल गुप्त साम्राज्य की रक्षा की बल्कि उसने आर्य सभ्यता एवं संस्कृति को भी नष्ट होने से बचाया.

स्कंदगुप्त और हूणों के मध्य हुए संघर्ष

स्कंदगुप्त और हूणों के मध्य हुए संघर्ष के विषय में जूनागढ़ अभिलेख, भीतरी अभिलेख चंद्र गर्भ परी परिपृच्छा,  चांद्र-व्याकरण तथा कथासरित्सागर आदि ग्रंथों से प्रकाश पड़ता है. भीतरी अभिलेख से यह ज्ञात होता है कि स्कंदगुप्त हुणों के गर्व को चूर करने में पूर्णत: सफल रहा. इस अभिलेख के अनुसार जिस समय हुणों और स्कंदगुप्त के मध्य युद्ध हुआ, उस समय स्कंदगुप्त की भुजाओं के प्रताप से संपूर्ण पृथ्वी कांपने लगी और एक भयंकर बवंडर उठ खड़ा हुआ. इसी लेख में आगे कहा गया कि स्कंदगुप्त ने अपनी दोनों भुजाओं से अवनि को जीत लिया था जिस से दिन-प्रतिदिन उसका यश बढ़ता चला गया और बंदी जनों की स्तुति का विषय बन गया. जूनागढ़ अभिलेख में स्कंदगुप्त की प्रशंसा करते हुए लिखा गया कि स्कंदगुप्त ने हूणों के गर्व को इस प्रकार चूर-चूर कर दिया था कि वे अपने देश में भी उसका यशोगान करने लगे थे. जूनागढ़ अभिलेख ने हूणों को म्लेच्छ कहा गया है. साहित्यिक ग्रंथों में भी हूणों पर स्कंदगुप्त की विजय का वर्णन मिलता है.

स्कंदगुप्त और हूणों के मध्य हुए संघर्ष

स्कंदगुप्त और हूणों के बीच युद्ध किस स्थान पर हुआ, यह एक विवादास्पद है. भीतरी अभिलेख में कहा गया कि गुप्त धनुर्धरों के शर-टंकारों की गर्जना ने शत्रु के कानों में गंगा की ध्वनि जैसे गूंज भर दी थी. अतः ऐसा प्रतीत होता है कि हूणों के साथ स्कंदगुप्त का युद्ध गंगा के उत्तरी घाटी में किसी स्थान पर हुआ था.

स्कंदगुप्त और हूणों के बीच हुआ यह युद्ध गुप्त साम्राज्य के इतिहास लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था. यह एक निर्णायक युद्ध था जिसमें विजय होने से स्कंदगुप्त अपने विचलित वंश को पुनः स्थापित करने और और शासन को सुप्रतिष्ठित करने में सफल हुआ. प्रो. पांथरी ने स्कंदगुप्त की प्रशंसा करते हुए लिखा है, “निसंदेह स्कंदगुप्त ने हूणों की तूफानी आक्रमण की प्रथम बाढ़ को रोककर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को उनकी नृशंसता द्वारा नष्ट-भ्रष्ट होने से बचा लिया था. स्कंदगुप्त की हूणों पर विजय निश्चय ही उसकी एक महान उपलब्धि थी, जिसने इस प्रवीर सम्राट का यश देश-देशांतर में विकीर्ण किया.” प्रोफेसर दाण्डेकर ने भी इस विषय में लिखा है, “स्कंदगुप्त सर्वोच्च प्रशंसा का अधिकारी है जो निसंदेह हूणों को परास्त करने वाला यूरोप और एशिया का प्रथम वीर था.  स्कंदगुप्त ने हूणों के द्वारा की गई बर्बादी को आगामी 50 वर्षों तक रोक कर भारत की महती सेवा की.”

स्कंदगुप्त और हूणों के मध्य हुए संघर्ष

स्कंदगुप्त ने हूणों को परास्त करने के पश्चात विक्रमादित्य और क्रमादित्य की उपाधि धारण की तथा इस विजय के उपलक्ष में उसने सारंग धारण करने वाले भगवान शिव की मूर्ति भीतरी में स्थापित की.

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